Peeping faces from bars - 8 in Hindi Fiction Stories by Pranava Bharti books and stories PDF | सलाखों से झाँकते चेहरे - 8

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सलाखों से झाँकते चेहरे - 8

8 ---

इशिता अपने कमरे में आकर गहरी नींद सो गई, उसे बिलकुल पता नहीं चला कि रात में किस समय मि. कामले आए थे | रोज़ की तरह चिड़ियों की चहचहाहट के साथ ही उसकी आँखें लगभग पाँच बजे के करीब खुलीं |

उसने कमरे का दरवाज़ा खोलकर देखा, रैम करवट बदल रहा था | दरवाज़ा खुलने की आवाज़ से उसकी आँखें खुलीं, वो हड़बड़ाकर उठने लगा |

"अरे ! सो जाओ रैम, मेरी नींद पूरी हो गई तो आँखें खुल गईं |"

"गुड मॉर्निंग मैडम। मैं भी जाग गया है ---" वह उठकर अपनी चटाई लपेटने लगा |

उसकी दृष्टि फिर से किचन के दरवाज़े पर टँगे तीर-कमान पर गई। पल भर को हृदय धड़का लेकिन वैसी कुछ घबराहट नहीं हुई जैसी पहली बार देखकर हुई थी |

बाहर झुटपुटा शुरू होने लगा था | वह बाहर जाकर रैम के छोटे से बागीचे में टहलने लगी |उसने कुछ नहीं कहा पर वह जानती थी रैम अभी आ जाएगा | कुछ देर बाद ही रैम कुर्सी लेकर आ गया |

" मैम, आप फ्रैश हो गए ?" उसने पूछा |

वह जानती थी रैम चाय के साथ बिस्किट लाने के लिए पूछ रहा था |

" हूँ ---" उसने धीरे से मुस्कुराकर कहा | एक ही दिन में रैम उसकी दिनचर्या से परिचित हो गया था |

कुछ देर में वह एक ट्रे में चाय व बिस्किट का डिब्बा लेकर आ गया | पहले दिन की तरह वह खुद स्टूल पर बैठ गया |

रैम खूब बातें करता था, उसने बातों ही बातों में इशिता को जैसे पूरे झाबुआ की सैर करवा दी | कहाँ पर क्या है ? क्या नए विकास हो रहे हैं ? खिर्स्ती धर्म अपनाने के बाद उनकी जाति के लोग उनसे अलग रहने लगे लेकिन साथ में उन्हें ईर्ष्या भी होने लगी क्योंकि अब यह परिवार खाते -पीते परिवारों में से था |

"मैडम ! ये तो इस दुनिया की खासियत है जब गरीब होते तो इंसल्ट करने का और जब पैसा आ जाए तब कुछ कुछ बातें करने का ----" कड़वे अनुभव छुटपन में ही बहुत कुछ सिखा देते हैं |

रैम ने उसे और बहुत सी बातों के साथ यह भी बताया कि यहाँ आदिवासियों में भगोरिया का मेला होता है जिसमें लड़के-लड़की मिलते हैं और भाग जाते हैं | फिर काफ़ी दिन बाद वो मिलते हैं और लड़की के परिवार वाले लड़के के परिवार से काफ़ी बड़ी रकम लेकर ही उन दोनों की शादी करते हैं |

"और पता है मैडम --यहाँ एक लड़के की कई बीबी भी होती ---, कब्बी कब्बी तो वो लड़के से डबल उमर की भी होती ---|

"अरे ! पर ऐसा क्यों ? " इशिता ने आश्चर्य से पूछा |

"यहाँ औरतें ही शब्बी काम करती हैं न ? घर का काम, जंगल का काम --सब्ब --"

"तो, मर्द क्या करते हैं ?"

"वो ---बस-- ऐश करते हैं और ----" कहकर वह संकोच में चुप हो गया |

आज भी लगभग नौ बजे कामले उठे ;

"गुड मॉर्निंग मैडम ---सॉरी ---रात को बहुत देर हो गया था ---"

" मुझे कोई फ़र्क नहीं पड़ा, मैं तो खूब चैन की नींद सोई -----"

"मैं तैयार हो जाता है मैडम --जरा जल्दी से एक कप चाय मिलेगा रैम बाबा ---"कामले मराठी मूल के थे उनका बोलने का तरीका भी अलग ही था, कुछ बंबइया मिश्रित --|

रैम के पीछे कामले भी जल्दी से अंदर चले गए| इशिता जानती थी अगर कामले लोगों में बैठ गए तब तो हो गया आज का दिन पूरा ---!

उसने सोचा उसे तैयार तो हो ही जाना चाहिए और वह अपने कमरे की ओर बढ़ गई | बाहर आने पर इशिता ने देखा, रैम ने नाश्ते के लिए तवे पर ब्रेड सेक दी थी, साथ ही टेबल पर बटर भी रख दिया था | गरमा-गरम कॉफ़ी उसके सामने थी |

कामले भी जल्दी तैयार हो गए और एक टोस्ट पर बटर लगाकर धीरे-धीरे खाने लगे | किसी सोच में दिखाई दे रहे थे कामले |

"सब ठीक है न ?"इशिता ने कामले से पूछा |

" ओ ! यस --सब ठीक है | अगर यहाँ के लोग मिलने को आ गए न तो निकलने में देर हो जाएगी और वो रास्ता बड़ा ख़राब है ---लेकिन मैंने बोल दिया है न मैडम तो----" उनके शब्द मुख में ही रह गए | दो-तीन लोग बाहर आकर कामले सर को आवाज़ लगाने लगे थे |कामले अपना नाश्ता छोड़कर उनके स्वागत के लिए बाहर बरामदे में निकल गए |

दरसल कामले ने कलाकारों का एक बड़ा झुण्ड तैयार कर रखा था, यहाँ के लोग कम पैसे में सीरियल में काम करने के लिए तैयार हो जाते और उन्हें अहमदाबाद स्टूडियो में बुलाने का पैसा भी नहीं देना पड़ता | शूटिंग भी वहीँ हो जाती, कभी जंगलों में, कभी किसी के भी घर पर ! सरकारी शिक्षण के इन प्रोजेक्ट्स में कुछ अधिक 'रिच सैट्स' की ज़रुरत नहीं थी |

ठीक दस बजे बंसी, सुबीर और क्रू के सभी सदस्य पहुँच गए | अब वहाँ भीड़ सी हो गई थी | इशिता को कुछ बेचैनी सी होने लगी | वह अपना कमरा बंद करके बैठ गई और अपने काम के कुछ प्वाइंट्स नॉट करने लगी |

सिटिंग रूम से लगातार आवाज़ें आ रही थीं | मि. कामले ने सभी लोगों से उसका परिचय करवाकर उसे वहीं बैठने का आग्रह किया था लेकिन उसे सहज नहीं लग रहा था अत: वह कमरे में आकर काम करने लगी थी |

न जाने कब वह पलँग पर लेटी और फिर से उसकी आँखें बंद हो गईं, दरवाज़े पर कोई था |

इशिता ने दरवाज़ा खोला ;

"क्या मैडम ! आप भूखे ही सो गए थे ---?"कामले थे |

इशिता ने महसूस किया पेट उससे शिकायत तो कर रहा था, घड़ी में समय देखा ;

"दो बज गए ---?" वह बड़बड़ाई | रात को तो इतनी गहरी नींद आई थी, वह फिर इतना सो ली !

वह बाहर निकली, सिटिंग रूम में शांति थी | क्रू के लोग भी बैठे-बैठे बोर हो गए थे| वे सब होटल जाकर खाना खाकर आ गए थे और यहाँ के लिए खाना पैक करवा लाए थे |

कामले, इशिता और रैम जल्दी ही खाने बैठ गए | निकलने में जितनी देर होगी, उतना ही अँधेरे में गड़बड़ी होने की संभावना थी |

लगभग तीन बजे वहाँ से निकलना हुआ, लेकिन रास्ते में न जाने कितने लोग कामले को राम, श्याम करते मिले जिनके पास गाड़ी रुकवाकर उनके हाल-चाल न पूछते तो कामले का खाना हज़म होने वाला नहीं था |

यानि जहाँ से गाड़ियाँ 'कनवाय' में जाती थीं, जहाँ आगे-आगे पुलिस की एस्कॉट चलती और पीछे-पीछे गाड़ियों का काफ़िला, वहीँ से सबको जाना होता था | ऊबड़-खाबड़ रास्तों में कहाँ से आदिवासी अटैक हो जाए कुछ कहा नहीं जा सकता था | वहाँ अभी तक कई गाड़ियाँ जमा हो गईं थीं |

उस स्थान से अलीराजपुर पहुँचने में लगभग डेढ़ घंटे लगने थे और यहाँ पहुँचते हुए उन्हें आठ बज गए थे |

अँधेरा छा गया था और घने जंगल में दूर -दूर तक रौशनी के नाम पर जैसे दो पटबीजने से शायद ज़ीरो वॉट के बल्ब इधर से उधर डोल रहे थे | गाड़ियाँ पीं पीं कर रही हीं और एस्कॉट की गाड़ी कहीं दिखाई नहीं दे रही थी |

अचानक एक लंबा-चौड़ा सरदार ट्रक-ड्राइवर अपने ट्रक से कूदा, अपनी लुंगी की फेंट में से उसने एक बॉटल निकाली, मुँह पर लगाकर गटागट ख़ाली करके उसे जंगल की तरफ नीम अँधेरे में उछाल दिया | उसके ट्रक की हैड-लाइट्स खुली थीं जिससे वहाँ का थोड़ा -बहुत दिखाई दे रहा था |

"क्यों कहाँ है वो त्वाडा एस्कॉट--बुला अपने अफसर को ---" उसने अपने दोनों बलशाली हाथों से दुबले -पतले सिपाहियों को झकझोर दिया |ट्रक की हैड लाइट्स सिपाहियों पर पड़ने से वे जानदार लगे वरन वे ऐसे लग रहे थे मानो दो काले रँग के पेड़ खड़े हों और उनमें आँखों की जगह दो पटबीजने पटर पटर कर रहे हों |

सिपाही घबरा से गए, उन्हें लगा अभी सरदार जी के हट्टे-कट्टे दो-दो हाथ पड़ेंगे और वे लुढ़क पड़ेंगे | उनका भाग्य अच्छा था कि इतनी देर में एस्कॉर्ट की गाड़ी पीं-पीं करती गुप्प अंधकार से बाहर आई और सरदार जी अपने ट्रक में सवार होकर ट्रक स्टार्ट करने लगे |अब बहुत सी गाड़ियों की पीं-पीं ----घर्र-घर्र सुनाई देने लगी थी और एस्कॉट के आगे पीं -पीं करके जाने के बाद गाड़ियों का काफ़िला भी चल पड़ा था |

कुछ गाड़ियाँ तेज़ी से भाग रही थीं, शूट की गाड़ी थोड़ी पीछे रह गई थी, उसके लिए पाँच मिनिट प्रतीक्षा करना ज़रूरी था |इतनी देर में एस्कॉट की गाड़ी तो न जाने कहाँ भाग गई थी और पीछे की गाड़ियाँ भगवान भरोसे चल रही थीं |

शूट के क्रू की गाड़ी के पास आते ही दोनों गाड़ियाँ साथ चलने लगीं लेकिन जैसे ही कुछ दूरी पर चलीं, एक बड़ा सा पत्थर गाड़ी की विंड-स्क्रीन पर आकर इतनी ज़ोर से टकराया कि गाड़ी का काँच चटख़ गया | 

"भगाओ बंसी भाई, नहीं तो अभी अटैक हो जाएगा --"सबको कामले पर गुस्सा आ रहा था लेकिन यह बहस करने का नहीं, जान बचने का समय था |