No ... trendy than none - 4 in Hindi Fiction Stories by Pranava Bharti books and stories PDF | न... किसी से कम नहीं ट्रेंडी - 4

Featured Books
  • लोभी

          "लोभी आधुनिक माणूस" प्रस्तावनाआजचा आधुनिक माणूस एकीकडे...

  • चंद्रासारखा तो

     चंद्र आणि चंद्रासारखा तो ,जवळ नाहीत पण जवळ असल्यासारखे....च...

  • दिवाळी आनंदाचीच आहे

    दिवाळी ........आनंदाचीच आहे?           दिवाळी आनंदाचीच आहे अ...

  • कोण? - 22

         आईने आतून कुंकू आणि हळदची कुहिरी आणून सावलीचा कपाळाला ट...

  • कथानक्षत्रपेटी - 4

    ....4.....लावण्या sssssss.......रवी आणि केतकी यांचे लव मॅरेज...

Categories
Share

न... किसी से कम नहीं ट्रेंडी - 4

4--

माँ से आज्ञा लेकर दोनों मित्र अगले ही दिन साईकिल से देवबंद पहुँचे | वैसे देवबंद जाना उनके लिए कुछ बड़ी बात नहीं थी | दोनों मित्र छठी कक्षा से लेकर दसवीं तक दो-साल तक तो पैदल ही या कभी कोई ट्रक वाले भाई मिल जाते, कभी किसी की साइकिल की ही सवारी मिल जाती लेकिन कैसे भी वे देवबंद पढ़ने आते रहे | कभी जब रास्ते में थकान लगती तो बीच में पड़ती नदी किनारे गहन वृक्ष की छाँहों में घर से बाँधकर दिया गया खाना खाते हुए भविष्य के बारे में चर्चा भी करते लेकिन कोई ऎसी तदबीर नहीं दिखाई देती थी जिससे उन्हें अपने भविष्य में कुछ रोशनी दिखाई देती | 

माँ को यह देखकर बहुत परेशानी होती कि उनका बेटा इतनी दूर खिसटता जाता है | पति के अचानक चले जाने पर वह पागल सी हो गई थी | परिवार का कोई था नहीं, पंडित जी भी अकेले थे, बहुत साधारण, सरल और अच्छी सोच वाले पंडित जी दिल की बीमारी से चल बसे | उस समय अमन अपनी माँ के गर्भ में था | पास-पड़ौसियों ने अमन का जन्म करवाया और जितनी हो सकती सहायता भी की | 

अमन की माँ ने आस-पड़ौस के घरों में बर्तन माँजने का काम माँगा तो उन्हें मिला नहीं | 

"बामन की औरत से झूठे बर्तन नहीं मँजवा सकते ---" चौधराइन ने यह बात अमन की माँ को समझाई | प्रश्न था क्या करे जिससे अपना और बच्चे का पालन-पोषण कर सके ?

वह आस-पास के घरों में गेहूँ, चावल आदि बीनने का काम करने लगीं या किसी के खेत पर जाकर छुटपुट काम कर आतीं बाद में उन्हें खेतों में जाना उन्हें असुरक्षित लगा | बच्चे को खेतों में ले जाना भी ठीक नहीं था | 

उन्होंने अपने आप ही कागज़ पर काट-काटकर पेटीकोट, पायजामे आदि सीखे | हाथ से सिलना सिलाई मशीन से सिलने जैसा मज़बूत नहीं रहता था | गाँव में एक शेखू दर्जी था जो पास में ही रहता था | 

"भाभी ! कब तक इन छोटी-मोटी चीज़ों से घर चलाओगी ? अभी तो मैं तुम्हें दुपट्टों पर गोटा-किनारी लगाने का काम देता हूँ, अच्छी तरह कटिंग भी सिखा दूँगा ---अपना और बच्चे का पेट तो पाल लोगी --"शेखू कहने को तो मुसलमान था पर पंडित जी को बड़े भाई की तरह सम्मान देता था | 

शेखू ने अपना वचन पूरा किया और उन्हें कपड़ों की कटिंग सिखाई | शेखू का काम कर-करके उन्होंने शेखू की मदद से बड़ी मुश्किल से एक सेकेण्ड हैंड सिलाई मशीन खरीदी थी | पुरानी होने के कारण मशीन कभी-कभी अपने तेवर भी दिखाती लेकिन शेखू उसे सुधारने के लिए सदा तत्पर रहा | कहते हैं न जब ईश्वर लेता है तो किसी न किसी राह से देता भी है | वह अपने बंदों को कभी भूखा नहीं मारता | 

अब वे एक जमींदार के घर की स्त्रियों के कपड़े सिलने लगीं थीं | कभी-कभी किसी नाज़ुक क्षण में उस घर की बड़ी दादी जी के सामने उनकी आँखों से आँसू निकल जाते | उन्होंने बड़ी कोशिश की कि वे अमन की माँ की कुछ पैसे, रूपये से सहायता करें लेकिन स्वाभिमानी स्त्री ने कहा;

"माँ जी, मेरी आदत बन जाएगी, ऐसा कुछ मत करिए जो मैं बाद में स्वाभिमान से न रह सकूँ --"

"फिर कैसे तुम्हारी तकलीफ़ साँझा करूँ ---?"

अमन के पिता उस घर में पूजा करवाते थे | ज्ञानी पंडित थे वे, उनकी गाँव में बड़ी इज़्ज़त थी | उन्होंने कभी किसी से दक्षिणा नहीं माँगी, सब लोग अपने हिसाब से उन्हें दक्षिणा दे देते, वो चुपचाप ले लेते | किसी ग़रीब के घर पर तो वे दक्षिणा लेकर भी वापिस उसके बच्चे के हाथ में पैसे रखकर आ जाते | 

"बहुत गरीब थे बिचारे। जाने कैसे-कैसे तो पूजा का समान इक्क्ठा किया होगा ----" आकर पत्नी से कहते, उसके मुख पर सरल मुस्कान खिल जाती | 

अमन के पिता उसकी माँ से लगभग पंद्रह/बीस वर्ष बड़े थे | अमन की माँ गौरी के माता-पिता उसके बचपन में ही चल बसे थे, गौरी अपने चाचा के घर पल रही थी | चाची को तो किसी तरह से अपने सिर से बला टालनी थी, किसी ने रामेश्वर पंडित जी के बारे में बताया जिनकी पत्नी की दिमागी हालत अच्छी नहीं थी और वह कूँऐ में कूदकर मर गईं थीं | 

पहले तो पंडित जी दूसरे विवाह के लिए तैयार ही नहीं थे, वो अपना जीवन केवल अध्ययन-अध्यापन में व्यतीत कर देना चाहते थे | उन्होंने अपने घर पर ही एक छोटा सा स्कूल भी खोल रखा था जिसमें वो ऐसे बच्चों को शिक्षा देते जिनको पढ़ना था लेकिन गरीबी व अभाव के कारण उन्हें पढ़ने की सुविधा नहीं थीं | जब गौरी के चाचा ने उन्हें गौरी के बारे में बताया, उसकी अच्छाईयों के बारे में बताकर कहा कि वह उनकी पत्नी यानि अपनी चाची के व्यवहार से बहुत दुखी रहती है| यदि उसे अच्छा माहौल मिलेगा तो वह आगे पढ़ना भी चाहेगी और उनके कार्य में सहायक सिद्ध होगी | तब वे शादी करने के लिए तैयार हो गए | उस समय गौरी की उम्र केवल सोलह साल थी | बीस वर्ष की उम्र में अमन उसके गर्भ में आया और तभी पंडित जी को दिल का ज़बरदस्त दौरा पड़ा | 

"बेटा ! जीवन में वही होता है जो होना होता है | तुम्हारे पिता बहुत सज्जन थे, सबकी भलाई करने में ही लगे रहते पर उनकी इतनी ही लिखी थी --"जब अमन थोड़ा समझने लगा था, वह उससे सारी बातें साँझा करती थीं | अमन बचपन में ही बड़ा होने लगा था | 

अमन की माँ भी उस ज़माने के लिहाज़ से बिलकुल अनपढ़ न थीं | पाँचवी कक्षा तक पढ़ी अमन की माँ के पास व्यवहारिक समझदारी का खज़ाना था जिससे वह सबका काम करने के साथ आदर भी पाती रहीं | शादी के बाद वह अपने पति की पुस्तकों से बहुत कुछ पढ़कर अच्छे-अच्छे विचारों से समृद्ध होती रहीं | पंडित जी भी उन्हें बहुत कुछ समझते रहते थे | 

धीरे-धीरे गाँव के वो लोग जिनके पास ज़मीनें थीं, उन्हें बेचकर शहरों में जाकर मकान बनवा रहे थे जिससे उनके बच्चों के भविष्य में शिक्षण की परेशानी दूर हो सके | गाँव का स्कूल केवल पाँचवी तक ही था और लगभग सभी बच्चों को पाँचवी कक्षा के बाद देवबंद जाना पड़ता था | कुछ लोग देवबंद काम पर भी जाते थे, वे अपने बच्चों को अपने साथ साईकिल या स्कूटर पर ले जाते थे, वापिस आते हुए उन्हें लेकर आ जाते | उस समय स्कूटर भी बहुत कम लोग खरीद पाते थे | 

उनके गाँव के दामोदर लाला ने देवबंद में आसपास के किसानों के गन्नों की उपज देखते हुए चीनी-मिल खोली है जिसमें भर्तियाँ चल रही हैं | दामोदर लाला अपने नालायक भाई रमेश से बहुत परेशान थे, वह इधर-उधर मटरगश्ती करता रहता | उन्होंने सोचा था कि फ़ैक्ट्री होगी तो वह वहाँ काम करेगा, वहाँ बैठेगा, कुछ सीखेगा लेकिन उसका मन किसी काम में ही न लगता | अभी तो कुछ समय ही हुआ था लेकिन लाला को अपनी फ़ैक्ट्री का भविष्य दिखाई देने लगा था | 

इससे पहले देवबंद और मंसूरपुर में कई शुगर-फैक्ट्रीज़ खुली हुईं थीं और अब वहाँ कॉम्पिटिशन होने लगा था, फ़ैक्ट्री संभालने के लिए सही व गंभीर लोगों की ज़रूरत थी | लाला के कोई संतान तो थी नहीं, वह भाई के लिए ही यह सब करना चाहते थे और भाई था कि उसे सँभालने के स्थान पर उजाड़ने की योजना बनाता रहता था | 

अमन और राकेश के फ़ैक्ट्री पहुँचने पर लाला का भाई फ़ैक्ट्री के गेट पर ही खड़ा मिल गया | स्कूल में वह इन दोनों के साथ ही पढ़ता था और अपनी नालायकी के कारण मास्टर जी से डाँट ही खाता रहता था | मास्टर जी इन दोनों का कक्षा में उल्लेख करते और वह इनसे चिढ़ता | कई बार तो उसने पैसे देकर दोनों को गुंडों से पिटवा भी दिया था | 

"बेटा ! कुछ नया नहीं है, हमेशा बड़ा छोटे को मारता ही आया है ---हमारे पास कोई नहीं है, चुप रहकर कुछ दिन निकाल लो | भगवान ने कुछ न कुछ सोच ही रखा होगा तुम्हारे लिए --" अमन की माँ दोनों दोस्तों को समझाती रहती थीं | 

बीस वर्ष की आयु में विधवा हो जाने पर उन्होंने दुनिया की सारी ऊँच -नीच अपने आप ही सीख ली थी | थीं तो पाँचवी तक ही पढ़ी हुई वो लेकिन पुस्तकों से व अपने पति से थोड़े ही समय में दुनियारीदारी खूब सीख ली थी उन्होंने और दुनिया को अच्छी तरह पहचानने लगीं थीं | 

पैसे वालों की निगाहें गिद्ध की तरह उनकी युवा, खूबसूरती पर चिपकी रहतीं | इसीलिए वह सबसे बचकर खुद को और अपने बच्चे को सँभालने में लगी रहीं | 

राकेश का घर उनके घर के पास ही था, सरल, व शांत परिवार था | अमन की माँ राकेश की माँ से अपनी सारी कहानियाँ साँझी करतीं | उन्होंने एक-दूसरे को धर्म -बहन बना लिया था |