Record - Child Story in Hindi Children Stories by Asha Saraswat books and stories PDF | कीर्तिमान - बाल कहानी

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कीर्तिमान - बाल कहानी







पारस नर्सरी में पढ़ने जाता तो उसका छोटा भाई प्रतीक उसके साथ जाने की ज़िद करता ।प्रतिदिन मॉं उसे प्यार से समझातीं कि तुम अभी छोटे हो स्कूल नहीं जा सकते।


जब पारस अपनी छोटी-छोटी उँगलियों से गृहकार्य करता तो प्रतीक बड़े ही ध्यान से देखता ।

एक दिन पारस को स्कूल में काम मिला तो वह लिखे हुए बिन्दुओं पर पैंसिल फिरा कर अपना गृहकार्य कर रहा था ,पास में बैठा हुआ प्रतीक बड़े ही ध्यान से देख रहा था।

पारस काम करते हुए पेंसिल रखकर मॉं के पास जाकर बोला—मॉं मेरा कार्य करा दीजिए ।
मॉं ने कहा —मैं अभी आकर कार्य पूरा करा दूँगी तुम कुछ देर रुको।


मॉं पारस के साथ गईं तो देखा प्रतीक ने पारस का कार्य पूरा कर दिया है ।मॉं आश्चर्य चकित होकर देखने लगीं ।

तोतली भाषा में नन्हे प्रतीक ने मॉं से कहा—भैया का काम मैंने लिख दिया मॉं! । मॉं ने प्रतीक को गले लगा कर बहुत प्यार किया और ख़ुशी में कुछ नहीं बोल पाई।


स्कूल न जाकर प्रतीक घर पर ही कार्य करता और भैया की तरह ही लिखने लगा ।धीरे-धीरे उसने भैया का पूरा कोर्स कर लिया ।जब उसका दाख़िले के लिए मौखिक परीक्षा हुई तो उसने सब कुछ बता दिया ।


जब वह कक्षा में सबसे पहले अपना कार्य कर लेता तो अध्यापक बहुत खुश होते शाबाशी देते ।प्रतीक अपने विद्यालय में सबका चहेता विद्यार्थी बन गया ।


दोनों भाई स्कूल में सब के चहेते हो गये और सबका प्यार पाते।


प्रतीक अपनी कक्षा में प्रथम आता,जब वह बड़ी कक्षा में पढ़ने लगा तो विद्यालय से कभी भी अवकाश नहीं लेता,सभी कार्य समय से पूरे कर लेता ।


पूरे वर्ष की उपस्थिति सबसे ज़्यादा होने पर विद्यालय से उसे पुरस्कार मिला ।माइक पर जब उसका नाम बोला गया तो उसे समझ नहीं आया ।दोबारा नाम बोला तो वह स्टेज पर गया और अपनी शील्ड लेकर अपने स्थान पर बैठा ही था कि दूसरी बार उसका नाम बोला गया।


दूसरी शील्ड उसे पूरे विद्यालय में सबसे अधिक अंक आने पर मिली वह बहुत खुश था।फिर तीसरी बार उसका नाम बोला गया तो उसे सुंदर लेखन के लिए मेडल मिला ।हिंदी और अंग्रेज़ी दोनों में लेखन उसका पहले नंबर पर था।


विद्यालय में बस्ता प्रतियोगिता,वेष प्रतियोगिता भी हुआ करती थी ।उसमें प्रथम ,द्वितीय आनेवाले छात्र को शहर के चेयरमैन अपनी ओर से पुरस्कार दिया करते थे वह भी पारस और प्रतीक को ही मिला ।


पूरे विद्यालय में प्रथम स्थान पर अंक लाने वाले विद्यार्थी को वहाँ के चेयरमैन पुरस्कार स्वरूप तीन वर्ष तक वज़ीफ़ा की राशि दिया करते थे।


पारस और प्रतीक के पिता का अगले वर्ष तबादला दूसरे शहर में होने पर उन्होंने नई जगह जाकर ,नये स्कूल में दाख़िला लिया ।वहॉं पर भी वह पढ़ने में पूरी मेहनत करते ।


नये विद्यालय में पहुँचने पर प्रतीक बहुत कम बोलता,कक्षा में उसने नये दोस्त बना लिए थे।वह कक्षा में प्रश्नों के उत्तर आसानी से दे देता था ,जो सहपाठी पहले होशियार थे उन्हें बहुत बुरा लगता ।


कुछ सहपाठी आगे निकलने के प्रयास में ग़लत हरकतों से उसे परेशान करते लेकिन वह किसी से कुछ न कह कर अपनी पढ़ाई पर पूरा ध्यान देता ।


कक्षा में एक दिन सब बैठे थे और अध्यापक पढ़ा रहे थे ,तभी बड़े बाबू ने कक्षा में आकर बताया कि प्रतीक के पुराने विद्यालय से उसका पुरस्कार सहित तीन वर्ष के वज़ीफ़ा की राशि का चेक आया है ।प्रतीक को बहुत ख़ुशी हुई और कक्षा में अध्यापक ने बहुत प्यार किया ।


जो सहपाठी उसे परेशान करते थे वह सब आश्चर्य चकित होकर उसे देखने लगे ।


अब प्रतीक ने अपने सहपाठियों का मन जीत लिया था ।प्रतीक ने अपनी योग्यता का दिखावा कभी नहीं किया,अपनी मेहनत और लगन से वह सब का प्यारा मित्र और विद्यालय का मेधावी छात्र बन गया ।


पूरे विद्यालय में,फिर पूरे शहर में,उसके बाद पूरे ज़िले में प्रथम स्थान पाकर उसने कीर्तिमान स्थापित किया और अपने माता पिता का नाम ऊँचा किया..।