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सुगंधा मंच पर बैठी थी लेकिन इस स्थान तक की उसकी यात्रा बहुत कठिन रही थी | यहाँ पर बैठे हुए भी कहीं पीछे के पृष्ठ जैसे उसकी आँखों के सामने किसी चलचित्र की भाँति पलटते जा रहे थे | जब वह शुरू-शुरु में संस्थान में आई थी, उसको गिराने की, वहाँ से भगाने की कितनी कोशिश की गई थी | जिसको सोचकर आज भी उसका मन काँप जाता है | कार्यक्रम चल रहा था और सुगंधा न जाने कहाँ थी ?
सुगंधा का परिवार उत्तर-प्रदेश के देवबंद नामक कस्बे में रहता था | उसके पिता की तीन प्यारी बेटियाँ थीं | सबसे बड़ी सुगंधा, वंदना और सबसे छोटी प्रार्थना !
सुगंधा के पिता का बचपन बहुत कष्ट में बीता था | जब वह अपनी माँ के गर्भ में थे तभी उनके पिता की मृत्यु हो गई थी | अकेली माँ ने न जाने कितनी परेशानियों को झेलकर अपने पुत्र को बड़ा किया था | उसको स्कूल में भेजा, दसवीं तक शिक्षा भी दिलवाई | उस समय अमन अपनी माँ के साथ देवबंद कस्बे के पास एक छोटे से गाँव में रहते थे |
सुगंधा के पिता अमन शर्मा ने अपनी माँ को सदा खटते ही देखा था | उनका मन था कि वह ऐसा कुछ करें कि अब उनकी माँ को घर की चिंता न हो | वह किसी न किसी काम की तलाश में रहते |
" मैं तो कहती हूँ और पढ़ ले बेटा, आगे चलकर काम आएगा ---"माँ समझाने की कोशिश में लगी रहतीं |
"मैं आगे पढ़ भी लूँगा माँ लेकिन अब आपको इतना काम करते हुए नहीं देख सकता --" माँ, बेटे दोनों की आँखें आँसुओं से भर जातीं |
अमन को पता चला कि उसके गाँव के कस्बे देवबंद में लगभग दो साल पहले ही नई शुगर-मिल खुली है जिसमें भर्तियाँ की जा रही हैं |
अमन का एक बहुत करीबी मित्र था राकेश, जिसके परिवार की माली हालत भी बहुत अच्छी नहीं थी| दोनों दोस्त जब भी इक्क्ठे बैठते उनकी बातें धन की समस्या से जूझते हुए ही शुरू होतीं | उस दिन अमन का जन्मदिवस था, माँ आसपास के कपड़े कपड़े सिलकर अपना व बेटे का खर्च चलाती थी |
पता नहीं माँ ने कैसे-कैसे पैसे बचाकर बेटे के जन्मदिवस के लिए एक नई कमीज़ खरीदी थी | अमन ने माँ को देखा था वह कैसे एक-एक पैसा जोड़ती थीं |
"आज तो जँच रहे हो यार ---" राकेश ने अमन की सुंदर कमीज़ को देखते हुए कहा |
"क्या--भाई ! पता नहीं माँ कैसे-कैसे घर का खर्चा सँभालती हैं ---बहुत खराब लगता है --"अमन उदास था |
"मना करने पर भी माँ ने ज़बरदस्ती दस रुपए पकड़ा दिए ---मिठाई के लिए --"उन दिनों दस रुपए की कीमत होती थी | उसने राकेश को रूपये दिखाते हुए कहा ;
"चलो, छगन हलवाई से लड्डू लेकर आते हैं, माँ को लड्डू बहुत पसंद हैं | " दोनों मिठाई की दुकान पर पहुँचे |
"यार ! कुछ तो काम देखना ही पड़ेगा ---"राकेश ने कहा
"पिता जी भी बहुत थक जाते हैं और तुम जानते हो हमारे घर में छह सदस्य हैं, अकेले पिताजी पर यह बोझ देखकर मुझे बहुत बुरा लगता है --"राकेश अकेला बेटा था, उसके तीन बहनें थीं जो शादी के योग्य हो रही थीं |
छगन हलवाई के पास से जब लड्डू लेकर लौटने लगे, हलवाई ने कहा ;
"बेटा अमन !तुम नौकरी के लिए बात कर रहे थे ----"
"हाँ, चाचा जी, काम तो करना ही चाहिए अब, माँ को इतना काम करते हुए देखा नहीं जाता --"
"सुनो, देवबंद में दो साल पहले जो चीनी-मिल खुली है, वह अपने गांव के सेठ की ही तो है | वहाँ जाकर देखो, शायद कोई काम बन जाए --"सुना है वहाँ आजकल भर्तियां हो रही हैं |
"ठीक है चाचा जी, मुझे भी पता चला था, माँ से पूछकर कल ही देखकर आता हूँ ---"अमन और राकेश छगन हलवाई को धन्यवाद देकर चल दिए |