Spring season in Hindi Short Stories by Sunita Bishnolia books and stories PDF | वसंत ऋतु

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वसंत ऋतु

वसंत ऋतु
"अपनी आभा से धरती को करने को गुलजार
सुमन धरा पर खिले संग ले, सतरंगी संसार, पहन हरित वसन बसंत ने,जीवन दिया धरा को मंद पवन संग उड़ -उड़कर,भर देती घर द्वार ।।"
कहीं गर्मी में झुलसते मानव तो कहीं हिमाच्छादित रातों में ठिठुरते जन पर धन्य हैं हम जिन्होंने जन्म लिया भारत विशाल में।
इसकी स्वर्ग सी धरती पर सदा चक्र गतिमान रहता है षड्ऋतुओं का। ग्रीष्म, वर्षा,शरद, हेमंत,शिशिर और वसंत अर्थात विभिन्न रूपों और प्रकृति की क्रीड़ा स्थली हमारा देश भारत।
प्रकृति के रूप और सौन्दर्य का शृंगार करती है ये छः ऋतुएँ। हर ऋतु की अपनी विशेषता और अपना महत्त्व, जहाँ ग्रीष्म की गर्मी से तप्त भूमि को सींचकर शीतल करती है वर्षा और वर्षा के प्रभाव से शीतल भूमि पर ठिठुरन पैदा करती है शरद।प्रकृति द्वारा शिशिर पर कुर्बान अपने हर तरुवर के पात पुनः आते हैं शिशिर की विदाई के साथ ऋतु वसंत में अर्थात्‌ शीत ऋतु में पतझड़ के कारण अपना सौन्दर्य खोकर ठूंठ हो चुके पेड़ और लताएँ मुस्कुरा उठते हैं नव-पल्लव रूपी वस्त्र धारण कर।
मंद पवन भी चल रही,ज्यों सरगम के साज।
करते स्वागत सुमन है, आए हैं ऋतुराज।।
अपने सौन्दर्य और अद्भुत छटा से गुलज़ार करता है धरती की काया और खिल उठती है धरती पाकर के नव-जीवन इस सुंदर मधुमास में। न अधिक गर्मी न अधिक सर्दी वाली इस सुहावनी ऋतु की अद्वितीय आभा में खिल उठता है हरमन। फूट पड़ती है नव-कौंपल, नव कलियां आशा और विश्वास की हर तरू, हर डाल पर।
खेतों में दूर-दूर तक खिली पीली सरसों देखकर पंक्तियां याद आती है -
‘मखमल के झूले पड़े,
हाथी सा टीला।’
तरूवर के कोमल- मखमली पत्तों के मध्य झांकती है कलियाँ और खिले फूल। उस पर वसंत के सौन्दर्य को बढ़ाती चंचल,मनमौजी अनोखी और मंद-सुंगध लिए शीतल-पवन। इसी पवन की चंचलता को दिए थे शब्द कैदारनाथ अग्रवाल ने और उनके शब्दों की माला पहन पवन गा उठी -
हवा हूँ, हवा हूँ, वसंती हवा हूँ,
सुनो बात मेरी अनोखी हवा हूँ।
बड़ी बावली हूँ, बड़ी मस्त मोला,
नहीं कुछ फिकर है,बड़ी ही निडर हूँ।
जिधर चाहती हूँ, उधर घूमती हूँ।
मुसाफिर अजब हूँ,
हवा हूँ, हवा हूँ वसंती हवा हूँ।
तरूवर की शाखों पर लदे पुष्प और धरती की हरितिम काया। फूलों की मंद-सुगंध और उन पर मंडराते भंवरे, तितलियों को देखकर अंगड़ाई लेती धरती पर ही स्वर्ग का आभास होता है।
वसंत के सौन्दर्य को निहारती आम्र-मुकुट सी मंजरियाँ और कोकिल का मधुर गान। वसंत के स्निग्ध सौंदर्य के बीच अंगारे सा दहकता पलाश और पीली आभा लिए अमलतास को देखकर ये बात सत्य जान पड़ती है कि कामदेव के घर पुत्र वसंत के जन्म पर प्रकृति ने नृत्य कर गाया था- ‘‘ मदन -महीप जू बालक वसंत,
प्रातः हि जगावत गुलाब चटकारि दे।’’
चम्पा-चमेली, गैंदा-गुलाब की यत्र-तत्र बिखरी मोहक छटा। चारों ओर उमंग-उल्लास और मादक सौन्दर्य से सजी नव वधु-सी प्रकृति को देखकर मेरा मन गा उठता है-
धानी सी धरती पर देखो,अद्भुत मस्त नज़ारा है,
नीलगगन भी झुका प्रेम में धरती पे दिल हारा है,
पात-पात सिन्दूरी आभा, हँसे-फूल हर डाली पर
मस्त डालियाँ डोल रही,कोई छेड़ रहा इकतारा है।
माना जाता है कि वसंत पंचमी के दिन ही ब्रह्मा ने सृष्टि की रचना की थी।यों तो बसंत पंचमी से पूर्व ही वसंत ऋतु फेंक चुकी होती है धरती पर अपना सौन्दर्य-पाश किंतु वसंत ऋतु का प्रारंभ माना जाता है पंचमी के दिन।
माना जाता है कि आज ही के दिन ज्ञान की देवी सरस्वती का जन्म हुआ था इसीलिए वसंत पंचमी के दिन सरस्वती की पूजा-अर्चना की परम्परा है। वसंत पंचमी का दिन ही महाकवि निराला की जयंती के रूप में मनाया जाता है।
इतिहास उठाकर देखें तो पता चलता है कि वसंत पंचमी के दिन ही गुरु-गोविन्द सिंह के दोनों पुत्रों ने धर्म-रक्षा के लिए बलिदान दिया था।
स्वास्थ्य की दृष्टि से भी इस ऋतु को ही श्रेष्ठ माना जाता है। हर तरफ बिखरा सौंदर्य अचेतन मन में भी जान डालते हुए मानव मन में उत्साह, उल्लास और प्रसन्नता का संचार कर जीवन में सकारात्मक प्रभाव डालता है।
वैश्विक महामारी कोरोना के कारण अस्त-व्यस्त जन-जीवन भी अब पुनः लौटने लगा है पटरी पर। महीनों से बंद पड़े विद्या मंदिर में बजने लगी है बाल्य हास्य की मृदुल घंटियां और खिलने लगे हैं पुष्प इसीलिए मन में यह विचार आता है -
भूली धरती दर्द को, पूरी होती आस,
खुशियों वाले रंग लें आया है मधुमास।

सुनीता बिश्नोलिया
जयपुर