Immoral - 21 in Hindi Fiction Stories by suraj sharma books and stories PDF | अनैतिक - २१

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अनैतिक - २१

हम हॉस्पिटल से निकले, अब कशिश को मैंने पीछे बिठा दिया था और मै अंकल के पास सामने वाले सीट पर बैठा था, मै बार बार कशिश को देख रहा था शायद उसे नींद का इंजेक्शन दिया गया था।। वो नींद में जा रही थी, तभी मेरा ध्यान अंकल पर गया, उनके आँख में पानी था...मै समझ गया था की उन्हें कितनी शर्मिंदगी हो रही होगी अपने बेटे के वजह से, पर उसमे उनकी तो कोई गलती नहीं थी, हर बार बच्चो की गलतियों का दोष हम माँ बाप को नहीं दे सकते. हर माँ बाप अपने बच्चो को अच्छे संस्कार ही देते है, कोई नहीं चाहेगा की उनका बेटा या बेटी समाज की नज़र में बुरे बनकर रहे पर हम सिर्फ अपने बच्चो को तब तक ही नियंत्रण कर सकते है जब तक वो छोटे है, बड़े होने के बाद ये बच्चो का काम होता है सही और गलत में फर्क समझना और ये ही सही-गलत, अच्छे-बुरे दोस्तों की पहचान मै निकेत को कराना चाहता था पर आज जो हुआ उसके बाद मै भी समझ गया था की अब बहोत देर हो चुकी थी।।

उसे समझाना मानो न मुमकिन सा था, वो पूरी तरह पैसा, लड़कियां, और शराब के नशे में डूब चूका था. ५ मिनिट के बाद अंकल की नाम आँखों ने भी आंसू बहाना बंद कर दिया था ,मैंने अंकल से बात करने की कोशिश की पर मुझे ये भी डर था कही वो मुझे गलत न समज ले क्यूँ की मै जानता था इस हालत में उन्हें कुछ भी कहना जलेवे घाव पर नमक छिडकने जैसा था, मै ख़ामोशी से बस उनके हात पर हात रख कर उन्हें सांत्वना देने की कोशिश कर रहा था.

अंकल ने कहा-"बेटा, सच कहता हूँ, मैंने कभी निकेत को कुछ गलत नहीं सिखाया, उसकी माँ ने तो बचपन से लेकर आज तक उस पर हात भी नहीं उठाया और ना ही मुझे कभी उस पर हात उठाने दिया"..

मै कहना चाहता था, ये ही तो गलती की आप लोगो ने अगर उसकी पहली गलती पर ही उसे रोक लेते तो आज वो इतना बुरा या शायद इतना गिरा हुआ इन्सान नहीं बनता पर मै ये कह नहीं सका, मैंने सिर्फ कहा,
"कोई बात नहीं अंकल, मै भैय्या से बात करूँगा, कोशिश करूँगा की उन्हें सही गलत में फर्क करना बताऊ. मेरी बात उनको अच्छी लगी, उन्होंने सिर्फ मेरे सर पर हात रखा और हम घर पहोच गये.

कशिश पूरी तरह नींद में थी उसे नींद से जगाना सही नही होगा ये सोच कर मैंने अंकल को देखा, वो समझ गये थे की मै क्या सोच रहा हूँ. मेरे कुछ बोलने के पहले ही उन्होंने कहा, उसे उठाकर उसके रूम में सुला दे बेटा..तब तक माँ पापा भी उनके घर आ गये थे, मैंने कशिश को अपने हातो से उठाकर हॉल में ले आया पर मुझे उसका रूम नहीं पता था, आंटी ने इशारे से मुझे रूम दिखाया, मैंने माँ को साथ में चलने को कहा. मेरा अकेले ऐसा उसे रूम में ले जाना वो भी सबके सामने गलत होता, माँ भी मेरी बात मान गयी मैंने कशिश को उसके रूम में सुलाया और वापस आने लगा की तभी में नज़र बाजु वाले रूम में गयी जहा पलंग पर निकेत सो रहा था, मुझे याद है जब मै कशिश को हॉस्पिटल ले जा रहा था मैंने निकेत को देखा था वो फर्श पर गिरा हुआ था, माँ तो माँ होती होती है शायद आंटी ने अपने साहरे से उसे रूम तक लगाई थी. हम सब वह बैठे..अंकल में मुझे थैंक्स कहकर गले लगा लिया और उनकी आँखे फिर भर आई, पापा उन्हें समझाने लगे थोड़ी देर बाद, मै माँ और पापा हमारे घर आ गये मैंने उन्हें बताया डॉक्टर ने क्या कहा था, थोड़ी देर बात करने के बाद हम सब सोने चले गये.

मै रूम में अपनी टी शर्ट खोल रहा था की तभी मेरे टी शर्ट की जेब से कशिश के दवाइयों की पर्ची निचे गिरी, कल लौटा दूंगा सोचकर मै अपने पलंग पर लेट गया. ये रात मेरे लिए कभी न भूलने वाली रात बन गयी थी, आज जो हुआ उसके बाद शायद ही मै निकेत को इज्जत की नज़रो से देख सकता था..मै सारी बाते सोचने लगा, करीबन २ बजे मुझे नींद लग गयी..