Cleancheet - 19 in Hindi Fiction Stories by Vijay Raval books and stories PDF | क्लीनचिट - 19

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क्लीनचिट - 19

अंक - उन्नीस/१९

डॉक्टर अविनाश, मिसीस जोशी और संजना ने बड़े ही प्यार से सांत्वना देकर स्वाति को शांत करने के बाद आलोक बोला..

'स्वाति प्लीज़, तुम ऐसे शब्द बोलती हो तो मुझे अपने आप पर फटकार बरसाने का मन हो जाता है। मैं तो आप सब का इतना ऋणी हूं कि ऋणमुक्त होने के लिए मेरा ये जनम कम पड़ेगा। अदिती की सांसों के लिए मैं मेरे अंतिम सांस तक अदिती को तन, मन और धन से पूर्ण रूप से समर्पित हूं। लेकिन स्वाति तुम्हारा ऋण तो मैं किस तरह अदा करूंगा?

अदिती और मैं, हम दोनों एक ईश्वरीय संकेत की संज्ञा से स्नेह की पूर्वभूमिका के साथ जुड़कर एक दूसरे के सुख दुःख के साक्षी बने लेकिन,
स्वाति तुम..'

अभी आलोक कुछ आगे बोलने जाए उससे पहले स्वाति ने आलोक के होठों पर अपनी उंगलियां रखकर कहा कि..

'मैंने अभी तो कहा कि मैं ईश्वर से पहले अदिती का स्मरण करती हूं, तो अदिती और तुम आप दोनों मेरे..' आगे बोलते हुए स्वाति अटक गई।

पिछले कितने समय से भुलभुलैया से भरी उतार चढ़ाव की कथा व्यथा देख सुनकर चक्कर में पड़ी हुई मानसिक मनोदशा पर शेखर का अंकुश नहीं रहने से क्षणिक आवेश में आकर बोले हुए शब्दों पर उसे ग्लानि का अनुभव हुआ तो दो हाथ जोड़कर शिखर बोला,

'डॉक्टर माफ़ कीजिए मेरा इरादा आपकी भावनाओं को ठेस पहुंचाना नहीं था लेकिन आलोक को कोई तकलीफ़ होती है तो मेरा जी जल जाता है। मेरी मर्यादा चूक कर मैंने जो कड़वी और सख्त बात बोल दी है उसके लिए बेहद खेद है। और स्वाति मैं तुम्हारी भी माफ़ी मांग रहा हूं।'

शेखर की ओर देखकर डॉ. अविनाश बोले, 'प्लीज़ शेखर डॉन्ट से सॉरी, मैं भी तुम्हारा दुःख समझ सकता हूं। तुम्हारी जगह पर मैं होता तो शायद मेरा रिएक्शन भी कुछ ऐसा ही हो सकता था। इट्स ओ.के. और स्वाति को आप लोगों ने जो सहकार सॉरी.. सहकार शब्द तो बहुत छोटा है, तुमने और तुम्हारे पूरे परिवार के हर एक सदस्य ने सहभागी होकर इस इंपॉसिबल मिशन को जिस आत्मीयता से पूरा किया उसके लिए मैं आप सबका तहे दिल से आभारी हूं।'
फिर थोड़ी देर रुककर बोले,

'अब एक खास बात बता दूं, स्वाति आज शाम को मुंबई के लिए रवाना हो रही है, मैं आशा रखता हूं कि स्वाति के इस फ़ैसले को आप समझ सकते हो। स्वाति ने कठिन स्थिति में अदिती और मॉम, डैड से दूर एकदम अंजान व्यक्ति और परिवार के बीच अपने नाम के साथ साथ अपने आप को भी भुलाकर, नापसंद एक भी शब्द बोले बिना सिर्फ़ और सिर्फ़ अदिती और आलोक दोनों को एक करने के लक्ष्य को सिद्ध करने के लिए इतने दिनों तक सुध बुध के साथ खुद अपनी असली पहचान भी खो बैठी है। मैं कहता हूं कि ये रीयल लाइफ है, अगर शायद रील लाइफ में स्वाति ने अदिती का किरदार निभाया होता ऑस्कर अवॉर्ड से सम्मानित करने की जरूरत पड़ती।'इतना बोलते ही सब की आंखें गीली हो गई।

शेखर ने डॉक्टर अविनाश से कहा, 'सर, आप डॉक्टर तो बहुत ही अच्छे हैं इसमें कोई दो राय नहीं लेकिन डॉक्टर के साथ साथ आप एक अच्छे एक्टर भी हो वो आज पता चला।'
शेखर की इस मासूम कॉमेंट पर सब हंसने लगे।

अंत में शेखर ने पूछा, 'अच्छा स्वाति एक बात समझाओ कि हम सब मिलकर जो नहीं कर सके वो तुमने कैसे कर दिखाया?'
तब स्वाति ने आत्मविश्वास से भरकर जवाब देते हुए कहा,

'बिलकुल सिम्पल गणित है शेखर, आप सबने आलोक की असामान्य स्थिति को आपत्ति के रूप में देखा और मैंने उसे एक चुनौती के रूप में, बस इतना ही फ़र्क था, देट्स इट। और तुमने थोड़ी देर पहले जो धमाकेदार भाषण दिया उसका भी यही जवाब है, समझे?'

जवाब सुनकर स्वाति की पीठ थपथपाते हुए मिसेज जोशी बोले,
'बेटा आई एम सो प्राउड ऑफ यू।'
'थैंक यू आंटी।'
'स्वाति तुम आज ही जा रही हो?'आलोक ने पूछा।
'हां, आलोक।'
'लेकिन ये तुमने कब सोचा?' आलोक ने पूछा।
'आज सुबह जब तुम्हारी स्मरण शक्ति तेज़ होते ही तुम भूतकाल के अनुसंधान के साथ जुड़ गए तब।' स्वाति ने जवाब दिया। 'लेकिन, इतना तुरंत येे निर्णय क्यूं लिया?'
'आलोक वर्तमान को उसका सही स्थान देने के लिए अतीत समय से वो स्थान रिक्त करना ही पड़ता है।' स्वाति ने गर्भित टोन में रिप्लाइ दिया।
'मतलब, मैं कुछ समझा नहीं, स्वाति।'
'सही समय आते ही समझ जाओगे। नाउ फॉरगेट इट।'
'स्वाति, मैं भी आ रहा हूं तुम्हारे साथ मुंबई।'
'रात ८:३० बजे की फ्लाइट है, चलेगा? आई मीन तुम्हें सुविधाजनक होगा?'
' अव सिर्फ चलाने से कुछ भी नहीं होगा स्वाति, उड़ना पड़ेगा। और अदिती को मिलने के लिए किसी भी काल का प्रतिरोध कर लूंगा।'
'ठीक है तो मैं दो टिकट कन्फर्म करवा लेती हूं।'
'प्लीज़ तुम रहने दो मैं करवा लूंगा।'आलोक बोला।
'ठीक है, तो तुम बिफोर टाइम एयरपोर्ट आ जाना।' स्वाति ने कहा।
डॉक्टर अविनाश और मिसेज जोशी के चरण स्पर्श करते हुए स्वाति का दिल भर आया।
'अंकल, आंटी आपका उपकार मैं ज़िन्दगी भर नहीं भूलूंगी।'
तब अविनाश बोले,
_अरे तुम हमारी बेटी हो और मा, बाप कभी अपने संतान पर उपकार करते हैं क्या? ये तो किसी ऋणानुबंध का लेखजोखा है।'
मिसेज जोशी भी स्वाति को गले लगाकर भावुक होते हुए बोली,
'बेटा ये तुम्हारा ही घर है ऐसा समझकर फ़िर से आओगी तो बहुत खुशी होगी।'
'आऊंगी आंटी ज़रूर याद करके आऊंगी।'

उसके बाद स्वाति ने संजना से कहा,
'संजना हम शेखर के फैमिली मेम्बर्स से मिलने के बाद तुम्हारे घर जायेंगे।'
शेखर, आलोक, स्वाति और संजना सभी शेखर के घर आए।

सबके साथ सब बातों का संक्षेप में स्पष्टीकरण किया। स्वाति ने सब बड़ों के चरण स्पर्श किए। कोई भूल हो गई हो तो माफ़ी मांगी। और बाहर आते ही...

शेखर को एक ओर बुलाकर उसके सामने देखकर बोली,

'शेखर आई एम श्योर कि इतने दिनों बाद तुम पर मेरा कुछ तो हक बनता है, तो उस हक के आधार पर तुम्हारे पास से कुछ मांग सकती हूं?'

'स्वाति, एक बात कहूं मुझे ऐसा लगा था कि मैंने बहुत दुनिया देखी है, कितने सारे लोगों को मेरी जिंदगी में मिला हूं, लेकिन २७ की उम्र में ज़िन्दगी का जो अर्थ न समझ सका वो तुमने सिर्फ़ कुछ ही दिनों में समझा दिया। मेरे पास शब्द नहीं है स्वाति तुम्हारे लिए। आज तुमने शेखर को खरीद लिया। अगर मैं तुम्हारे किसी भी काम आ सकूं तो वो मेरे लिए गर्व की बात होगी। बोलो क्या कर सकता हूं तुम्हारे लिए?'

'जब भी बुलाऊं तब मुंबई आना पड़ेगा, बोलो आओगे?'
'तुम हुकुम करो तो अभी आ जाऊं?'
'जब भी आना चाहो तभी, लेकिन जब मैं बुलाऊं तब तो किसी भी स्थिति में आना ही पड़ेगा, प्रोमिस?'
'प्रोमिस, लेकिन स्वाति एक बात पूछूं,'

'स्वाति कहां है?' शेखर ने पूछा।

आश्चर्य के साथ स्वाति ने पूछा, 'मतलब?'
'मतलब जितने दिन तुमने आलोक के साथ बिताए वो कौन थी अदिती या स्वाति?'

स्वाति ने सवाल के सामने सवाल पूछा, 'तुमने किसको देखा?'
'अदिती को।' शेखर ने कहा।
'क्यूं?'
'लेकिन तुम तो स्वाति हो, आलोक को अदिती प्यार करती थी न?'
सामने शेखर ने सवाल किया।
'तो?' स्वाति का सवाल के सामने सवाल।
'वही तो मैं पूछ रहा हूं, स्वाति।'
'शेखर मैं लाख कोशिश कर लूं, मैं कभी भी अदिती बन ही नहीं सकती।'
'तो फ़िर आलोक ने कैसे मान लिया कि तुम अदिती हो?' शेखर ने पूछा।
'आलोक कहां होश में था?' फ़िर से स्वाति का सवाल।
& लेकिन तुम तो थी न? और मैं भी..' शेखर ने कहा।
'शेखर जो मैं होश में होती तो शायद आलोक, आज अदिती के जैसे हॉस्पिटल के बिस्तर पर पड़ा होता शायद।' स्वाति ने जवाब दिया। 'मतलब कि तुम,...' शेखर आगे नहीं बोल पाया।
'शेखर, ज़िन्दगी में कभी कभी कुछ बातें सुनने से ज़्यादा उसके मौन को महसूस करने से ज़्यादा मज़ा आता है। कुछ बातों को लफ्ज़ों से ज़्यादा खामोशी में सुनना अच्छा लगता है। और खामोशी का भी अपना एक अलग रुतबा होता है, एक स्थिति होती है। तुमने कभी किसी चुप्पी को गुनगुनाया है? कुछ लिफ़ाफे अगर खुल गए तो लतीफे बन जाते है, शेखर। कुछ ऐसी बातें भी होती है जिसका मज़ा अल्पविराम होता है वो पूर्ण विराम में नहीं होता। अब मुझे.....'
इतना बोलकर रुकने के बाद शेखर की ओर हाथ हाथ बढ़ाकर स्वाति बोली..
'अच्छा शेखर अब मैं इजाज़त चाहूंगी। और खास याद रखना कि मैं बुलाऊं तब तुम्हें आना ही है।'
'ठीक है। स्वाति इस बात के लिए मेरी ओर से प्रोमिस है बस।'
'शेखर ऐसा लग रहा है कि इस बार पूरा बैंगलुरू मेरे साथ लेकर जा रही हूं, जैसे की जी भरके मनाई हुई खुशियों की वज़नो में मेमोरी।' शेखर ने हाथ मिलाते हुए कहा, 'और तुम अदिती के किरदार की ढेर सारी बिखरी हुई स्मृतियां छोड़कर जा रही हो उसका क्या?'

'कदाचित, समय परिवर्तन के साथ साथ वो स्मृति चिन्ह भी अतीत की गहरी खाई दफ़न होकर अवशेष बन जाएंगे।' स्वाति ने जवाब दिया।
'बाय शेखर टेक केर।'
'बाय स्वाति।'
'और हां एक खास बात तो बताना तो भूल ही गई'
'क्या?'
'वो तुम्हारे कैमेरा के मेमोरी कार्ड में तुमने जो मेरे और आलोक के फोटोग्राफ्स क्लिक किए थे वो कॉपी कर लिए हैं और...'
'और क्या..?'
'तुम्हारे कार्ड में से वो डिलीट भी कर दिए हैं।'
'ओ.. तेरी.. लेकिन क्यूं?'
'मुंबई आओगे तब बताऊंगी, चलो बाय।'
शेखर मुंह फाड़कर देखता ही रह गया।

संजना, स्वाति को लेकर अपने घर की ओर रवाना हुई उसके बाद आलोक को मुंबई जाने की तैयारी में हेल्प करते हुए शेखर बोला.. 'आलोक मैं भी आ रहा हूं तुम्हारे साथ मुंबई।'

तब आलोक बोला..
'अब मेरी बात शांति से सुनो शेखर अभी इस वक़्त तुम आने की जल्दी मत करो। वहां सब है। ज़रूरत पड़ी तो तुम्हें तुरंत बता दूंगा। और वैसे भी पिछले एक महीने से भी ज़्यादा समय से तुम, तुम्हारी फैमिली, बिजनेस बहुत कुछ डिस्टर्ब हो गया है मेरे कारण।'

'अबे बस बस.. अब तुम येे तुम्हारा फ़ालतू का लेक्चर ख़तम करो। और सुनो कुछ भी मतलब कुछ भी ज़रूरत हो तो किसी भी तरह का संकोच रखे बिना मुझे बोल देना समझे? और मम्मी, पापा को इस तरह से बताना कि ऑफिस के किसी काम से मुंबई आए हो, ठीक है।'

'शेखर एक बात मुझे बताओ कि, 'तुम, तुम्हारी फैमिली, अदिती, स्वाति और इस डॉक्टर कपल के साथ, मेरा क्या और कैसा संबंध?'

'आलोक मुझे लगता है कि तुम्हारे इस सवाल का सबसे बेस्ट जवाब स्वाति ही दे पाएगी। उसे पूछना, वो सही जवाब देगी, लेकिन...'
'मुझे तुम ठीक से जानते हो या स्वाति? और ये लेकिन क्या?'आलोक ने पूछा।
'लेकिन... शायद वो जवाब तुम्हारी समझ से बाहर का होगा।'शेखर बोला।
'क्यूं ऐसा कहा?' आलोक ने सवाल पूछा।

प्रत्युत्तर देते हुए शेखर बोला,

'क्योंकि तुमने जो अभी सवाल पूछा कि क्या और कैसा संबंध? आलोक जब कोई इंसान किसी संबंध को लेकर अपना अस्तित्व तक मिटा दे तब लाखों में कोई एक ऐसे ऋणानुबंध का सृजन मुमकिन होता है। और उस संबंध की परिभाषा खुद उस इंसान के पास भी नहीं होती जिसने खुद को मिटाकर किसी की जिंदगी को बनाया हो। आज तक मुझे अपने आप के लिए एक घमंड था कि मुझसे ज़्यादा तुम्हें कोई भी नहीं जान सकता लेकिन एक अनजानी लड़की ने कुछ ही दिनों में तुम्हारा ही नहीं मेरा परिचय भी मेरे साथ करवाकर गई। आलोक कोई अनजान व्यक्ति हमारा ही परिचय हमसे बहुत अच्छे से करा दे उस व्यक्ति को समझना बहुत ही मुश्किल है। चलो बहुत हुई मेरी बक बक तुम फटाफट पैकिंग करो, बाद में हम तुम्हारे फ्लैट पर चलते हैं और वहां से तुम्हें मैं एयरपोर्ट ड्रॉप कर दूंगा।'

८:३० की राइट टाइम फ्लाइट में आलोक और स्वाति अपनी सीट पर बैठ गए बाद में दोनों एक साथ ही बोले,.

'आर यू ओ. के.?'

और बाद में दोनों हंसने लगे..
आलोक बोला,

'स्वाति जब मैं और अदिती २९ अप्रैल की रात को ब्ल्यू मून रेस्टोरेंट डिनर के लिए मिले तब इसी तरह दोनों एक ही साथ एक लाइन बोले थे।

'मेरी एक शर्त है, हा... हा.. हा.. आई थिंक कि ईश्वर के इंडीकेशन के सेंसेक्स का ग्राफ अभी भी बढ़ता ही जा रहा है। देखो आज फ़िर हम दोनों के बीच उसी किस्से का पुनरावर्तन हुआ।'

'आलोक, मात्रा किस्से का पुनरावर्तन हुआ है। लेकिन साथ साथ यहां किरदार का भी परिवर्तन भी हुआ है। इसलिए "फ़िर से हमारे बीच" ऐसा नहीं कह सकते।'
थोड़ी देर के लिए आलोक चुप हो गया और स्वाति भी। फ्लाइट टेक ऑफ होने के थोड़ी देर बाद..
स्वाति बोली,
'आलोक मुझे तुम्हारी और अदि की प्रेम कहानी सुननी है।'

'अरे हमारी प्रेम कहानी शुरू होने से पहले ही क्लाइमेक्स के सीन्स शुरू हो गए।
हमारी कहानी की शुरुआत ही धी एंड से हुई है। तो क्या कहूं? सच कहूं तो पहली मुलाकात में मैं अदिती पर एकदम ही फ्लेट हो गया ऐसी सिचुएशन थी। और दूसरी तरफ़ अदिती मेरी एक एक बात में मेरी फिरकी ले रही थी। मुझे अभी भी याद है उस दिन जैसा नर्वस मैं कभी नहीं था। अरे इतना नर्वस कि, न तो मैं कुछ बोल पाया, या न तो कोई कॉन्टैक्ट नंबर, एड्रेस कुछ भी जानने का होश ही नहीं रहा। और उस आखिरी १० मिनट्स में गंभीर होकर भारी भरखम समझ न आए ऐसे शब्दों को शर्त की आड़ में जिस तरह कहकर अचानक चली गई कि उसके बाद के शून्यावकाश में मैं और मेरे शब्द दोनों जम गए।'

'आलोक, अदिती में त तुम्हें ऐसा क्या अच्छा लगा कि तुम उस पर फ़िदा हो गए? और वो भी इतने कम समय में? वो बताओगे मुझे?'

'स्वाति, अदिती तुम्हारी ही बहन है, मात्र बहन ही नहीं तुम्हारी प्रतिकृति है। तुमने जिस तरह बैंगलुरू में हमारे किसी के भी परिचय के पूर्वाभास या मूल्यांकन की पूर्वभूमिका बांधे बिना किसी भी स्वार्थ के बिना मात्र थोड़े दिनों में सब का दिल जीत लिए तो, मेरे और अदिती के बीच तो कुदरत की संज्ञा और आज्ञा से शुरू हुई एक अटूट और सीधे संबंध सेतु की रचना के साथ साथ प्रेम की एक नई परिभाषा भी रचने में नए कीर्तिमान के हम सहभागी बनने जा रहे थे। और अगर ईश्वर का कोई हिडन इंडीकेशन की हिंट मिल जाए तो फ़िर किसी व्यक्ति का क्या पसंद है, क्या नापसंद है उस विषय ही निकल जाय। थोड़े में कहूं तो, शायद अमृत घायल की एक रचना है जो मुझे याद आई है,
"काजल भरे नयन के कमान मुझे अच्छे लगते है..
कारण नहीं दूंगा, कारण मुझे पसंद है".. कुछ ऐसा ही है, एक्जैक्टली मुझे याद नहीं है।'

अदितीमय निरंतर बोलते हुए आलोक को एकटक स्वाति भीगी हुई आंखों से तन्मय होकर सुनती रही।'

'स्वाति जब मैं और अदिती अलग हुए और उसके तीन दिन बाद बैंगलुरू में एक प्रतिष्ठित कम्पनी में ऊंचे ओहदे पर पहले ही दिन जब मेरी पर्सनल केबिन में मेरी चेयर पर बैठा तब मैंने मेरे और अदिती के सपनों की पृष्ठभूमि की ओर एक नजर डालकर मैने अपने आप से पूछा कि ईश्वर मुझे क्या नहीं दिया? और उसके बाद जब मैं एक पागल के जैसे दिन रात चारों ओर मात्र अदिती की एक झलक मात्र देखने के लिए तरसता था तब लगा कि ईश्वर ने मुझे कुछ भी नहीं दिया। बस इससे ज़्यादा...'आगे बोलते हुए आलोक का गला भर आया।

'बोलो अभी ओर क्या सुनना है?'

'अब मैं क्या बोलूं आलोक? मुझे तुम्हारी जलन भी हो रही है और साथ साथ बेहद खुशी हो रही है कि तुम मेरी अदिती को इतना प्यार करते हो।'

'स्वाति एक प्रश्न पूछूं?'
'हां पूछो।'
'मैंने अदिती को प्यार किया लेकिन मुझे ज़रा भी एहसास नहीं हुआ कि तुम नहीं हो और चलो मान लिया कि मैं पूरी तरह से होश में नहीं था, लेकिन तो शेखर ने ऐसी कौनसी बात से इतना विश्वास के साथ कहा रहा था कि यही अदिती है।'
स्वाति काफ़ी देर तक आलोक की आंखों में देखते रहने के बाद बोली,.
'इस सवाल के जवाब के लिए तुम्हें कुछ समय तक रूकनार पड़ेगा।'
'कुछ समय मतलब कितना?' आलोक ने पूछा।
'बस अदि नॉर्मल हो जाय तब तक ही।'

'स्वाति मुझे लग रहा है कि तुम दोनों को पहचानने में सही में कभी मैं कोई गलती कर बैठूंगा।'

'ना आलोक, जो हो गई फ़िर से ऐसी बड़ी गलती तो कभी भी नहीं होगी।'
'कौन सी गलती?' आलोक ने पूछा।
'कुछ नहीं छोड़ो अब।' स्वाति ने बात को बीच में से ही उड़ा दिया।

एयरपोर्ट से दोनों टैक्सी करके हॉस्पिटल की ओर रवाना हुए। स्वाति ने मॉम, डैड को बता दिया और आलोक ने अपने पेरेंट्स और शेखर को कॉल करके मैसेज दे दिया..
हॉस्पिटल पहुंचने के बाद..
धीरे धीरे आई.सी. यू. की ओर जैसे जैसे आगे बढ़ते गए वैसे वैसे पल पल आलोक के दिल की धड़कन अनियंत्रित होने लगी। स्वाति ने आलोक को बाहर की तरफ़ आई.सी. यू. के डोर के पीछे खड़े रहने का संकेत देकर अंदर जाते ही धीरे से अदिती से लिपटकर बस आंसु बहाती रही।

आगे अगले अंक में.....


© विजय रावल

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