Ichchha - 20 in Hindi Fiction Stories by Ruchi Dixit books and stories PDF | इच्छा - 20

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इच्छा - 20

दोपहर लगभग बारह बजे इच्छा पैकिंग मे व्यस्त थी कि तभी, डोरबेल बजती है | इच्छा दरवाजा खोलती है | गेट पर, अरे ! प्रभाकर जी आप? प्रभाकर "जी ! क्या मै अन्दर आ सकता हूँ |" इच्छा अपनी प्रतिक्रिया पर सकुचाते हुए "जी - जी ! बिल्कुल अन्दर आईये |" प्रभाकर की तलाशती नजरों को ताड़ते हुए इच्छा पूँछ बैठती है, " क्या हुआ प्रभाकर जी आप किसी को ढूँढ रहे हैं? " सकपकाते हुए नही वो !!आपके साथ जो थीं उषा नाम था जी उनका | इच्छा हाँ ! वो शादी की तैयारी मे लगी हैं कुछ खरीदारी करने गई है | प्रभाकर थोड़ा चौंकते हुए शादी? इच्छा "हाँ उसकी छोटी बहन की |" प्रश्नात्मक भाव जो कि आँखों से परिचय दे रहा था लिए , इच्छा की तरफ देखते हुए बोल पड़ता है " उषाजी बड़ी हैं ? इच्छा, जी हाँ! जिम्मेदारी के चलते किसी को तो कुर्बानी देनी ही होती है | प्रभाकर सारी बात समझते हुए हम्म ! ! | इच्छा "प्रभाकर जी आपने अपने आने का प्रयोजन अभी तक नही बताया ?" प्रभाकर, "जी वो उस दिन आप लोग कुछ बताते हुए रूक गये थे? " तभी सभी का ध्यान गेट पर जाता है जहाँ कई सारे पैकेट हाथ मे पकड़े उषा का प्रवेश होता है | उषा को देखते ही प्रभाकर के चेहरे पर मानो चमक आ गई हो |उषा समान नीचे रखते हुए , अरे आप? प्रभाकर "जी हाँ ! आप उसदिन कुछ बताते हुए रह गये थे | क्या कोई समस्या है यहाँ पर? " उषा अब क्या करना है प्रभाकर जी ! अब तो हम वैसे भी यहाँ से जाने वाले हैं | प्रभाकर , "बेशक ! किन्तु आपका अनुभव यहाँ रहने वाले लोगों को सुरक्षित करेगा यदि कोई अप्रिय घटना हो तो कृपया बतायें हम कालोनी के अन्य लोगो के साथ मिलकर विचार विमर्श कर उसे दूर करने का प्रयास करेंगे | " उषा, ठीक है ऐसा कहते हुए उस दिन की सारी घटना प्रभाकर को बता दी |" प्रभाकर हल्की मुस्कुराहट के साथ उषा की तरफ देखता हुआ "वैसे आप हैं बहादुर |" उषा भी प्रभाकर की तरफ ही देख रही थी कि, दोनो की आँखे एक दूसरे पर चुम्बकीय आकर्षण लिए ठहर गई हो जैसे | वे इस प्रकार खोये हुए थे कि उन्हें, वहाँ इच्छा के होने का भी आभाष न रहा | तभी इच्छा उनका सम्मोहन तोड़ती हुई " तेरी खरीदारी पूरी हो गई ? " उषा सकुचाते हुए हाँ -हाँ ! एक , दो बचा है उसे कल ले आऊँगी | " प्रभाकर "अच्छा जी मै चलता हूँ | " इच्छा "अरे! ऐसे कैसे प्रभाकर जी चाय पीकर जायें | " नही इच्छा जी फिर कभी कहते हुए एक बार फिर उषा की तरफ देखता है | उषा शर्माते हुए नजरें घुमा लेती है | वहीं दूसरी तरफ प्रभाकर के चेहरे की हल्की मुस्कुराहट मानो किसी जीत का संकेत थी | इच्छा हल्की मुस्कान के साथ तिरछी नजर से भौंहे चढ़ाती हुई "क्या बात है कुछ बदली बदली सी लग रही है तू | " उषा शर्माती हुई ऐसा कुछ भी नही |" इच्छा "कैसा नही है? " उषा " अरे वो तो न " कह दोनो हँस पड़ती है | दूसरे दिन दोनो बिल्डिंग से बाहर निकलकर ऑटो का इन्तजार करती हैं की तभी प्रभाकर कार लिए "अरे इच्छा जी आप? कहीं जाना है आप दोनो को ? " इच्छा एक नजर उषा की तरफ देखने के बाद जी वो ! मार्केट तक |" प्रभाकर "यदि आपको ऐतराज न हो तो मै भी उसी तरफ जा रहा था बीच मे आपलोगो को छोड़ देता हूँ | " इच्छा "क्यो उषा चले ?" उषा बिना कुछ कहे शर्माती हुई सिर हिलाकर स्वीकृति देते हुए |" दोनो गाड़ी मे बैठ जाती हैं | प्रभाकर " जी आप लोग यहाँ से कब जा रहे हैं? उषा " हफ्ते दसदिन मे |" प्रभाकर "आपलोग कहाँ शिफ्ट हो रहें है ? " इच्छा "अभी कुछ पता नही , "सप्ताह भर इसी की तलाश रहेगी |" प्रभाकर "आपके घर मे कौन - कौन है? इच्छा " उषा की तरफ देखती हुई "किसके ? मेरे या उषाजी के? " प्रभाकर "जी आप दोनो के |" इच्छा " सारी जानकारी दो मुलाकात मे ही ले लेना चाहते है |" प्रभाकर " जी ऐसी बात नही समय काटने का यह एक मात्र उपाय है | जब तक मार्केट नही आता |" प्रभाकर "वैसे पहले मै ही अपना परिचय दे देता हूँ आप लोगों को | परिवार मे हम दो लोग हैं मै और मेरी माँ |पिता जी बचपन मे ही गुजर गये थे | बचपन बहुत कठिनाई और आभाव मे गुजरा किन्तु , मुफ़लिस की चोट रास्ते खुद ही बनाती गई आज मन का आत्मविश्वास सफलता की किसी भी हद को पार करने मे सक्षम है | किन्तु मैं बहुत अधिक महत्वकाँक्षायें नही पालता | मैने अपनी माँ को सारे सुख दिये सिवाय एक बहु के यही उनकी शिकायत भी है |" इच्छा " तो आपने उनकी शिकायत दूर क्यो नही की? " प्रभाकर "इच्छा जी मै अपनी माँ से बहुत प्रेम करता हूँ | इसीलिए |" इच्छा "विवाह से इसका क्या संबन्ध? " प्रभाकर " सम्बन्ध तो कुछ भी नही किन्तु मै एक ऐसी लड़की चाहता हूँ जो संबन्धों का सम्मान करे | मै अपनी माँ को जितना प्रेम करता हूँ वह भी करे |" इच्छा "आपके विचार बहुत उत्तम हैं आपको जरूर ऐसा ही जीवनसाथी मिलेगा |" प्रभाकर "जी धन्यवाद ! | प्रभाकर " आप लोगो ने जाँब के बारे मे कुछ सोचा है? " इच्छा और उषा दोनो एक दूसरे की तरफ देखती हुई |" जी नही ! हम सोच रहे थे कि कुछ दिन के लिए घर ही हो आते हैं |" लेकिन अभी तो आपलोग शिफ्ट होने की बात कर रहे थे? फिर ऐसा अचानक? इच्छा " सत्यता यह है प्रभाकर जी कि अभी, हमारे पास कोई विकल्प नही इसलिए यहाँ रहने से कोई लाभ नही |" प्रभाकर " तो आप लोग विकल्प के पीछे भाग रही हैं ? आप लोग विकल्प निर्माण क्यों नही करतीं ? इच्छा आश्चर्य से "विकल्प निर्माण? " प्रभाकर "जी! आप लोग अपना काम क्या नही शुरू करते |" इच्छा और उषा दोनो एक दूसरे की तरफ देखता हैं तभी प्रभाकर " लीजिये आ गई मार्किट |" इच्छा और उषा गाड़ी से नीचे उतरती हुई " बहुत बहुत धन्यवाद, आभार! " प्रभाकर "जी धन्यवाद तो आप लोगों का मुझे तो यहाँ तक आना ही था आप लोगों के साथ सफर कैसे कटा पता ही न चला |" यह कहते हुए प्रभाकर वहाँ से चला गया | दोनो सहेलिया खरीदारी के पश्चात ऑटोरिक्शे से घर वापस आ जाती हैं | उषा इच्छा से "प्रभाकर जी की बात तुझे समझ मे आई ? " हाँ ! लेकिन समझने और करने मे अन्तर है |" उषा "कोशिश मे क्या जाता है यार? " इच्छा "कोशिश के लिए भी अनुभव और पूँजी की आवश्यकता होती है |" उषा "हुम्म! " दोनो कपड़े बदल कर बैठी ही थी कि , डोरबेल बजती है | उषा दरवाजा खेलते ही खुशी जाताती अरे ! ऑन्टी आप? ऑन्टी बिना कुछ बोले अंदर पलंग पर बैठ जाती हैं | इच्छा पानी का ग्लास ऑटी की तरफ बढ़ाते हुए ऑटी आप ठीक तो हैं? आँटी इशारे से मना कर देती है उनके चेहरे पर कोई भाव न पाकर इच्छा जैसे कुछ समझती हुई उषा की तरफ देखती हैं और दूसरे ही पल फिर ऑन्टी से लिपटकर "सॉरी माँ |" चिन्ताग्रसित होने की वजह से इच्छा और उषा बहुत दिनों से ऑन्टी से भी नहीं मिली थीं | ऑन्टी बिना कुछ बोले मुँह घुमा लेती हैं | अब उषा भी " हमे माँफ कर दीजिए |" ऑटी नाराजगी जताते हुए " मुझे तुम लोगो से बात नही करनी |
हालात कुछ ऐसे हैं कि हम आपसे नही मिल सके |" ऑटी
" कैसा हालात? " जो तुमको अपनी माँ से नही मिलने देता? उषा आँटी हमे यह फ्लैट अब खाली करना होगा जाब छूटने के दो महीने एक ही परमीशन थी | अब हम रिक्वेस्ट अवधि पर हैं |" यह तुम लोग क्या कह रहा है तुम लोग यहाँ से जाने वाला है? लम्बी साँस खीचतीं हुई उषा" जी ऑन्टी ! जाना पड़ेगा |" आँखो से भराभर आँसू निकल पड़ते हैं रूँधे गले से " मुझे छोड़कर तुम लोग भी चला जायेगा? " इच्छा "नही माँ ! आपको छोड़कर कैसे जा सकते हैं? हम तो फ्लैट छोड़ने की बात कर रहे हैं | यह भी हमारी मजबूरी ही है | नौकरी रही नही इसलिए आप -पास भी नही ले सकते |" तुम लोग हमारे घर पर क्यों नही रहता ? " इच्छा " आपके घर? नही माँ ! आप पर बोझ नही बनना |" ऑन्टी मुझे माँ बोलता है और बोझ की बात कर रहा है | बच्चे भी कभी माँ के लिए बोझ होता है क्या? तुम दोनो मेरे साथ रहेगा दिस इज़ माई आर्डर दैट्स ऑल |" उषा इच्छा की तरफ देखने के पश्चात " ठीक है ऑन्टी जैसा आप कहें |" दोनो समान पैक कर ऑन्टी के घर आ जाती हैं | सुबह किचन मे खट पट की आवाज से ऑन्टी की नींद टूटती है और वह किचन की तरफ बढ़ती हैं जहाँ इच्छा और उषा कुछ बना रही होती हैं | ऑन्टी "यह क्या कर रहा है तुम लोग? इच्छा सीक्रेट है अभी नही बता सकते हैं? ऑन्टी मुस्कुराहट के साथ दोनो का माथा चूमते हुए " गॉड ब्लेस यू " कह कर वहाँ से चली जाती हैं |"
दबी छिपी चिन्ताओं के बीच भी ऑन्टी का घर हँसी और ठहाको से भरा रहता | एक दिन आन्टी इच्छा से , इच्छा ! एक बात कहूँ? इच्छा " जी आँन्टी बिल्कुल! " ऑन्टी " तुम सेल्फ मे कुछ क्यों नही करता ? इच्छा आश्चर्य भरी नजरो से ऑन्टी की तरफ देखती हुई "सेल्फ?" मतलब अपना बिजनेस क्यों नही करता ? " इच्छा " बिज़नेस के लिए पैसे और अनुभव दोनो ही मेरे पास नहीं है |ऑन्टी बेटा इस ओल्ड पर्सन ने बहुत कुछ देखा है | मै मेरा हस्बैंड बहुत पूअर था लेकिन , जिस समय मेरा हस्बैंड की डेथ हुआ हमारे पास दो सौ वर्कर को रोजगार देने वाला एक फैक्टरी था | " कोई भी अनुभव पेट से सीखकर नही आता, आल इज़ पॉसिबल विद विल पावर एण्ड एर्फ़ड्स | तुम ट्रॉय करो तुमको जरूर सक्सेस मिलेगी |" इच्छा जैसे किसी ने बुझने वाले चिराग जो जल तो रहा था मगर जलने के आखिरी पड़ाव पर था अर्थात, तेल सूख चुका था | उसमे ऑन्टी ने पुनः आशा रूपी थोड़ा तेल डाल दिया | " माँ मै क्या करूँ? कुछ नही सूझता | तू चिन्ता मत कर गॉड सब ठीक करेगा |" यह कह वह इच्छा के सिर पर पुनः प्यार से सूखी हथेलियाँ फेरती हैं | इच्छा एक बात पूँछू माँ? ऑन्टी "यस अफ़कोर्स |" आपके बेटे आपके साथ क्यों नहीं है? इच्छा की बात मे ऑन्टी के चेहरे के भाव अचानक परिवर्तित कर दिये | जहाँ एक ओर उनका चेहरा वात्सल्य से भरा हुआ था वही अगले ही पल इच्छा के शब्द ने उन्हें पीड़ा, पश्चाताप और शिकायत से भर दिया जिसने नेत्रों मे आँसू के रूप मे अपनी जगह बना ली | कुछ देर मौन रहने के बाद " हमने हमारे बच्चों को हर इच्छा पूरा किया , पढ़ने के लिए बाहर भेजा | पढ़ाई के बाद वह बाहर ही मैरिज कर वहीं सैटेल हो गया | जब भी फोन करती हूँ मुझसे पूँछता है, माँ कितना पैसा भेज दूँ |" यह कहते हुए लाल आँखे आँसुओं की वर्षा करने लगी, इच्छा ! मुझे पैसा नही चाहिए | यह देखकर इच्छा को अपनी गल्ती का आभाष हुआ " आँटी मुझे माफ कर दीजिए मैने आपको तकलीफ़ पहुँचाई | " ऑन्टी "अब मेरा कोई बेटा नही ! कई सालो से मैने उनसे बात नही की लेकिन एक बार भी फोन करके न पूछा माँ आप बात क्यों नही करते हो |" इच्छा ऑन्टी के आँसू पोंछती हुई "मै हूँ न आपकी बेटी ! अब आप कभी मत रोईयेगा | " मै आपकी बेटी हूँ न यह कहकर इच्छा ऑन्टी से लिपट जाती है तभी उषा वहाँ आकर "क्या बात है ऑन्टी सारा दुलार आप इच्छा को ही करोगे मुँह फुलाती हूँ "इत्ती भी बुरी न हूँ मैं ! ऑन्टी आँसू पोंछती हुई उषा को पास आने का इशारा करती हैं और उसे भी माथा चूमते हुए गले से लगा लेती हैं |