Peeping faces from bars - 6 in Hindi Fiction Stories by Pranava Bharti books and stories PDF | सलाखों से झाँकते चेहरे - 6

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सलाखों से झाँकते चेहरे - 6

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होटल से क्रू के सब लोग आ चुके थे | तब तक नाश्ता भी ख़त्म हो चुका था |कामले ने बताया था कि रैम भी हमारे साथ में 'लोकेशन -हंट' पर जा रहा है | मिसेज़ जॉर्ज ने बेटे को भी नाश्ता करवा दिया था और कुछ नाश्ते के पैकेट्स एक थैले में रखकर उसको पकड़ा दिए थे | पानी के थर्मस तो साथ ही रहते थे | सबके गाड़ी में बैठने के बाद मिसेज़ जॉर्ज ने कामले को याद दिलाया कि वे हम लोगों का डिनर बनाकर रखेंगी | उनको मैडम को लेकर उनके घर आना है | शायद उन्होंने बेटे से पहले ही यह निमंत्रण मि. कामले को भिजवा दिया था जिसके बारे में इशिता को कोई जानकारी नहीं थी | मि. कामले का आना-जाना वहाँ लगा रहता जिससे उनकी खूब बड़ी मित्र-मंडली बन गई थी | जिधर से निकलते --'साब, थोड़ा चा --पीकर जाइए' | और सब कामों में देरी होती रहती |

बंसी वाली गाड़ी में ही कामले के साथ इशिता, सुबीर व रैम भी थे | अहमदाबाद से ही शेड्यूल तय था | आज की लोकेशन-हंटिंग के बाद वहाँ के किसी स्कूल की व्यवस्था व पढ़ाई का तरीका देखने जाना था | जहाँ उनके दोपहर के भोजन की व्यवस्था भी की गई थी | इशिता ने रैम से कुछ बिस्किट्स के पैकेट्स व चॉकलेट्स बच्चों में बाँटने के लिए मँगवा ली थीं |

झाबुआ का पूरा इलाका रेतीला सूखा हुआ था केवल कुछ लंबे-लंबे पेड़ दिखाई देते जो उसे बाद में पता चला था कि वे ताड़ी के पेड़ थे जिन पर मटकियाँ टाँग दी जाती थीं | यदि उसे सूर्य की किरणें पड़ने से पहले उतार लिया जाता तब वह स्वास्थ्य-वर्धक था, उसे 'नीरा' कहा जाता और वह शहरों में भी भेजा जाता जिसका सेवन अच्छा माना जाता था लेकिन उसमें सूर्य की किरणों के पड़ने पर वह 'ताड़ी' बन जाती जिसको पीने से भयंकर नशा हो जाता था |स्थानीय लोग पेड़ों पर हांडियों को टाँगे रखते और सूर की किरणें पड़ने का सेवन करते | इसके नशे में वहाँ के लोग बेहद गंभीर अपराध कर बैठते थे |

रैम के दिशा-निर्देश पर बंसी गाड़ी चला रहा था, पीछे -पीछे शूट के लोगों व सामान से लदी -फदी गाड़ी भी थी | इतने सूखे स्थान पर अपनी आँखों के सामने एक बेहद हरा-भरा स्थान और छोटी सी पहाड़ी से गिरते हुए पतले से झरने को देखकर सबको बेहद आश्चर्य हुआ | छोटा सा लेकिन बेहद खूबसूरत स्थान था वह ! सुबीर ने दूसरी गाड़ी में से कुछ कैमरे निकलवाकर कुछ सुंदर दृश्य कैद कर लिए थे |

कामले इतनी सुंदर जगह देखकर प्रसन्न थे और उन्होंने सोच लिया था कि अगली बार अपने कुछ दृश्य वहीं पर शूट करेंगे | लगभग एक बजने वाला था और उन्हें अभी उस स्कूल में पहुँचना था जहाँ उनकी प्रतीक्षा की जा रही थी | वह स्थान वहाँ से लगभग दस किलोमीटर दूर था | रैम के दिशा-निर्देश में काफ़िला आगे बढ़ा और न जाने किन पथरीले व रेतीले रास्तों से निकलकर स्कूल में पहुंचा जहाँ बड़ी आतुरता से उनकी प्रतीक्षा की जा रही थी |

स्कूल के बड़े मास्टर जी अपने सहयोगी शिक्षकों को लेकर धूप में आगे-पीछे कर रहे थे | उन्होंने कुछ बच्चों को भी एकत्रित किया हुआ था जिन्हें पंक्तिबद्ध होने की आज्ञा दी जा रही थी | बच्चे एक-दूसरे को धक्के मारते, अपने कमीज़ों से बहते हुए नाक व चेहरे पर आए पसीने को पोंछते  हुए बड़े मास्टर जी की आँखों की तरेर से मार खाकर भी एक-दूसरे के आगे आने की कोशिश करते नज़र आ रहे थे |

"मेहमानों का स्वागत करेंगे ---लाओ फूलों के गुलदस्ते जो बनाए हैं--" कुछ बच्चे पंक्ति में से दौड़कर अंदर जाकर स्कूल के प्रांगण से जंगली फूल तोड़कर बनाए गुलदस्ते लेकर आ गए थे जिनसे मेहमानों का स्वागत किया गया | सुबीर के शूटिंग के कुछ लड़के शूट कर रहे थे और बच्चे अपनी-अपनी शकल दिखाने के लिए बार-बार एक दूसरे को धक्के मारकर आगे आने की कोशिश कर रहे थे |

" मेहमानों के स्वागत में गीत गाएंगे ---" बच्चे फिर धक्का-मुक्की करते, अपने कमीज़ की बाहों में नाक पोंछते बेसुरे सुर में गाने का प्रदर्शन करने लगे ;

'हम होंगे कामयाब ---एक दिन ----" बच्चे लंबे-लंबे हाथ उठाकर जोश में गा रहे थे |सामने कैमरा देखकर वे पूरे उत्साह में थे और यह भी जानते थे कि उन्हें गीत गाने के बाद केला मिलने वाला है |

इशिता ने रैम से गाड़ी से बिस्किट्स व चॉकलेट्स के पैकेट्स भी मंगवा लिए थे और उसे कहा था कि केले बँट जाने के बाद वह उन बच्चों में ये सब बाँट देगा |

स्कूल की काँटो वाली बाड़ के बाहर बच्चों की माँए भी खड़ी थीं, किसीकी काँख में बच्चे भी लटक रहे थे और अहाते में बँटने वाली चीज़ों पर उनकी दृष्टि जमी हुई थी |

"रैम, सबको बाँट देना, वो जो बाहर औरतें खड़ी हैं उनको भी | बचाना नहीं कुछ भी ---" कहकर वह सबके साथ अंदर आ गई थी जहाँ पर मेहमानों के लिए कुर्सियों का इंतज़ाम किया गया था |

अब सबके पेट में चूहे कबड्डी खेल रहे थे और सामने के बरामदे में चूल्हे पर बीरबल की खिचड़ी पक रही थी |

खाने के लिए मेहमानों को एक अलग कमरे में ले जाया गया जहाँ पर नीचे टाट पर चादरें बिछाकर खाने का इंतज़ाम किया गया था |

"मास्टर ! जल्दी लाओ, मेहमान भूखे हैं ----" परोसने वाले मास्टरों के हाथ से घबराहट में खिचड़ी प्लेटों में न गिरकर ज़मीन पर गिर रही थी और इशिता को लग रहा था कि वह उनकी सहायता कर सकती लेकिन उस समय वह महत्वपूर्ण अतिथि के रूप में थी, सो चुपचाप देखती रही |

आख़िर खिचड़ी आ ही गई, साथ में मिट्टी की कटोरियों में दही जो गर्मी के कारण फटने को मज़बूर थी | अचार की फाँकें और कटी हुई प्याज़ सामने प्लेट में रखी थी |

भूख से बेहाल मेहमानों ने जैसे ही खिचड़ी मुख में डाली, कच्ची दाल के दाने दाँतों में चिपकने लगे | बेहद कच्ची खिचड़ी और पेट में चूहों की कलाबाज़ी ---दो चार कौर खाकर सब उठ खड़े हुए |