इंस्पेक्टर सोहराब को छोड़कर जब कैप्टन किशन वापस पहुंचा तो वहां शैलेष जी अलंकार खड़ा हुआ पलकें झपका रहा था। वह ऑफिस के दूसरे रास्ते से अंदर आया था। शैलेष काफी थका नजर आ रहा था।
उसे देखते ही कैप्टन किशन ने पूछा, “लौट आए?”
“जी सर! तीन घंटे पहले लौटा। जरा घर चला गया था।”
उसकी बात को नजरअंदाज करते हुए कैप्टन किशन ने कहा, “तुम किसी को भी असिस्टेंट बना लेते हो!” उसके लहजे में नाराजगी थी।
“मैं समझा नहीं सर!” शैलेष जी अलंकार ने घबराए हुए अंदाज में कहा।
“तुम किसी आदमी को कोठी पर लेकर आए थे?”
“अच्छा वो सर! जी... लेकर आया था। वह मेरा पुराना दोस्त है।” शैलेष ने झूठ का सहारा लिया।
“कब से उसे जानते हो?” कैप्टन किशन ने पूछा।
“हमने साथ ही पढ़ाई की थी।” शैलेष ने साफ झूठ बोला। वह भांप गया था कि बात जरूर कुछ खास है, वरना उससे इतने सवाल-जवाब नहीं होते।
“सब कुछ रेडी रखना... जल्द ही फिर से शूटिंग शुरू करनी है।” कैप्टन किशन ने बात बदलते हुए कहा।
“आप जब कहेंगे शूटिंग शुरू कर देंगे।” शैलेष ने किसी आज्ञाकारी छात्र की तरह जवाब दिया।
“अब आप जाइए... आराम कीजिए।” कैप्टन किशन ने कहा।
उसकी बात पर शैलेष ने तुरंत अमल किया और तेजी से बाहर निकल गया।
शेयाली के लापता होने के बाद से विक्रम के खान की मुश्किलें कम होने का नाम नहीं ले रही थीं। ऐसा लगता था कि जैसे कोई शाप उसका पीछा कर रहा हो। जिस तरह से उसके स्टूडियो को तहसनहस किया गया था, इससे वह काफी भन्नाया हुआ था।
एफआईआर लिख जाने के बाद कोतवाली इंचार्ज मनीष उसे अपने कमरे में ले आया। विक्रम उसके सामने की कुर्सी पर बैठ गया। मनीष ने रिसीवर उठाकर एक नंबर डॉयल किया और दो कॉफी लाने का हुक्म दिया। फोन क्रेडिल पर रखने के बाद उसने विक्रम से पूछा, “भला आपकी पेंटिंग में किसी को क्या दिलचस्पी हो सकती है।”
“मैं मतलब नहीं समझा आपकी बात का!” विक्रम ने मनीष की तरफ गौर से देखते हुए पूछा।
“मेरा मतलब है कि कोई आपकी पेंटिंग चोरी करने के लिए इतनी मशक्कत क्यों करेगा भला!”
“मैं आपकी बात अब भी नहीं समझ पा रहा!” विक्रम ने कहा।
“मैं यह कहना चाहता हूं....।” मनीष ने बात को बीच में ही रोक कर गिलास से दो घूंट पानी पिया उसके बाद अपनी बात दोबारा शुरू की, “...कि पेंटिंग का शौक एलीट क्लास के लोगों में होता है। वह इसके लिए करोड़ों रुपये तक खर्च कर देते हैं। भला आम चोर-उचक्कों को आपकी पेंटिंग में क्या दिलचस्पी हो सकती है। आपके मुताबिक स्टूडियो में पेंटिंग के अलावा दूसरा कोई कीमती सामान नहीं है।”
“मेरी पेंटिंग ही सोने से ज्यादा महंगी हैं।” विक्रम ने गंभीरता से जवाब दिया।
“बात आपकी ठीक है...।” मनीष ने अपनी बात को संभालते हुए कहा, “मैं सिर्फ यह जानना चाहता हूं कि किसी चोर को पेंटिंग से क्या दिलचस्पी हो सकती है।”
“क्या कह सकता हूं, लेकिन स्टूडियो का ताला तोड़कर चोर अंदर घुसे तो थे ही। आप देख भी चुके हैं कि पेंटिंग किस तरह से उलटी-पलटी गई थीं।” विक्रम ने कहा।
“कोई पेंटिंग चोरी तो नहीं हुई है?” मनीष ने कुछ सोचते हुए पूछा।
“मैं अभी यह भी नहीं बता सकता हूं, क्योंकि आप स्टूडियो का हाल देख ही चुके हैं। सब कुछ पहले जैसी हालत में करने के बाद ही पता चल सकेगा कि क्या चोरी हुआ है।”
“शायद उन्हें किसी खास पेंटिंग की तलाश रही हो!” मनीष ने विक्रम को गहरी नजरों से देखते हुए कहा।
“क्या कह सकता हूं।” विक्रम ने भी मनीष की आंखों से आंखें मिलाते हुए ही जवाब दिया।
मनीष कुछ कहने जा ही रहा था कि अर्दली कॉफी ले आया। उसके बाद दोनों काफी पीने लगे।
काफी खत्म करने के बाद विक्रम उठ गया। मनीष ने उससे हाथ मिलाते हुए कहा, “अगर कुछ पता चले तो बताइएगा।”
“श्योर... मैं भी आपसे यही कहना चाहता हूं।” विक्रम ने कहा और मनीष के कमरे से बाहर निकल आया।
जब विक्रम बाहर निकला तो अंधेरा घिर आया था। उसे यकीन था कि पुलिस इस मामले में कुछ नहीं करेगी, लेकिन एहतियातन उसने एफआईआर लिखवा दी थी। वह कार में बैठ गया और मोबाइल से एक नंबर डायल किया। फोन कनेक्ट होते ही विक्रम ने पूछा, “कहां हो?”
“शेक्सपियर कैफे।” दूसरी तरफ से आवाज आई।
“अकेली हो?” विक्रम ने फिर पूछा।
“नहीं कोई और भी है।” दूसरी तरफ से बताया गया।
“उसे दफा करो... मैं मिलने आ रहा हूं तुमसे।” विक्रम ने कहा।
“तुम्हारा लहजा मुझे पसंद नहीं आया।” दूसरी तरफ से कहा गया और फोन काट दिया गया।
विक्रम ने कार स्टार्ट की और कोतवाली के अहाते से बाहर निकल आया। कोतवाली से बाहर आते ही विक्रम की कार का पीछा शुरू हो गया। विक्रम किसी उलझन में था, इसलिए उसे इसका एहसास ही नहीं हुआ कि उसका पीछा किया जा रहा है। वैसे भी वह बेखौफ जीने वाला इंसान था। उसने कभी इसकी परवाह ही नहीं की कि उसके बारे में लोग क्या सोचते हैं या कौन उसकी टोह में है।
विक्रम की कार का पीछा बदस्तूर जारी था। उसकी कार की रफ्तार ज्यादा तेज नहीं थी। कुछ देर बाद उसकी कार शेक्सपियर कैफे पहुंच गई। उसने कार पार्क की और काफी हाउस के बड़े से हाल में पहुंच गया। पीछा करने वाली कार से भी तेजी से एक आदमी निकल कर उसके पीछे आया था। उस कार में दो लोग थे। ड्राइवर अभी भी सीट पर ही था। वह कार को बैक करके बाहर सड़क पर ले कर चला गया था।
विक्रम जब हाल में पहुंचा तो उसने एक टेबल पर हाशना को मोबाइल पर गेम खेलते पाया। वह हाशना के सामने की कुर्सी पर बैठ गया। पीछा करने वाला आदमी भी पास की एक टेबल पर बैठ गया। वह टेबल इतने नजदीक थी कि वह आराम से दोनों की बातें सुन सकता था।
हाशना ने तिरछी नजरों से देख लिया था कि विक्रम उसके सामने आकर बैठ गया है, लेकिन इसके बावजूद वह गेम खेलती रही। झुंझला कर विक्रम ने उसके हाथ से मोबाइल छीन लिया और उसे अपनी जेब में रख लिया।
हाशना ने तेजी से उसके हाथ पर झपट्टा मारा था, लेकिन कामयाब नहीं हुई थी। उसने बुरा सा मुंह बनाते हुए कहा, “मैं बस जीतने ही वाली थी, लेकिन तुमने सब खराब कर दिया।”
उसकी इस बात का विक्रम ने कोई जवाब नहीं दिया। उसने हाशना से कहा, “मेरे स्टूडियो में चोरी की कोशिश हुई है।” अपनी बात पूरी करने के बाद विक्रम ने गहरी नजरों से उसकी तरफ देखा। वह अंदाजा लगाना चाहता था कि इस बात का हाशना पर क्या असर हुआ है।
“किसने की चोरी?” हाशना के मुंह से अनायास निकला।
“पता चल जाए तो गर्दन न मरोड़ दूं।” विक्रम ने शब्दों को चबाते हुए जवाब दिया।
“क्या चोरी हुआ?” हाशना ने दोबारा सवाल किया।
“चोर जो चोरी करने आए थे, वह तो उन्हें मिला नहीं... बाकी का पता नहीं।” विक्रम का लहजा तंज भरा था।
“कहीं तुम मुझ पर तो शक नहीं कर रहे हो?” हाशना ने सपाट लहजे में पूछा।
“हो सकता है इसके पीछे तुम ही हो!” विक्रम ने पूरी गंभीरता से यह बात कही।
“तुम्हारा दिमाग तो नहीं फिर गया... मुझ पर शक कर रहे हो? मैं इतनी छिछोरी नहीं हूं।” हाशना का लहजा थोड़ा तेज था।
“शक की वजह है न... इसलिए कर रहा हूं।” विक्रम ने मुस्कुराते हुए कहा।
“मैं अब तक तुमसे शराफत से पेश आ रही थी, क्योंकि तुम्हें मैं अपना दोस्त समझती रही। तुम घटिया और नीच आदमी हो। अब तो मैं हर हाल में अपनी पेंटिंग ले कर रहूंगी।” यह कहते हुए हाशना उठ खड़ी हुई और पैर पटखते हुए बाहर की तरफ चली गई।
विक्रम उसे जाते हुए देखता रहा, लेकिन कुछ दूर जाने के बाद ही हाशना पलट पड़ी। उसने विक्रम के कोट की जेब से अपना मोबाइल निकाला और तेजी से बाहर चली गई।
दूसरी टेबल पर बैठा आदमी भी उठ खड़ा हुआ। अब वह हाशना के पीछे जा रहा था।
काफी आवाज देने के बाद भी जब श्रेया की आवाज नहीं आई तो सार्जेंट सलीम फिक्रमंद हो गया। किसी लड़की के बेडरूम में बिना उसकी इजाजत के जाना उसूलन गलत था। सार्जेंट सलीम यह बात बखूबी समझता था, लेकिन श्रेया के रूम से आवाज न आने की वजह से वह काफी फिक्रमंद हो गया था।
सार्जेंट सलीम वापस अपने बेडरूम की तरफ लौट गया। वहां पहुंचकर उसने पाइप सुलगाया और वापस श्रेया के रूम की तरफ लौट आया। श्रेया दरवाजे पर खड़ी मुस्कुरा रही थी। उसने सार्जेंट सलीम के देखते ही कहा, “क्यों शोर मचा रहे थे?”
“कहां चली गईं थीं? आपका खाने पर इंतजार हो रहा है।”
“मैं वाशरूम में थी।” श्रेया ने जवाब दिया।
वह इस वक्त नाइट गाउन में थी और बहुत खूबसूरत लग रही थी। सलीम कुछ देर तक उसे देखता ही रह गया था।
“आइए चलें।” सलीम ने कहा।
श्रेया और सलीम डायनिंग हाल की तरफ बढ़ गए। सोहराब ने उसके पैरों में लोशन लगाया था और खाने के लिए जो दवा दी थी, उससे श्रेया को काफी आराम मिला था। जब वह डायनिंग हाल में पहुंचे तो वहां सोहराब बैठा कोई किताब बढ़ रहा था। उसने दोनों को देखते ही किताब बंद करके एक तरफ रख दी और सोफे से उठ कर डायनिंग टेबल पर आकर बैठ गया।
“कैसी तबियत है अब।” सोहराब ने श्रेया से पूछा।
“फीलिंग गुड।” श्रेया ने संक्षिप्त जवाब दिया।
“सोने से पहले एक बार और पैरों में लोशन लगवा लीजिएगा। सुबह तक काफी आराम मिल जाएगा।” सोहराब ने कहा।
“हरामखोरों ने जंगली खाना खिला-खिला कर जुबान का जायका बिगाड़ दिया था।” सलीम ने पहला निवाला मुंह में रखते हुए कहा।
उसकी इस बात पर श्रेया मुस्कुराने लगी। कुछ देर बाद उसने सोहराब से पूछा, “सर! सलीम साहब जंगल में शेयाली से मिले थे। क्या उनकी तलाश शुरू की गई है।”
“जी हां, सारा इंतजाम हो गया है। कल से पुलिस की कुछ पार्टियां और ड्रोन जंगलाती इलाके में शेयाली की तलाश शुरू करेंगे।” सोहराब ने कहा।
इसके बाद तीनों ही खामोशी से खाना खाने लगे। कुछ देर बाद सोहराब ने अचानक श्रेया से पूछा, “शेयाली से अपने चाचा यानी कैप्टन किशन से कैसे ताल्लुकात थे?”
“काफी बेहतर थे। वह शेयाली का बहुत ख्याल रखते थे। शेयाली को वह बंगला उन्होंने ही उनके बर्थडे पर गिफ्ट में दिया था। इसके अलावा वह अच्छी-खासी रकम हर महीने शेयाली को जेब खर्च के लिए भी देते थे।” श्रेया ने जवाब दिया।
“कैप्टन किशन को विक्रम के खान से शेयाली के रिश्ते पर कोई एतराज तो नहीं था कभी?”
“वह विक्रम खान को पसंद नहीं करते।”
“लेकिन क्यों?”
“क्योंकि एक बार उसने शेयाली पर हाथ उठा दिया था और यह बात किसी तरीके से कैप्टन किशन को पता चल गई थी। दूसरे उन्हें विक्रम खान के जुआ खेलने पर भी सख्त एतराज था। वह कहते थे कि विक्रम खान, शेयाली के पैसों पर ऐश कर रहा है।”
“लेकिन विक्रम की अपनी खुद की पेंटिंग भी तो करोड़ों रुपये में बिकती हैं।”
“वह सारे पैसे बर्बाद कर देता है। उसके शौक अजीब हैं। उसे जुए के अलावा हथियारों का भी शौक है। इसके अलावा दुनिया भर में घूमता-फिरता है।”
“यानी आपको विक्रम खान पसंद नहीं है?”
“मेरे पसंद न करने पर क्या फर्क पड़ता है!” श्रेया ने संक्षिप्त सा जवाब दिया।
“आपके कैप्टन किशन से कैसे रिश्ते हैं?”
सोहराब के इस सवाल पर श्रेया के चेहरे पर एक रंग आकर चला गया। वह कुछ देर के लिए खामोश रही उसके बाद उसने कहा, “मेरा उनसे बहुत वास्ता नहीं है।”
इसके बाद सोहराब ने कोई सवाल नहीं पूछा। अजीब बात यह थी कि इस गुफ्तुगू के दौरान सलीम चुपचाप खाना खाता रहा। खाने से फारिग हो कर वह तीनों ड्राइंग रूम में आ कर बैठ गए।
कुछ देर बाद शाने कॉफी ले आया। श्रेया सबके लिए कॉफी बनाने लगी। काफी पीने के बाद सार्जेंट सलीम ने श्रेया के पैरों की मलहम-पट्टी की और उसके बाद उसे उसके कमरे तक पहुंचा आया।
श्रेया ने कमरे में पहुंचते ही अंदर से दरवाजे की चिटखिनी चढ़ा ली। उसने जाते वक्त सलीम को न तो विदाई स्माइल दी और न ही गुडनाइट कहा। उसका यह रवैया सलीम को बड़ा अजीब लगा। वह कुछ देर खड़ा श्रेया के रूम के बंद दरवाजे को देखता रहा।
‘शोलागढ़ @ 34 किलोमीटर’ फिल्म की शूटिंग में क्या कुछ होने वाला है?
सोहराब की नजर में श्रेया क्यों इतनी महत्वपूर्ण हो गई है?
हाशना ने विक्रम के साथ क्या किया?
इन सवालों के जवाब पाने के लिए पढ़िए जासूसी उपन्यास ‘शोलागढ़ @ 34 किलोमीटर’ का अगला भाग...