Immoral - 31 in Hindi Fiction Stories by suraj sharma books and stories PDF | अनैतिक - ३१

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अनैतिक - ३१

मैंने ऑफिस से २-३ दिन की छुट्टी निकला ली।। माँ, पापा, अंकल आंटी को घर भेज दिया था, केशव भी चला गया. मैंने रीना से कहा कशिश को भी घर ले जाओ..मै और किशोर दोनों हॉस्पिटल में थे. आज ऑपरेशन हुए एक दिन हो गया था पर अब एक निकेत को होश नहीं आया..

अगले दिन जो हुआ वो मै ज़िन्दगी भर नहीं भूल सकूँगा. अगले दिन रात को कशिश, रीना, किशोरे और मै हम सब ऑपरेशन के बहार सो रहे थे, रात का वक़्त था मैंने कशिश और रीना से घर जाने को कहा पर वो नहीं जाना चाहते थे.. किशोर ने उन्हें बहोत समजाया तब वो चले गये ..अब हॉस्पिटल में किशोर और मै ही थे..किशोर को सिगरेट की आदत थी वो अक्सर आधे घंटे के लिए हॉस्पिटल के बाहर चला जाता था ..रात के २ बज रहे थे, किशोरे बाहर चला गया।।

मै निकेत की रूम की ओर जाने लगा सोचा एक बार देख कर आ जाऊ..मैंने जैसे ही उसके रूम का दरवाज़ा खोला वो हल रहा था..में भाग कर पास में गया, वो मुझे देख कर प्यारी हसी दे रहा था, अब वो पहले वाले निकेत नहीं लगा रहा था..मै जैसे ही डॉक्टर को आवाज़ देने मुड़ा, निकेत ने मेरा हाथ पकड़ लिया..वो इशारे से मुझे बैठने के लिए बोल रहा था..मै बैठ गया..

उसकी आवाज़ बहोत धीरे निकल रही थी...उन्होंने पहली लाइन जो कही वो सुनकर मेरे हातो के बाल खड़े हो गये,

सुन, मेरा एक काम करेगा?

हाँ भैया बोलो..

ये जो ऑक्सीजन है, इसे निकाल दे..

क्या बोल रहे हो भैया आप.. मै ऐसा नहीं कर सकता..

मै जीकर क्या भी क्या करू? मैंने इतने बुरे काम किया है की अब बची जिंदगी मै किसी के सामने सीर उठाकर भी नही देख सकूँगा..

कुछ नहीं होगा भैय्या, आपको आपकी गलतियों का एहसास है ये ही बड़ी बात है। और रही बात लोगो की तो आप मेरे साथ जर्मनी चलो हम वाहा फिर से नयी ज़िन्दगी शुरू करेंगे

नहीं, वैसे भी मै थोड़े दिनों बाद मरने ही वाला हूँ तो अभी मरा तो भी कोई फर्क नहीं पड़ेगा, मेरा दर्द काम होगा।।

क्यों मरोगे आप थोड़े दिनों बाद..

मुझसे वादा कर तू किसीको नहीं बताएगा..

हाँ वादा करता हूँ, अब बताओ?

देख अगर मै बच गया तो जिनके पैसे उधार है वो लोग नहीं छोड़ेंगे, तू नहीं जानता दुनिया के किसी भी कोने में छूप जाऊ पर वो पता लगा लेते है, बहोत बड़े लोग है वो..और अगर उनसे भी बच गया तो भी...

तो भी क्या भैय्या..?

मुझे कैंसर है..

क्या? आपने घर पर बताया क्यूँ नही?

क्या फर्क पड़ता है..ज्यादा से ज्यादा और १-२ साल जिऊंगा

नहीं भैया हम उसका इलाज भी कर लेंगे

नहीं कर सकते लास्ट स्टेज पर है।।

आज तक मैंने तुझसे कुछ नहीं माँगा, और फिर तू है ना माँ पपा का बेटा, तू जर्मनी से जब भी आता था तूने तेरे माँ पापा और मेरे माँ पापा के लिए एक जैसी चीज लायी।। बेटा होने का फ़र्ज़ तो तूने निभाया, मैंने तो हमेशा उन्हें सिर्फ दुःख ही दिया है. ना तो किसिका बेटा बन सका, ना ही भाई और ना ही पति..मैंने कशिश को बहोत मारा, परेशान किया ..पर उसने आज तक कुछ नही कहा..मरना तो मुझे वैसे भी है और अगर १-२ और जी लू तो शरम से रोज मरूँगा, सिर्फ मै नही मेरे पापा, माँ, कशिश, रीना इन सबके मरने से अच्छा है मै ही मर जाऊ..मुझे पता है तू घर संभाल लेगा..देख अब वक़्त नहीं है..जल्दी कर...सबका ध्यान रखना

नहीं भैया मेरी आँखे भर आई ..मै ऐसा नहीं कर सकता

देख मै हात जोड़ता हूँ ..वो लोग पैसे के लिए किसीको नही छोड़ेगे, उस से अच्छा मेरा मरना ही ठीक है..

मै उनके गले लग गया, और मैंने ऑक्सीजन निकाल दिया..थोड़े देर बाद उनकी साँसे....और मै ऑक्सीजन फिर से लगा कर बाहर आ गया..

१० मिनिट बाद किशोर आया ..मै अपने आंसू छुपान की बहोत कोशिश कर रहा था ..ये मैंने क्या कर दिया? क्या मैंने सही किया? ..अगर मै उन्हें नहीं मारता तो वो वैसे भी मर ही तो रहे थे, मैंने तो उनका दर्द और कम कर दिया..भगवान को पता है मैंने कुछ गलत नहीं किया..

मैंने तो कितनी बार कोशिश की थी, निकेत सुधर जाए पर किस्मत को कुछ और ही मंजूर था ..मै ये सब सोच ही रहा था की सबेरे के ८ बज गये..सारे घर वाले हॉस्पिटल आ गये..अंकल ने जब रूम में देखा तो तुरंत डॉक्टर को बुलाने भागे और डॉक्टर ने सिर्फ "आय ऍम सॉरी" कह कर चले गये ।।