मैं तो ओढ चुनरिया
अध्याय पाँच
शाम होते ही दोनों मामा ,मां और दो संदूकों के साथ रिक्शा में बैठकर हम सब चल पङे हैं । माँ ने मुझे दुपट्टे में छिपा रखा है । बाहर तरह तरह की आवाजें आ रही हैं और मैं इन्हें बिलकुल नहीं देख पा रही । यह अहसास मुझे उन दिनों की याद करवा रहा है ,जब मेरा जन्म नहीं हुआ था । माँ कहीं बाजार जाती , तब भी मैं सिर्फ सुन पाती थी । कुछ दिखाई नहीं देता था । तब मैं कितना डर जाती थी और पैर पटकती हुई माँ से चिपक जाती ।
तभी मामा छलांग लगाकर रिक्शा से नीचे उतर गये हैं – लाओ , बहनजी इसे मुझे पकङा दो और आराम से उतर आओ । माँ ने मुझे कस्तूरी मामा को दे दिया है और रिक्शा से उतर गयी है । सामान उतारकर वे लंबे से प्लेटफार्म पर आ गये है । साथ के साथ गाङी प्लेटफार्म पर आ लगी है । इंजन की सीटी की आवाज आ रही है । मैं हैरान परेशान यह सब देख रही हूँ । रेल के रुकते ही हम सब उस पर सवार हो गये हैं । गाङी खचाखच भरी है । कहीं खङे होने की जगह नहीं है । मुझे घबराया देखकर एक लङका अपनी सीट छोङकर उठ खङा हुआ और माँ मुझे गोदी में लेकर बैठ गयी । कस्तूरी मामा और छोटा मामा डब्बे के दरवाजे पर जा खङे हुए तो माँ घबरा गयी । जोर जोर से पुकार कर वहाँ से हटने की हिदायत दे रही है ।
हम घर पहुँचे । हमारा भव्य स्वागत किया गया । दहलीज के दोनों ओर तेल ढारा गया । तेल में डूबी बत्ती दहलीज के बीचोबीच रखी गयी । सङक की मिट्टी मेरे माथे से छुहाई गयी । अन्दर आकर मेरे ऊपर से मिरचें वारी गयी । मुझे एक बुजुर्ग महिला ने गोद में लिया तो मैं रोने लगी ।
“ अरे अरे , रोती क्यों है , ये तो नानी है , मेरी भी नानी , बङी नानी , नानी बेबे , समझी । बेबे । “ - माँ मुझे सबसे मिलवा रही है । “ देख , ये हैं तेरे बङे मामा , ये तेरे बिचले मामा और ये नानी । मिल सबसे । अबतो हम यहाँ रहेंगे तो सबसे दोस्ती करनी पङेगी “ ।
मां यहाँ आकर बहुत खुश है । सारा दिन चिङिया की तरह चहकती रही । मायका है न । उसके अपने लोग । सबसे बार बार गले मिल रही है । सबका नाम लेकर हालचाल पूछ रही है । सब उसका हाल पूछ रहे हैं । मुझे देख रहे हैं । अपनी गोद में लेना चाहते हैं पर मैं तो किसी को जानती नहीं । मैं कैसे जाऊँ ।
शाम होते होते मैं सबको पहचानने लगी पर अभी गोद सिर्फ बेबे की ही जाना है या छोटे मामा की । बाकी सबसे दूर से ही बात करनी है । दो दिन लगे मुझे सबसे हिलने मिलने में । फिर मैं सबके पास जाने लगी । अब मैं उनकी बातें सुनती ,समझने की कोशिश करती और उन्हें मुस्कुराता देख मुस्कुरा देती । सब मुझे पानपत्ते सा फेरा करते । यहाँ तककि सो जाती तो भी गोद से नीचे न उतारते ।
माँ भुनभुनाती – “ बिगाङ दो इसे । वहाँ जब सारा काम करना पङेगा , तब इसे कौन लेके बैठेगा गोदी में । काम कैसे करूँगी मैं “ । पर किसी के कान पर जूं तक न रेंगती ।
धीरे धीरे जैसे मैंने सबसे दोस्ती करली , माँ मेरी ओर से बिल्कुल लापरवाह हो गयी । मुझे बेबे या मामाओं की गोद में देकर वह सारा दिन कढाई ,सिलाई में लगी रहती । जब मुझे बहुत भूख लगती , तभी माँ मेरे पास आती और दूध पिलाकर फिर से किसी न किसी को पकङा देती । यहाँ तककि रात को भी मैं बेबे की गोदी में सो जाती ।
बेबे ही मेरी मालिश करके नहलाती , उँगलियों से मेरे बाल सुलझाती । मुझसे ढेर सारी बातें करती । मामा सुबह उठते ही मुझे गोद में लेकर खिलाते । बार बार काम पर जाने का याद दिलाया जाता पर वे मुझे छोङते ही न थे । आखिर नौ बजे भाग दौङ मचती । तीनों मामा जल्दी जल्दी तैयार होते । इस बीच बेबे नहाधोकर तुलसी को जल चढाती । भागते भागते शिवमंदिर में जल चढाकर आती । तबतक मामा रोटी खाने के लिए बैठ चुके होते । बेबे के मंदिर से लौटते ही मामा काम पर चले जाते तो शाम को लौटते ।
और एक दिन पिताजी सुबह सुबह आ गये । मैंने उन्हें देखा तो खुश हो गयी । पिताजी ने गोद में लिया – अरे तू भूली नहीं । मुझे लगा था ,इस एक महीने में तू मुझे पहचानेगी नहीं । पर तुझे तो सब याद है । मैने कसकर उनकी कमीज पकङ ली मानो कह रही होऊँ- अब मैं आपको जाने नहीं दूँगी । सब मेरी इस हरकत से हँस पङे । इसके बाद के चार पाँच दिन घर में बहुत भीङ और शोर रहा । बैंड , ढोल बाजों के बीच घर में मामी आ गयी थी । लंबी ,पतली ,एकदम गोरी चिट्टी मामी ।
फिर सब लोग जैसे आए थे , वैसे ही वापिस चले गये । पिताजी की छुट्टी भी खत्म हो गयी थी इसलिए हमें भी जाना था । मन न होते हुए भी माँ तैयार हो गयी और हम अपने घर लौट आए ।
बाकी अगली कङी में ....