mai to odh chunriya - 4 in Hindi Fiction Stories by Sneh Goswami books and stories PDF | मैं तो ओढ चुनरिया - 4

Featured Books
  • ભાગવત રહસ્ય - 68

    ભાગવત રહસ્ય-૬૮   નારદજીના ગયા પછી-યુધિષ્ઠિર ભીમને કહે છે-કે-...

  • મુક્તિ

      "उत्तिष्ठत जाग्रत, प्राप्य वरान्निबोधत। क्षुरस्य धारा निशि...

  • ખરા એ દિવસો હતા!

      હું સાતમાં ધોરણ માં હતો, તે વખત ની આ વાત છે. અમારી શાળામાં...

  • રાશિચક્ર

    આન્વી એક કારના શોરૂમમાં રિસેપ્શનિસ્ટ તરીકે નોકરી કરતી એકત્રી...

  • નિતુ - પ્રકરણ 31

    નિતુ : ૩૧ (યાદ)નિતુના લગ્ન અંગે વાત કરવા જગદીશ તેના ઘર સુધી...

Categories
Share

मैं तो ओढ चुनरिया - 4

मैं तो ओढ चुनरिया

अध्याय चार

आषाढ बीत गया। सावन आ गया । दोपहर ढलते ही हवा में थोङी ठंडक घुलने लगी थी । कहीं आसपास ही बारिश हो रही होगी । माँ ने मुझे इतना कस कर तौलिए में लपेट लिया कि मेरा साँस घुटने लगा था । घबराहट के मारे मेरा बुरा हाल हो गया । मन कर रहा था कि यह तौलिया पैर मार - मारकर कहीं दूर फेंक दूँ और ये औरतें मुझे कपङों से लादती जा रही थी । मेरा हर विरोध बेकार हुआ जा रहा था । झाई ने मुझे रोते देखा तो मुट्ठी में नमक ले आई – सुबह से इतना सजाके रखा है , नजर तो लगनी ही हुई । देख , कितनी बुरी नजर लगी हुई है । कई बार बच्चों को अपनी भी नजर लग जाती है । उसने मेरे सिर से पैर तक तीन बार अपनी मुट्ठी घुमाई । उसकी हरकत देखकर इतनी तकलीफ में भी मुझे हँसी आ गयी ।
देखा , नजर उतारते ही हँस पङी न । लोगों की नजर पत्थरपाङ होती है, बच्चे की गरदन पर सवार हो जाती है । इसे ढक कर रखाकर । – झाई संतुष्ट होकर चली गयी । मैं रोते रोते थक गयी थी , सो गयी । नींद खुली तो सारे मामा अपने थैले, ट्रंक समेटकर जाने की तैयारी कर रहे थे । मुझे उठा देख सबने गोद में लेकर प्यार किया । छोटे मामा ने झुककर मेरा माथा चूम लिया । मैंने मामा के सिर के बाल मुट्ठी में पकङ लिए । बङे मामा ने मुझे उठाया , तब भी बाल मेरी मुट्ठी में थे । हरि मामा की सी... निकल गयी । तब सबने मेरे हाथ देखे ।
शैतानी करनी आती है तुझे ? शैतान की नानी
धत् , मैं शैतानी कहाँ कर रही थी । मुझे तो मामा को पकङ के रखना था । मैंने छोटे दोनों मामाओं को बङी आजिजी से देखा – तुम भी चले जाओगे ?
किसी को मेरी बात समझ क्यों नहीं आती ? और मैं अपनी बेबसी पर रो उठी ।
दादी ने माँ से कहा – बच्ची सो के उठी है , भूख लग आई है । इसलिए रो रही है । इसे थोङा शहद चटा दो । टिक जाएगी ।
माँ ने शहद की कटोरी में ऊँगली डुबोकर मेरे होठों से छुहा दी । मैंने खाई तो बङी मीठी लगी यह चीज और चटखारे ले रही थी । मेरा ध्यान हटा और सब मामा लोग चले गये ।
मैं बार बार कमरे में नजरे घुमा घुमा कर उन्हें ढूँढती रही पर वे कहीं नहीं थे । देर शाम तक मुझ पर उदासी छाई रही फिर रात हो गयी । सुबह होने तक धीरे धीरे सब भूल गयी । एक माँ ही थी जो हर रोज लोरी गुनगुनाती –
सों जा रानी तू ।
मेरी राजदुलारी तू
रानी का मामा आएगा
चार फ्राकें लाएगा
सात खिलौने लाएगा
मामी खीर खिलाएगी
रानी उठके खाएगी
और मैं लोरी सुनते सुनते माँ की गोद में ही सो जाती ।
इसी तरह काफी समय बीत गया । मैं सवा दो महीने की हो गयी थी , ऐसा माँ ने पिताजी को बताया । माँ अपने घर जा रही थी । मैं सोच रही थी कि अपना घर ? माँ ने ऐसै क्यों कहा ? क्या यह घर माँ का घर नहीं है ? यदि नहीं है तो हम यहाँ क्यों रहते हैं ? माँ इस सब से बेखबर बेहद खुश है । तैयारियों में लगी है । दुपट्टों पर गोटा किनारी ,बांक , चम्पा लगा रही है । सूट लाए जा रहे हैं । सिलाई की जा रही है । मेरे भी जोङे सिल रहे हैं । नाप के लिए बार बार कपङे पहनाए और उतारे जाना मुझे पसंद नहीं है पर माँ मगन है ।
फिर एक दिन सारे कपङे झोलों , थैलों और संदूकों में जमा दिए गये । माँ भागभरी को बता रही है , किशन की शादी को एक महीना बाकी है , वहाँ जाकर भरजाई की बरी भी तैयार करवी है ।दिन तो गिनती के रह गये । आज भाई वहाँ से चढेंगे रेल में , सुबह आएंगे लेने । मैं याद करने की कोशिश कर रही हूँ पर कुछ याद नहीं आ रहा ।
सुबह सबके उठने से पहले ही बाहर इक्का आ लगा है । कुंडी खङक रही है । बाहर कोई आया है । माँ बाहर ही नलका गेङकर हाथ मुँह धुला रही है । थोङी देर में वे लोग अंदर आ गये । मेरे ही मंजी पर बैठे हैं । वे मुझे बङे प्यार से देख रहे हैं । मैं भी उन्हें हैरान होके देख रही हूँ ।
भैन तेरी बेटी तो तोताचश्म है । पहचान ही नहीं रही ।
माँ हँस रही है – तोताचश्म नहीं नाराज हो गयी है । तुम साथ नहीं ले गये थे न इसलिए ।
मामा ने हाथ पर ले लिया मुझे । हाथ छूते ही मैं चिंहुक उठी हूँ – अरे यह तो मोहन माम है । पक्का वही हाथ है ।
देखो भा जी हैं न छोटी सी परी
मोहन मामा ने मुझे साथ आए लगभग अपने ही जितने लङके की ओर बढा दिया । मैं डर गयी ।
मोहन मामा ने मुझे हवा में उछाल दिया और मैं खुश हो गयी । माँ पूछ रही है – कस्तूरी, तुम लोग ठीक ठाक पहोंच गये न । कोई तकलीफ तो नहीं हुई और घर में सब ठीक हैं न । मासी , ताया , भाई , भाभियां , गौरी सब ।
मुझे मामाओं के हवाले कर माँ रोटी बनाने चली गयी है । दादी तो पिछले हफ्ते ही चली गयी थी । तो खाना माँ ही बनाती है । उसने चौके के पास ही मामा के लिए चारपाई बिछा दी है । वे सब बातें किये जा रहे हैं । किसकी इतनी बातें हो रही हैं , मैं तो किसी को जानती नहीं । मैं सो गयी हूँ ।

शेष अगली कङी में ...