Salakhon se Jhankte Chehre - 1 in Hindi Fiction Stories by Pranava Bharti books and stories PDF | सलाखों से झाँकते चेहरे - 1

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सलाखों से झाँकते चेहरे - 1

1

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जैसे ही इशिता ने उस कमरे में प्रवेश किया उसकी साँसें ऊपर की ऊपर ही रह गईं | एक अजीब सी मनोदशा में वह जैसे साँस लेना भूल गई,  लड़खड़ा गई जैसे चक्कर से आने लगे |

"व्हाट हैपेंड मैडम ?" कामले कमरे में प्रवेश कर चुके थे | पीछे -पीछे एक नवयुवक भी जिसके हाथों में गाड़ी में से निकाले गए बैग्स व दूसरा सामान था |

इशिता के मुख पर किसी ने टेप चिपका दिया था जैसे | वह बोलना चाहती थी लेकिन शब्द थे कि उसके मुख में गोल-गोल भरकर न जाने तलवे में कहाँ चिपक रहे थे |

"मैडम ! आर यू ऑल राइट ? ---ओ. के ---? " कामले उसके पास तक आ गए थे |

"हाँ--मि. कामले ! मैं ठीक हूँ ---" कहकर उसने अपनी दृष्टि उस स्थान से हटा ली जहाँ चिपक गई थी |

"नो, यू आर नॉट ----" कामले उसके चेहरे पर उड़ती हवाईयाँ देख रहे थे | उनके पीछे ही नया फ़ोटोग्राफ़र सुबीर भी था जिसने हाल ही में संस्थान जॉयन किया था | अभी तक वह बहुत अधिक नहीं खुल पाया था लेकिन मि. कामले जब तक किसीके मुख में ऊँगली डलवाकर उसकी आवाज़ न निकलवा दें, तो वो कामले ही कहाँ ?पूरे रास्ते वह सुबीर से मज़ाक करते रहे थे और बेसुरे सुर में अंताक्षरी कर-करके उन्होंने सबको पका दिया था |

"रैम ! प्लीज़, पानी लाओ, भागकर ----"

"जी ----" वह लड़का अपने हाथ का सामान नीचे रखकर कमरे से दिखाई देने वाली किचन में पानी लेने तेज़ी से गया |

इशिता देख रही थी लेकिन क्या ---? रैम किचन में रखे फ़िज से काँच के एक साफ़-सुथरे ग्लास में पानी निकालकर ट्रे लेने प्लेटफॉर्म की ओर मुडा |

"यार --अभी ट्रे की ज़रुरत नहीं है ---जल्दी आओ ---" कामले कुछ ज़ोर से बोले |

हड़बड़ाहट में रैम से काँच के ग्लास का पानी छलका लेकिन वह जैसे-तैसे उसे सँभालकर

इशिता के पास तक ले आया जहाँ वह सोफ़े पर बैठ चुकी थी |

"मैडम ! पानी लीजिए ---" कामले ने रैम नामक युवक से ग्लास लेकर उसे पकड़ाते हुए कहा |

"थैंक्स---" बस, इतना ही इशिता के मुख से निकला |

पानी का ग्लास लेने के लिए हाथ बढ़ाते हुए उसने महसूस किया कि उसके हाथ काँप रहे थे |हाथ क्या उसका पूरा शरीर ही कँपकँपा रहा था |

उसे खुद पर अफ़सोस हुआ--- उसके पति और मित्र उसे 'झाँसी की रानी' कहकर चिढ़ाते थे, वह अपने इस 'निक नेम ' को बदनाम करने पर आमादा थी !!इशिता ने कसकर ग्लास पकड़ा और अपने मुख तक ले गई लेकिन उसे उल्टी जैसा महसूस हो रहा था | फिर भी खुद को स्वस्थ्य दिखाने के लिए उसने दो घूँट पानी पीया और ग्लास सोफ़े के सामने रखी छोटी सी गोल मेज़ पर रख दिया |

"लगता है सर, इशिता मैडम थक गई हैं | पहली बार इतने ऊबड़-खाबड़ रास्ते से आई होंगी, हैं न मैडम ?" अब तक ड्राइवर बंसी भी अपने हाथों में गाड़ी से निकाला गया कुछ सामान लेकर कमरे में प्रवेश कर चुका था |

"जी, मैडम, आप ठीक तरह से बैठ जाइए, थोड़ा रिलेक्स होकर ---" सुबीर ने उसके पीछे साइड में रखा कुशन लगाने की कोशिश की |

"सब ठीक है ---" उसने बामुश्किल अपने मुख से ये शब्द हवा में छोड़े जिनमें से उसकी लंबी अशक्त सी श्वाँस सबने महसूस की |

"अरे ! हमारी मैडम झाँसी की रानी हैं, तुम तो जानते हो बंसी ---"कामले के सामने कई बार इशिता के पति सत्येन उसे 'झाँसी की रानी' का तमगा पहना चुके थे | उसने एक बार उनके चेहरों पर दृष्टि डाली और कामले, सुबीर व बंसी के चेहरे पर एक सरल मुस्कान पसर गई |

"हाँ भाई रैम, वही रूम तैयार किया न मैडम के लिए जो मैंने बोला था ----" कामले अब उस युवा से लड़के से मुख़ातिब थे जो शायद कुछ आज्ञा लेने की प्रतीक्षा में डाइनिंग -टेबल के पास खड़ा था |

"जी सर ---बंसी भाई, आइए, मैडम का सामान इस कमरे में रख देते हैं ---" उस युवा लड़के ने खुद भी उसका बैग उठाया जिसे वह जल्दी में नीचे छोड़कर पानी लेने चला गया था |

बंसी और रैम इशिता का सामान उठाकर उस सिटिंग-रूम के भीतर से ही एक दरवाज़े में चले गए थे |

"मुझे लगता है मैडम, आप फ्रैश हो जाइए तब तक रैम कॉफ़ी बना लेगा --"

"अभी उठती हूँ मि. कामले, आप हो जाएँ पहले फ्रैश ---"अब उसके मुँह से आवाज़ निकली थी लेकिन सच में वह इशिता नहीं थी --पता नहीं, आवाज़ कहाँ से आ रही थी बिलकुल मद्धम सी | वह तो जब बोलती है तब खूब खुलकर बोलती है |अच्छा-ख़ासा दम होता है उसकी आवाज़ में |

"ओ.के बॉस ----"कामले ने नाटकीय अंदाज़ में उसके सामने अपने कंधे उचकाए |

"अब्ब्बी आता है मैं ----" एक चुटकी बजाकर कामले सिटिंग-रूम के सामने बनी लॉबी में जाने के लिए मुड़े जो उसे सोफ़े पर बैठे हुए भी दिखाई दे रही थी |उसकी दाहिनी तरफ़ एक कमरे का दरवाज़ा व बाईं ओर एक मोड़ दिखाई दे रहा था |

"सर--सर--"बंसी तेज़ी से कामले से कुछ कहने आया था | उसके पीछे सुबीर भी था |

"सर--हम होटल चलते हैं ---कल सुबह कितने बजे निकलना होगा ?"

:हाँ, बंसी, मुझे लगता है दस बजे तक ठीक है | मैडम ! तैयार हो जाएँगी न दस बजे तक ---?" कामले जाते-जाते रुक गए थे |

" हाँ--हाँ बिलकुल, मैं तो जल्दी उठ जाती हूँ, जल्दी भी निकल सकते हैं ---" इशिता ने अब तक अपने आपको संयमित कर लिया था |

"नहीं मैडम, हम सब कहाँ जल्दी जागने वालों में से हैं --आप भी बहुत थकी लग रही हैं --"

"ठीक है बंसी, दस बजे ठीक रहेगा ---"कामले ने घूमकर बंसी को स्वीकृति का अँगूठा दिखाया |

"गुड-नाइट सर --गुड-नाइट मैडम --बाय --रैम "बंसी कमरे से बाहर निकल गया --उसके साथ सुबीर भी बाय करके निकल गया, उसका ठहरने का इंतज़ाम भी पूरी शूटिंग -टीम के साथ होटल में था |