The Author Ila Singh Follow Current Read मेकिंगचार्ज By Ila Singh Hindi Moral Stories Share Facebook Twitter Whatsapp Featured Books પ્રેમ થાય કે કરાય? ભાગ - 21 સગાઈ"મમ્મી હું મારા મિત્રો સાથે મોલમાં જાવ છું. તારે કંઈ લાવ... ખજાનો - 85 પોતાના ભાણેજ ઇબતિહાજના ખભે હાથ મૂકી તેને પ્રકૃતિ અને માનવ વચ... ભાગવત રહસ્ય - 118 ભાગવત રહસ્ય-૧૧૮ શિવજી સમાધિમાંથી જાગ્યા-પૂછે છે-દેવી,આજે બ... ગામડા નો શિયાળો કેમ છો મિત્રો મજા માં ને , હું લય ને આવી છું નવી વાર્તા કે ગ... પ્રેમતૃષ્ણા - ભાગ 9 અહી અરવિંદ ભાઈ અને પ્રિન્સિપાલ સર પોતાની વાતો કરી રહ્યા .અવન... Categories Short Stories Spiritual Stories Fiction Stories Motivational Stories Classic Stories Children Stories Comedy stories Magazine Poems Travel stories Women Focused Drama Love Stories Detective stories Moral Stories Adventure Stories Human Science Philosophy Health Biography Cooking Recipe Letter Horror Stories Film Reviews Mythological Stories Book Reviews Thriller Science-Fiction Business Sports Animals Astrology Science Anything Crime Stories Share मेकिंगचार्ज 1.2k 5.5k मेकिंगचार्ज **************"टमाटर किस भाव? "बड़े-बड़े लाल-लाल टमाटर एक तरफ करते हुए बुजुर्गवार ने प्रश्न किया ।"सात रूपए किलो , बाबू जी !"सब्जी वाली तराजू सँभालते हुए बोली ।"सात रूपए किलो ,"सज्जन ने चौंककर प्रति प्रश्न किया ।"जी बाबू जी ,"सब्जी वाली थोड़ा सहमी -सी बोली ।"अरे भाई, हद करते हो तुम लोग, मंडी में दस रूपए में ढाई किलो मारे-मारे फिर रहे हैं ।"ऐसा कहते हुए भी सज्जन के हाथ टमाटर छाँटने में लगे थे ।"अरे बाबूजी , मंडी का भाव रहि ऊ,... फेर टिमाटरऊ तौ ...देख लेऔ, ...केता बढिया रहि। " "अरे , तुम लोग भी ना ... बताइए बहनजी ! आप ही बताइए, ...अभी तो जरा सब्जी सस्ती हुई है इस सरकार के राज में और ये लोग फिर भी लूट मचाते हैं "मैं सब्जी तुलवा चुकी थी ।पैसे देते हुए मैंने उनकी तरफ नजर डाली ।अच्छे संभ्रांत पढ़े-लिखे लगे मुझे , कपड़ों से भी ठीक-ठाक पैसे वाले ही लगे ।मैं हल्की -सी मुस्कराकर आगे बढ़ गई ।"ऐसे ही लोगों की वजह से इन छोटे लोगों का दिमाग खराब हुआ है , चार पैसे आ जाते हैं तो दिमाग ठिकाने नही रहता ।बिना मोल-भाव के खरीददारी करेंगे और समझेंगे बड़े 'कूल' हैं हम ।"मेरे कानों में पीछे से बुजुर्ग की धीमी और तीखी आवाज पड़ी ।मेरे कदम रूक गए...जो बात टाल गई थी लगा ...उसमें उलझना ही पड़ेगा । मुझे वापस आया देख थोड़ा सकुचाकर नजरें चुरा गए और सब्जियाँ टटोलने लगे ।सब्जीवाली भी थोड़ी घबरा गई, पता नही उसे किस बात से डर था। दो रूपए ज्यादा ले रही थी इस बात से या मुझ जैसे ग्राहक पर अपनी पोलपट्टी खुलते देख घबरा रही थी ।ज्यादातर सब्जी उसी से लेती हूँ , उसका कोई ठेला नही है ।बस एक निश्चित जगह सड़क के किनारे प्लास्टिक बिछा , बड़ी सजा-सँवारकर सब्जियाँ रखती है ।सब्जी एकदम ताजा और बढिया होती है ।हाँ , कीमत थोड़ी ज्यादा होती है ।उसकी सब्जियों के पास पहुँचते ही रंग-बिरंगे फूलों के बगीचे में पहुँचने का अहसास होता है।लगता है जैसे एकसाथ सारे फूल खिलखिला उठे हों । या हरी-भरी वादियों में पहुँच गए हों और कोई रंगों से भरा दुशाला ओढ बाँहे फैलाए आपको बुला रहा हो । लाल-लाल ताजा टमाटर, अपनी चमकती चिकनी त्वचा से किसी बच्चे के गालों की स्निग्धता को मात करते दिखते ।झक, सफेद, ताजा मूलियाँ ...अपने सर पर हरी पत्तियों का ताज सजाए इठलाती नजर आतीं ...।पालक, मेथी , बथुआ, धनिया आदि पत्तेदार सब्जियों को वह इतने करीने से रखती कि लगता ...किसी बँगले का करीने से कटा-छँटा मखमली लाॅन । मटर ...इतनी ताजा ...और हरी होती कि.... उठाकर खाने का मन करने लगे ।बैंगन, लौकी , टिंडे इत्यादि अपनी त्वचा से... किसी नवयौवना को चुनौती देते लगते । लब्बोलुबाब यह कि वहाँ पहुँच कर आप सब्जी खरीदने का लोभ संवरण नही कर पाएँगे ।खरीदने दो सब्जी गए हैं ...लेकर चार आएँगे ...। मेरे टहलने के रास्ते में ही , सब्जी वाली से पहले एक और भी सब्जीवाला ठेला लगाता है ।मगर उसकी सब्जियाँ बड़ी बीमार-बीमार सी होती हैं ...असमय बुढाए बैंगन, ढेरों झुर्रियों के साथ ....इस आस में कि ...तेल-बनाए आलू-बैंगन और नाम बहू का होय ...।दबे-कुचले से टमाटर ...कुपोषण के शिकार बच्चों की तरह....उनके बीच से झाँकता कोई-कोई लाल टमाटर ...जैसे गरीब, कमजोर बच्चों के बीच ...कोई स्वस्थ, तंदरुस्त बच्चा गलती से पहुँच गया हो ।....सूखी , ...अपना हरापन खो चुकी ...काली-काली काई जैसी क्रीम लगाए भिंडी ....मुरझाई मेथी , पालक ...आधी हरी आधी पीली पत्तियों वाला धनिया प्रोढ हो चुका होता ।....बाकी सब्जियों का भी कुछ ऐसा ही हाल होता उसके ठेले पर,.. एक अजीब सी मुर्दनी छाई होती ।जवानी खो चुकी सब्जियाँ...तेल-मसालों के साथ ...पतीलों में जाने को तैयार बैठी थीं पर ग्राहक उनकी बुढ़ाती देह देख बिदक आगे बढ जाते । ठेले वाला पानी छिडक-छिडक कर उनकी जवानी कायम रखने की कोशिश करता रहता ।उससे सब्जी मैं कभी-कभार ही लेती थी ...जब मुझे थोड़ी जल्दी होती और सब्जी वाली थोड़ी दूर लगती या... कभी -कभी थोडा इंसानियत।...बाकी लोग भी कम ही लेते थे उससे सब्जी इसी से बेचारे की सब्जी और बुढ़ाती जाती ।लेकिन इधर कुछ दिनों से उसके यहाँ से भी नियमित एक-दो सब्जी ले ही लेती हूँ ।...बंदा बड़ा व्यावहारिक निकला ...मेरी कमजोर नस पकड़ चुका था ...मोल-भाव करती नही हूँ , पता नही कैसे एक दिन कीमत पूछ ली बस वह शुरू हो गया.... बड़े मीठे लहजे में -"अरे मैडम, आप रोज के ग्राहक हो , आपसे ज्यादा लेंगे ...""नही-नही , फिर भी ...ऐसे ही पूछा " "अरे हम जानते नही हैं क्या आपको ,... आप तो मोल-भाव भी नही करती ।रोज सब्जी भी लेती हैं और कोई चखचख नही ...वरना मैडम लोग सब्जी जरा सी लेंगे और कानून दुनिया का बताएँगे ।"अब उसके ठेले के सामने मेरे कदम थम ही जाते हैं ।उसने एम.बी.ए.की डिग्री तो नही ली पर उसकी व्यापारिक बुद्धि की कायल हो गई हूँ ।....क्या इंसान को अपनी प्रसंशा इतनी अच्छी लगती है ...खैर। सब्जी वाली के पास आकर उन सज्जन से मुखातिब हुई -"भाईसाहब माॅल जाते हैं क्या ?""क्यों ?""वहाँ भी मोलभाव करते है ? ""मैं माॅल -वाॅल नही जाता "।वे उखड गए ।"बड़ी दुकानों , राशन दुकानों या बाकी चीजों पर पैसे कम कराते हैं ।"उनका चेहरा थोड़ा लाल हो उठा था -"देखिए मैडम! जो बाजिब कीमत होती है ...उसे देने में हर्ज नही है ।पर....ये लोग औने-पौने दाम लगाते हैं ...सब्जी जैसी चीज इतनी महँगी ..."उनकी सोच पर पहले तो हँसी आने को हुई ...पर फिर गम्भीर चेहरे से उनसे पूछा -"आप कहाँ कार्य करते हैं , सर?""ज्वैलर हूँ।सब्जी वगैरा मैं नही लाता ...नौकर ही लाता है ।वो तो इधर से गुजर रहा था , टमाटर अच्छे लगे तो लेने लगा ।कल ही नौकर बता रहा था टमाटर दस रूपए में ढाई किलो ......"ज्वैलर सुन चौंक गई ....."सर! आपकी दुकान पर जब लोग गहने खरीदने आते होंगे , आप बाजिब दाम ही बताते होंगे ?""बिलकुल, हमारा रेट तो सरकार तय करती है।""और मेकिंगचार्ज सर? वो भी सरकार तय करती है ?""नही , ...अब ...वो तो कारीगरी के ऊपर है , जैसा काम वैसा मेकिंगचार्ज। ""सही है सर, जैसा काम वैसा मेकिंगचार्ज ...इसका भी काम देखिए सर ...इसका सलीका देखिए ... इसकी सब्जियों को देखकर आप खरीदने के लिए लालायित हुए ना...तो...तो सर ...इसका यह मेकिंगचार्ज है ....टमाटर पर दो रूपए ज्यादा इसका मेकिंगचार्ज मान लीजिए ।..."उनका चेहरा उतर गया तो मैं थोड़े सांत्वना के स्वर में बोली -"हम मॉल, शोरूम, ब्रांडेड चीजों पर कोई पैसा कम नहीं करा पाते ,सर!मगर छोटे विक्रेताओं से, सब्जी वालों से, रिक्शे वालों से जरूर कम कराने की कोशिश करते हैं. क्यों? क्योंकि इनपर हमारा वश चलता है और ये भी मजबूर होते हैं, आखिर बेचेंगे नहीं तो खाएंगे क्या... सोचिये, इससे इसका घर चलता है , सर! आपके लिए दो रूपए ...कोई बड़ी बात नही ....लेकिन इन दो रूपए में... इसके बच्चों की थाली में सूखी रोटी के साथ.... टमाटर की चटनी भी आ जाए शायद ...सोचकर देखिएगा, सर!! ”उनके चेहरे की बढ़ती झेंप को देख मैं आगे बढ गई ।...पर मन नही माना और पलट कर देखा तो सुखद आश्चर्य से भर उठी ....सब्जी वाली मुस्कराते हुए उनके थैले में टमाटर डाल रही थी ... 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