ये कहानी है आरोही और निक्षांत की मोहब्बत की
जिंदगी के हर बुरे दौर से गुजर कर भी दोनों अपनी मोहब्बत को निभाते है
किस तरह बदलती दुनियाँ में भी दोनों एक दूसरे की प्रति समर्पित रहते है
आरोही की जिंदगी की खाली जगह कैसे निक्षांत के आने से पूरी हो जाती है और वो ज़रा जरा मोहब्बत मे डूब जाती है
Part 3
गाँव में रही आरोही 7 साल की हो गयी
पढ़ाई में अव्वल
मुख चंचल मन खामोश
हर क्लास मै अपने भाई बहनो से अव्वल आती पर बाबा है की उसकी तरफ आज भी ध्यान नही देते
मन में दबे सवाल अब उसके मन मे ही रह जाते
घर वालों के उपेक्षित रवैये से आरोही के मन में नकारात्मक घर कर गयी थी
पर वो इसकी एक सिकंद भी अपने चेहरे पर नहीं आने देती
कभी कभी उसे लगता की वो रतना की सगी बेटी नहीं है
स्कूल में वो खूब मस्ती करती
अपनी सहेलियों के साथ
हाँ पढ़ने में जितनी होशियार थी उतनी ही माहिर बाते बनाने में भी थी
आज उसका अर्धवार्षिक परिक्षा का परिणाम आया था
उसने क्लास में पहला स्थान प्राप्त किया था
वो खुशी खुशी घर जाती है
और श्याम को गोदी में उठा के झूमने लगती है
छोटे हाथों से श्याम छुट जाता है
और जा के खंभे से उसका सिर टकरा जाता है
सिर पे हल्की सी चोट के साथ खून बहने लगता है
आरोही रुआसा होके उसी खंबे के पीछे चुप जाती है
श्याम के रोने की आवाज़ से झमुरा अपना काम छोड़ कर वहा भागा भागा आता है
श्याम को इस हालत में देख गुस्से मे आग बबूला हो जाता है
और वहा पड़ी एक छड़ी उठा के आरोही को मारने लग जाता है
अम्मा उसे बचाने का असफल प्रयास करती है
आरोही के रोने की आवाज़ से पुरा घर गूंज जाता है
तभी दरवाजे पे किसी की दस्तक होती है
रतना जा कर देखती है
तो वहा बड़ी बहन जीवा को दैख के चौक जाती है
जीवा आरोही की आवाज़ सुन उसके पास दौड़ी चली जाती है
आरोही को अपने बाहों में भर देती है
आरोही ने आज पहली बार किसी का स्पृश् महसूस किया
उसने अपने छोटे से हाथों से जीवा को कस के पकड़ लिया
दोनों की आँखों से आँसू अविरल बह रहे थे
जीवा आरोही को अपने साथ ले जाती है
गाँव से दूर अपने शहर में
बस में बैठी आरोही शहर की चकाचौध वाली दुनियाँ देख ठगी सी रह जाती है
जीवा आरोही की मासुमियत देख उसे फिर से बाहों में भर लेती है बस से उतर कर दोनों टैक्सी की सवारी कर एक मकान के सामने रुकते है
"आरोही बेटा.. ये देखो ये है हमारा घर"
आरोही को लगा जैसे वो सच मे एक ममतामयी मुरत से बात कर रही है।
आज से पहले इतने प्यार से कभी किसी ने उससे बात नहीं की
घर साधारण था पर उसके गाँव वाले घर से काफी बड़ा था
एक दम व्यवस्थित ऐसे लग रहा था जैसे बरसो से ये ऐसे ही पड़ा है साफ पर विरान्
मासी यहाँ क्या आप अकेली रहती हो?
"मासी नहीं माँ कहों मुझे "
"ठीक है आज से आप मेरी मासी माँ"
कहते हुए आरोही जीवा को आलिंगन में जकड़ लेती है
आरोही और जीवा दोनों अपनी दुनियाँ में खुश रहना सीख जाते है
जीवा तो आरोही का साथ पा के इतनी प्रसन्न होती है की उसके पिछले सारे गम धुधंले पड़ जाते है