Leave office - 26 in Hindi Fiction Stories by Veena Vij books and stories PDF | छुट-पुट अफसाने - 26

Featured Books
Categories
Share

छुट-पुट अफसाने - 26

एपिसोड---26

‌‌   कि जनवरी की एक सर्द सुबह भैया के साथ कोई सीढ़ियां चढ़कर ऊपर आ रहा था । देखा वे आर.के.स्टूडियो पहलगांव वाले थे। आश्चर्यचकित थी, अप्रत्याशित रूप से उन्हें अपने घर, अपने सामने देखकर। उनकी मीठी मुस्कान, बोलती आंखें और आकर्षक व्यक्तित्व जिसकी कैंप में भी चर्चा होती थी, उस को निहारते हुए, पापा ने बड़ी ही गर्मजोशी से उनका स्वागत किया। बाद में उन्होंने बताया कि वे स्टेट बैंक ऑफ इंडिया जालंधर में कार्यरत हैं। दोस्त के साथ मुंबई अपने चचेरे भाई बलराज विज जो फिल्म " वचन" के हीरो हैं, उनको मिलने और बम्बई घूमने गए थे। (फिल्म" वचन" का गाना" चंदा मामा दूर के, पुए पकाए दूध के", काफी मशहूर है) वापसी में जब "बीना"आया, तो सोचा कि कटनी पास ही है अब। मध्यप्रदेश के भी दर्शन कर लेते हैं। वह दोस्त वापिस चला गया। मुझे घूमने का बेहद शौक है। सो, मैं आपके पास आ गया।" इस बात पर पापा को लाहौर याद आ गया। वे जब भी दिल से खुश होते थे तो बोल उठते थे "वाह लाहौर बनाण वालया।"

‌  ‌‌हम सब उनके आस पास बैठकर उनकी बातें सुन रहे थे। वे दो दिन कटनी में रहे, सबसे काफी हिल- मिल गए थे! उन्होंने हमें अपने घर और कश्मीर के बारे में ढेर सारी बातें सुनाईं। पापा को शेरो- शायरी का शौक था तो अच्छी खासी महफिल जमी रही दो दिन। उन्होंने व हमने भी संग में गाने गाए। रौनक लगी रही। पापा ने उनको कटनी की बॉक्साइट और पत्थर की खदानें दिखाईं। शहर भी घुमाया। उनके साथ हिल-मिल गए थे!

‌  गर्मियों में पापा और मैं, मेरी सहेली शोभा की शादी में दिल्ली गए। वहां शोभा से फोटो का किस्सा पता चला कि सही में ...एक ही लिफाफे में चारों नेगेटिव इकट्ठे पड़े होने से चारों फोटोस बना दी गई थीं। दिल्ली में जब वो उसे फोटो देने आए तो वो चौथी फोटो मेरी निकली इसलिए, मेरा एड्रेस लेकर मुझे कॉलेज में पोस्ट कर दी थी। जब वे कटनी आए तो हमने उनसे जानबूझकर यह बात नहीं पूछी थी। अब मुझे बात समझ आ गई थी।

‌बोली, "रवि भैया भी शादी पर पहुंच रहे हैं। और what a coincidence उसी पल वे हमारे सामने थे। उन दिनों सेल फोन तो होते नहीं थे। सो वे फोटोग्राफी कर रहे थे। उनके आसपास लड़कियों का हजूम ही लगा रहता था। मैं शोभा के साथ शादी में व्यस्त थी, तो पापा एकदम फ्री उनके साथ गपशप चलती रहती थी उनकी। शादियों में यही होता है मेहमानों की आपस में दोस्तियां हो जाती हैं। यह तो हम सभी का अनुभव है। 1966 में भैया की शादी पर पापा ने भी सबको निमंत्रण भेजा।

‌शादी भरूच गुजरात में थी। वहां शोभा लोग और रवि जी इकट्ठे पहुंचे थे । वापसी में रिसेप्शन के लिए सब कटनी आ गए थे। वहां से सबको नर्मदा नदी पर संगमरमर की चट्टानें दिखाने जबलपुर भेड़ाघाट धुआंधार ले जाया गया था। परिवारों में मेलजोल बढ़ गया था।

एक बार पापा और मैं पालमपुर हिमाचल प्रदेश जा रहे थे बहन उषा की ननद की शादी पर। राह में जालंधर ठहरते हुए हम आगे बढ़े । रवि जी के परिवार में उनके बीजी और भाई- बहन से मिलना हुआ। सभी कहते थे कि यह नेहरू और इंदिरा की जोड़ी है-- बाप- बेटी की ! दोनों इकट्ठे ही जाते हैं सब जगह।

होनी के बीज का जो अंकुर फूटा था, उसका लालन-पालन प्रेम से हो रहा था और उसने एक पौधे का रूप धर लिया था अंजाने में। मुझे आभास ही नहीं था, क्योंकि जीवन में बहुत कुछ इधर उधर चल रहा था।

1967 में मैं बी. ऐड. कर रही थी। मेरी बहन की शादी मे रवि जी अपनी बहन सुदेश (फ़ाक़िर) के साथ कटनी आए। उन्हीं दिनों हमने एक दूसरे के लिए खिंचाव महसूस किया। कदाचित भाग्य कोई करवट लेने वाला था। या भाग्य की लकीरों ने अपने लिए कोई ऐसा रास्ता तलाश लिया था जिसमें उन्हें मंजिल नजर आ रही थी। गोया कि "होनी" के पौधे ने एक वृक्ष का रूप धर लिया था।

फोन का जमाना तो था नहीं। इश्किया जज्बातों का इजहार चिट्ठियों में होता था उन दिनों, जिन्हें किताबों के पन्नों में पनाह मिलती थी। इस पर एक शे'अर याद आ रहा है...

 

"साजिशें कर लम्हों ने हमें मिला ही दिया

दूरियों ने नज़दीकियों से सौदा कोई कर ही लिया

रब की मर्जी है बरसा है हम पर उसका नूर

यह फासलों का फैसला कैसे मेरे दिल ने कर लिया।"

 

ढाई आखर प्रेम या इश्क के इतने पाक़ीज़ा हैं कि लगता है इश्क करने वालों पर रब का नूर बरसता है। किस्मत वाले होते हैं जो इन राहों से गुजरते हैं। खैर, एम.एड की पढ़ाई चल रही थी । साथ ही जीने की उमंग भी थी। जिससे जीवन में सकारात्मकता बनी हुई थी और मैंने यूनिवर्सिटी में टॉप करके गोल्ड मेडल जीता था। उसके बाद ही मुझे NCERT से पी एच डी करने का बुलावा आया और मैं मम्मी के साथ दिल्ली चली गई एडमिशन लेने। दिल्ली में रिश्तेदारी में एक शादी भी थी।

उधर "होनी" के वृक्ष में बौर आया हुआ था और फल लगने लगे थे अर्थात रवि जी ने घर में सब से बात कर ली थी। उनकी बीजी का पत्र पापा को कटनी में आ गया था।

इसलिए उनकी दीदी और जीजाजी दिल्ली आए और मेरी मम्मी से मिले। उन्होंने शादी के लिए प्रपोज कर दिया।

अब इसे होनी नहीं कहेंगे तो और क्या कहेंगे..? मैं तो दिल्ली आई थी पीएचडी करने और अचानक शादी की बात पक्की हो गई । पापा से कटनी बात करी गई फोन पर । वह बोले आप लोग जालंधर चलो मैं बाकी बच्चों को और सामान लेकर आता हूं। हैरानी की बात थी कि विभाजन के बाद हमारे जिन रिश्तेदारों ने पंजाब का कभी रुख नहीं किया था वह भी इस शादी में सम्मिलित होने पंजाब पहुंच रहे थे। ढेरों दोस्त भी आए। मानो कटनी ही जैसे जलंधर में आ गई थी मुझे "होनी के वृक्ष" के फल खिलाने के लिए।

पहलगाम के लिद्दर दरिया किनारे पड़े पत्थर पर मैंने जो ख्वाहिश अन्त:करण के वशीभूत होकर की थी लगता है तभी सरस्वती मेरी जुबां पर आ गई थी और भाग्य की नाव को उसी और खेने में लग गई थी। मुझे वहां जाने का पासपोर्ट मिल गया था, मेरे गले में रवि जी के मंगलसूत्र डालने से।

चलते हैं फिर अगली बार धरती से दूर, कोरे बादलों के पार ---- बसाने नया संसार...

 

वीणा विज'उदित'

1/5/2020