जुगनू - The world of fireflies - 2 in Hindi Fiction Stories by शक्ति books and stories PDF | जुगनू - The world of fireflies - 2

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जुगनू - The world of fireflies - 2

" चच्चा! नाश्ता बन गया क्या?? " डाइनिंग हॉल में फुर्ती से प्रवेश करते हुए विद्युत् ने पूँछा।
" हाँ हाँ आओ बेटा! सब तैयार है " उन्होंने उत्तर दिया।
" चच्चा!! " खाना खाते हुए ही विद्युत् ने कहा।
" हाँ बेटा! कुछ और चाहिए क्या!!? या नमक कम है किसी में?? "
" नहीं चच्चा! ऑल परफेक्ट... एक्चुअली मैं कल फिर जा रहा हूँ...एक दो दिन में वापस आ जाऊंगा... सो आप प्लीज पैकिंग कर दीजियेगा.. सुबह ही निकलूंगा चार बजे तक तो बड़ी वाली कार भी रेडी करवा दीजियेगा। "
" लेकिन बेटा अभी तो तुम एक हफ्ते पहले आये हो हॉस्पिटल से... और अभी तो पुलिस पता भी नहीं लगा पाई है कि पिछली बार जब तुम घूमने गए थे तो वो हमला तुमपर किया किसने था?? वो तो भगवान् का लाख शुक्र, कि न जाने कौन लड़की थी उस जंगल में जो तुम्हे एक टैक्सी में बैठा कर , टैक्सी वाले को हॉस्पिटल जाने को कह दिया था... वरना सोच कर भी डर लगता है तुम्हारा पीठ का घाव देख कर की कितनी बेदर्दी से किसी ने तुमपर गोलियां दागी गयीं थी। " कहते हुए उस उम्रदराज मेड ने आँख मूँद कर विद्युत की पीठ का घाव याद कर अपने कान छूते हुए ऊपर की ओर हाँथ जोड़े जैसे भगवान् का शुक्रिया कर रहे हों।

विद्युत् उस घटना को याद करने लगा कि कैसे हमेशा की तरह जब वह जुगनुओं की खोज में रात के वक़्त प्रियमगढ़(काल्पनिक) के जंगलों में भटक रहा था तब किसी ने उसपर पीछे से अचानक तीन गोलियां लगातार दाग दी थी और वो अचेत होकर वही गिर पड़ा था और आँखें मुदने से पहले उसने बेहद पीली चमकीली रोशनी देखी थी ठीक वैसी ही जैसे उसने अपने सपने में उस बंद दरवाजे वाले कमरे में देखी थी... और कुछ मधुर सी "..छन..छन.." की आवाज़ जैसे बहुत सारे घुँघरूओं वाले पायल कोई छनकाये जा रहा हो... वह रोशनी और उस पायल की मधुर ध्वनि बढ़ती ही जा रही थी और उसने महसूस किया था कि जब वह उसके बेहद नज़दीक पहुँचा ही था कि उसकी हिम्मत ,आँखें और चेतना जवाब दे गयी और वह पूरी तरह से अचेत हो गया था... और जब आँखें खोली तो खुद को एक होस्पिटल के रूम में पाया। डॉक्टर से पूंछने पर उसे पता चला था कि कोई टैक्सी ड्राइवर उसे यहां लेकर आया था और वह पिछले बीस दिनों से हॉस्पिटल में ही एडमिट था और अब जाकर उसे होश आया था। उसने उस टैक्सी ड्राइवर को धन्यवाद कहने के लिए उससे मिलने की ज़िद की थी..
" आपने मेरे लिए जो कुछ भी किया उसके लिए मैं आपका जिंदगीभर अहसानमंद रहूंगा... " विद्युत् ने उस टैक्सी ड्राइवर से कृतज्ञता व्यक्त की।
" अरे नहीं साहब! आप को तो वो मैडम को थैंक्यू बोलना बनता है.. उन्हीच ने आपका हेल्प किया.." उस टैक्सी ड्राइवर ने जवाब दिया।
"मैडम..कौन मैडम!!? " विद्युत् ने अनिभिज्ञता से अपनी आँखें सिकोड़ी ।
" अरे हाँ! मई तो उस दिन डेली जैसा घर जा रहा था.. पर रास्ते में मेरे को आप मिले.. मई तो देखकर डरीच गया था.. बाबा! पूरा तीन गोली घुसा था.. एकदम अंदर तक " उस टैक्सी ड्राइवर ने आँखें बड़ी करते हुए कहा- " सही बताऊँ मैं सोचा कोन फसे इस झमेले में.. पर अचानक पेड़ के पीछे से कोई बोला की आप फैशन डिज़ाइनर विद्युत खोसला हो.. किसी लेडी का साउंड था पर वो मेरे सामने नहीं आ रही थी न ही किसी का शैडो दिखा.. पर हाँ! वॉइस् बराबर आया! वो मेरे को कंवेंस कर रही थी.. बड़ा अजीब लैंग्वेज था.. कुछ-कुछ तो सर के ऊपर से गया.. पर उनकी बातों ने मेरेको एफेक्ट किया और मई आपको लेकर इधर आ गया। "
विद्युत् ने कुछ देर तक सोचा पर उसे कुछ भी नहीं याद था उसने उस टैक्सी ड्राइवर की तरफ वापस कृतज्ञता भरी नज़रों से देखा- " बट! फिरभी मुझे यहाँ तक लाने के लिए थैंक यू..फ्यूचर में कभी भी मेरी हेल्प चाहिए तो यू कैन कांटेक्ट मी " उसने मुस्कुराकर कहा।
" साह.. "
" विद्युत्! आप मुझे विद्युत् बुला सकते हैं... " विद्युत् को बार बार उसके मुंह से साहब सुनना अच्छा नहीं लग रहा था आखिर उसने उसकी जान बचाई थी।
" विद्युत् जी आप मेरे को इस झमेले से बचा लो ना पिछले 20 दिन से पुलिस मेरे पीछेइच पड़ी है..बार-बार पूछे जा रही है कौन लड़की थी क्या हुआ मेरे को पूरा तो नहीं पता ना मैंने आपको बताया न कि मई बस आपको इधर लेकर आया..बस.. " उसने दबी हुई आवाज में विद्युत् के करीब जाते हुए कहा ।
" आप चिंता मत कीजिये मैं इंस्पेक्टर से बात करता हूँ.. "

वो मुस्कुराते हुए चला गया पर विद्युत् अभी भी ये न सोचकर की उसपर हमला किसने किया यह सोच रहा था कि वह लड़की आखिर थी कौन? जिसने उसकी जान बचाई क्यूंकी उस दिन वह जंगल के काफी अंदर तक पहुँच गया था.. जहाँ से मेनरोड तक पहुंचना बेहद कठिन था.. वो भी किसी लड़की का केवल उसे उतनी दूर तक पहुँचाना तो बहुत ही मुश्किल क्यूंकी वह काफी मजबूत कद काठी का था। और तब से उस पीली चमकीली रोशनी, घुँघरू की वो आवाज और वो लड़की जिसने उसकी जान बचाई केवल एक रहस्य ही है।

" बेटा! कहाँ खो गए?? " उन मेड की आवाज़ से विद्युत् वापस वर्त्तमान में लौटा।
"क..कुछ नहीं चच्चा! "
" बेटा मेरी बात मानो! अभी तुम्हारा बाहर जाना बिलकुल सही नहीं है... वो भी ऐसी जगहों पर.. मेरे हिसाब से तो तुम्हे कुछ दिन तक शहर की ओर भी नहीं जाना चाहिए... न जाने कौन तुमसे दुश्मनी कर बैठा.. पुलिस को भी कुछ नहीं पता.." उन्होंने चिंता व्यक्त की।

" लेकिन मैं जानता हूँ.. और मुझे कोई परवाह नहीं.. बस मुझे उस बात का पता करना है जो सच में मुझे नहीं पता.. " उसने खोये हुए स्वर में कहा।
" क्या!!? तुम्हे पता है?? " उन्होंने पूँछा और विद्युत् ने अपनी आँखें भींची। वह गलती से वह सब बोल गया था जो उसे नहीं बोलना चाहिए था। वह तो वापस उसी जंगल में जा कर उस लड़की का पता लगाना चाहता था पर जब वे उसके बाहर जाने की ही बात से इतने परेशान थे तो जब उन्हें पता चलता की उसी जंगल में ही वह जा रहा है तो उसके जाने का कोई सवाल ही नहीं उठता वो तो भला हो उन्होंने केवल उसके द्वारा कहे गए शब्दों में से केवल शुरू के शब्दों पर ध्यान दिया... वर्ना वे उसे किसी कीमत पर नहीं जाने देते। वे भले ही उस घर पर बतौर मेड काम कर रहे थे पर विद्युत् उन्हें किसी अपने की तरह इज़्ज़त देता था और उनकी हर बात मनाता था।
" मेरा मतलब है.. कोई सनकी ही होगा जिसे मुझसे जलन होती है.. बस.. " उसने ठण्डे स्वर में जवाब देते हुए अब उसपर गोली चलाने वाले इंसान के पता होने वाली बात संभाली पर सच तो ये था कि वह भली भांति जानता था कि उसपर हमला किसने किया था.. पर शायद उसे उस बात से अधिक फर्क नहीं पड़ा क्यूंकी ऐसे हमले उसपर कई बार हो चुके हैं पर हर बार पुलिस के पूँछने पर वह बात टाल देता था।
" हाँ ये भी सही ही है! आजकल तो अधिक तरक्की करना भी लोगों को खटकता है.. " उन्होंने समझ के भाव से कहा।
" प्लीज चच्चा जाने दीजिए न? आई प्रॉमिस.. मैं ज्यादा अंदर तक नहीं जाऊंगा.. " वह बेचारगी से बोला।
" अभी तो कितने जुगनू बगीचे में हैं बेटा! भला अभी क्या जरूरत है?? "उन्होंने उसे समझाया।
" प्लीज चच्चा..प्ली..¶..¶..ज.." उसने रगियाते हुए कहा।
" ठीक है! मगर इस बार अपने गार्ड्स लेकर जाओगे.. "
" नहीं चच्चा! उन मुस्टण्डों को लेकर मैं किसी हाल में नहीं जाऊंगा.. दूसरों को छोड़िये मैं खुद डर जाता हूँ उन्हें देखकर.. "
"लेकिन तुम अके.. "
" मैं पक्का अपना ध्यान रखूंगा.. उस बार तो मैं तैयार नहीं था... इस बार एकदम तैयारी में जाऊंगा इसीलिए तो आपको वो ब्लैक वाली बड़ी गाडी तैयार करने को कह रहा हूँ.. उसे तो मैंने इसीलिए खरीदा ही था कि कोई मुझे पहचान नहीं पाए। "
उन्होंने मुस्कुराकर सहमति देदी।
***

विद्युत् एक आम इंसान की तरह एक होटल के कमरे में घुसा। वह अक्सर ही अपनी उस ख़ास जगह से अलग अलग मामूली कपड़ों में शहर आता और रोज़ अलग अलग होटल में रूककर चेंज करता और अपने द्वारा एस्टेब्लिश किये गए डिसाइनिंग फर्म में भी किसी भूत की तरह कभी भी प्रकट हो जाता.. उसके जाने का भी यही रूटीन था और यही कारण था कि किसी को भी उसका ठिकाना नहीं पता था।
होटल से महंगे और स्टाइलिश कपड़ों में वह निकलकर अपने फर्म के लिए चल पड़ा।
**
" गु..गुड़ मॉर्निंग..सर.. "
" गुड़ मॉर्निंग सर "
उसके गेट से प्रवेश करते ही सभी उसे गुड़ मॉर्निंग विश करने लगे और वह बिना किसी को कुछ बोले सीधे अपने केबिन में चला गया।
" हे निधी! ये बॉस हैं!!? " उसके जाते ही ऑफिस की एक लड़की दिया ने उसकी शक्ल से कायल होते हुए आँखे बड़ी कर पूँछा शायद उसका पहला दिन था।
" तो!!? " बगल में बैठी एक लड़की ने कंप्यूटर स्क्रीन पर नज़र जमाये हुए कीबोर्ड पर हाँथ चलाते हुए लापरवाही से कहा शायद उसका ही नाम निधी था।
" कितना हैंडसम है यार!!मतलब मैंने नेट पर फोटोज देखे थे पर रियल में तो और हैंडसम दिखता है!" वह अभी भी उस बंद दरवाज़े की ओर नज़र जमाये हुए थी जैसे उसकी आँखों में लेज़र फिट हो और वह उस बंद दरवाजे के पार से भी उसे देख पा रही हो।
" हुम्! सो तो है! अब तुम उनका दरवाज़ा देखना बंद करो वरना सर तुम्हे बाहर का दरवाज़ा दिखा देंगे.. " निधी ने इतने ठन्डे स्वर में उत्तर दिया की दिया सहम गयी और अपना काम करने लगी।
कुछ देर बाद निधी के पास विद्युत् का फ़ोन आया वह उसे अपने केबिन में बुला रहा था।
" मे आई कम इन सर?? "
" या निधी कम! " विद्युत् ने उसे अंदर बुलाया।
" वेलकम बैक सर! आप ऑलमोस्ट एक महीने बाद ऑफिस आये हैं... वेलकम पार्टिया आपको पसंद नहीं इसलिए हमने कुछ अरेंज नहीं किया... बाई द वे अब आप कैसे हैं?? " निधी ने मुस्कुरा कर पूँछा।
" अब्सॉल्यूटेली फाइन एंड इट्स ओके फॉर नो पार्टी! " उसने भी हँसते हुए कहा- " तो आज कुछ काम हो जाए... आप मुझे सारी एक महीने की डिज़ाइन्स एंड कॉन्ट्रैक्ट्स फाइल दिखा दीजिये! "
" श्योर सर! " कहते हुए वह गयी और कुछ देर बाद हांथों में फाइल लिए एक पियून के साथ वापस आई - " सर अगर आप चाहें तो और फाइल्स बाद में भी चेक कर सकते हैं!वी हैव इनफ टाइम! "
" क्यों कुछ गड़बड़ है?? " उसने बस यूँही कह दिया।
" ऑफ़्कोर्स नॉट सर! " वह सकपका गयी।
" सो मैं आज ही सब चेक कर लूँगा.. डोंट वरी.. " उसने एक फाइल पर नज़र जमाते हुए कहा।
" आप कहीं जा रहे हैं क्या सर?? "
" ओह हाँ! कल से दो दिन के लिए मैं ऑउट ऑफ़ मुम्बई हूँ.. सो अगेन तुम्हे हैंडल करना पड़ेगा.. "
" नो प्रॉब्लम सर! " उसने मुस्कुराकर कहा और चली गयी। वह विद्युत् की मेनेजर थी और विद्युत् की गैर मौजूदगी में लगभग सारा काम वही देखती थी और बेहद ईमानदारी से इसीलिये विद्युत् कभी भी कही जाने में बेफिक्र रहता था।
देर रात तक सबके जाने के बाद तक उसने अपना काम निपटाया और फिर वापस उसी होटल और वहां से अपनी उस ख़ास जगह पर बने घर की ओर चला गया इस दौरान उसने वापस से वैसा ही सामान्य व्यक्ति का रूप बना लिया था।
रात के वक़्त जब वह अपने घर पहुंचा तो सबसे पहले उसने अपने कमरे से 'वही' जार निकालकर बाहर बगीचे में रख दिया। खाना पीना खा कर जब वह वापस अपने कमरे में जाने को हुआ तो वह वापस उस जार को लेने बगीचे में पहुँचा... न जाने कितने जुगनू उसमें भर चुके थे। उसने वह जार उठाया और लेकर अपने कमरे में आ गया।
उसने उस जार को अपनी स्टडी टेबल पर रखा और कमरे की खिड़की खोल दी.. चूंकि उसका कमरा ग्राउंड फ्लोर पर ही था और उसकी खिड़की के खुलते ही उसके कमरे से लगा हुआ वह खूबसूरत बगीचा दिखाई देता था, उसके कमरे में भी कई जुगनू पूरे अधिकार के साथ घुस गए और लप-लुप करने लगे और वह उस जार के पास बैठकर अपने कुछ नए डिज़ाइन्स बनाने लगा...

क्रमशः


पर्णिता द्विवेदी...