Save the earth in Hindi Children Stories by Sudha Adesh books and stories PDF | बचा लो धरती

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बचा लो धरती




बचा लो धरती
सुनयना किचन में पानी लेने आई तो उसने देखा कि उसकी माँ दूध के पैकेट काटकर दूध उबालने जा रही हैं । दूध के पैकेट का कोना एक जगह पड़ा है तथा पैकेट दूसरी जगह...। दूध का भगौना गैस पर चढ़ाकर वह पैकेट उठाकर डस्टबिन में डालने जा रही थीं कि सुनयना ने कहा...

‘ माँ रूको, अगर आप दूध के पैकेट ऐसे ही फेंक दोगी तो पैकेट तो रिसाइकिल हो जाएगा पर थैली का कोना नहीं हो पायेगा ।’ सुनयना ने कहा ।
‘ तो क्या करूँ ?’ नलिनी ने झुँझलाकर कहा ।
‘ माँ, दूध का पैकेट ऐसे काटना चाहिए कि पैकेट का कोना थैली से पूरी तरह अलग न हो । पैकेट का कोना अगर अलग हो भी जाये तो अलग हुआ कोना पैकेट के अंदर ही डाल देना चाहिए जिससे कि वह रिसाइकिल हो सके वरना प्लास्टिक के यह छोटे-छोटे टुकड़े इधर-उधर गिरकर धरती को तो प्रदूषित करेंगे ही, अगर गलती से किसी जानवर के पेट में चले गये तो उसे भी नुकसान पहुंचाएंगे । ’ सुनयना ने अपनी ममा की शब्दों पर ध्यान न देकर दूध के खाली पैकेट के अंदर पैकेट का कटा कोना डालकर डस्ट्बिन में डालते हुए कहा ।
‘ तुम्हें यह सब किसने बताया ? ’ नलिनी ने सुनयना को इतनी समझदारी की बात करते हुए देखकर पूछा ।

‘ दिव्या ने । दिव्या कहती है मेरी माँ स्वयं तो ऐसा करती ही हैं अगर कभी किसी को ऐसा करते देखती हैं तो उन्हें भी ऐसा करने से मना कर देतीं हैं । उनका कहना है धरती हमारी माँ है । हम उसकी गोद में खेलते, कूदते हैं । क्या धरती को बचाना, उसे स्वच्छ रखना हमारा कर्तव्य नहीं है ? ‘ सुनयना ने दूध के खाली पैकेट के अंदर, पैकेट का कटा कोना डालकर डस्ट्बिन में डालते हुए कहा ।

‘ तुम ठीक कह रही हो बेटा...पर अगर सभी ऐसा करें तभी तो हमारी धरती स्वच्छ रह पाएगी ।

‘ नलिनी ने सुनयना की बात का समर्थन करते हुए चिंता व्यक्त करते हुए कहा ।

‘ आप ठीक कह रही हो ममा । हम किसी को बदल नहीं सकते किन्तु स्वयं किसी अच्छे काम की शुरूवात करके दूसरों के लिये उदाहरण तो बन सकते हैं । आप अपनी मित्रों को बताओ, वह अपनी मित्रों को बताये...सब लोग नहीं यदि कुछ लोग भी यह बात समझ जायें तो हम हमारी पृथ्वी का प्रदूषण कम करने के साथ उसे बचाने का थोड़ा प्रयास तो कर ही सकते हैं ।’

‘ अच्छा जा, अब ब्रुश करके आ । मैंने दूध बना दिया है । पी लेना ।’ नलिनी ने उसकी पीठ थपथपाते हुए कहा ।

सुनयना को समझदारी वाली बात करते देख नलिनी सोच रही थी कि किसी ने सच ही कहा है कि बच्चे गीली मिट्टी जैसे होते हैं उन्हें जैसा ढालोगे वैसे वे ढलते जायेंगे । इस उम्र में सीखी बातें ताउम्र बच्चे की आदत का अंश बन जाती हैं ।

‘ ओ.के. माँ...बस अभी आई ।’ सुनयना के आते ही नलिनी ने उसे दूध दिया तथा अपना काम निबटाने लगी ।

सुनयना दूध पीकर दूध का गिलास रखने किचन में आई । नलिनी को सब्जियों के छिलके डस्टबिन में डालते देखकर बोली...

‘ माँ रूको ।’

‘ अब क्या हुआ ?’ नलिनी ने झुँझलाकर कहा...।

छुट्टी होने के बावजूद आज नलिनी को एक मीटिंग में जाना था इसलिए वह जल्दी-जल्दी काम निबटा रही थी ।
‘ माँ इन छिलकों से खाद बना सकते हैं ।’ कहते हुये सुनयना डस्टबिन से छिलके निकालने लगी ।
‘ गंदे में हाथ डाल दिया...जाओ साबुन से हाथ धोओ ।’

‘ क्या किया मेरी बच्ची ने...? सुबह-सुबह क्यों डाँट रही हो ?’ अमित ने कमरे से बाहर आते हुये कहा ।
‘ आपकी लाड़ली को पढ़ना लिखना नहीं है, बस उल्टे-सीधे काम करा लो । डस्टबिन से सब्जी के झिलके निकाल रही है । पता नहीं क्या करेगी ? सारे हाथ गंदे कर लिये । ’ नलिनी ने क्रोधित स्वर में कहा ।

‘ बेटा आपकी माँ गलत नहीं हैं । क्या करोगी इन सब्ज्यिों के छिलकों का ?’

‘ पापा मेम ने इन छिलकों से बायो खाद बनाने की विधि बताई है । मैं वही बनाने इन्हें ले जा रही हूँ ।’ रूआंसे स्वर में सुनयना ने कहा ।

‘ बायो खाद...। यह तो बहुत अच्छी बात है । चलो मैं तुम्हारी मदद करता हूँ ।’ अमित ने उसे दुखी देखकर कहा ।

‘ सच पापा...।’ एकाएक सुनयना के चेहरे पर खुशी दौड़ गई ।

‘ हाँ बेटा...अगर हम अपने बगीचे में बायो खाद डालेंगे तो हमारी धरती तो उपजाऊ होगी ही, बगीचे में लगाये टमाटर, पालक, धनिया और अमरूद भी कैमिकल फ्री होंगे जिसके कारण उनकी पौष्टिकता बढ़ जायेगी ।’ अमित ने नलिनी की ओर देखते हुये कहा ।

‘ इग्जेक्टली ...यही तो हमारी साइंस मेम ने बताया था । अब चलें ।’

सुनयना को अपने नन्हें-नन्हें हाथों से खुरपी से गड्ढा खोदकर उसमें सब्जी के छिलके डालकर फिर उसे मिट्टी से ढकते देखकर नलिनी जो थोड़ी देर पहले सुनयना को जहाँ डांट रही थी, वहीं अब उसे अपनी बेटी पर गर्व होने लगा । उसे खुशी इस बात की थी कि सुनयना अपने आस-पास के वातावरण...चाहे उसके मित्र हों या उसकी अध्यापिका से जो सुन रही है या देख रही है उसे आत्मसात कर व्यवहार में लाने की कोशिश भी कर रही है । जबकि यह सब बातें हम सबको पता रहतीं हैं पर हममें से कितने इन सब बातों को व्यवहार में लाने का प्रयत्न करते हैं ।

नलिनी को इस बात की भी खुशी थी कि सुनयना के स्कूल की, साइंस की टीचर अपने पढ़ाने के तरीके के कारण साइंस में बच्चों की रूचि बढ़ा ही रही हैं वरन् बच्चों को व्यावहारिक ज्ञान भी दे रही हैं । बच्चों के स्वस्थ विकास में स्कूल के शिक्षकों तथा आस पास के परिवेश का महत्वपूर्ण योगदान होता है ।

आज नलिनी को आभास हो गया था कि बच्चे सदा गलत नहीं होते । उनकी बात को बिना पूरी तरह सुने, समझे झुंझलाना उचित नहीं है । ऐसा करके हम उनके स्वाभाविक विकास को अवरुद्ध कर देते हैं । हमें उनकी बातों को ध्यान से सुनना चाहिये, अगर वे ठीक हैं तो उनका मनोबल बढ़ाने का प्रयास करना चाहिये न कि तोड़ने का । अगर अमित ने सुनयना को प्रोत्साहित न किया होता तो क्या वह यह कर पाती जो वह करना चाह रही थी !!

सुधा आदेश