Gumnaam - Murder Mystery - 5 in Hindi Crime Stories by Kamal Patadiya books and stories PDF | गुमनाम : मर्डर मिस्ट्री - 5

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गुमनाम : मर्डर मिस्ट्री - 5

अजय पुलिस स्टेशन जाकर सबसे पहले विक्रम की फोटो हर पुलिस स्टेशन और साइबर सेल में भेज देता है। बाद में, अजय अपनी कुर्सी पर बैठकर शांति से सोचता है कि यह साला विक्रम..आखिर चाहता क्या है?? तभी सब इंस्पेक्टर राणे हाथ में एक लिस्ट लिए केबिन में दाखिल होता है। राणे अजय से कहता है कि "सर!! विक्रम की last 2 महीने की call record आ गई है।"
"राणे!! तुमने call list check की?"
"हां!! सर!!"
"कोई खास बात??"
"लिस्ट में से 2-3 नाम हाथ आये है।"
"कौन है वो लोग?"
"एक तो डॉक्टर का बेटा जय जो एक्सीडेंट में मारा गया था।"
"ये डॉक्टर का बेटे का कंपाउंडर से क्या लेना देना?" अजय सोचते हुए बोलता है।
"यही मैं सोच रहा था सर!!! भला डॉक्टर का बेटा, अपने पिताजी के हॉस्पिटल के कंपाउंडर को किस लिए कॉल करता होगा?"
तभी अजय को याद आता है कि जब विक्रम के रूम की तलाशी ली थी तब उसके रूम की दीवारों पर बाइक और बाइकर्स की तस्वीरें थी और डॉक्टर का बेटा भी रेस का शौकीन था इसलिए शायद दोनों एक दूसरे को जानते होंगे।
"दूसरा नाम किसका है?"
"बाबूराव कदम"
"क्या?? अपने शहर का मशहूर बिल्डर बाबूराव?"
"हां...। सर!!!"
"लेकिन बाबूराव का इस विक्रम से क्या लेना देना होगा?'
"सर!!! बाबूराव का भी और उसकी बेटी मुस्कान का भी।"
"उसकी बेटी मुस्कान? क्या... मतलब?"
"यह विक्रम और मुस्कान दोनों आपस में घंटों तक बातें किया करते थे। मुस्कान का फोन नंबर भी विक्रम की कॉल लिस्ट में है।"
"मुस्कान का तो ठीक है लेकिन यह बाबूराव इस विक्रम को इतनी कॉल क्यों किया करता था?"
"सर..!! यह बाबूराव बिल्डर पहले चाय बेचा करता था। उसने अपने फ्रेंड सर्कल से पहले पैसे उधार लेकर कंस्ट्रक्शन का बिजनेस शुरू किया था। पहले छोटे-मोटे मकान बनाता था बाद में, उस में कामयाबी मिलती गई तो वह बड़े बड़े बिल्डिंग के प्रोजेक्ट बनाने लगा। उसके लिए वह बड़े बड़े लोगों से फाइनेंस लेता था। उसकी फाइनेंसर लिस्ट में अपने मिस्टर रोय, मिस्टर चड्ढा और डॉक्टर प्रधान भी सामील है।"
"क्या बात कर रहे हो? तब तो इस बाबूराव पर नजर रखनी पड़ेगी। राणे, तुम एक काम करो तुम इस बाबूराव की बेटी पर नजर रखो वो कहां जाती हैं? क्या करती हैं? इसकी पूरी जानकारी मुझे दो। तब तक मैं इस बाबूराव की कुंडली निकलता हूं।"
अजय और सब इंस्पेक्टर राणे बाबूभाई और उसकी बेटी पर नजर रखते है। चार-पांच दिन बाद अजय बाबूभाई के काले कारनामों की लिस्ट निकालता है और उससे मिलने उसकी कंस्ट्रक्शन साइट पर पहुंचता है। बाबूभाई उसको अपनी ऑफिस में बिठाते है और कहते हैं कि
"आइए सा'ब!!! आइए .....वेलकम। बाबूभाई की कुटिया में आपका स्वागत है। बताईए.... क्या लेंगे आप?? चाय, कोफी, ठंडा..... अरे .... ओ... पकिया.... साहब के लिए ठंडा लेकर आओ।"
"बाबूभाई .... आपका फाइनेंस लेवल बदल गया लेकिन आप की बोली नहीं बदली। यह चाय बेचते बेचते आप मकान और फ्लैट कैसे बेचने लगे?"
"बस!!! सा'ब .... आप जैसे दोस्तों की दुआओ की बजह से।"
"लेकिन मानना पड़ेगा बाबूभाई पिछले 10-15 सालों में आप ने काफी तरक्की कर ली है। कोई लॉटरी निकली थी क्या?"
"सब ऊपरवाले की मेहरबानी है साहब!!! अच्छा बताइए कैसे आना हुआ?"
"एक केस के सिलसिले में आया हूं, आपको तो पता ही होगा। मिस्टर रोय, मिस्टर चड्ढा और डॉक्टर प्रधान का मर्डर हो चुका है।"
"हां.... साहब!!! उनके बारे में अखबार में बहुत पढ़ा था, सुनकर बहुत ही दुख हुआ था। तीनों से मेरा काफी अच्छे रिश्ते थे।"
"कैसे रिश्ते?"
"बिजनेस वाले..."
"बिजनेस वाले या फाइनेंस वाले?"
"आप जो भी कह लो। वैसे आप यह सब कुछ क्यों पूछ रहा है?"
"पूछना पड़ता है बाबूभाई। आज का टाइम ही ऐसा है। पैसों के लिए भाई भाई से लड़ पडता है। बाप बेटे के बीच झगड़ा होता है। दोस्त दोस्त का खून कर देता है।"
"हां... होता होगा लेकिन आप यह सब मुझसे क्यों कह रहे हो?"
"क्योंकि इस केस में मुझे आपका फायदा भी नजर आ रहा है।"
"कैसा फायदा? सा'ब..."
"आपने मिस्टर रोय, मिस्टर चड्ढा और डॉक्टर प्रधान से फाइनेंस लिया था।"
"हां ..लिया था लेकिन वह तो मैं कंस्ट्रक्शन करने के लिए फाइनेंस सबसे लेता रहता हूं। उनके अलावा भी मेरे पास कई और फाइनेंसर है।"
"क्या उनके परिवार वालों को आपके इस बिजनेस डील के बारे में पता है?"
"वह मुझे कैसे मालूम होगा... सा'ब"
"अच्छा यह बताइए... आपके हिसाब से आपको उनको पैसे कब तक चुकाने थे?"
"माफ कीजियेगा साहब, वह तो मेरे CA को पता होगा।"
"बाबूभाई... मैंने यह सुना है कि पिछले 3-4 सालों से कंस्ट्रक्शन की लाइन में बहुत ही मंदी चल रही है।..। क्या यह बात सही है?"
"हां... यह बात सही है।"
"और इसी वजह से आपकी 3-4 साइट पर भी काम बंद है और वह प्रोजेक्ट लटके हुए हैं।"
"बिजनेस में तेजी और मंदी तो चलती रहती है। साहब..."
"हां.... लेकिन पिछले साल यह अफवाह भी मार्केट में चली थी कि बाबूभाई की कंट्रक्शन कंपनी भी अब उठनेवाली है।"
"अफवाह फैलाने वाले अफवाह फैलाते हैं लेकिन मुझे उससे कोई फर्क नहीं पड़ता।"
"लेकिन मिस्टर रोय, मिस्टर चड्ढा और डॉक्टर प्रधान को फर्क पड़ा था। बाबूभाई, हमने छानबीन की है जिसके मुताबिक वह आपसे अपने पैसे वापस करने की डिमांड कर रहे थे और हमने यह भी सुना है कि आपने उन सबको देख लेने की धमकी भी दी थी।"
"साहब...मै कोई गुंडा नहीं हूं। सीधा-साधा बिल्डर हूं। यह बात सच है कि उसने मुझसे पैसे मांगे थे बदले में मैंने उनसे थोड़े दिनों की और मोहलत मांगी थी, जो उन्होंने मुझे दे दी थी।"
"आपने उन तीनों से कितना फाइनेंस लिया था?"
"करीबन 8-10 करोड़ होंगे।"
"बाबूभाई इतने रुपए काफी होते हैं, किसीका मर्डर करने के लिए?"
"यह क्या कह रहे हैं? सा'ब, अगर मुझे उनको पैसा लौटा नहीं होते तो मैं उनसे मोहलत ही क्यों मांगता।"
"उन सबको ऊपर पहुंचाने के लिए...."
"क्या?... ऊपर पहुंचाने के लिए? मतलब क्या... कहना क्या चाहते हैं आप।"
"बाबूभाई,,, अब छुपाने से कोई फायदा नहीं होगा। मैंने जांच की है उसके मुताबिक आपको उनको 30-40 करोड रुपये देने थे। आपके पास उसको देने के लिए कुछ भी नहीं था। आप ने मोहलत तो मांग ली थी लेकिन उनको पैसे कैसे चुकाए ये आपके सामने बड़ा प्रश्न था। इसलिए आपने विक्रम की मदद से उन सबको अपने रास्ते से हटा दिया ताकि आपको पैसे चुकाने ना पड़े।"
"विक्रम? कौन विक्रम?? मैं किसी विक्रम फिक्रम को नहीं जानता।"
"आप बहुत ही अच्छी तरीकें से उसको जानते हो और फोन पर कई बार बात भी कर चुके हो।अब भी अगर आपको कुछ याद नहीं आ रहा है तो मैं आपको बतादू कि वो आपकी बेटी का आशिक है।"
"जबान संभाल कर बात करो इंस्पेक्टर.... तुम इंस्पेक्टर हो इसका मतलब यह नहीं है कि तुम कुछ भी बकवास कर लो।"
"बाबूभाई!!! मैं जो भी कह रहा हूं सबूतों के आधार पर कह रहा हूं। विक्रम की कॉल डिटेल्स में से उसने सबसे ज्यादा आपकी बेटी से बात की है और उसनें आपसे भी बात की है।"
"पर मैं सच कह रहा हूं। मैं किसी भी विक्रम को नहीं जानता, ना ही कभी उससे बात की है और ना ही कभी उससे मिला हूं। चाहे तो आप मेरा फोन नंबर चेक करवा सकते हैं।"
"अपने दूसरे गुप्त नंबर से आपने बात की है जो आपके नाम पर रजिस्टर है।"
"कौन सा गुप्त नंबर? मेरे नाम से दूसरा कोई नंबर ही रजिस्टर नहीं है।"
"तो यह 99xxxxxx66 आपका नंबर नहीं है।"
"नहीं यह मेरा नंबर नहीं है। आपको कुछ गलतफहमी हुई है।"
"बाबूभाई, यह नंबर आपके नाम पर रजिस्टर है।"
"मुझे इसके बारे में कुछ पता नहीं है। शायद किसी ने मेरे डॉक्यूमेंट का इस्तेमाल करके कार्ड लिया होगा। आप पता करवा लीजिए।"
"वो तो मैं पता करवा लूंगा बाबूभाई!! जरा यह बताइए कि आपकी बेटी मुस्कान कहां है?"
"वह लंदन पढ़ाई करने के लिए गई है।"
"पढ़ाई करने के लिए गई है या आपने उन दोनों को कहीं भेज दिया है।" अजय ऊंची आवाज में बात करते हूए कुर्सी मे से उठता है।
"आप पुलिस वाले बहुत ही जल्द शक कर लेते हैं। पहले आप शांति से बैठीये है अगर आपको यकीन नहीं होता तो मैं आपसे उसकी बात करवा देता हूं।" बाबूभाई मुस्कुराकर जवाब देते है।
"अच्छा.... जरा बात करवाइए उससे।" अजय कुर्सी पर बैठते हुए कहता है।
बाबूभाई अपने बेटी को लंदन फोन लगाते है और अजय से उसकी बात करवाते हैं।
"हेलो बेटी, में पापा बोल रहा हूं। मेरे ऑफिस में इंस्पेक्टर अजय आये हुए है। वह तुमसे कुछ बात करना चाहते है।" ऐसा कहकर बाबूभाई अजय को फोन देते हैं।
"हेलो, मिस मुस्कान।"
"हेलो सर!!! बताइए आप क्या पूछना चाहते हो?"
"मुस्कान, मुझे यह बताओ कि विक्रम से तुम्हारा क्या रिश्ता है?"
"जी सर!! वह मेरा दोस्त था।"
"दोस्त था... मतलब?"
"उससे मेरी दोस्ती थी लेकिन उसकी बुरी आदतों की वजह से मैंने उससे दोस्ती तोड़ दी थी।"
"कितनी गहरी दोस्ती थी?"
"कितनी गहरी.... मतलब?"
"क्या तुम अपने हर दोस्त से दिन में दो-तीन घंटे बात करते हो? विक्रम की कॉल डिटेल्स से मुझे पता चला है कि तुम लोग दिन और रात में दो-तीन घंटे तक बात किया करते थे।"
"जी.... सर ....वो ....."
"क्या तुम्हारे पापा को तुम्हारी दोस्ती के बारे में पता था?"
"नहीं सर!!! पापा को इस बारे में कुछ पता नहीं था।"
"तुम विक्रम से कैसे मिली?"
"सर हमारा फ्रेंड ग्रुप है, जो रात को मिलता था।"
"Bikers Boys & Girls"
"हां सर!!! हम लोग रात को हाईवे पर अपने अपने बाइक लेकर निकल जाते थे लेकिन जबसे एक हादसे में डॉक्टर अंकल के बेटे जय की डेथ हुई थी तब से पापा ने मुझको बाहर निकलने से मना कर दिया था और बाद में, लंदन पढ़ाई करने के लिए भेज दिया था।"
"लंदन जाने के बाद क्या विक्रम से तुम्हारी बात हुई थी?"
"नहीं सर!!! बल्कि उसको तो पता ही नहीं है कि मैं लंदन में हूं।"
"मुस्कान, अब मेरी बात गौर से सुनो, तुम्हारे उस दोस्त विक्रम ने एक नहीं बल्कि 4-4 मर्डर किए है।"
"यह आप क्या कह रहे हो? सर! विक्रम ऐसा बिल्कुल नहीं था, हां..। उसकी आदते खराब थी लेकिन वह किसी का खून कर सकता है, यह मैं कभी सपने में भी नहीं सोच सकती।"
"उसने यह सब किया है। अच्छा... विक्रम ने कभी तुमको मनी क्राइसिस के बारे में बताया था?"
"हा..... लेकिन पैसों के लिए वह किसी का खून नहीं कर सकता।"
"अच्छा तुम जरा संभल कर रहना और विक्रम तुम्हें अगर कांटेक्ट करने की कोशिश करे तो मुझे बताना। मैं अपना कार्ड तुम्हारा पापा भी ऑफिस में छोड़कर जा रहा हूं। bye & take care"
"ok...sir...bye"
अजय बाबूभाई को उसका मोबाइल देते हैं। बाबूभाई अजय की और मुस्कुराते हुए देखते हैं।
"इतना मत मुस्कुराया बाबूभाई!! क्योंकि जिस दिन विक्रम मेरा हाथ लग गया, उस दिन आप नहीं बचोगे।"
"जाहिए ....जाहिए ...इंस्पेक्टर साहब!!! पहले सबूत लेकर आइए फिर हम बात करेंगे।"
अजय गुस्से में अपने कुर्सी से उठता है तभी कोल्डड्रिंक्स वाला कोल्डड्रिंक्स लेकर केबिन में दाखिल होता है।
"इंस्पेक्टर साहब!!! कोल्डड्रिंक तो पीके जाइए, आपका दिमाग कुछ ठंडा हो जाएगा।" बाबूभाई अजय की ओर देखकर हसते हुए कहते हैं।
"ये ठंडा आप ही पीजिए बाबूभाई, क्योंकि जेल में आप ये पीने को तरस जाएंगे।" ऐसा कहकर अजय अपने कैप पहनकर बाबूभाई की केबिन से निकलता है।
अजय जब पुलिस स्टेशन पहुंचता हैं तभी उसको बाबूभाई की ऑफिस से फोन आता है कि बाबूभाई की अपनी ही केबिन मे हार्ट अटैक से मौत हो गई है।अजय तुरंत ही पुलिसवालो और फॉरेंसिक वालों को लेकर बाबूभाई की कंस्ट्रक्शन साइट की ऑफिस पर पहुंचता है।


क्रमशः