The waves in Hindi Moral Stories by Neelam Kulshreshtha books and stories PDF | लहरें

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लहरें

नीलम कुलश्रेष्ठ

“पढ़ाई के तो हम शुरू से चोर हैं ।” कहते हुए कानपुर की बीजू ने जाड़े के कारण लाल पड़ गयी नाक को ओवरकोट की बाँह में छुपा लिया । उसके कटे हुए बालों में से उसका साफ उजला आधा चेहरा दिखाई दे रहा है । उसका दिल हुआ अभी इसकी ठौड़ी पकड़कर पूरा चेहरा सामने से आये और आँखों में आँखें डालकर पूछे, “मैडम, आप पढ़ाई की चोर है तो इस लोक सेवा आयोग की इमारत में क्या खाक छानने आयी है !”

इतिहास का दूसरा प्रश्न पत्र अभी बाकी है । लड़के-लड़कियाँ इधर-उधर टोली बनाकर बिखरे हुए हैं । इलाहाबाद की वह, लखनऊ की इरा, मुरादाबाद की अनिला व एक-आध और  इधर-उधर की । यह छोटा-सा ‘गृप’ इमारत की पिछली सीढ़ियों पर अलसाया-सा पड़ा है । इनको फालतू क्षणों को सरकाने के लिए यही कोना रास आ गया है । सामने वाले नीम के पेड़ पर से धूप आती भी है तो छन-छनकर । उस गुनगुनी धूप से त्वचा पर हल्काहल्का सेंक बहुत अच्छा लगता है । मुरादाबाद की अनिला को छोड़कर उसे बाकी सब पर तरस आने लगता है । पढ़ने की तो सभी चोर है, फिर कौन तीसमारखां उन्हें यहाँ महत्त्वाकांक्षाओं के पंख लगाकर बैठा गया है । ऊँह, एस.डी.एम. बनेंगी । बस, ऐसे ही खयाली पुलाव बना रोमांचित होती रहेंगी, पुलकित होती रहेंगी ।

“पिछले वर्ष मैंने नीमा शर्मा को तो देखते ही कह दिया था कि तू तो बस एस.डी.एम. बनने के लिए पैदा हुई है । क्या अकड़ थी चाल में, बात करने में बहुत सॉफिस्टिकेटेड ! कपड़ों के रंग चुनने में एक डिग्निटी, वाकई पहली बार में ही सिलेक्ट हो गयी ।”

खुश तो सब ऐसे हो रही हैं जैसे वह ही चुन ली गयी हो ।

वह ही सबसे कम बोलती है । कहाँ घुल-मिल पाती है शहर-दर-शहर से आयी लड़कियों में । अभी ऐसी खिलखिला रही हैं । साल-दो-साल बाद सद्गृहिणी बनी पता नहीं किसके बच्चे खिला रही होंगी । कहाँ की लोक सेवा आयोग की प्रतियोगिता ---- की वह सिरदर्द पढ़ाई । अपनी गृहस्थी में रसे हुई भी डींग मारने से नहीं चूकेंगी । “हाँ, एक बार तो ‘कॉम्पिटीशन’ में हम भी ‘एपीयर’ हुए थे । बस एक दो ‘एटेम्प्ट’ में तो कोई ‘सिलेक्ट’ नहीं हो जाता । बस, उसी वर्, शादी हो गई वर्ना...।” वर्ना वह जानती है यदि इन लोगों की दो-तीन वर्ष शादी नहीं होगी तो लोक सेवा आयोग में माथा फोड़ने आती रहेंगी । वह दुआ करती है जल्दी ही, इनकी शादी तय हो, तो इनके दहेज में दो चार गाड़ी बढ़ जायें ।

वह भी क्या इन्हीं की तरह... ? वह कुछ सोच नहीं पाती । उसे लगा उसके डैडी अभी रेशमी गाऊन की डोरियाँ कसते हुए उसकी स्टडी में आ निकलेंगे । अपनी उसी बुलन्द आवाज़ के साथ कहेंगे,“इस बार तो तुम्हें ‘रिटेन’ में सिलेक्ट होकर ‘इंटरव्यू’ तक पहुँचना है । अगले ‘कॉम्पिटीशन’ के बाद मैं तुम्हें एस.डी.एम. बना देखना चाहता हूँ ।”

डैडी को देखते ही वह शुरू से ही सहमती रहती है, वह क्या, मम्मी से लेकर दरवाजे पर खड़ा अर्दली तक उनके दबंग व्यक्तित्व से दब से जाते हैं । इतने ऊँचे सरकारी पद ने उसके डैडी की नाक को कुछ ज्यादा ही ऊँचा कर दिया था । हर एक आदमी के अंदर पहले-पहले एक मगरूर हाथी बौराता है । ऐसा ही हाथी उनके अंदर भी हमेशा झूमा करता था, लेकिन भगवान भी आदतन एक चींटी उस हाथी के कान में घुसा उसके मद को हड्डी टूटी बांह-सा झुला देता है । ऐसी ही तो चींटी है भैया, नहींतो पता नहीं, डैडी की नाक ऊपर कौन से आसमान में जाकर धसती ।

“तेरे डैडी क्या करते हैं?” बीजू तुषार से पूछ रही है ।

“अपना तो आगरे के सिन्धी मार्केट में कपड़ों का बिजनैस है ।”

“सच? तब तो तू मुझे अपना पता जरूर दे देना । अपनी शादी की साड़ियाँ तेरे यहाँ से ही खरीदूँगी । क्यों ‘कन्सेशन’ दिलवायेगी न !” कहकर बीजू बच्चों की तरह खुश होकर हंसती है ।

लोक सेवा आयोग की सीढ़ियों पर कही गई यह बात उसे बहुत बेतुकी लगती है । बीजू के तो ढंग ऐसे है कि यदि अभी कोई उसे शादी करने वाला मिल जाये तो दूसरा प्रश्न पत्र भी न दे, फौरन ही उसका हाथ पकड़कर भाग जाये ।

“बीजू ! तू क्यों ‘कॉम्पिटीशन’ में ‘एपियर’ हो रही है? शादी करके घर बसा न ! क्यों मा-बाप का पैसा खराब कर रही है ?”

“शादी ? अरे ! लड़का मिले तो अभी शादी कर लूं । देख, मेरे मम्मी-डैडी बहुत नक्कू है, कोई नौकरी करने देंगे नहीं । मेरा टाइम पैसे पास हो ? ‘कॉम्पिटीशन’ का बहाना अच्छा है, इलाहाबाद घूमकर जरा बोरियत कम हो जाती है ।”

“अरे ! नूपुर तू?”

“विमल दीदी आप ?” वह विमल दीदी को यहाँ देख चकित है । वे शान से बता रही हैं कि इस परीक्षा में दूसरी बार बैठ रही है । तो गोवा से भी यहाँ शौक बर्राने आती रहती हैं । उसका दिल होता है अभी उनकी दोनों बाहें पकड़कर उनसे पूछे, “यू मिडिल क्लास गर्ल! यहाँ क्या समय बर्बाद करने आयी हो? जब मैं नानाजी के यहाँ आती थी तो तुम्हारे पिता यहाँ से रोज अखबार मांग कर पढ़ते थे । जाओ, जाओ दीदी ! पढ़ने में तुम अच्छी सही, लेकिन और बहुत-सी बातें यहाँ आने से पहले आनी चाहिये । क्या तुम मेरी तरह ‘ट्रिपल’ के’ व ‘चोपम’ का ‘एलेबिएमन’ सोते से उठकर भी बता सकती हो? नहीं न ! फिर क्यों अपने मा-बाप की गाडी कमाई बर्बाद कर रही हो ?”

दीदी सबका हाल पूछकर जल्दीजल्दी अपने गृप के साथ चल देती है । उन्हीं के साथ नाजुक गोरी लड़की है । सामने खड़े लड़कों के झुण्ड में से कोई लड़का इस लड़की को घूरता हा फिकरा कसता है, “लखनवी माल जा रहा है ।” स्वयं भी जरूर लखनऊ का ही होगा, तभी अपने शहर की लड़की देखकर बोले बिना चैन नहीं पड़ा ।

“अच्छा, भाभी इस समय क्या कर रही होंगी । वह सोचने की कोशिश करती है । वे जरूर अपने कमरे में बैठी अपनी डायरी में कोई उदास कविता लिख रही होगी या बोझिल आँखें लिए सो गयी होगी । और भैया ? जरूर एक्सपोर्ट-इम्पोर्ट के बिजनेस का बहाना कर स्कूटर लेकर घर से निकल गये होंगे ।”

डैडी ने सोचा था शायद भैया शादी के बाद भाभी से जुड कर सुधर जाये । भैया के शादी के लिये भी तो कैसी-कैसी शतरंज की गोटे बिछायी थी । भैया तो दसवीं पास करते ही आवारगी में पड़ गये थे । लुढकने धुड़कते बी.ए. पास कर पाये थे ।  डैडी को लगने लगा था पर मैं भगवान का दिया सब कुछ है, घर में बहू आ जाये, तो रोनक आ जाये । शहर भर में बदनाम भैया को लड़की कौन देता ? बस डैडी ने उन्हें आई.ए.एस. की परीक्षा में बैठा दिया । दूर-दूर के शहरों ने उनके रिश्ते आने लगे । सब सोचते थे घर-बार तो अच्छा है,  लड़का आई.ए.एस. बन जाये तो लड़की की तकदीर सुधर जायेगी । उन्हीं में से सबसे सुंदर कुशाग्र बुद्धि की लड़की छाँटी गयी थीं ।

शादी के समय भाभी कितनी सुन्दर लग रही थीं । वह चेहरा बाद करके उसका दिल बेहद उदास हो जाता है, उस विदुषी भाभी ने तकदीर कैसी पायी थी ? हर समय बाल बिखेरे, पान चबाते, बात-बात पर बिफरते भैया से उनका कहीं तो कोई साम्य नहीं है ।

“तू कहाँ खो गयी?” तुषार उसके चिकोटी काटती है । वह झेंपकर मुस्करा देती है, “ऊँ”...कही नहीं ।”

“हाँ, तो मैं यह पूछ रही थी तू क्या मिधा को जानती है ? वह ना तेरे ही शहर की है ।”

“कभी मिली नहीं, बस नाम सुना है ।”

“क्या मर्दानी पर्सनेलिटी है । हमारे शहर में आजकल वही डिप्टी कलक्टर है । एक बार तो नंबर स्ट्राइक के कारण जब स्थिति बेकाबू हो गई, तो स्वयं ही डंडा लेकर जीप से कूद पड़ी थी ।”

“मजदूरों भीड में अकेली लेडी....।”

“हाँ, मगर मजाल है जो किसी आदमी की हिम्मत उसे छूने की पड़ी हो ।”

“मतलब आप यह कहना चाहती है कि आपके शहर में मिनी इंदिरा गांधी का राज्य चल रहा है । ही....ही...ही।”

हँसी जरा थमती है तो बीजू अपने ओवरकोट की जेब से मूंगफली निकालती है... “सोरी यार! अभी तक याद ही नहीं आया कि जाड़ों की मेवा जेब में पड़ी है । चलो, खाओ...खाओ... डंडे-पिस्तौल चलाने की ताकत जायेगी । फिर एक मिनट की हा....हा....हो ।

“अरे ! देख सायकोलोजी के गुप्ताजी भी इधर की हवा खाने आये हैं ।”

“लग तो पूरे हीरो रहे है ।”

“क्लास में लड़कियों को देखकर तो और भी हीरो बनते हैं ।”

उसी गृप में रजनी का भाई विजय भी है । बी.ई. कर ली है, नौकरी नहीं मिली है, इसलिये यहीं भाग्य आजमा रहे हैं ।

नूपुर कहना चाहती है नौकरी मिल भी जाये तो ये महोदय यहाँ झांकना नहीं छोडेंगे । प्रशासकीय नौकरियों का नशा ही कुछ ओर है । दो-तीन साल तक तो सब जरूर आई.ए.एस. पी.सी.एस. बनने के सपने देखते हैं । फ्री इंडिया है, खूब सपनें देखो बच्चू । कौन रोकता है । भई, उम्र भी तो तुम्हारी सपनें देखने की है, अपने बारे में ग़लतफहमियां पालने की है । बाद में ग़लतफहमियां अपने आप टूटेंगी, उनके टूटते ही किसी नौकरी से चिपक कर उससे समझौता कर लेता ।

“देख ! देख ! मिस पी.सी.एस. जा रही है ।”

वह चौंककर देखती है वाकई मिस पी.सी.एस. अभी भी गजब ढा रही है । उसे अच्छी तरह याद है पहले प्रश्न पत्र में ये दूसरे कपड़े पहनी थी । अब इस प्रश्न पत्र में ये स्टील कलर का चूडीदार सूट कहाँ से आ गया?

“ये तो अपने शहर से दो सूटकेस ड्रेसेज भरकर लाई होगी । क्या हर समय बनी-ठनी रहती है ।”

“मुझे तो किसी टेलर मास्टर की लड़की लगती है ।”  नूपुर स्वयं से कहती है, “उठिए मिस नूपुर जोशी! आपके डैडी ने दुनिया भर की बातें बताकर, बेस्ट कोचिंग में पढ़वाकर आपको भेजा है । कहना यह है कि वुड बी लेडी एस.डी.एम. । बी एलर्ट ! अपनी दार्शनिक नाजुक नर्म तबीयत डिब्बे में बंद करके पेपर देने जाइये ।”  अंदर जाते ही नूपुर के चेहरे पर मुस्कराहट आ जाती है यह सोचकर कि पेपर देकर जब बाहर निकलेंगे तो अधिकतर सभी बहुत आत्मविश्वास से हर बार की तरह बाहर आकर बतायेंगे कि पेपर बहुत अच्छा गया है, तो फिर क्यों सब-के-सब सिलेक्ट नहीं हो पाते ? यह सोच नहीं पाती ।

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- श्रीमती नीलम कुलश्रेष्ठ