Peeping faces from bars - 9 in Hindi Fiction Stories by Pranava Bharti books and stories PDF | सलाखों से झाँकते चेहरे - 9

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सलाखों से झाँकते चेहरे - 9

9 --

अलीराजपुर पहुँचते हुए रात के दस बज गए | एस्कॉट की जीप अलीराजपुर की सीमा पर ही एक छोटे से होटल पर खड़ी मिल गई थी | उसमें से उतरे हुए सिपाही और ड्राइवर आराम से ठहाके लगते हुए चाय पी रहे थे |

"कमाल है, इन लोगों को ये भी ध्यान नहीं कि जिन लोगों के लिए इनकी ड्यूटी लगी है, वे सही सलामत पहुँचे भी या नहीं ?"इशिता ने फुसफुसाकर रैम से कहा |

" मैडम ! सब ऐसेइच चलता है ---" वह भी इशिता के कान में फुसफुसाया | इशिता को गुस्सा आ रहा था। कमाल है कामले उनके पास जाकर दाँत फाड़ने लगे थे, अपनी विंड-स्क्रीन का काँच दिखाकर बता तो सकते ही थे कि उनके आगे चलने का फ़ायदा क्या हैं ? अगर कुछ और ज़्यादा हो जाता तो ?

रैम शायद उसके दिल की बात समझ गया था, वह इशिता के कान में फुसफुसाया ;

"मैम ! ये आदिवासी इलाका है। ये सपाई लोको बी तो आदिवासीच न, तो इनसे दुश्मनी नहींच करने का ---"

कामले ने होटल वाले से खाने के लिए कहा और उसने आलू की ऎसी रसेदार सब्ज़ी जिसमें नमक, मिर्च भरा पड़ा था, आलू ढूँढने के लिए उसमें तैरने की ज़रूरत थी और घुटे हुए चावल लाकर उसने सबके सामने प्लेटों में सजा दिए |

मरते, क्या न करते ! जैसे तैसे कुछ कौर पेट में डालकर सब उठ खड़े हुए ;

"बंसी, बैस्ट होटल की तरफ़ चलो ----" कामले ने बंसी को आदेश दिया |

शायद वह कोई बाज़ार था जो बिना बत्ती के अँधेरे में नहाया हुआ था | लगभग पंद्रह मिनट बाद गाड़ी एक छोटे से दरवाज़े के सामने आकर रुक गई | नीरव सन्नाटे में केवल एक छोटी सी पान की दुकान खुली हुई थी जिस पर एक पीला सा बल्ब तार के सहारे झूल रहा था | अब रात के लगभग ग्यारह बज चुके थे | नीरव सन्नाटे में 'आजा सनम मधुर चाँदनी में हम तुम मिले तो वीराने में भी आ जाएगी बहार ---'बजकर न जाने किस सनम को पुकार रहा था ?

बैस्ट होटल के छोटे से दरवाज़े को खटखटाते ही अंदर से उनींदी सी आवाज़ आई ;

" कूंण सै -----"

"कामले सर अमदाबाद से ---" बंसी के कहने पर दरवाज़ा धीरे से खुला |

"आओ--आओ सर ----कैसे हो ----?"

" बस बढ़िया ---रामदेव --सब बढ़िया ?" कामले सबको लेकर छोटे से दरवाज़े में से अंदर आ गए | बंद कमरे का भभका उसके सिर पर चढ़ गया |

वह एक लॉबी सी थी जिसमें एक छोटा सा सोफ़ा था जिस पर शायद वह बंदा सोया होगा | उसने नीचे कोने में घुटने पेट में घुसाए सोए हुए एक लड़के की कमर को पैर से हिलाया | बेचारा तेरह /चौदह साल का एक दुबला पतला बच्चा आँखें मलता उठ खड़ा हुआ |

"चल, खड़ा हो | कमरे खोलने का, साब लोको का सामान कमरों में जमाने का --मैं आता --तू चाबी लेके चल ---"

उस लॉबी में ही एक काउंटर सा बना था जिस पर काले रंग के टेलीफ़ोन साहब विराजमान थे | इशिता ने उसे देखकर कामले की ओर देखा ;

"अरे ! रामदेव भाई ! मैडम को अहमदाबाद बात करवाओ न ---!"

"ठीक है साब --आप लोग ऊपर चलो, मैं मैडम को बात करवाकर आता अब्बी ---"

इशिता की सत्येन से बात हो गई, बहुत अच्छा हुआ, वो परेशान से थे | पता चला श्री उसे बहुत याद कर रही थी | अभी-अभी उसकी आँख लगी थीं | लेकिन वह पिता की आवाज़ सुनकर उसकी आँखें खुल गईं ---

"मम्मा ! कब आने वाली हो ---" बच्ची की आवाज़ में नींद भरी हुई थी |

" लव यू मम्मा --जल्दी आ जाना ---" कहकर श्री फिर से सो गई, सत्येन ने बताया |इशिता को चैन पड़ गया था पति व बच्ची की बात सुनकर |

उस लॉबी में ही साइड से एक छोटा सा जीना लगा हुआ था | रामदेव ने उसे ऊपर चढ़ने का इशारा किया | ऊपर तो और भी बुरा हाल था |वही बेनूर सी ऎसी रौशनी जिसमें दस आँखों वाले को भी न दिखाई दे | चार कमरे खोल दिए गए थे | इशिता को जो कमरा दिया गया, उसमें से भयंकर दुर्गंध आ रही थी, उसके पास वाला रैम का था |

रैम ने खिड़कियाँ खोलकर पँखा चला दिया था लेकिन वह गंध इशिता के फेफड़ों में भरी जा रही थी | इशिता ने रैम को पैसे देकर कहा कि वह जल्दी से पान की दुकान से अगरबत्ती के पैकेट्स और माचिस ले आए | उसने रैम से दीवारों के छेदों में धूपबत्तियाँ लगवाकर जलवा दीं लेकिन दुर्गंध का बुरा हाल था | सब थके हुए थे, अपने कमरों में ड्रिंक लेकर जैसे-तैसे पड़ गए | बेचारे रैम की ड्यूटी इशिता के साथ थी |

वहाँ सोने का कोई सवाल ही नहीं था | कुर्सी मँगवाकर इशिता रात भर मुह पर कपड़ा बाँधे बैठी टूलती रही | उसने रैम से कहा भी कि वह सो जाए लेकिन उसे कंपनी देने के चक्कर में वह बेचारा भी उसके पास एक कुर्सी पर बैठा झटके खाता रहा |

जैसे ही झुटपुटा खिड़की के रास्ते कमरे में झाँका इशिता ने कुर्सी छोड़ी और ब्रश करने की कोशिश की लेकिन मुह में झाग भरे रहे गए, कमरे की लॉबी में जो वॉश-बेसिन था उसमें झांकते ही उसे वॉमिट होने लगी | बाहर निकलने की जगह झाग मुह के अंदर जाने लगा | कभी गुलाबी रंग का वॉश बेसिन रहा होगा जो अब बीड़ियों के टुकड़ों, माचिस की तिल्लियों, पान की पीक से भरा पड़ा था | वह भागकर कमरे में आई और बिना देखे-भाले कमरे की खिड़की से बाहर कुल्ला कर दिया | पानी की बॉटल तो उसके हाथ में ही थी | दो-तीन बार कुल्ला करके उसे थोड़ा चैन पड़ा |

"ओय ---कूंण सा----??" नीचे से किसीकी भद्दी गाली की आवाज़ आई |

अरे बाबा ! कोई नीचे सड़क पर सोया हुआ था | उसने रैम से वहाँ से भागने को कहा और वे दोनों धड़धड़ करते नीचे उतर आए | एक ही नज़र में इशिता ने उस गैलरी के गाढ़े गुलाबी रंग को देख लिया था जिस पर न जाने कैसे-कैसे अनगिनत गंदे दाग लगे थे | उसके लिए वहाँ खड़ा रहना अब मुश्किल था |

नीचे का दरवाज़ा खुल चुका था, छोटा लड़का झाड़ू लगा रहा था और रामदेव दरवाज़े के बाहर खड़ा बार-बार सड़क पर दातुन करके थू--थू कर रहा था | इशिता को देखते ही बोला ;

"मैडम ! इदर अकेले जाने का नाइ ---अब्बी भौत से लोग ताड़ी के नशे में होएंगे --"

"रामदेव भाई। मैं जाता है मैडम के साथ --इदरीच --थोड़ा दूर --बस, उनको खुल्ली हवा माँगता -"

रामदेव मुह देखता ही रह गया और इशिता रैम का हाथ पकड़कर वहाँ से भाग आई |

रास्ते में सच में ही दो-तीन लोग झूमते हुए मिले लेकिन रैम ने उसे अपने पीछे कर लिया |

"अब --?" इशिता खुली हवा में साँस ले पा रही थी |

"मैडम ! इसी रोड पे आगेइच जेल है--वहीँ चलते न, आपको चा बी मिल जाएगी ---"

रैम वहाँ के चप्पे-चप्पे से परिचित था |

"अपन को जेल में तो जाने का न आज ---तो वहींच चले न ---" अब तक सूर्य की लालिमा दिखाई देने लगी थी |

इशिता इतनी हताश थी कि बिना सोचे-समझे रैम के साथ चल दी | सच में ही थोड़ी दूर पर ही बड़ा सा गेट दिखाई दिया - उस पर अर्धचन्द्राकार में बड़ा सा बोर्ड था जिस पर बड़े-बड़े अक्षरों में लिखा था;

(जेल ---अलीराजपुर )और एक लंबा-चौड़ा आदमी अपनी लुंगी घुटनों तक चढ़ाकर गेट के बाहर एक औरत को पैरों से ज़ोर-ज़ोर से मार रहा था | उसकी रोने की आवाज़ से वातावरण में एक अजीब सा सहमापन पसरा हुआ था |