ANGYARI ANDHI - 3 in Hindi Fiction Stories by Ramnarayan Sungariya books and stories PDF | अन्‍गयारी आँधी - 3

Featured Books
Categories
Share

अन्‍गयारी आँधी - 3

उपन्‍यास

भाग—3

अन्‍गयारी आँधी

--आर. एन. सुनगरया,

शक्ति गुमसुम बेसुध सा दिग्‍भ्रमित मूर्तीवत निढ़ाल बैठा था।

‘’कैसे शक्ति!’’ हेमराज ने उसे चौंका दिया।

शक्ति हड़बड़ाकर चेतन अवस्‍था में लौट आया।

‘’मेरा तो उन लड़कियों से परिचय नहीं था।‘’ शक्ति ने अनापेक्षित कथ्‍य उछाल दिया।

हेमराज हक्‍का-बक्‍का, ‘’कौन? लड़कीं..........रजनी –रति?’’ ताज्‍जुब! उसने शक्ति की ओर देखा।

‘’हॉं!’’ नीची नज़र करके शक्ति ने स्‍वीकारा!

हेमराज ने सोचा, अब कोई गूँढ़ रहस्‍य विस्‍फोटक अन्‍दाज में उभरेगा! मगर शक्ति ने कुछ अन्‍य ही ढर्रा अथवा राम कहानी शुरू कर दी......

.......बरसात की सम्‍भावना लग रही थी। शक्ति घरेलू कामों में व्‍यस्‍त था। तभी, ‘’प्रणाम साहबजी!

शक्ति ने काम करते-करते ही, मुण्‍डी घुमाई, दहलीज पर रजनी-रति खड़ी हुई हाथ जोड़कर प्रसन्‍न मुद्रा में, हल्‍की सी हिलती–डुलती हुयीं, अभिवादन कर रहीं हैं; सभ्‍य, सौम्‍य एवं सुशील!

जब तक शक्ति सम्‍हलता वे दोनों हॉल में प्रवेश कर चुकीं थीं। अधिकार पूर्वक, ‘’जोरों की बारिश होने वाली है,......वर्षा थमने तक.......।‘’

‘’हॉं-हॉं।‘’ शक्ति ने शिष्‍टाचारिक लहजे में स्‍वीकृति में सर हिला दिया।

दौनों ने मुस्कुरा कर शक्ति को धन्‍यवाद ज्ञापित किया।

शक्ति पुन: कार्यरत हो गया।

गुमसुम बैठे रहना, रजनी-रति की प्रकृति में नहीं था। संकोच समाप्‍त, शरारत शुरू.......

एक दूसरे से हंसी-मजाक, लिपटा-लिपटी, छेड़ा-छेड़ी, भागा-दौड़ी, आपस में आलन्‍गन! झूमा-झटकी, जहॉं तक की परस्‍पर चूमा-चामी। एक-दूसरे के अंग-प्रत्‍येंग की पकड़ा-धकड़ी इन सब धूमा-मस्‍ती में मर्यादाओं का खुलकर उलंघन होता रहा, ये सब जीवन्‍त दृश्‍य-परिदृश्‍य शक्ति एकाग्र व टकटकी लगाये निहारता रहा, उसे कुछ लालित्‍य एवं सुन्‍दर सा शुकुन महसूस हुआ। ताजी-ताजी अनुभूति, हृदय ऑंगन में नृत्‍य करता मौर!

दोनों की अल्‍हड़ उम्र है। उद्धण्‍डता, मस्‍तीखोरी, परस्‍पर स्‍पर्श सुख अक्‍खड़ अन्‍दाज में, पकड़ना, दबाना, भींच लेना, झटक देना, सम्‍पूर्ण क्रियाएँ ऑंखों में ऑंखें डालकर नशीला आभास करना। सब कुछ बेलगाम, बेरोकटोक एवं स्‍वछन्‍द कौमल भावनाओं का खुले आसमान में उड़ान भरना। इस उम्र की नैशर्गिक चाहत है। यह सब संकेत शक्ति स्‍पष्‍ट समझ पा रहा था।

समय-बे-समय ये सिलसिला चलता रहा। शक्ति इन कार्यकलापों पर बिलकुल भी हस्‍तेक्षेप करना नहीं चाहता, बल्कि वह तो प्रतीक्षा में रहता है, ऐसे स्‍वसुख-स्‍वसुकून मोहक नजारों की।

शक्ति की मंशा भॉंप कर रजनी-रति उसको अपने मस्‍ताने खेल-क्रीड़ा में सम्मिलित करने के वास्‍ते ईशारों-ईशारों में आमन्त्रित करती रहती हैं। ना समझे वो अनाड़ी है....! ऐसा प्रतीत होता है, शक्ति को कि वे लज्‍जा के महीन पर्दे को लॉंघकर उसे दबोच लेंगीं तथा अपना ओरल आनन्‍द दुगना कर सहेज लेंगी.......।

शक्ति के सामने मर्यादा व संस्‍कार की मजबूत अदृश्‍य दीवार खड़ी थी। जिसका पालन वह दृढ़ता से करना चाहता है। यही सीख दी है, वेद-शास्‍त्रों ने।

शक्ति अपने आप पर गम्‍भीरता से विचार करने लगा, ‘’लेकिन बरदास्‍त की भी अपनी एक सीमा होती है। पड़ोसियों की युवतियॉं हैं। पारिवारिक सम्‍बन्‍ध बन गये हैं। उनके अभिभावकों के मेरे ऊपर पूर्ण विश्‍वास है, कि शक्ति अपनी मर्यादाओं, अपनी शराफत, अपनी नेक नियति, अपनी व्‍योवहार कुशलता, अपनी और अपने खानदान की दीर्घकालिक छबि को बट्टा नहीं लगने देगा। चाहे कैसी भी परिस्थितियॉं क्‍यों ना निर्मित हो जायें। शक्ति इतना समझदार तो है ही कि वह भविष्‍य के दुष्‍परिणामों को खूब समझता है। पुरखों की बनी बनाई इज्‍जत को क्षण भर भी नहीं लगेगा जमींदोज होने में, अगली सात पीडि़यों तक।

शक्ति तौबा-तौबा करके कान पकड़ लेता है। संयम ने सुरक्षा की शक्ति की।

बद से नहीं, बदनामी से ज्‍यादा जोखिम रहता है। शक्ति के साथ यही हुआ। चारों ओर आवाजें उठने लगीं। शक्ति के आवास में आये दिन रंगरैलियॉं मनती हैं। शक्ति ही सरगना है। बदनामी के चर्चे आम होने लगे। जिसके जो मुंह में आता बक देता। मस्‍त मिजाज के सौहदे, नमक-मिर्च लगाकर बढ़ा-चढ़ाकर अपनी भड़ास निकालने लगे मसालेदार, नमकीन वार्ताओं का दौर चल पड़ा। समाज में खुसर-फुसर एवं थू-थू होने लगी। लोगअपना रोष प्रदर्शित करने लगे। अभूतपूर्व आनन्‍द आने लगा उन्‍हें, वगैर कि सुबूत या साक्ष्‍ के जो चाहे, मन-मर्जी से चटकारे दार कहानियॉं गढ़ी जाने लगी, एक से एक दिलचष्‍प बातों का बाजार गर्म हो गया। यह तो होना ही था कलंक तो लगना ही था।

शक्ति के आवास पर सारी जानकारी लेकर हेमराज प्रगट हुआ, ‘’किसी के इन्‍तजार में हो शक्ति?’’

‘’हॉं।‘’ शक्ति ने अपनी दिनचर्या के मुताबिक, बताया, ‘’रजनी-रति नहीं आई अभी तक........।‘’

हेमराज बहुत ही अचम्भित होकर उसे निहारे जा रहा था। मन ही मन, सम्‍पूर्ण बस्‍ती के वातावरण में शक्ति के नाम का डण्‍का बज रहा है, कभी भी, कोई भी हमला हो सकता है, शक्ति पर, लेकिन शक्ति पूर्णरूप से अनभिग्‍य है। बाहर की दूषित आवोहवा से।

‘’हॉं अब वे आयेंगी भी नहीं।‘’

‘’क्‍यों?’’ शक्ति को आश्‍चर्य हुआ।

‘’बस्‍ती वालों का कहना है कि तुम्‍हारे घर में सेक्‍स रैकेट चलता है।‘’

हेमराज ने बिना लाग-लपेट के सब कुछ बक दिया। बगैर संकोच के पूरी

प्रतिक्रियाऍं उगल दीं, कौन क्‍या राग अलाप रहा है। अब करो, कितना खण्‍डन करते हो, क्‍या सफाई देते हो। बचाओ अपना दामन दागदार होने से! करो मुकाबला इस बवण्‍डर युक्‍त तूफान का.....‘’ऐसा तो कुछ नहीं!’’ शक्ति मिमयाने लगा, ‘’हम तो बस हंसी मजाक यूं ही टाईम पास......मनोरंजन.....।‘’ शक्ति कुछ सोच में पड़ गया। चुप्‍प.......!

शक्ति की बात किंचित सच नहीं लगी। हेमराज के दिमाग में कुछ

दृश्‍य कौंधने लगे----

.........अचानक उसके आवास पर कुछ खास काम से जा धमका, पर द्वार पर ही ठिठक गया। देखा,.....रति-रजनी शक्ति के दॉंये-बॉंयें पहलू में सटी-सिमटी हुई, उसके हाथों में रखी कोई अजूबी वस्‍तु को गौर से देखकर, कुछ समझने की कोशिश कर रहीं हैं। कुछ फुसफुसाती खनकती ध्‍वनि में हंसने लगीं। कशमशाने के साथ तीनों ने परस्‍पर कस लिया। हेमराज हक्‍का-वक्‍का रह गया। उसे याद आया,......शक्ति कुछ छुपा रहा है। कुछ तो गोपनीय है। हेमराज ने अनेकों मरतबा छुप-छुपकर, नजर बचाकर देखा,-----

...........समय शाम का धुंधलका। शक्ति सोफे में धंसा हुआ तथा गोद में रति अधलेटी हुई, शक्ति उसके चेहरे पर झुका हुआ चेहरे के समीप चेहरा; कुछ खुशफुसाहट........ये कोई शिष्‍टाचारिक, सामान्‍य सीन तो कहा नहीं जा सकता.....।

यादों का विस्‍फोट, एक और....शक्ति खड़ा है। मुण्‍डी हिलाकर पलकें

झपकाकर, करीब आने का इशारा करता है; रजनी कुछ ही पलों में मुस्‍कुराती, शर्माती, लचकती देह, कदम गिनती हुई, शक्ति के सम्‍मुख निकट आकर, ऑंखें दो-चार होती है एवं नशीली नज़रें मदहोशी को ऊभार देती है। शक्ति, रजनी के हाथ की ऊँगलियों में उँगलियॉं फंसाकर, हल्‍के बल प्रयोग का सहारा लेकर उसका हाथ पीछे कमर तक लेजाकर सटा देता है। छातियों को सीने से चिपका लेता है। साथ ही अपनी दोनों जॉंघों के बीच रजनी की जॉंघों को दबा लेता है। शक्ति का चेहरा उसके गले के समीप कुछ सूंघने लगता है। दोनों की ऑंखें बन्‍द, आलिंगन आनन्‍द में लीन!

हेमराज चिन्तित! जब वासना का शुरूर सर चढ़ता है, तब उसे

आपत्तिजनक, अश्‍लील, अमर्यादित कुछ महसूस नहीं होता, ये जवानी का उबाल, जोश, विवेक हर लेता है। बुद्धि चाट जाता है। सालों से संजोये संस्‍कार, संस्‍कृति समाप्‍त हो जाती है। रह जाता है, खाली पश्‍चाताप!

शक्ति के विरूद्ध सामाजिक माहौल खौल रहा था। जल्‍दी ही उस

पर टूट पड़ेगा। हेमराज भी उसके चपेट में आ जायेगा, गेहूँ के साथ घुन भी पिसना अवश्‍य भावी है।

हेमराज अत्‍यन्‍त चिन्तित हो गया। सारी वस्‍तुस्थिति शक्ति को

बताना जरूरी है। अन्‍यथा कुछ भी अनहोनी से इन्‍कार नहीं किया जा सकता।

हेमराज की समस्‍या यह है कि शक्ति को बताया कैसे जाये! सुलगती हुई अग्नि को सिर्फ तनिक हवा का झोंका छू भर जाये, भड़क उठेगी! फिर जो भी आये उसकी जद में राख कर देगी पल भर में......उफ!

शक्ति अपनी मस्‍ती में चूर पड़ा है। बेखबर! उसे आने वाले तूफां का कोई अन्‍दाज ही नहीं......!

हेमराज ने तय किया, तत्‍काल ही शक्ति को बारूद के ढेर से अवगत कराया जाय; उसे सुरक्षित बाहर लाया जाये। उसे आगाह करने निकल पड़ा, हेमराज.......।

.......जैसे ही हेमराज आवास पहुँचा, शक्ति नदारद.....! अब कहॉं ढूँढू? हेमराज व्‍याकुल सोच में पड़ गया। अपनी कल्‍पना के तोते दौड़ाने लगा; इस वक्‍त कहॉं होगा? कहॉं गया होगा? कहीं मेरे आने से पहले ही तो शक्ति......नहीं-नहीं ऐसा नहीं.....शंका ने जकड़ लिया।

हेमराज को फिक्र सताने लगी। आखिर शक्ति है कहॉं? प्रश्‍नों के भंवरजाल में फंसता जा रहा है। इस समय तो साधारणत: आवास पर ही मिलता था। कहीं उसे भनक तो नहीं लग गई, कोई शक्ति को बता तो नहीं दिया सारा मांजरा! अगर ऐसा भी हुआ होता, तो भी शक्ति मुझे विश्‍वास में लिये वगैर कुछ भी निर्णय नहीं लेगा। हो सकता है, वह विवश हो गया हो! अपनी जान सबको प्‍यारी होती है। तत्‍काल भाग निकला हो। ताबड़-तौड़। जब तक उससे सम्‍पर्क नहीं हो जाता, तब तक कुछ भी धारणा बनाना उचित नहीं होगा। विश्‍वास को दृढ़ता से थामे रखना होगा।

हेमराज ने कशमाकश का पीछा नहीं छोड़ा निरान्‍तर कुछ ना कुछ कयाम लगाता रहा, तभी उसे शक्ति झूमता हुआ आता दिखाई दिया। जान में जान आयी। घबराहट कम हुई।

शक्ति के करीब आते ही, तपाक से झुन्‍झलाया, ‘’कहॉं गायब हो गये थे, यहॉं तो मेरा कलेजा मुँह को आ रहा था।‘’ शक्ति को गम्‍भीर मुद्रा में देखकर हेमराज कुछ शाँत होकर, हड़काने जैसे अन्‍दाज में, बोला, ‘’शक्ति खामोश, अभी भी!

शक्ति ने हेमराज का चेहरा निहारा, हवाईयॉं उड़ रही हैं। बिना भूमिका शक्ति बताने लगा, ‘’यहॉं से भी अपना दाना-पानी उठ गया! अन्‍य शहर में ट्रान्‍सफर हो गया। आज ही निकलना होगा, तभी समय पर ज्‍वाइन कर पायेंगे।‘’

‘’ऐं!’’ हेमराज अचम्भित, बोला, ‘’ट्रान्‍सफर!’’ कुछ पल रूककर, ‘’अच्‍छा ही हुआ!’’ खुशी, मुख मण्‍डलपर।

‘’नहीं दोस्‍त, हेमराज।‘’ शक्ति ने उदासी में लम्‍बी सॉंस खीचते हुये, अपने मन की मंशा बताई, ‘’यहॉं से जाने की इच्‍छा नहीं है!’’

हेमराज सोचने लगा। शायद शक्ति को अबैध सम्‍बन्‍ध से उत्‍पन्‍न बवाल का अनुमान नहीं है। कैसे अनजाने में बोले जा रहा है। अब उसे कुछ भी बताने की आवश्‍यकता नहीं.....फिर कभी, सारी वस्‍तुस्थिति की जानकारी तो मिल ही जायेगी!........फिलहाल इस समय दिवास्‍वप्न अथवा दु:स्‍वप्न को यही दफ़न करना बेहतर होगा.........।

न्‍न्‍न्‍न्‍न्‍

संक्षिप्‍त परिचय

1-नाम:- रामनारयण सुनगरया

2- जन्‍म:– 01/ 08/ 1956.

3-शिक्षा – अभियॉंत्रिकी स्‍नातक

4-साहित्यिक शिक्षा:– 1. लेखक प्रशिक्षण महाविद्यालय सहारनपुर से

साहित्‍यालंकार की उपाधि।

2. कहानी लेखन प्रशिक्षण महाविद्यालय अम्‍बाला छावनी से

5-प्रकाशन:-- 1. अखिल भारतीय पत्र-पत्रिकाओं में कहानी लेख इत्‍यादि समय-

समय पर प्रकाशित एवं चर्चित।

2. साहित्यिक पत्रिका ‘’भिलाई प्रकाशन’’ का पॉंच साल तक सफल

सम्‍पादन एवं प्रकाशन अखिल भारतीय स्‍तर पर सराहना मिली

6- प्रकाशनाधीन:-- विभिन्‍न विषयक कृति ।

7- सम्‍प्रति--- स्‍वनिवृत्त्‍िा के पश्‍चात् ऑफसेट प्रिन्टिंग प्रेस का संचालन एवं

स्‍वतंत्र लेखन।

8- सम्‍पर्क :- 6ए/1/8 भिलाई, जिला-दुर्ग (छ. ग.)

मो./ व्‍हाट्सएप्‍प नं.- 91318-94197

न्‍न्‍न्‍न्‍न्‍न्‍

---क्रमश:--4