आचरण व संस्कार मानवीय नैतिक मूल्यों की दो ऐसी अनमोल निधियाँ हैं, जिनके बिना मानव के सामाजिक जीवन का अस्तित्व खतरे में जान पड़ता है। मानवीय नैतिक मूल्यों का अनुकरण न करना मनुष्य के व्यक्तित्व ह्रास का मुख्य कारण बन जाता है। इनके अभाव में मनुष्य का व्यक्तित्व आलोचनात्मक प्रवृत्ति के पथ पर अग्रसर हो चलता है। यदि बुद्धि मनुष्य को पशु योनि से विरक्त करती है तो संस्कार और व्यवहार मनुष्य को राक्षसी प्रवृत्ति से अलग करते हैं। संस्कार व व्यवहार रहित मनुष्य का आचरण पूर्णतया अमानवीय हो जाता है, जिसे हम राक्षसी संस्कृति से प्रेरित मान सकते हैं।
दोषदर्शी प्रवृत्ति के अनुसरण से जीवन दिन प्रति दिन दुखी व अशांत बनता चला जाता है। जीवन मूल्यों का नास हो जाता है। अंततः मनुष्य का जीवन ऐसे ही व्यर्थ नष्ट हो जाता है। नैतिक शिक्षा द्वारा प्राप्त मुल्यों से हम निर्वधंन तथा स्वावलंबी बन सकते हैं। नैतिक शिक्षा मनुष्य जीवन के मूल्यों की रक्षा करती है, वह अमरत्व प्राप्त करने में मदद करती है। अमरत्व प्राप्ति ही शिक्षा का मूल उददेश्य है।
लालच, बेईमानी, चोरी, ठगी जैसे नकारात्मक विचार मनुष्य को नैतिकता के विरुद्ध आचरण करने को उकसाते हैं, और यदि हमने नैतिकता का मार्ग छोडकर अनैतिकता की ओर जाना स्वीकार कर लिया, तो निश्चित मानिए कि हमने अपने जीवन का अंत कर लिया। नैतिक शिक्षा आचरण में लाना मनुष्य जीवन का प्रथम कर्तव्य है। जीवन में नैतिक मूल्यों को धारण करने से आंतरिक शक्तियों का विकास होता है और आत्मबल व मनोबल बढता है। नैतिक मूल्यों से युक्त जीवन समाज पसंद करता है। सदगुणों की धारणा को अंगीकार कर हम समाज में प्रशंसा के पात्र बन सकते हैं। सदगुण मनुष्य जीवन की सुदंरता है। सदगुण मनुष्य जीवन के श्रेष्ठ चरित्र की निशानी है। सदगुणों को अपने जीवन में धारण करने की परम आवश्यकता है। सदगुण मनुष्य जीवन की अनमोल निधि है। यदि मनुष्यों के भीतर सदगुणों का ह्रास होगा तो यह संसार वीरान हो जायेगा।
आध्यात्मिकता भी मनुष्य जीवन की अनेकों प्राथमिकताओं में से एक है। आध्यात्मिकता को न अपनाना जीवन में मानवीय नैतिक मूल्यों का तिरस्कार करना है। सामान्य जन अभी तक आध्यात्मिकता का सटीक अर्थ नहीं समझते। लोग समझते हैं कि आध्यात्मिकता को अपनाने का अर्थ, अभाव में रहकर जीवन व्यतीत करना व स्वयं को कष्ट देना है, जबकि सच्चाई इसके ठीक विपरीत है। आध्यात्मिकता का संबंध मनुष्य के आंतरिक जीवन से है। आध्यात्मिकता के लिए मनुष्य को अपना घर छोड़ने या शरीर को कष्ट देने की कोई आवश्यकता नहीं होती। बस उसे अपनी समस्त मानसिक कमजोरियों को त्यागने और स्वयं को आंतरिक स्तर पर स्थिर करने का संकल्प लेने की आवश्यकता है। इसके बाद उसके अंतर्मन से जो भी आदेश प्राप्त हो उसे उसका पालन करना होता है। आध्यात्मिकता का अनुसरण कर लेने से मनुष्य की वे सभी गतिविधियां, जो उसे निर्मल बनाती हैं, आनंद से भर देती हैं, पूर्णता का अहसास कराती हैं और स्वयं से उसका परिचय कराती हैं, स्वतः ही प्रकट होने लगती हैं।
आध्यात्मिकता की बातें करने या उसका दिखावा करने से कोई लाभ नहीं होता। आध्यात्मिकता तो स्वयं के रूपांतरण के लिए है। आध्यात्मिक प्रक्रिया तो उनके लिए है जो जीवन के हर आयाम को पूरी जीवंतता के साथ जीना चाहता है। आध्यात्मिक प्रक्रिया एक यात्रा की तरह है जो जीवन पर्यंत बिना रुके चलती रहती है। इस प्रक्रिया में राह की प्रत्येक वस्तु से प्रेम करना और उसका आनंद लेना सिखलाया जाता है।
आध्यात्मिक होने का सामान्य अर्थ, अपने को औसत से ऊपर रहकर जीवन व्यतीत करना है। यह जीवन जीने की सबसे विवेकपूर्ण विधि है। पारिवारिक अथवा कार्य क्षेत्र के सामान्य कार्य को भी यदि हम पूरी तल्लीनता के साथ प्रारंभ कर देते हैं, तो सच मानिए जीवन की आध्यात्मिक प्रक्रिया प्रारंभ हो जाती है। ऐसा कर हम अपने जीवन को श्रेष्ठता की उच्चतम चोटी तक पहुंचाने में सफल हो जाते हैं।
इसी तरह व्यक्तित्व की व्याख्या भी की जाती है। जब हम स्वयं को दूसरों के समक्ष प्रस्तुत करते हैं तो हम आम तौर पर अपना नाम और अपने संबंध में कुछ अपेक्षित बातें बताते हैं। जबकि सत्य यह है कि हमारा व्यक्तित्व स्वयं अपने को दूसरे के सम्मुख स्पष्ट प्रस्तुत कर देता है। जिससे सामने वाले को स्वतः हमारे बारे में संपूर्ण जानकारी प्राप्त हो जाती है। इस प्रकार हमारा व्यक्तित्व हर जगह हमारी पहचान बन जाता है, वह चाहे हमारा घर, परिवेश, स्कूल, कॉलेज और हमारा कार्य क्षेत्र ही क्यों न हो।
आजकल व्यक्तित्व विकास की चर्चा चारों ओर है। सभी महत्वपूर्ण पदों पर अभ्यर्थियों की भर्ती-पूर्व उनके व्यक्तित्व का आकलन अवश्य किया जाता है। अनेक गैर-सरकारी संस्थान मोटी रकम शुल्क के रूप में लेकर व्यक्तित्व विकास का प्रशिक्षण कराते हैं। जबकि आप ‘आधार’ में दिए गए नैतिक मूल्यों को अपने जीवन में उतार कर कुछ ही दिनों में अपने व्यक्तित्व में अभूतपूर्व परिवर्तन उत्पन्न होते हुए देख सकते हैं।
सफलता प्राप्त करने के लिए व्यक्ति का व्यक्तित्व आदर्श एवं महान होना आवश्यक है। जिसके लिए वह सदा प्रयत्नशील रहता है। परंतु अशिक्षा और अज्ञानता व्यक्तित्व निर्माण की राह में एक बड़े रोड़े का कार्य करते हैं। प्रस्तुत पुस्तक व्यक्तित्व के इस अभाव को पूर्ण करने का एक प्रयास है।
व्यक्तित्व को अंग्रेजी में पर्सनालिटी कहते हैं। यह लैटिन के शब्द PERSON से बना है जिसका अर्थ मुखौटा होता है। नाटक में कलाकार दूसरे व्यक्ति का मुखौटा लगाकर कुछ समय तक किसी व्यक्ति का अभिनय करता है परंतु उसका यह व्यवहार स्थाई नहीं हो सकता। व्यक्तित्व में स्थायित्व के लिए उसे अमुक व्यक्ति के संपूर्ण आचरण को अपने में आत्मसात करना होगा, जो कि कष्ट साध्य परंतु संभव प्रक्रिया है।
व्यक्तित्व एक बड़ा और विस्तृत शब्द है। किसी व्यक्ति के व्यक्तित्व वर्णन में उसके सारे अच्छे-बुरे गुण आते हैं। महात्मा गांधी, सुभाष चंद्र बोस, पंडित जवाहरलाल नेहरू, सरदार वल्लभभाई पटेल, विपिन चंद्र, रामधारी सिंह दिनकर, मुंशी प्रेमचंद, रवींद्र नाथ टेगौर, अटल बिहारी बाजपेयी और नरेंद्र मोदी जैसे सभी महापुरुष अपने विराट व्यक्तित्व के कारण ही संसार में शोहरत हासिल कर सके, जो उन्होंने अपने जीवन के प्रारंभिक दिनों में सतत प्रयासों द्वारा अर्जित किए थे।
महात्मा गांधी के विचारानुसार, “किसी व्यक्ति का पूरा स्वभाव तथा चरित्र ही उसका व्यक्तित्व कहलाता है।” व्यक्तित्व विकसित करने और निखारने के लिए आत्मविश्वास बढ़ाना बेहद जरूरी है। जिन लोगों के पास आत्मविश्वास नहीं होता, स्वयं पर नियंत्रण नहीं होता उनका मनोबल बहुत ही निम्न होता है। वे सदैव सशंकित रहते हैं कि किसी कार्य को कर पाएंगे अथवा नहीं। इसलिए स्वयं के भीतर आत्मविश्वास बढ़ाना जरूरी है। ज्ञान और सतत प्रयास से आत्मविश्वास प्राप्त होता है। ठीक उसी प्रकार जैसे वर्ष भर पढ़ाई करने वाले छात्र स्वयं पर आत्मविश्वास के चलते परीक्षा में सफल हो जाते हैं।
पंडित जवाहरलाल नेहरू कहते हैं कि व्यक्तित्व उन सभी गुणों का एकीकृत रूप है जो किसी व्यक्ति की समाज के परिवेश में भूमिकाओं एवं स्थिति को अभिव्यक्त करता है। व्यक्तित्व विकास के लिए यह बहुत आवश्यक है कि आपके भीतर केवल किताबी ज्ञान ना होकर व्यवहारिक ज्ञान भी हो। किताबी ज्ञान सिर्फ लिखित परीक्षा में काम आता है, जबकि व्यवहारिक ज्ञान जीवन की हर कठिन परिस्थिति में काम आता है। जिन व्यक्तियों का व्यवहारिक ज्ञान अच्छा होता है उनका व्यक्तित्व विकास अपने आप हो जाता है।
अटल बिहारी बाजपेयी के अनुसार, “व्यक्तित्व व्यक्ति के संपूर्ण व्यवहार की विशेषता है जिसका प्रदर्शन उसके विचारों की आदत, व्यक्त करने के ढंग, अभिवृत्ति एवं रूचि, कार्य करने के ढंग और जीवन के प्रति उसके दार्शनिक विचारधारा के रूप में किया जाता है।” हम सभी को अपने मन और मस्तिष्क में आने वाले नकारात्मक विचारों को दूर करना चाहिए और सकारात्मक विचारों को अपनाना चाहिए। व्यक्तित्व विकास के लिए यह आवश्यक है।
झूठे व्यक्तियों को कभी कोई पसंद नहीं करता। इसलिए व्यक्तित्व विकास के लिए सच बोलना बेहद जरूरी है। हो सकता है कि आपके सच बोलने से सामने वाले व्यक्ति को बुरा लग जाए, परंतु बाद में वह आपकी प्रशंसा करेगा। यदि आप किसी व्यक्ति से झूठ बोलते हैं और उसकी झूठी तारीफ करते हैं तो भी वह आपको अच्छा व्यक्ति नहीं मानेगा। सच बोलने वाले व्यक्तियों की तारीफ सभी लोग करते हैं।
रवींद्र नाथ टेगौर के अनुसार, ‘‘व्यक्तित्व, व्यक्ति के व्यवहार, रूचि, दृष्टिकोण और क्षमता का विशिष्ट संगठन है।’’ आप जो भी पढ़ते, सुनते, देखते और सोचते हैं उसका प्रभाव आपके मन और मस्तिष्क पर पड़ता है। अच्छी पुस्तकें सदैव अच्छी मित्र साबित होती हैं। इसीलिए स्कूलों के पाठ्यक्रम में नैतिक शिक्षा की कहानियां सम्मिलित की जाती हैं, जिससे आपका चारित्रिक एवं मानसिक विकास हो सके। महापुरुषों की जीवनी पढ़ने से भी व्यक्तित्व का विकास होता है।
आपने देखा होगा कि विश्व के सभी महापुरुषों के भीतर बहुत धैर्य था। धैर्य होना आवश्यक होता है क्योंकि हर व्यक्ति को अपने जीवन में उतार चढ़ाव और कठिन परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है। धैर्य ना होने पर व्यक्ति कठिन परिस्थितियों में टूट जाता है और आत्मसमर्पण कर देता है। सभी महापुरुष धैर्य रखने की सलाह देते हैं।
डॉ राजेंद्र प्रसाद ने कहा कि व्यक्तित्व एक व्यक्ति के सम्पूर्ण व्यवहार-प्रतिमान और इसकी विशेषताओं के योग का उल्लेख करता है। आकर्षक व्यक्तित्व पाने के लिए व्यवहार के साथ साथ भाषा में संपन्नता होना भी आवश्यक है। बोलते और लिखते समय सही शब्दों का चुनाव करना चाहिये। विश्व के सभी महान नेता भाषण देते समय जनता को मंत्रमुग्ध कर देते थे। हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का व्यक्तित्व देखते ही बनता है। जिस राज्य में वे जाते है, उनका भाषण सुनने के लिए लाखो लोग खींचे चले आते है। उनकी भाषा बेहद समृद्ध है। वे कभी भी पढ़कर भाषण नही देते है। उनका यह आचरण उनके आकर्षक व्यक्तित्व की पहचान कराता है।
उच्च व्यक्तित्व के लिए हमें अपनी शारीरिक हाव-भाव पर भी विचार करना चाहिए। उठने, बैठने, पढ़ने, चलने, बोलने और खाने का सही तरीका हमें सीखना चाहिए। हमारे उठने, बैठने, काम करने और बोलने के अंदाज से हमारा व्यक्तित्व झलकता है।
व्यक्तित्व में क्षमा का भी बड़ा महत्व होता है। गलती होने पर किसी को क्षमा करना सरल नहीं होता है। आमतौर पर जब हमारे साथ कोई गलत कार्य करता है तो हम तुरंत ही प्रतिशोध लेते हैं। इससे हम बड़े या बलवान नहीं बन जाते। क्षमा करना एक बड़ा और महान गुण है। इसे धारण करने से व्यक्ति का व्यक्तित्व और भी महान बनता है।
इस प्रकार के विभिन्न आचरण, जिनकी विस्तृत चर्चा हम इस पुस्तक में करेंगे, हमारे व्यक्तित्व को निखारने में सहायक हो सकते हैं। जिसके माध्यम से हम जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सफलता अर्जित कर सकते हैं, जो इस पुस्तक की मूल भावना भी है।
प्रस्तुत पुस्तक के माध्यम से मैं प्रबुद्ध जनों को जीवन के उन अनिवार्य सूत्रों से अवगत कराने का प्रयास करना चाहता हूं जो हमारे सफल जीवन का आधार बनकर, व्यक्तित्व की शक्ति को निखारने, दूसरों पर अपने व्यक्तित्व की अमिट छाप छोड़ने, अन्तःकरण को शुद्ध करने, भावनाओं को पवित्र करने एवं विचारों को उच्चता प्रदान करने की योग्यता उत्पन्न कर दे।
आप यदि पुस्तक में दी गई आचार संहिता का गंभीरता से पालन करें और उसे अपनाने के लिए सच्चे हृदय से प्रयास करें तो आप मनचाही उन्नति प्राप्त कर सकते हैं, जितना चाहे उतना धन अर्जित कर सकते हैं, और ऊंचे से ऊंचे ओहदे पर आसीन हो सकते हैं, इसमें तनिक भी संदेह नहीं। इतिहास गवाह है कि हमने भिखारियों को सम्राट और पैसे दो पैसे को मोहताज व्यक्तियों को अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति के बल पर धन-कुबेर बनते देखा है।
यदि आप पुस्तक में वर्णित किसी एक आचरण को भी अपने जीवन पथ पर महत्वपूर्ण मानते हैं तो पुस्तक की संरचना के लिए किए गए सभी प्रयास सार्थक सिद्ध होंगे। हमें आशा ही नहीं वरन पूर्ण विश्वास है कि प्रस्तुत पुस्तक आपके व्यक्तित्व को एक नई दिशा देने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करेगी।
धन्यवाद।