Immoral - 22 in Hindi Fiction Stories by suraj sharma books and stories PDF | अनैतिक - २२

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अनैतिक - २२

दिन की शिफ्ट होने के कारन मुझे सबेरे जल्दी उठना पड़ा, फटाफट नाश्ता कर मै अपने काम में लग गया. पापा भी घर का सामान लाने बाहर चले गये, माँ किचेन में थी तभी मुझे रीना का कॉल आया..

थैंक्स यार..

मैंने कहा क्यूँ?

कल तूने जो किया, आज बात हुए थी माँ से उन्होंने बाते मुझे, कैसे तूने कशिश को हॉस्पिटल ले जाने में पापा की मदद की

अच्छा तो अब हमारे दोस्ती में थैंक्स एंड सॉरी भी होने लगा

ऐसी बात नहीं पर, पर अगर तू ना होता तो शायद पापा को कशिश को हॉस्पिटल ले जाने में बहोत तकलीफ होती..तुझे पता है पिछले साल ही पापा की हार्ट सर्जरी हुए है

क्या? तूने बताया नहीं मुझे

क्या बताती? तू जर्मनी में था, सोचा तुझे क्यूँ टेंशन देना और वैसे भी कोई रिस्क वाली बात नहीं थी

पापा की बात रिस्क वाली नहीं थी पर निकेत भैय्या की? तूने वो भी बताना ज़रूरी नहीं समझा.. तुझे याद है बचपन हम कपडे भी खरीदने जाते थे तो एक दुसरे को साथ लेकर जाते थे और अब तू मुझसे इतनी बड़ी बाते छुपाने लगी..तू सच में बड़ी हो गयी रीना ..

थोड़ी देर उसने कुछ रिप्लाई नहीं किया और १० मिनिट बाद उसका कॉल आया, वो रो रही थी..मुझे लगा शायद मैंने कुछ गलत कह दिया हो

सॉरी यार, पर तू बता क्या बताती मै भैय्या के बारे मे, क्या मै तुझे अपने भाई की बुराई खुद के मुह से करती, तूने तो सिर्फ कल ही उसे ऐसा देखा है पर हमने और हमसे ज्यादा कशिश ने बहोत सहन किया है उसे...पापा के डर से उसके दोस्तों का घर आना तो बंद हो गया पर उसकी आदते नहीं छुट पायी..वैसे मै आ रही हूं आज फिर हम बैठ कर बात करते है..

मुझे मेनेजर का कॉल आ रहा था इसिलए मैंने सिर्फ "चल ठीक है बाय" कहकर कॉल रख दिया..

कुछ २-३ घंटे बाद जब मेरा ध्यान टेबल पर पड़ी उस परची पर गया तो मैंने सोचा उनके यहाँ दे आता हूँ और वैसे भी मुझे कशिश को मिलना था, देखना था की वो कैसी है. मेरा काम भी ख़त्म होने आया था मैंने फटाफट सारा काम ख़त्म किया. शाम के ६ बज गये थे, मै परची देने उसके यहाँ गया तो अंकल अपने किसी काम से बाहर गये हुए थे और आंटी हॉल में बैठी थी, मैंने उन्हें दवाई की परची दी और वापस आने के लिया मुडा तो आंटी ने कहा, "बेटा रीना से नहीं मिलेगा..

आ गयी वो? कहा है आंटी रीना?

कशिश के कमरे में, जा मिल ले उस से

वैसे भी मुझे कशिश को देखना तो था ही पर मै सिर्फ कशिश से मिलने उसके कमरे में नहीं जा सकता था, शायद इस बार भगवान् ने भी मेरी मदद की, मै रीना को मिलने कशिश के कमरे में जाने लगा, कशिश के कमरे के पास मुझे निकेत की आवाज़े आ रही थी, मै जैसे ही रूम के दरवाज़े तक गया मुझे निकेत और कशिश बात करते दिखे और रीना वह नहीं थी.

निकेत कह रहा था," सॉरी जान, मेरे वजह से तुमरे पैर में कांच लग गया, पर मै मारना नहीं चाहता था.बोतल हात से छुट गयी और सीधा तुम्हरे पैरो में ...

बस मै इतना ही सुन सका, कशिश बेड पर बैठी थी और निकेत निचे उसका हात पकडे हुए, मुझे ऐसे उन दोनों के बिच में जाना सही नही लगा, मै जैसे ही दरवाज़े से मुडा, पीछे से रीना आ रही थी उसने मुझे देख कर जोर से, "हाय" हाउ आर यू? कहा,

हम दोनों कशिश के रूम के दरवाज़े के पास ही खड़े थे. जैसे ही कशिश और निकेत ने रीना की आवाज़ सुनी वो मुझे देखने लगे तब तक रीना रूम में आ चुकी थी और मै अब भी दरवाजे के पास ही खड़ा था..

मै ठीक हूँ, कहकर मै वापस जाना चाहता था पर रीना ने ये कहकर रोक लिया आओ ना अन्दर बैठथे है, भैय्या भी है,..थोड़ी देर बाते करते है..शायद कशिश भी ये ही चाहती थी, उसने आँखों के इशारे से मुस्कुराते हुए मुझे अन्दर बुलाया पर ना जाने क्यूँ निकेत को वहां देख मै अन्दर नहीं जा सका।।

"नहीं मुझे काम है" कहकर मै घर आने के लिए मुड़ा, शायद कशिश समज गयी थी की मैंने निकेत की उसकी बाते सुनली है..मैंने बिना किसी के ओर देखे वापस अपने घर आ गया ...