My valentine in Hindi Short Stories by Arjun Allahabadi books and stories PDF | मेरा वैलेंटाइन

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मेरा वैलेंटाइन


"""""""""""मेरा वैलेंटाइन"""""""""
Arjun Allahabadi.

आधी रात को जब कॉल वेल बजी तो मै दौड़ कर दरवाजे के पास आया। रोज़ की तरह दरवाजा खोला तो प्रीती नशे की हालत में बड़बड़ाती हुई अपने कमरे में चली गयी।मैंने शांत मन से दरवाजा बंद किया ,जैसे कुछ हुवा ही न हो।
दरअसल प्रीती और मेरी शादी को लगभग 5 वर्ष हो गए ।
मगर हम दोनों में कभी पति-पत्नी वाला रिश्ता नहीं रहा। प्रीति बड़े महानगर से है और मै एक छोटे शहर से।प्रीति एक अच्छी पोस्ट पर है और मै मामूली सा क्लर्क ।
वह आधुनिक विचारों वाली है और मै पुराने ख्यालो का।कितना मुश्किल हो जाता है जब विपरीत विचारों वाले इंसान से शादी हो जाये और उसे पूरी उम्र एक साथ काटनी हो तो।मै सोच सोच कर परेशान हो उठता मगर दूसरे ही पल यह भी सोचने लगता कि पुराने ज़माने में भी शादियां होती थी वह भी बगैर एक दूसरे को देखे ,जाने समझे फिर भी ख़ुशी -ख़ुशी दोंनो मिलजुल कर जिंदंगी की नैया हर सुख-दुख में पार लगाते। ऐसा मैंने बहुत लोगो की जिंदगी को देखा है।

मैं सुबह नाश्ता बनाता और प्रीति सोती रहती ।मैं अपना और प्रीति दोनों का लंच पैक करता । तब भी वह सोती ही रहती।मै अपना टिफिन ले कर ऑफिस के लिए निकल जाता । और वह आराम से ऑफिस जाती और आराम से घर लौटती।
शुरू -शुरू में मुझे प्रोब्लेम्स हुई थी मगर जब प्रीती से मैंने बात की तो पता चला की वह किसी और लड़के से प्यार करती थी ,मगर उसके माँ बाप ने उसकी शादी मुझसे जबरदस्ती कर दी।
अपने प्रेम को न पाने की वजह से वह नशे का सहारा लेने लगी थी।ताकि उसकी याद न आये।
मै कुछ देर तलक तो किंककर्तव्यविमूढ़ बैठा रहा ।मगर फिर एक झटके से उठ आया। और अपनी ससुराल फोन लगा दिया।
""हेल्लो......?
""जी मै सुनील बोल रहा हूँ "
"हाँ बेटा.. मै प्रीति की माँ बोल रही हूँ"
"नमस्ते मम्मी जी ...कैसी हैं आप?"।
""जीते रहो बेटा...ठीक हूँ बेटा ,अब आपको तो पता ही है कि मै दिल की मरीज हूँ,ज़रा सा भी सदमा बर्दाश्त नही कर पाती हूँ।बगैर दवा के एक दिन भी नही चल सकती।खैर मेरी छोडो बेटा।।आप सब ठीक तो हो न बेटा?"।
""हाँ मम्मी जी ...दरसअल वो...
""हाँ बेटा ...मै समझ सकती हूँ प्रीति थोड़ा आधुनिक ख्यालो की है न ,लेकिन तुम्हारे जैसा लड़का उसे पूरी जिंदगी में नही मिल सकता था।कितने संस्कारी बेटा हो आप ।।हम सब को आप पर गर्व है बेटा ।आज शादी के 4 साल हो गए हैं पर आपने मेरी बेटी के बारे में जानते हुए भी कभी कोई ऐतराज नही किया इस से बढ़ कर परोपकार और क्या हो सकता है ....
फिर उधर से सुबकने की आवाज़ तेज हो गयी.....
""अरे नही माँ जी....आप चिंता न करिये ।मै हूँ न "
और फिर फोन क़ट गया........
मै बहुत बड़े धर्म संकट में पड़ गया ,अब क्या करूँ एक तरफ उसकी वीमार मां और दूसरी तरफ मेरी जिंदगी।
ऑफिस में दिन तो क़ट जाता मगर शाम से रात तक बहुत मुश्किल से वक्क्त गुजरता। शाम को प्रीति के आने से पहले मै खाना बना लेता था ।मगर इंतिज़ार करते करते जब काफी लेट हो जाता तो मै प्रेम चंद जी का कोई उपन्यास पढ़ने लगता।सच कहूं तो ये उपन्यास ही मेरी खाली जिंदंगी के हम सफर थे, ।
रोज़ की तरह मै शाम को ऑफिस से आने के बाद फ्रेश होता और खुद के लिए चाय बनाता और फिर अधूरा उपन्यास पढता।मगर आज जैसे ही मै घर आया ,गेट खोलने के लिए चाभी लगायी तो गेट पहले से ही खुला था ,मै हैरान हो गया।किसी अनहोनी की आशंका से मन व्याकुल हो उठा।धीरे धीरे क़दमों से अंदर दाखिल हुआ तो चौक गया। देखा तो पूरा आँगन गुलाब के ताजे फूलों से भरा पड़ा है ....मुझे लगा मै कोई सपना देख रहा हूँ ,आँखों पर यकीन नही हुवा तो उन फूलों को छूने लगा।
पर यह क्या यह तो सच मुच के फूल थे। मै खुद पर यकीन कर ही रहा था कि तभी किसी ने मुझे पीछे से मेरे कंधे पर हाथ रखा ,मैंने पीछे मुड़ कर देखा तो सामने प्रीति खड़ी थी ....अरे तुम.......?
इस से पहले की मै कुछ और बोलता वह मेरे क़दमों में बैठ गयी और गुलाब का एक अधखिला फूल मेरी तरफ बढ़ा कर कहा""आई लव यू सुनील....हैप्पी वैलेंटाइन डे""
मुझे लगा मै कोई ख़्वाब देख रहा हूँ ,,,जो नींद खुलते ही टूट जाएगा।मुँह से कुछ नही बोल पा रहा था बस प्रीति के इस बदले रूप को देख रहा था...और फिर.........आँखों से अश्रुधारा निकल पड़ी....