Peeping faces from bars - 2 in Hindi Fiction Stories by Pranava Bharti books and stories PDF | सलाखों से झाँकते चेहरे - 2

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सलाखों से झाँकते चेहरे - 2

2--

रैम किचन में घुसा, शायद उसने कॉफ़ी के लिए गैस पर दूध रख दिया था, फिर बाहर निकलकर उसने कहा ;

"मैडम ! बस, पाँच मिनिट ---मैं गर्मागर्म दाल-बडे भी खिलाएगा आपको ---" वह तेज़ी से कमरे से बाहर निकल गया |

अब इशिता की दृष्टि उस कमरे के चारों ओर घूमने लगी | कमरा बहुत बड़ा नहीं था लेकिन उसमें सभी चीज़ें सुव्यवस्थित रूप में रखी थीं | चार कुर्सियों की डाइनिंग -टेबल थी, फ़ाइव सीटर सोफ़ा था | डाइनिंग-टेबल की साइड में ऊपर से नीचे तक एक अलमारी बनी हुई थी जिसका ऊपरी भाग लकड़ी से बंद था और नीचे के कई खानों के दरवाज़ों में काँच लगे हुए थे जिसमें से ठीक ठाक सी क्रॉकरी झाँक रही थी | इशिता ने अपनी आँखें किचन के दरवाज़े की दीवार के ऊपर जाने से पहले ही रोक ली थीं |

एक ओर से कामले गले में तौलिया लटकाए आ रहे थे तो दूसरी ओर से रैम हाथ में थैली पकड़े आता दिखाई दिया |

वह फ़्रेश होने के लिए अपने कमरे में चली गई | उसे बताया गया था कि उसके कमरे में ही अटैच्ड बाथरूम है | 

रास्ते भर कचरा खाते हुए यहाँ तक पहुँचे थे सो कामले ने इशिता से पूछकर रैम से खिचड़ी बनाने के लिए कह दिया और कॉफ़ी पीने के बाद अपने लिए कुछ दाल-बड़े लेकर अपने कमरे में चले गए थे, अपने ड्रिंक के साथ लेने के लिए |

कितना भी मना करो कामले अपने साथ चलने वालों को 'गार्बेज-बैग' बनाकर ही छोड़ते थे | किसी छोटे से भी गाँव में से निकलो, उन्हें पता रहता वहाँ की क्या चीज़ मशहूर है | यहाँ तक कि किस लारी पर बढ़िया मसाले वाली चाय मिलती है और किस पर करारे गरमा गरम पकौड़े, सब कुछ उनके दिमाग़ी रजिस्टर में दर्ज रहता |रास्ते में हाई-वे पर कई अच्छे रेस्टोरेंट्स और होटल्स भी पड़ते थे, उनमें लंच करना तो ज़रूरी था ही |

डिनर के लिए कामले समय पर डाइनिंग -टेबल पर थे | वे ड्रिंक्स लेते ज़रूर थे लेकिन इशिता ने कभी उनको बेकार बहकते हुए नहीं देखा था | वो तो बिना लिए हुए ही बहके रहते थे | उनके साथ कोई दाँत फाड़कर हँसता न हो, ऐसा हो ही नहीं सकता था |

इशिता से खिचड़ी नहीं खाई गई, असहज थी वह, बहुत असहज | अपने कमरे में आकर वह लेट गई किन्तु वह दीवार उसका पीछा ही नहीं छोड़ रही थी |

कामले उसकी तबियत देखकर परेशान हो रहे थे, अगली सुबह शूटिंग पर जाना था | इस समय वह आदिवासी झाबुआ प्रदेश में थी | एक सरकारी प्रोजेक्ट से जुड़े ये सब लोग इस प्रदेश में एक सीरियल की शूटिंग करने आए थे |

अहमदाबाद से दो गाड़ियाँ निकली थीं जिनमें एक में कामले, इशिता, सुबीर और ड्राइवर बंसी था जबकि दूसरी गाड़ी में शूटिंग का पूरा सामान और शूटिंग- क्रू के सारे लोग थे | सुबह नौ बजे चलने के बाद यहाँ शाम के लगभग छह बजे पहुँचे थे सब लोग, थकान होनी स्वाभाविक थी |लेकिन इशिता की शारीरिक थकान से अधिक मानसिक थकान थी |

"मैडम ! रैम आपके कमरे के बाहर यहीं सिटिंग रूम में सोएगा, आपको कुछ चाहिए तो बोल दीजिएगा | "अपने कमरे में जाने से पहले कामले रैम को समझा गए थे |

रैम इशिता के कमरे के बाहर ज़मीन पर चटाई बिछा रहा था |

इशिता की आँखों में नींद नहीं थी, उसका दिल भी रह-रहकर धड़क रहा था |