Leave office - 3 in Hindi Fiction Stories by Veena Vij books and stories PDF | छुट-पुट अफसाने - 3

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छुट-पुट अफसाने - 3

एपिसोड ३

एक दिन झेलम से खबर आई कि इन्दर (I.S.Johar) बहुत बीमार है। बच्चों को लेकर भगतराम जी अपने लख्ते जिगर को मिलने गए। लेकिन वो अपने बेटे को एक बार छाती से लगाकर प्यार नहीं कर सके। क्योंकि वो अपने वचन से बंधे जो थे। अब वो जौहर साब के दामाद थे केवल । हमारी मां बताती थीं कि उनके इस दर्द को बयां करना मुश्किल है। ये दर्द वहीं समझ सकते हैं, जिन्होंने अपनी औलाद किसी को गोद दी हो, और जग-ज़ाहिर की मनाही हो । बम्बई में मम्मी ने जब इंदर भाई से पूछा कि आप कॉमेडी में ही क्यों interested हो? और साथ में यह बात सुनाई तो (I.S.Johar) comedy king भी गमगीन हो गए थे। बोले कि दुनिया में बहुत ग़म हैं, तभी तो मैं लोगों को हंसाना चाहता हूं, सो कॉमेडी फिल्में बनाता हूं। 1971 में I.S.Johar को Best Comedian का Filmfare Award मिला था ।

हां, मदनमोहन जी संगीतकार कैसे बने ? इसके पीछे भी इसी परिवार से संबंधित एक घटना है। हमारी मां के बड़े भाई धर्मवीर जो मदनमोहन के जिगरी दोस्त थे, 13-14 वर्ष की उम्र में, उनकी मौत के हादसे ने उन्हें इतना सदमा दिया कि वे उसकी याद में अकेले बैठे गीत गाते रहते थे । दर्द और सोज़ भरे नग़में, फिर सारा झुकाव ही संगीत की ओर हो गया था जिनमें अथाह वेदना और मनस्ताप था ।उनके संगीत से सजा लता मंगेश्कर जी का गीत, 

"माई री मैं कासे कहूं पीर अपने जिया की...माई री..."दर्द भरा अमर-गीत है।

हां तो भगतराम, जो उस जमाने में भी अपने बच्चों को शिक्षा के आभूषण देना चाहते थे । उन्होंने बेटी (हमारी मां )को चकवाल के होस्टल में डाल दिया हुआ था। बड़ा बेटा रोशन बनारस यूनिवर्सिटी से इंजीनियरिंग कर के घर आ गया था। मदन उनके पास ही पढ़ रहा था। उन्होंने "स्त्री रोगता " पुस्तक लिखी थी । फिर एक और पुस्तक लिखी, जिस का नाम याद नहीं आ रहा। ( मुझे लगता है लेखन के बीज शायद वहीं से मुझ में फलीभूत हुए हैं ) सन् १९३७ की बात है। जब बेटी आठवीं पढ़ कर घर आई तो वे मृत्यु शैय्या पर थे, और उनकी ज़िंदगी का सफर समाप्त हो गया था ।

अगले एपिसोड में कहीं और ....

वीणा विज'उदित