Holiday Officers - 21 in Hindi Fiction Stories by Veena Vij books and stories PDF | छुट-पुट अफसाने - 21

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छुट-पुट अफसाने - 21

एपिसोड--21

ढेरों एपिसोड्स उमड़-घुमड़ कर बाहर निकलने की जद्दोजहद कर रहे हैं। लेकिन मैंने तो पंजाब-दर्शन आरम्भ किया है पिछली बार, तो हम पहले अमृतसर का चक्कर लगा लें, लगते हाथ ।

अगले दिन हम अमृतसर पहुंच गए थे। सर्व प्रथम लाज़मी था " हरमन्दर साहब " के दर्शन करना। वो लोग महसूस नहीं कर सकते उस उतावलेपन, उस दर्शन की तड़प को जो पंजाब में रहते हैं, या जो लोग गुरु की नगरी में रहने का सौभाग्य लेकर पैदा हुए हैं। ज़रा पूछो उनसे जो दूर-दराज इलाकों में रहते हैैं, और जिनके पास पंजाब आने का कोई सबब ही नहीं है। 1970 में अभी टूरिज्म इतना नहीं था। सो, एक अन्तर्प्यास थी पावन "दरबार साहिब " के दर्शनों की। ज्यों-ज्यों हम अमृतसर में प्रवेश करके आगे बढ़ रहे थे, आप शायद समझ सकें कि मेरा दिल बल्लियों उछल रहा था और मैं " इक ओंकार" का पाठ अधरों पर करती अपने आप को बहुत भाग्यशाली मान रही थी। सत गुरु नानक के प्रति श्रद्धा से मेरी आंखें सजल हो उठीं थीं।

‌‌ कार काफी पहले खड़ी कर दी गई थी।हम रिक्शे में जोड़े (जूते ) उतारने की जगह तक गए। निशान साहिब के दर्शन तो दूर से ही हो रहे थे। अब सूर्य के प्रकाश में दमकता स्वर्ण मंदिर समक्ष सुशोभित था। जोड़े उतार कर जब सलवार ऊंची करके हाथ-पैर धोए तो रूहानी जोश के आधिक्य से मेरी रूलाई छूट गई। मैं अपने प्रभु को हर श्वास में धन्यवाद दे रही थी । पढ़ा था कि साढ़े चार सौ वर्ष पूर्व गुरु रामदास जी का यहां डेरा था । तभी इसकी नींव रखी गई थी। पर यह तो तरो-ताजा लग रहा था। सात्विक माहौल बिखरा हुआ था। गुरबानी की स्वर लहरियां गुंजायमान थीं हर ओर। सीढ़ियां उतरते हुए सरोवर के पास पहुंच गए थे हम । कुछ आगे चलने पर, तब सकरा था गलियारा, जहां से हम पवित्र दरबार साहिब के दर्शन को गए थे। चारों ओर से अमृत जल से घिरा पवित्र स्थल । वहां सुनहरे सलमे-सितारों से सजे वस्त्रों की चादर और वैसे अतीत के गलियारे में कदम रखते ही, मन है कि अतीत को ही दोहराना चाहता है। अतीत सजीव हो उठता है और सुधियों के पृष्ठ खुलते चले जाते हैं। सुधियों के समंदर में

गोते लगाने से कई तथ्यों रूपी मोती ही तो हाथ आएंगे ना ! पंजाब दर्शन के अध्याय में साथ ही अपने ससुराल परिवार से आत्मीयता बढ़ाने के उद्देश्य से हम चंडीगढ़ की ओर रुख करते हैं...।

‌इससे पूर्व यह उल्लेख करना आवश्यक है कि विभाजन से पूर्व पूरा विज परिवार लाहौर में रहता था। श्रीओमप्रकाश विज (रवि जी के चाचाजी) गांधी जी के भक्त व पक्के कांग्रेसी होने के नाते स्वतंत्रता संग्राम में लाहौर जेल में बंद रहे थे और कई ऐतिहासिक घटनाओं के गवाह थे।

विभाजन के बाद यह लोग जालंधर आ गए थे। जीटी रोड पर इनका "विज स्टूडियो" था। ये '" जालंधर फोटोग्राफर एसोसिएशन" के संस्थापक और प्रधान थे। एसोसिएशन की बिल्डिंग गुरु नानक मिशन चौक में, सामने सड़क के पास थी। फिर इसके आगे गुरु नानक मिशन अस्पताल बना दिया गया और यह पीछे रह गई। इनकी साली के पति कॉमरेड रामकिशन थे जो कि बाद में पंजाब के चीफ मिनिस्टर बने । ये सब लोग सन 1957 में चंडीगढ़ शिफ्ट हो गए थे।