Pratishodh - 3 in Hindi Love Stories by Saroj Verma books and stories PDF | प्रतिशोध--भाग(३)

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प्रतिशोध--भाग(३)


रात्रि हुई सत्यकाम अपनी कुटिया में पड़े पुवाल से बने बिछावन पर लेट गया, परन्तु निद्रा उसके नेत्रों से कोसों दूर थी,उसकी कुटिया वैसे भी एकांत में सबसे अलग थी इसलिए कम लोग ही गुजरते थे उधर से, उसका मन व्याकुल था वो किसी से वार्तालाप करना चाहता था अपने मन में हो रहे कौतूहल को किसी से कहना चाहता था परन्तु असमर्थ था,अपने समीप किसी को ना देखकर उसका मन कुछ गाने को करने लगा और वो अपने बिछावन पर लेटे लेटे वहीं भजन गुनगुनाने लगा जो प्रात: माया गा रही थी।।
वो मन में सोचने लगा कि माया कितना मधुर गाती है,कितने सरल स्वाभाव की है वो,मुॅख पर चन्द्रमा सी शीतलता और भोलापन है, संसार से अलग जीवन जी रही है, सबसे परे है उसका अपना संसार भक्तिमय और सरस,यही सोचते सोचते सत्यकाम को निंद्रा रानी ने घेर लिया।।
भोर हुई,खगों के कलरव ने वातारण को ध्वनियुक्त कर दिया,सत्यकाम ने अपने नेत्र खोले और नित्य नियम के अनुसार चल पड़ा गंगा स्नान हेतु,वो जानकार उसी मार्ग से गया जहां कल प्रातः उसे माया मिली थी लेकिन ये क्या आज माया वहां नहीं थी, उसने आस पास के और भी स्थान देखें परन्तु माया उसे कहीं भी दिखाई ना दी,अब सत्यकाम को गहरी उदासी ने घेर लिया, लेकिन वह अपना मन मारकर पुनः गंगा की ओर चल पड़ा, गंगा-स्नान करके उसने सूर्यदेवता को अर्घ्य दिया और अपने लोटे में गंगाजल भर कर गुरूकुल लौटने लगा, परन्तु उसका चंचल मन ना माना वो तो बस एक बार माया के दर्शन करना चाहता था।।
सत्यकाम के मन में ना जाने क्या आया उसने अपना मार्ग बदल लिया और चल पड़ा माया की कुटिया की ओर, उसने कुटिया के बाहर लकड़ी की बनी पटरियों से बने किवाड़ को हटाया और जा पहुंचा माया की कुटिया के द्वार पर।।
माया...माया... कहां है देवी आप? सत्यकाम ने व्याकुल होकर माया को पुकारा।।
जी.. कौन?..कौन है,भीतर से माया ने पूछा।।
अरे, मैं सत्यकाम,जो कल आपको गंगा स्नान के मार्ग पर मिला था,सत्यकाम ने उत्तर दिया।।
जी, आप है श्रीमान! माया ने कहा।।
जी,आज आप क्यों नहीं आईं देवी! सत्यकाम ने माया से पूछा।।
जी श्रीमान! आज मैं थोड़ी अस्वस्थ थी,माया भीतर से बोली।।
अस्वस्थ! चौंकते हुए सत्यकाम बोला, पुनः उसने पूछा__
क्या हुआ है ?आपको देवी!
जी, मुझे ताप है, कदाचित शीत ने आ घेरा है,माया ने उत्तर दिया।।
जी, मैं भीतर आ रहा हूं, कृपया मुझे आपकी नाड़ी स्पर्श करके देखने दें कि आप को ताप कितना है,सत्यकाम बोला।।
परन्तु आप कोई वैद्य तो नहीं है,माया ने पूछा।।
ऐसे छोटे-छोटे उपचार करने भी हमें गुरूकुल में सिखाएं जाते हैं,सत्यकाम बोला।।
अच्छा, ठीक है है,आप भीतर आ जाएं, श्रीमान!
माया ने कहा।।
सत्यकाम जैसे ही भीतर पहुंचा,तो देखा कि माया, अपने पुवाल के बिछावन पर लेटी हुई है,सत्यकाम शीघ्रता से माया के निकट जा बैठा,अपने गंगा जल से भरे लोटे को उसने धरती पर रखा और उसका हाथ अपने हाथ में लेकर उसकी नाड़ी देखने लगा,ताप तो था किन्तु हल्का था।।
माया ने पीने के लिए जल मांगा,तब सत्यकाम ने अपना गंगा जल से भरा लोटा माया के हाथों में सौंप दिया__
अरे,ये क्या? कदाचित ये तो आपका लोटा लग रहा है और आप ना जाने किस पवित्र कार्य के लिए गंगाजल ले जा रहे होंगे, मेरे हाथों में आकर ये तो अपवित्र हो गया,माया बोली।।
नहीं देवी! अभी इस समय आपको इसकी अधिक आवश्यकता है, गंगा का ताजा जल पीकर आपको अच्छा लगेगा और इस जल का उपयोग पूजा अर्चना में लगे या किसी रोगी को स्वस्थ करने में,वो एक ही बात है, कार्य तो दोनों ही पवित्र हैं,सत्यकाम बोला।।
कितने ऊंचे विचार हैं आपके और कितना सरल स्वभाव है आपका, ऐसा जान पड़ता है कि जैसे आप मेरे लिए अपरिचित नहीं हैं, मैं आपको पिछले जनमों से जानती हूँ,माया बोली।।
जी,अब तो आप मुझे महान बनाने का प्रयास कर रहीं हैं, सत्यकाम बोला।‌
जी नहीं, मैं किसी की झूठी प्रसंशा नहीं करती,माया बोली।।
अच्छा! आप कुछ समय मेरी प्रतीक्षा करें, मैं शीघ्र ही ताप उतारने की जड़ी बूटी लेकर आता हूं ,सत्यकाम बोला।।
अच्छा ठीक है,माया बोली।।
और सत्यकाम चला गया,जड़ी बूटी लेने, सत्यकाम के जाते ही माया उठी और बाहर आकर झोपड़ी के पीछे छुपी अपनी दासी को बुलाया,दासी माया के पास आकर बोली।।
मान गए राजनर्तकी जी,क्या मूर्ख बनाया आपने आचार्य शिरोमणि के शिष्य को, ऐसा प्रतीत होता है कि आपके प्रेम में तो जैसे उसने अपने गुरूकुल के सभी नियम बिसार दिए हैं।।
वो तो तुमने ताप चढ़ने की बूटी लाकर दी,उसी ने ऐसा असंभव कार्य किया है, माया बोली।।
हाँ,वो मेरा मनचला प्रेमी है ना,मैने उसी से कहा था कि मेरा विश्राम करने का मन है, महल नहीं जाना चाहती कार्य करने,कहीं से ताप चढ़ने की बूटी ला दो,तो ले आया बेचारा तरस खाकर,मधुमालती बोली।।
अच्छा, ठीक है अब तुम जाओं,क्योंकि मैं आज अभी तुम्हारे साथ महल नहीं लौट पाऊँगी,कदाचित आज कुछ समय तक सत्यकाम मेरे उपचार हेतु मेरे समीप ही रहेगा, इससें मुझे एक और अवसर मिल जाएगा, उससे झूठे प्रेम का अभिनय करने,इससें हम दोनों के मध्य और भी निकटता आएंगीं, माया बोली।।
मान गए आपको राजनर्तकी योगमाया, क्या योजना बनाई है आपने आचार्य शिरोमणि से अपना प्रतिशोध लेने की,दासी मधुमालती बोली।।
आचार्य शिरोमणि ने मेरा अपमान किया था,मैं ये सरलता से नहीं भूल सकती थी,योगमाया बोली।।
अच्छा, देवी! अब मैं जाती हूँ, सत्यकाम लौटने वाला होगा तो आज रात्रि राजा हर्षवर्धन से क्या कहूँ कि आप नृत्य क्यों नहीं करेंगीं, मधुमालती ने योगमाया से पूछा।।
कह देना स्वस्थ नहीं हूँ और कोई भी मेरे कक्ष मे प्रवेश ना करें, मेरा रोग दूसरों को भी संक्रमित कर सकता हैं, योगमाया बोली।।
और उस झोपड़ी से मधुमालती महल वापस लौट गई और कुछ समय पश्चात झोपड़ी में सत्यकाम वापस लौटा।।
ये लीजिए,मैं कुछ फल भी लाया हूँ आप ये खाकर ये जड़ी बूटी खा लीजिए और कुछ देर के विश्राम के पश्चात आपका शरीर स्वस्थता का अनुभव करेंगा, सत्यकाम ने माया से कहा।।
आप मेरे लिए इतना कष्ट क्यों उठा रहे हैं, माया ने पूछा।।
मानवता के नाते,सत्यकाम बोला।।
सत्यकाम के कहने पर माया ने फल और जड़ी बूटियांँ खा लीं और सत्यकाम से बोली मैं अब विश्राम करना चाहतीं हूँ, अब आप जा सकते हैं।।
नहीं देवी! आप विश्राम कीजिए, जब तक आपका ताप नहीं उतर जाता,तब तक मैं आपके निकट बैठूँगा, सत्यकाम बोला।।
और कुछ समय पश्चात माया निंद्रा में लीन हो गई और सत्यकाम उसे बस देखता ही रहा और कुछ समय पश्चात सत्यकाम ने झोपड़ी में रखी वस्तुओं पर दृष्टि डाली,देखा तो एक कोने में भोजन पकाने के लिए कुछ बरतन और जल के लिए एक मटका था,वहीं दूसरें कोने में माया का इकतारा और करतल रखीं हुईं थीं।।
समय समय पर सत्यकाम,माया की नाड़ी टटोलता और कपाल स्पर्श करके देखता,अब ताप कुछ कम प्रतीत हो रहा था और माया भी विश्राम करने का अच्छा अभिनय कर रहीं थी,उसे लग रहा था कि अब तो सत्यकाम उसके मोह में फँस चुका हैं।।
कुछ समय पश्चात माया जाग गई, उसने कहा कि अब आप जाएं श्रीमान मैं स्वस्थ हूँ।।
सत्यकाम बोला,मैं सायंकाल पुनः आऊँगा।।
माया बोली ठीक है और सत्यकाम चला गया।।
परन्तु उधर गुरूकुल में आचार्य शिरोमणि अत्यधिक क्रोधित थे, कि पूजा अर्चना के समय पर सत्यकाम कहाँ चला गया और गया तो उसने किसी को कोई सूचना क्यों नहीं दी....
आचार्य शिरोमणि गुरूकुल के प्राँगण में सत्यकाम की प्रतीक्षा कर रहें थे तभी सत्यकाम ने प्रवेश किया___

क्रमशः____

सरोज वर्मा___