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सुगंधा की आँखों में आँसू भरे हुए थे | वह इस उत्सव के लिए अपने माता-पिता की प्रतीक्षा में न जाने कबसे पलकें बिछाए थी जो अभी तक नहीं पहुँचे थे | सब लोग संस्था व उसके बारे में बोले, डॉ. स्मिथ ने उसकी भूरी-भूरी प्रशंसा की व शुभकामनें दीं कि संस्थान इसी प्रकार के लोगों से प्रगति करता रहे | बाद में उसका नाम पुकारा गया, अब उसे मानिद उपाधि व सर्टिफ़िकेट देने के लिए पुकारा जा रहा था जिसके लिए इतना बड़ा उत्सव रखा गया था |
उसका चेहरा उतरा हुआ था, उसके सामने एक लाल रंग के रेशम के खूबसूरत कपड़े पर सजी हुई बहुत खूबसूरत शील्ड थी, सुनहरे फ्रेम में जड़ी उसकी मानिद पी.एच.डी की उपाधि भी उसे पुकार रही थी लेकिन उसका मन उसके परिवार को पुकार रहा था |
डॉ. स्टीवेन स्मिथ के हाथों से शील्ड प्राप्त करते हुए भी उसके मन में एक अवसाद भरा हुआ था | उसने ससम्मान शील्ड को लिया और उसे ऑडिटोरियम में चारों ओर घुमाकर सबको दिखाया फिर पास में रखी हुई मेज़ पर रख दिया |
अब उस उपाधि के ग्रहण करने की बारी थी जिसके लिए उसने न जाने कितने पापड़ बेले थे | सबसे बुज़ुर्ग प्रो. चटर्जी के हाथों वह मानिद उपाधि ग्रहण करना उसके लिए कितना विशेष अवसर था | वर्षों पूर्व इसी प्रकार की मानिद उपाधि से या तो प्रो.चटर्जी का सम्मान किया गया था अथवा आज यह उसे मिल रही थी | उसने अपने हाथ में उपाधि पकड़कर उसे अपने माथे से लगाया और प्रो. चटर्जी के चरण स्पर्श किए | डॉ. स्मिथ ने उसे बधाई देते हुए उससे हाथ मिलाया और बधाई दी |
जब वह अपनी उपाधि ग्रहण कर रही थी उस समय ऑडिटोरियम में सब लोगों ने खड़े होकर तालियों से उसका सम्मान किया | उसका मन अशांत था, क्यों नहीं आ पाया होगा उसका परिवार ? डायरेक्टर प्रवीर उसके साथ ही खड़े थे, वे उसकी बेचैनी समझ रहे थे | लगातार तस्वीरें, प्रेस और सारा तामझाम ----कितनी मुश्किलों के बाद यह प्रोजेक्ट पूरा हुआ था | संस्थान के लिए भी यह बहुत बड़ा दिन था | अब सब अपने-अपने स्थान पर जाकर बैठ गए थे |
उसे डायस से कुछ बोलने के लिए पुकारा जा रहा था | ज़बरदस्ती चेहरे पर मुस्कान ओढ़कर वह डायस की ओर बढ़ी और अचानक उसका चेहरा प्रसन्नता से खिल उठा |
अचानक उसकी दृष्टि पीछे की पंक्ति पर पड़ी जहाँ से उसकी बहनें वंदना और प्रार्थना उसे हाथ हिलाकर विश कर रही थीं, उनके पास ही माँ-पापा भी बैठकर उसे धीमे से हाथ दिखाकर आशीर्वाद दे रहे थे | उसके चेहरे पर घनी मुस्कान और आँखों में बरबस पानी भर आया | काफ़ी दूर होने के कारण उसे अब तक दिखाई ही नहीं दिया था |
पूरा ऑडिटोरियम भरा होने के कारण शायद उसकी बहनें उस तक पहुँचने में असमर्थ थीं लेकिन उनका दिखाई देना उसके लिए संजीवनी बूटी बन गया था |
कार्यक्रम चार बजे शुरू होकर लगभग शाम छह बजे समाप्त हुआ | अब नीचे लॉन में 'हाई-टी' का कार्यक्रम था | मंच से उतरने के बाद सब उसे हाथ मिलाकर विश करना चाहते थे लेकिन उसे अपने परिवार से मिलने की उत्कंठा थी | तभी डायरेक्टर प्रवीर ने संचालक से माइक पर सबको नीचे जाने के लिए एनाउंस करवा दिया | वे सुगंधा को उसके परिवार से बात करने का अवसर देना चाहते थे |
धीरे-धीरे ऑडिटोरियम ख़ाली होने लगा | सुगंधा का परिवार पीछे एक कोने में बैठा था | प्रवीर सुगंधा के साथ सुगंधा के पापा अमन शर्मा एवं परिवार के पास आए | प्रवीर ने सुगंधा के पापा से हाथ मिलते हुए उन्हें व पूरे परिवार को विश किया| डॉ. स्मिथ व प्रो. चटर्जी भी ऑडिटोरियम से बाहर की ओर जा रहे थे | उन्हें दो लड़के एस्कॉट कर रहे थे |
प्रवीर ने सुगंधा के परिवार को उनकी ओर आने का संकेत किया और उन दोनों हस्तियों से सुगंधा के परिवार का परिचय करवाया | दोनों से सुगंधा की भूरी भूरी प्रशंसा सुनकर अमन शर्मा ने हाथ जोड़कर उन्हें धन्यवाद दिया, आज वे तथा पूरा परिवार अपनी बेटी के कारण गर्व से भर उठे थे |
" न जाने कितनी कठिनाइयों में सुगंधा ने इस प्रोजेक्ट को पूरा करके संस्थान की शान बढ़ाई है ----इंग्लैण्ड जाने के समय भी यह आप लोगों से नहीं मिल सकी थी, हमें इसका अफ़सोस रहेगा | " प्रवीर ने कहा, कुछ रुककर बोले ;
"दरसल समय ही नहीं मिला ---"
"जी, इतना बड़ा काम करके आई है --हम सबके लिए गर्व की बात है ----| अमन शर्मा ने मुस्कुराते हुए कहा |
"अब आप लोग चाय के बाद डिनर करके जाइएगा ---" डिनर पर कुछ चुनींदा लोगों को ही आमंत्रित किया गया था |
" थैंक्स सर, लेकिन हमें देवबंद पहुँचने में अधिक रात हो जाएगी इसलिए हमें निकलना तो अभी पड़ेगा ---" अमन शर्मा जी ने प्रवीर का तहेदिल से शुक्रिया अदा किया |
डायरेक्टर अन्य व्यस्तताओं में घिरे थे | नीचे महत्वपूर्ण अतिथि उनकी प्रतीक्षा कर रहे थे |
उन्होंने सुगंधा व परिवार को एक बार फिर धन्यवाद दिया |
"सुगंधा --सबको नीचे लेकर आओ प्लीज़ -----"कहकर वे आगे बढ़ गए |
सुगंधा सबको देखकर फूली नहीं समा रही थी | पता चला रास्ते में एक तो बहुत भीड़ में फँस गए थे, बाद में टायर पंक्चर हो गया | उसके लिए मेकेनिक तलाश करने में ही बहुत देर लग गई थी | ख़ैर, फिर भी सब समय पर पहुँच गए, इसकी सबको तसल्ली थी |
चाय का दौर हो जाने के बाद सुगंधा के पिता ने वापिस जाना चाहा |
"क्यों पापा, आप लोग रुकेंगे नहीं ?" सुगंधा का मन था कि उसका परिवार संस्थान के अतिथि-गृह में रुक जाता तो उसे अपनी बहनों व माँ के साथ बात करने के लिए कुछ समय मिल जाता |
"बेटा, अब जब भी तुम्हें सुविधा मिले, दो-चार दिन के लिए घर आना | "अमन ने बेटी से कहा |
उन्हें फ़ैक्ट्री के काम से अगले दिन सुबह की मीटिंग में पहुँचना ज़रूरी था | उन्होंने बताया कि उसके राखेह चाचा जी भी आना छटे थे किन्तु उसी महत्वपूर्ण मीटिंग के कारण आने में असमर्थ रहे | उन सबको तो आना ही था | सब सुगंधा से मिलने के लिए सुगंधा अपने परिवार से लगभग एक वर्ष के बाद मिली थी | इस वर्ष उसकी ज़िंदगी में इतने उतर-चढ़ाव आए थे, वह न जाने कैसे ईश्वर की कृपा से उनमें से निकल सकी थी |
परिवार के वापिस जाने के बाद संस्थान के लोगों ने उसे घेर लिया | डिनर के बाद अपने फ़्लैट में लौटते हुए उसे बारह बज गए थे |