No ... trendy than none - 6 in Hindi Fiction Stories by Pranava Bharti books and stories PDF | न... किसी से कम नहीं ट्रेंडी - 6

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न... किसी से कम नहीं ट्रेंडी - 6

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सेठ दामोदर उन दोनों लड़कों को देखकर खुश हो गए | बहुत तमीज़दार व अनुशासित थे, दसवीं पास थे और दोनों की आगे पढ़ने की इच्छा भी थी | यह सुनकर उन्हें बहुत प्रसन्नता हुई | तुरंत दोनों को नौकरी पर रख लिया गया, दामोदर जी की इच्छा थी कि उनका भाई आगे पढ़े किन्तु वह दसवीं भी पास नहीं कर पाया था | 

"यहाँ काम करोगे तो दोनों को प्राइवेट फ़ॉर्म भरवा दूँगा | फ़ैक्ट्री तुम दोनों का सारा खर्चा  उठाएगी | उसकी चिंता मत करना, बस काम में ध्यान देना और ---हाँ, पढ़ाई में भी --"उन्होंने युवाओं को मुस्कुराकर आश्वस्त किया | 

अब तो दोनों की खुशी का ठिकाना नहीं था | अपनी ख़ुशी साँझा करने के लिए वे जल्दी- जल्दी घर पहुँचने के लिए साईकिल में पैडल मारने लगे | दोनों पहले से ही साईकिल से आते-जाते थे और शुरू से ही कुछ दूर अमन साइकिल चलाता तो कुछ दूर राकेश | 

जैसे ही वे गाँव जाने की गली पर मुड़ने के लिए सड़क से नीचे उतरे, न जाने एक ट्रक कहाँ से उनके सामने आ गया और दोनों साईकिल से लुढ़ककर नीचे खेतों में पहुँच गए | पगडंडी के साथ ही भारी नदी का बहाव था किन्तु वे खेतों की ओर लुढ़के | सड़क खूब चल रही थी। काफ़ी लोग इक्क्ठे हो गए लेकिन ड्राईवर दोनों को टक्कर मारकर ट्रक लेकर भाग गया था | 

सड़क पर चलते लोगों ने अपने लिहाज़ से उसे रोकने की कोशिश की लेकिन वह रुकने वाला तो था नहीं | सब लोग नीचे खेतों में उतरकर अमन और राकेश के पास आए और उन्हें उठाया | अवसर की बात है कि दो-तीन लोग उनके गाँव के ही थे | वो उन्हें पहचान गए, शुक्र था कि मिट्टी गीली थी और वे जहाँ गिरे थे, उस जगह पर बड़े पत्थर या ऎसी चीज़ नहीं थी जिससे उनको अधिक चोट लगती | थोड़ी बहुत चोटें थीं जो माँ के सरसों के तेल और हल्दी के लेप से ठीक हो जानी थीं | 

सब मिलकर दोनों लड़कों को उनके घर ले गए | वैसे वे इतने घायल नहीं थे कि साईकिल न चला पाते लेकिन लोगों ने समझाया कि वे भी तो गाँव ही जा रहे हैं, उन्हें घर छोड़ देंगे | उन्होंने उन दोनों को अपनी साइकिलों पर बैठा लिया | उनमें से एक आदमी उनकी साईकिल भी उठा लाया था | 

दोनों घरों में खुशी के साथ ही भय भी तैर गया | लेकिन इस बात की खुशी हुई कि दोनों घर के बेटों को अधिक चोट नहीं लगी थी | हल्दी व सरसों के लेप और गर्म दूध में हल्दी पीने से दोनों दोस्त अगले ही दिन काफ़ी बेहतर महसूस कर रहे थे | 

" बेटा ! अभी दो-चार दिन आराम कर लेते तो अच्छा रहता ---" अमन की माँ ने समझाने की कोशिश की लेकिन वो दोनों ही आराम नहीं करना चाहते थे | 

दवाई आदि लेकर वे अपने समय पर फ़ैक्ट्री में पहुँच गए थे | 

जब सेठ दामोदर जी को उनके एक्सीडेंट का पता चला तो उनका दिमाग़ तुरत ठनक गया, कहीं यह बदमाशी उन्हीं के भाई रमेश की तो नहीं है ? कल के गेट पर रमेश के व्यवहार के बारे में उन्हें गार्ड ने सब कुछ पता चल गया था और उन्हें घबराहट सी हो रही थी कि कहीं यह लड़का बदला लेने के लिए कुछ उल्टा-सीधा न कर बैठे | उन्होंने भी दोनों को कहा कि एक-दो दिन बाद शुरू करें लेकिन उन्होंने सेठ जी की दरियादिली का धन्यवाद देते हुए कहा कि उनकी चोटें इतनी गहरी नहीं है इसलिए चिंता की कोई बात नहीं है | 

उसी दिन से अमन और राकेश ने अपने काम पर गंभीरता से ध्यान देना शुरू कर दिया | न जाने रमेश उस दिन फ़ैक्ट्री क्यों नहीं आया था ? सेठ जी सोचते रहे, आख़िर क्या कारण हो सकता है ? शाम को घर पहुँचने पर पता चला कि वह घर पर भी नहीं था | दामोदर जी की पत्नी का रो-रोकर बुरा हाल था, उन्होंने रमेश को अपने बच्चे की तरह पाला था | 

सब जगह ढूँढ मच गई लेकिन रमेश का पता नहीं चल रहा था | दो दिन बाद रमेश बुरी हालत में देवबंद और मुज़फ्फरनगर के बीच किसी खेत में अधमरा पड़ा मिला | पुलिस उसे ढूँढकर लाई थी | 

उसे मेरठ के बड़े अस्पताल में दाख़िल किया गया लेकिन वह होश में नहीं था जिससे पता चल पाता कि उसके साथ क्या हुआ था ?

लगभग चार दिनों बाद उसे होश आया, बड़े भाई को देखकर वह फूट-फूटकर रो पड़ा | पुलिस ने कड़ाई से पूछताछ की तब पता चला कि रमेश ने किसी गुंडे को अमन और राकेश को मारने के लिए भेजा था किन्तु वह गुंडा जिस ड्राईवर को पकड़कर लाया था, वह टक्कर मारकर भाग गया था | रमेश ने उस गुंडे को दस हज़ार रुपए देने का वायदा किया था पर उसके पास केवल दो हज़ार रुपए ही थे | उसने सोचा था कि वह किसी प्रकार रुपयों का इंतज़ाम करके पैसे दे देगा किन्तु गुंडों ने उसकी एक न सुनी | उन्होंने रमेश को खूब मारा और गन्नों के खेत में अधमरा छोड़कर भाग गए | 

रमेश की दाहिनी टाँग इतनी घायल हो चुकी थी कि उसे काटना पड़ा | दामोदर अपना सिर पीटते रह गए | उनके लिए यह लड़का मुसीबत बनता जा रहा था लेकिन उनकी ऐसी स्थिति थी कि न वे अपने भाई को कुछ कह पा रहे थे, न ही सह पा रहे थे | उन्हें अब महसूस हुआ कि अधिक लाड़-प्यार जीवन को उश्रृंखल बना देता है लेकिन देर हो चुकी थी |