Cleancheet - 20 in Hindi Fiction Stories by Vijay Raval books and stories PDF | क्लीनचिट - 20

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क्लीनचिट - 20

अंक - बीस/२०

अदिती की आंखें खुली ही थी। विक्रम और देवयानी भी वहीं पर हाज़िर थे। थोड़ी देर के बाद अचानक अदिती के चेहरे पर के भाव में कुछ परिवर्तन आता देखकर सबको बहुत आश्चर्य हो रहा था। आलोक जिस डोर के पीछे खड़ा था बार बार अदिती का ध्यान उसी दिशा की ओर जा रहा था। ये देखकर स्वाति ने इशारे से अदिती को पूछा कि,

'वहां क्या देख रही हो अदि? कौन है वहां?'

लेकिन बस अदिती की नज़र आई. सी. यू. के डोर पर ही स्थिर हो गई। अदिती की अर्धजागृत मानसिक अवस्था में भी उसकी प्राथमिकता का अधिकारी तो आलोक ही रहा। अचानक ही अंतरात्मा में सहजभाव से जड़ से चेतना की ओर जा रही संचार को अप्रत्यक्ष रूप से समर्थन दे रहे किसी आत्मीय के आगमन की आहट के मूल्यांकन के चिंता के संदेशे की खुश्बू को सूंघती और ढूंढती रहती अदिती की मनोदशा को देखकर स्वाति इस अकल्पनीय क्षण को मूक बनकर बस सिर्फ़ देखती ही रही।

करीब पांच मिनट बाद स्वाति ने आलोक को अंदर आने का इशारा किया तब एक गहरी सांस भरकर आलोक आई. सी. यू. में दाखिल हुआ.. विक्रम और देवयानी की नजरें आलोक की ओर थी लेकिन स्वाति नज़र सिर्फ़ अदिती के चेहरे के एक्सप्रेशन पर ही थी। आलोक और अदिती के बेड के दस मीटर का अंतर रहा तभी अदिती की नज़र आलोक पर पड़ते ही स्थिर हो गई। धीरे धीरे करके अब आलोक और अदिती के बीच सिर्फ़ तीन ही फ़ीट का अंतर था। अदिती के शरीर में कोई अलग तरह का ही संचार दिख रहा था। आलोक की स्थिति भी बहुत ही नाज़ुक थी। किसी भी तरह उसे अपनी भावनाओं पर नियंत्रण रखना था। स्वाति ने अधीर होकर पूछा..

'अदि ये कौन है? तुम पहचानती हो इन्हें?'

अदिती का कोई रिएक्शन नहीं, बस उसकी नज़रे चिपक गई आलोक पर।

'अदि बोलो तो कौन मिलने आया है तुम्हें? क्या नाम है उसका?

अदिती ओर से कोई रेस्पॉन्स नहीं। एक बार भी पलक झपकाए बिना बस निरंतर अदिती आलोक को देखती ही रही।

उसी वक्त अचानक ही आलोक उठकर जल्दी से आई. सी यू. के बाहर आकर दोनों हथेलियां मुंह पर दबाकर रोने लगा तभी विक्रम और देवयानी उसके पास आकर उसे शांत करने लगे। आलोक ने उन दोनों के चरण स्पर्श किए, फ़िर बोला,
'सॉरी अंकल आई कांट कंट्रोल माइसेल्फ। आई फील टोटली हेल्पलेस।'
विक्रम बोले
'अरे आलोक ये तो प्रकृति की नियति के नियम है, हमे तो बस उसके खेल का अंश भी बनना है और शिकार भी। थिंक ऑलवेज ओन्ली पॉज़िटिव। इस घटना की आड़ में भी उसका कोई शुभ संदेश होगा ऐसा मान लेते हैं। हाउ आर यू नाउ?'
'आई एम टोटली फाइन सर।'
'और तुम्हारे पेरेंट्स कैसे हैं?'
'घे आर ओल्सो फाइन।'
देवयानी ने पूछा, 'बेटा तुम कुछ लोगे, चाय या कॉफी?'
'नो आंटी थैंक्स।'

जिस तरह आलोक उठकर बाहर गया था इसलिए तुरंत ही अदिती के चेहरे और आंखों के हावभाव पर से वो चिंता और बेचैनी के साथ आलोक को ढूंढ रही थी ऐसा लग रहा था। इसलिए स्वाति ने सब को अंदर बुलाया।

थोड़ी देर बाद अचानक स्वाति के दिमाग में एक तुक्का सूझा। तब उसने एक कोरा कागज़ लेकर उसके ऊपर बड़े अक्षरों में 'आलोक' लिखकर अदिती के चेहरे के सामने वो काग़ज़ रखा तो कब तक वो काग़ज़ के सामने बस देखती ही रही।

इसलिए आलोक ने स्वाति से कहा,

'प्लीज़, बार बार इस तरह उसके दिमाग को स्ट्रेस मत दो। उसकी किसी भी मूवमेंट या उसकी नज़र से ही उसकी मानसिक मनोदशा का सकारात्मक संदेश का आभास भी आ जायेगा।'

काफ़ी देर तक आलोक अदिती हथेली को अपनी दोनों हथेलियों के बीच में रखकर सहलाता रहा और साथ साथ अदिती को ऐसी दयनीय हालत में देखकर उसके अंदर उठ रही कंपकंपी को अंकुश में रखने का प्रयास करता रहा।

दूसरे दिन सुबह करीब ग्यारह बजे के आसपास आई.सी.यू. में स्वाति, विक्रम और देवयानी के साथ संजना की रींग सेरेमनी की बातें शेयर कर रही थी और आलोक अदिती के नज़दीक बैठा था। अदिती का ध्यान बार बार स्वाति ने कल "आलोक" लिखकर बेड की पास की टी पोई पर रखे हुए काग़ज़ की ओर जा रहा था उस बात पर आलोक कर ध्यान गया। स्वाति बेड के पास आकर अदिती के सिर पर हाथ फेरकर उसके माथे को चूमते हुए बोली,

'क्या कर रही है मेरी लाड़ली?'

आलोक बोला कि,

'बार बार उसका ध्यान तुमने कल मेरा नाम लिखे हुए कागज़ पर जा रहा है। मैंने दो से तीन बार मार्क किया।'

तब स्वाति ने कागज़ फ़िर से अदिती के सामने किया तो अदिती ने कागज़ और आलोक की तरफ़ एक एक करके नज़र घुमाती रही और फ़िर अचानक आलोक की आंखों की ओर देखती ही रही।

थोड़ी देर बाद.. आलोक की ओर नज़र घुमाई तब... तुरंत ही अदिती की आंखों में से आंसु बहने लगे और ये ये देखकर सुखद चमत्कार देखकर सबकी आंखों में आंसुओं की धारा फूटने लगी। और अभी तो सब इस एक्शन के रिएक्शन में से बाहर आते उससे पहले ही....

अदिती धीरे स्वर में रुक रुक कर बोली,.
'आ... आ.. आ.... लोक'

'ओह माय गॉड, अदि,.' इतना बोलते ही स्वाति अदिती के गले लग गई। सबके चेहरे पर अन एक्सपेक्टेड सुखद झटके जैसी आश्चर्य के अनुभूति की झलक चमक उठी।

आलोक, अदिती के पास बैठकर उसकी हथेली अपने हाथ में लेकर आंसुओं से भरी नजरों से अदिती की ओर देखकर बोला...

'अदिती अब आज मैं तुम्हारी शर्त के अनुसार हमारी मुलाकात के अंतिम अनुसंधान पर आकर खड़ा हूं। आज तुम मुझे मेरे इस स्पर्श का अनुवाद करके दो।' इतना बोलते ही आलोक के सब्र का बांध टूट पड़ा।

उसके बाद आई.सी.यू. अटेंडेंट ने कंसल्टेंट डॉक्टर को मैसेज करते ही १० मिनट्स के बाद डॉक्टर आते ही स्वाति ने थोड़ी देर पहले की घटना का ब्योरा डॉक्टर को कह सुनाया।
उसके बाद डॉक्टर बोले,
'धेट्स वेरी गुड साइन। आई थिंक नाउ शी केन अंडरस्टैंड एवरीथिंग। बाय घीस रिएक्शन आई केन से धेट एवरीथिंग विल बी फाइन इन ए शॉर्ट टाईम।
इस रिस्पॉन्स के बाद ये तो फाइनल हो रहा है कि अदिती को करीब करीब अपना भूतकाल याद होना चाहिए। अभी हम उसके फिजिकल फिट्नेस और फिजियो रिलेटेड एक्सरसाइज पर ज़्यादा कॉन्सेंट्रेट करने की ज़रूरत है। उसमें अगर उसकी बॉडी ऐसा ही रेस्पॉन्स देती है तो समझ लेना कि हमने बाज़ी जीत ली। मेरे अनुभव के बिना पर कहूं तो दो महीने के आसपास अदिती ऑलमोस्ट नॉर्मल हो जायेगी।'

अब आई.सी.यू. में से स्पेशल सिंगल रूम में अदिती को शिफ्ट किया गया था। उस रूम में एक शाम को अदिती, आलोक और स्वाति बैठे थे, तब...

पिछ्ले एक हप्ते से निरंतर दिन रात आलोक के प्रतिबिंब स्वरूप स्नेही निकटता के संपर्क से धीरे धीरे उसकी स्पीच पर पाए हुए काबू से आलोक को स्वाति के बारे में अदिती ने पूछा..

'ये पागल तुम्हें कहां मिली आलोक? कहां से और कैसे ढूंढा तुमने इसे?'
अब आलोक कुछ बोलने जाए उससे पहले हंसते हंसते स्वाति बोली,

'मैं.. पागल ऐसा? मि. आलोक अब थोड़ा इस मैडम को विस्तार से बताओ कि कौन, किसके पीछे, कहां, क्यूं और किस तरह पागल था?'

'अदिती मैंने स्वाति को नहीं लेकिन स्वाति ने मुझे ढूंढ निकाला था। लेकिन वो बात बहुत ही दिलचस्प और अनबीलीवेबल है।'
'स्वाति अब उस रेयर ऑफ़ दी रेयर इंसीडेंस का तुम अपने शब्दों में वर्णन करोगी तो ही अदिती को उस भयानक घटनाचक्र चित्र अदिती की समझ में आयेगा।'

'ना, बिलकुल नहीं, मैं इतनी आसानी से नहीं कहूंगी।'
स्वाति बोली।
अदिती बोली, 'लेकिन क्यूं?'
'मैं कहूंगी, लेकिन...'
'लेकिन क्या?'
'मेरी एक शर्त है।'
तब एकदम से उन्मत होकर आलोक बोला...
'ओ.. ओ.. प्लीज़, प्लीज़ अब कोई शर्त नहीं हा। इस अदिती की एक शर्त ने तो ये हाल किया है ये कम है, वहीं पर तुम फ़िर से एक नई शर्त शुरू कर रही हो?'
'लेकिन आलोक ये तो मेरी और अदि के बीच की शर्त है। और हम दोनों ने आज तक ज़िंदगी को शर्तों से ही मात दी है.. ईट्स ए चैलेंज यार। लाइफ़ में कुछ थ्रिल जैसा भी फील होना चाहिए न?'
'ईट्स ओ. के. स्वाति लेकिन इस अदिती जैसी भारी शब्दों वाली अभिमन्यु के चक्रव्यूह जैसी मुश्किल शर्त मत रखना प्लीज़।'
'अरे नहीं आलोक, मेरी शर्त तो एकदम मामूली है।'
'हां, बोलो चलो क्या है तुम्हारी शर्त।'अदिती ने पूछा।
'यही कि मैं जो मांगू वो तुम्हें मुझे देना पड़ेगा.. बोलो, प्रॉमिस?'
'अरे पागल तुमने तो आलोक को ढूंढकर मुझे मेरी ज़िंदगी दे दी, उसके बदले में तो तुम न मांगो तो भी सबकुछ तुम्हारा ही है।'
'नहीं ऐसे नहीं अदि तुम्हें प्रॉमिस तो देना ही पड़ेगा।'
'स्वाति, ये तुम बोल रही हो? ऐसा तो मेरे पास क्या है कि जो मैं तुम्हें नहीं दे सकती? मेरे पास मेरी दुनिया एक तुम और दूसरा आलोक।'
'बट अदि, आई वॉन्ट प्रॉमिस।'
'खाली स्टैम्प पेपर पर सिग्नेचर करके दूं, बोलो।'
'मेरे लिए तुम्हारे शब्द स्टैम्प पेपर से भी विशेष है।'
'अच्छा, आई गीव यू प्रॉमिस कि.. तुम जब भी, जो कुछ भी मांगोगी उसी वक्त ही तुम्हें दे दूंगी बस।'
इतना बोलते ही अदिती की आंखें भर आई तो स्वाति भी उसके गले लगकर और रोते रोते बोली क्यूं रो रही हो अदि?'

'मुझे रोना इसलिए आ रहा है, आज मेरी स्वाति को मेरे पास से कुछ मांगना पड़ रहा है उसका दुःख है। ऐसा तो मेरे पास क्या है कि जिसका मुझे पता नहीं है? और आज तुम्हें मुझसे प्रॉमिस लेना पड़ा।'

'रिलैक्स, मैं हम सब के लिए कॉफी लेकर अभी आती हूं तब तक तुम दोनों बातें करो।' ऐसा बोलकर स्वाति जल्दी से कॉफी का बहाना बनाकर रूम के बाहर निकलकर गहरी सांस लेकर अपने आप को स्वस्थ कर लिया।

स्वाति के जाने के बाद अदिती को एकदम गुमसुम होते देखकर आलोक ने पूछा..

'क्या सोच रही हो अदिती?'

'पता नहीं आलोक, लेकिन डर लग रहा है। अंदर से कुछ ऐसा लग रहा है कि.. जिसका मैं अंदाज़ा नहीं लगा सकती लेकिन कुछ ऐसा जो शायद मैं सहन नहीं कर सकूं। कोई ऐसी बात है जो स्वाति मुझसे छुपा रही है। ऐसा मुझे आभास हो रहा है नहीं स्वाति ऐसी टोन में मेरे साथ कभी भी बात नहीं करती। वो मेरी सांस है मैं पहचानती नहीं क्या उसे? लेकिन अभी मेरे भीतर कुछ एकदम अलग तरह की अनुभूति व्यापक रूप से मेरे भीतर बार बार एक ऐसे छुपे डर को हवा दे रही है जैसे कि मैं कुछ खोने जा रही हूं। और जब जब मैं ऐसी अनुभूति की छाया के नीचे से गुज़री हूं तब वो कल्पना हकीकत में तब्दील होकर ही रही है।'

'ना अदिती ऐसा कुछ भी नहीं है वो तो तुम्हारी तबियत ठीक नहीं है इसलिए तुम्हें ऐसे बिना बात के खयाल आ रहे हैं। ये तुम्हारा खाली भ्रम के सिवाय कुछ भी नहीं है। स्वाति ऐसा कुछ भी नहीं सोचेगी। स्वाति ओर से तुम एकदम बेफिक्र हो जाओ। उसे तो बार बार ऐसे मज़ाक करने की आदत है। धेट्स यू नो वेरी वेल।'

'आलोक ये मज़ाक नहीं है। स्वाति आनेवाले समय के गंभीर परिणाम के लिए शर्त के माध्यम से हमें मानसिक तौर पर सतर्क कर रही है, यही सच है।'

'लेकिन स्वाति ऐसा क्यूं करेगी, अदिती?'

'आलोक मैं तुम्हें वही कहना चाह रही हूं, कि अगर मैं वो समझ न सकूं तो वो मेरी हार है।'
'प्लीज़ अदिती स्टॉप ओवर थिंकिंग।'
तभी स्वाति तीनों के लिए कॉफी लेकर आते ही बोली,
'ढेन टेनन.. चलो चलो.. गरमा गरम कॉफी ले लो।'

वायुमंडल को हल्का करने के बहाने स्वाति ने रची हुई स्क्रिप्ट के अनुसार ओवर एक्टिंग करती हुई अदिती की नज़रों ने पकड़ लिया। इसलिए उसका हाथ पकड़कर अपने पास में बैठाकर बहुत कुछ पूछना था लेकिन..' स्वाति की आंखों में उसका डर देखकर एक ही सेकेंड में स्वाति को पता न चले इस तरह बात को निगल लिया, चेहरे पर निश्चिंतता का स्माइल पहनकर टॉपिक चेंज के साथ अदिती ने पूछा,

'अब तो बोल कहां मिला तुम्हें मेरा ये पागल?'

स्वाति ने आलोक के सामने देखकर बोला, 'बोल दूं?'
'हां नहीं तो क्या, सबकुछ बोल ही देने का उसमें पूछने की क्या ज़रूरत है?'
'सबकुछ बोल दूं? मतलब कि..'
'अरे.. स्वाति क्यूं ऐसा पूछ रही हो.. उसमें अब छुपाने जैसा क्या है?'
'ना ना सबकुछ तो नहीं ही कहूंगी।'
हा.. हा.. हा.. हंसते हंसते.. स्वाति ने २९ अप्रैल को दोनों अलग हुए तब से लेकर, स्वाति और आलोक दोनों मुंबई आए तब तक की एक एक बात सविस्तार अदिती को कहकर सुनाई।

थोड़ी देर तक अदिती रोती रही बादमें उसने दोनों हाथ फैलाकर आलोक को इशारा किया तो आलोक ने अदिती को गले लगाया तब अदिती फूट फूट कर रोने लगी तो आलोक ने भी रोते हुए उसे शांत करने की कोशिश करी।

तब दोनों को रिलैक्स करने के लिए स्वाति बोली, 'अदिती तुमने आलोक के सामने शर्त रखकर जैसे कि चींटी को प्रकोष्ठों में बांध दिया हो ऐसा किया। तुम्हें पता था कि इस आलोक के पास तुम्हें ढूंढने सके ऐसा एक भी क्लू या हिंट तुमने नहीं दी है तो वो तुम्हें ढूंढेगा किस तरह? और तुम्हें ज़रा भी अंदाज़ा नहीं था कि वो तुम्हें ढूंढते ढूंढते यमराज के नज़दीक पहुंच जायेगा?'

तब अदिती उसका जवाब देते हुए बोली,

'अरे... लेकिन.. लेकिन मेरी बात तो तुम दोनों सुनो.. मुझे १००% पता था कि आलोक मुझे किसी भी हालत में नहीं ढूंढ पायेगा और उस दिन जब मैं मुंबई आई तब डिनर लेते लेते मैंने तुम्हारे पास वो तीन दिन का टाइम इसलिए मांगा था कि तीन दिन बाद मैं खुद ही सामने से आलोक का कॉन्टैक्ट करने वाली थी लेकिन.. उससे पहले मेरे साथ प्रकृति इतनी बड़ी चाल चलेगी वो नहीं पाता था।'

उसके बाद आलोक बोला..

'अदिती मुझे सबसे असहनीय आघात उस बात से लगा कि मुझे ढूंढना तुम्हारे लिए एक चुटकी बजाने जैसा था.. और दो बार स्वाति को तुम्हारे रूप में नज़रों के सामने से एकदम से ओझल होते देखा, तब तो ऐसा लगा कि.. तुमने शर्त की आड़ में प्रेम के नाम पर सही में मेरे साथ एक जानलेवा मज़ाक ही किया होगा। और वो मानसिक आघात में झेल नहीं पाया और..'

ऐसी बहुत सी भूतकाल की बातें बहुत दिनों तक आलोक, अदिती और स्वाति याद करते रहे और.. उसके बाद धीरे धीरे वन बाय वन रेगुलर फिजियो रिलेटेड एक्सरसाइज और न्यूरोलॉजिस्ट डॉक्टर ने भी मात्र एक पेशेंट के जैसे नहीं लेकिन एक फैमिली मेम्बर समझकर अदिती की जिस तरह से ट्रीटमेंट की उससे ज़्यादा निरंतर उसके साथ एक साया बनकर देखभाल, प्रेम और गर्मजोशी के साथ आलोक ने अदिती को स्नेहालाप से उसके प्रति आत्मविश्वास के मनोबल के रूप में जो सहारा दिया उस विलपावर के बल पर अदिती ने अपनी पीड़ा की अवमानना करके आज पूर्ण रूप से स्वस्थ होने की मैराथन की ९०% मंज़िल बस अब पूरी करने की तैयारी में ही थी।

इस ढ़ाई महीने के समय में शुरुआत के कुछ दिनों बाद आलोक ने जॉब पर से इस्तीफ़ा दे दिया। आलोक ने तय कर लिया था कि जब तक अदिती ठीक नहीं हो जाती तब तक वो कोई जॉब ज्वॉइन नहीं करेगा। और बैंगलुरू छोड़कर मुंबई में ही नई जॉब करने का तय कर लिया था। आलोक ने अपने पेरेंट्स को मुंबई बुलाकर २९ अप्रैल के बाद की घटनाओं से वाकिफ करवाकर अदिती की फैमिली के साथ परिचय करवाया। इतना सब कुछ हो गया तब तक सबने आलोक को संभालकर उन तक किसीने गंध तक नहीं आने दी ये जानकर इंद्रवदन और सरोज दोनों ने ईश्वर के साथ साथ सब का बहुत बहुत धन्यवाद करते हुए बहुत रोए। शेखर भी दो बार मुंबई आकर अदिती के इलाज में साथी बनकर गया। स्वाति ने भी अदिती के मोस्ट अर्जेंट एन. जी. ओ. के काम को समय समय पर अपनी सुविधानुसार वो पूरा करती रही। बैंगलुरू से संजना अपनी फ़ैमिली के साथ और डॉक्टर अविनाश और मिसेज जोशी भी अदिती को एक मेमोरेबल क्वालिटी टाइम के साथ साथ जल्दी से स्वस्थ्य स्वास्थ्य की शुभेच्छा देने के रूबरू आकर गए।

९० दिनों के बाद हॉस्पिटल में से डिस्चार्ज होकर अदिती को घर लेकर आए थे।

उसके बाद के दस दिनों बाद...

एक दिन शेखर अपनी ऑफिस के किसी काम में व्यस्त था और तभी उसके मोबाइल की रींग बजी... शेखर ने देखा तो स्वाति का कॉल था। कॉल रिसीव करते हुए बोला,
'हेल्लो स्वाति, कैसी हो?'
'बस गुरु आपकी दुआ से सब कुशल मंगल।
बोलो, तुम कैसे हो?'
'एज ऑलवेज मस्त मज़े में। बोलो, क्यूं आज अचानक याद आई मेरी?'
'बोलूं या हुकुम करूं?'
'हुकुम करो सरकार।'
'तुम कल मुंबई आ रहे हो।'
'समझो आ गया।'
'वाह मन गए दोस्त, मुझे तुम्हारी ओर से ऐसे ही प्रत्युत्तर की आशा थी।'
'ये सबकुछ तो तुम्हारे ही पास से ही सीखा है।'
'अरे, सुबह से कोई मिला नहीं है क्या?'
'हा.. हा.. हा सुबह से तो क्या तुम गई उसके बाद से कोई नहीं मिला।'
'मुझे लग रहा है कि संजना के साथ साथ तुम्हारे मैरिज की शहनाई भी बजाने की ज़रूरत लग रही है।'
'ओह.. है कोई लड़की तुम्हारे ध्यान में।'
'लेकिन ऐसा भी हो कि.. लड़की का ध्यान तुम में हो और तुम बेखबर हो तो?'
'हाइला.. ऐसा है। तो अब क्या करेंगे?'
' इस ट्रांसपोर्ट के बिजनेस में लोहे साथ सिर खपाते हुए तुम्हारे दिमाग में भी ज़ंग लग गया है। अरे, बुद्धु तुम्हारे ध्यान में लाने के लिए तो तुम्हें मुंबई में टपकने को बोल रही हूं यार। कोई नहीं, छोड़ वो सब। घर में सब कैसे है वो बोलो?'
'ऑल इज़ वेल।'
'सबको मेरी ओर से जय श्री कृष्ण बोलना। ठीक है।'
'जी बोल दूंगा।' शेखर बोला
'कल कितने बजे आ रहे हो वो मुझे मैसेज सेंड कर देना ठीक है। चल बाय।'
'बाय।' अंत में ऐसा बोलकर स्वाति ने कॉल कट कर दिया।
शेखर अभी मनोमंथन करके कुछ अनुमान करने जाय उससे पहले उसने अपने वैचारिक संचाररथ के पहिए को स्थगित कर दिया क्योंकि को शेखर को १००% यकीन था कि वो स्वाति के किसी भी निर्णय का अंदाज़ा लगाने में मानसिक व्यायाम व्यर्थ है।

उसके बाद स्वाति ने संजना को कॉल किया।
'हाई संजू।'
'बोल मेरी जान, क्या कह रही है? एवरीथिंग इज़ ओ. के.?'
'ना कुछ भी ओ. के. नहीं है।'
'ओह.. क्यूं क्या हुआ फ़िर से?'घबराकर संजना ने पूछा।
'सब ओ. के. है लेकिन बस एक..'
'लेकिन क्या यार, तुम्हारी ये सस्पेंस क्रिएट करने की आदत गई नहीं अभी।'
'वो तो दोनों बहनों के ब्लड में है। जेनेटिकल प्रॉब्लम है यार उसमें क्या कर सकते हैं.. हा.. हा.. हा..'
'प्लीज़ स्वाति सही बात करो न।'
'ओ.के. बाबा सुनो।'
'तुम कल मुंबई आ रही हो।'
'अरे... कल ही? लेकिन क्यूं?'
'नो लेकिन?'
'ठीक है चलो मैं ट्राय करती हूं।'
'अरे ट्राय, व्हाट ट्राय?'
'अरे आ रही हूं मेरी मां, ओ.के.'
'चल बाय, बादमें शांति से बात करते हैं।'
'बाय।'

आगे अगले अंक में.....

© विजय रावल

Vijayraval1011@yahoo.com
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