love - 5 in Hindi Fiction Stories by ArUu books and stories PDF | इश्क़ - 5

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इश्क़ - 5

ये कहानी है आरोही और निक्षांत की मोहब्बत की
जिंदगी के हर बुरे दौर से गुजर कर भी दोनों अपनी मोहब्बत को निभाते है
किस तरह बदलती दुनियाँ में भी दोनों एक दूसरे की प्रति समर्पित रहते है
आरोही की जिंदगी की खाली जगह कैसे निक्षांत के आने से पूरी हो जाती है और वो ज़रा जरा मोहब्बत मे डूब जाती है

Part 5


आज आरोही का मन पढ़ाई में नहीं लग रहा था
वो चाहती थी की जल्दी से सुबह हो और वो उसे देख पाये
सोचते सोचते आँख लग गयी
और सुबह जीवा की आवाज़ से उसकी आँखे खुली
आज एक आवाज़ में वो उठ के तैयार हो गयी थी
जीवा उसका ये रूप देख के आश्चर्य में पड़ गयी
इतनी जल्दी वो 10 सालों मे कभी नहीं उठी थी
खैर उसने खाना खाया
जीवा वो प्यार से बाहों में भरा और निकल गयी स्कूल की तरफ
आज रास्ता उसे ज्यादा लंबा लग रहा था
स्कूल जा के उसकी नज़र उसे ढूढ़ती है। पर वो कहीं नहीं दिखता
बुझे मन से घर आ जाती है
रोज़ रोज़ स्कूल में वो उसका इंतज़ार करती है
वो दो आँखे उसे बैचेन करती है हर पल चाहती है की वो उस किताब को हटा कर उसका चेहरा देख ले
पर अपने असहाय होने पर वो तिलमिला उठती है
अपनी एक फ्रेंड रीना से उसे पता चलता है की उसने स्कूल छोड़ दी क्युकी उसके पापा का ट्रांसफर कहीं और हो गया
आरोही का मन पुरा अशांत हो जाता है
वो अब उन आँखों के ख्याल से बाहर आना चाहती है पर रह रह के वही आँखें सामने आती है

" निक्षांत " यही नाम तो बताया रीना ने
उसे इस नाम से प्यार हो जाता है
या ऐसा कहे की उसे निक्षांत से प्यार हो जाता है
आरोही दिन रात उसके ख्यालों में खोयी रहती
जीवा को इसकी भनक लग चुकी थी
पर उसे अपनी बेटी की खुशी से की ऐतराज नही था


आरोही की जिंदगी उसी ढर्रे पर चल रही थी
बस फर्क इतना था की अब उसमें कुंठा की जगह किसी की यादें थी
एक दिन आरोही घर आयी उसने देखा की जीवा रो रही है
अपनी मासी माँ को इस तरह रोता देख आरोही भाग कर उसके पास गयी और उसका हाथ अपने हाथ में ले कर प्यार से पुछा
"क्या हुआ माँ "
जीवा उससे लिपट कर रोने लगी
रोते रोते बोली बेटा
तुम्हें पता है उस आदमी ने मुझे दूसरी औरत के लिए छोड़ दिया था
और आज स्कूल मे आ कर फिर बखेड़ा कर दिया
कहता है की में किसी और मर्द के साथ घूमती थी इसलिए मुझे छोड़ दिया
तेरी कसम आरोही मैने आज तक किसी और को देखा तक नही बेटा
कहते कहते जीवा रो पड़ी
आरोही उसको चुप कराने की कोशिश करती रही

आज आरोही के मन में फिर से सन्नाटा था
बाबा के बाद मौसा जी ... नहीं नहीं मौसा जी नहीं
वो आदमी मेरी इस इज्जत का हक़दार नहीं
वो क्या कोई भी आदमी मेरी इज्जत का हक़दार नहीं
आरोही अब सब मर्दो से नफ़रत करने लगी थी
उसने सोच लिया था की अब किसी को अपनी और मौसी की जिंदगी से खेलने नही देगी
किसी भी लड़के को कभी अपनी जिंदगी मे जगह नहीं देगी ... कभी नहीं
उसके मन से धीरे धीरे निक्षांत की प्यार भरी छवि धूमिल होने लगी

( कैसे मिलेगी आरोही निक्षांत से ... कैसे वो आरोही के दिल में जगह बना पाता है ... जानने के लिए पड़ियेगा जरूर)