Immoral - 14 in Hindi Fiction Stories by suraj sharma books and stories PDF | अनैतिक - १६

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अनैतिक - १६

कशिश को देख कर, उस से बाते कर,अब धीरे धीरे मेरा डर कम होने लगा था..एक दिन की बात है, मै अपने रूम में काम कर रहा था. मेरी शिफ्ट बदल गयी थी अब मुझे दिन में काम करना पड़ता था, उस दिन मै अपने लैपटॉप में काम कर रहा था और और पापा मम्मी खाना खा रहे थे, मैंने मेरे रूम में ज्यादा आवाज़ में गाने सुनते हुए मीटिंग की तयारी कर रहा था, कब दरवाज़े की घंटी बजी मुझे कुछ सुनाई नहीं दिया और गाने के साथ साथ मै भी अपना सुर मिलाने लगा "एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा, जैसे....बस जैसे ही नज़र कशिश पर गयी आगे का गाना आँखे बयान कर रही थी. उसने मेरी आवाज़ सुनली थी अब वो मुझे प्यारी और नशीली आँखों से देख रही थी की माँ ने उसे आवाज़ दिया और हम दोनों की नज़रे एक दुसरे से हट गयी.

मै खाना खाने हॉल में आया तब पापा ने मुझे बताया की रीना की मासी की डेथ हुइ है तो रीना के मम्मी पापा गाँव गये है, और निकेत का तो..वहा कशिश भी थी इसीलिए पापा ने आगे कुछ बोलना सही नहीं समझा, पर माँ ने बात सँभालते हुए कहा, अब २-३ दिन कशिश यही रहेगी, घर पर अकेली हो जाती, तो मैंने यहाँ बुला लिया।। बचपन के बाद आज पहेली बार मुझे माँ को पप्पी देने का मन कर रहा था पर दे नहीं सकता था, मेरे मन में तो जैसे लड्डू फुट रहे थे..पापा और मै लॉक डाउन पर बात कर रहे थे तभी भुआजी का कॉल आया पहले माँ ने बात की फिर पापा ने, पर कशिश की और मेरी नज़रे बस एक दुसरे में खोयी थी...वो किचेन से रोटी लाती और मुझे, पापा को देती..काश अगर आज माँ पापा कही और होते और सिर्फ कशिश और मै यहाँ होते ...आगे का सपना शुरू करने से पहले ही...

पापा ने कहा, "ले, भुआ का कॉल है बात करले

प्रणाम भुआजी, कैसे हो आप?

मै तो ठीक हूँ, तेरे लिए एक खुश खबरी है, जिसे सुनकर तू भी खुश हो जाएगा...

क्या बात है? खुदकी प्रॉपर्टी मेरे नाम कर रहे क्या?

चुप नालायक, मेरे बच्चे है तेरे नाम क्यों करूँ...हमेशा पैसा पैसा..

हाहा..मैंने हँसा, मै एक हात से खाना नहीं खा सकता था इसीलिए मैंने कॉल स्पीकर पर रख दिया, फिर वो कहने लगे

अच्छा सून, एक रिश्ता आया है..

क्या भुआजी, आप भी ना, माना आप खुश नहीं हो उस घर में, पर ये उम्र में आपको दूसरी शादी करना ...नहीं नहीं ...समाज के लोग क्या बोलेंगे...

चुप कर कमीने, फ़ोन स्पीकर पर है, ४० साल की उम्र में तलाक कराएगा क्या मेरा..? भुआजी की बाते सुनकर हम सब हँस पड़े, मैंने पहली बार कशिश को खुल कर हंसते हुए देखा था और शायद वहाँ भी सब ने मेरी बात सुनली थी, मुझे फ़ोन में सबके हँसने की आवाज़ सुनाई दे रही थी..

अच्छा तो पापा की..अरे नहीं! बहोत खुश है वो मम्मी के साथ, बस मैंने इतना कहा था की पापा तो शरमाने लगे पर मुझे किचेन से माँ का बेलन सीधा मेरे प्लेट में आ गया..

क्या माँ इतनी जोर से भी कोई मारता है क्या ?

फ़ोन में आवाज़ आयी ..तेरी मजाक करने की आदत गयी नहीं अब तक..अब सुन मै तेरे शादी की बात कर रही हूँ..

पता नहीं क्यूँ पर ये बात सुनकर मैंने कशिश की ओर देखा वो जैसे एक ही पल में फिर उदास हो गयी ..मुझे ये समझने में देर ना लगी की कशिश भी वो ही सपने देख रही थी जो मै देख रहा हूँ, पर वो तो शादीशुदा थी... फिर पापा ने दोस्ती का फ़र्ज़ अदा किया और भुआजी से कहने लगे, अच्छा आप लड़की की सारी डिटेल्स भेज दो हम देखते है..मै जानता था अगर पापा ये बात नहीं कहते तो भुआजी माँ को अपने बातो में लेती और इन दोनों का बस चले तो २ दिन में ही मेरी शादी करवा दे..

मैंने पापा को धीरे से थैंक्स बोला पर शायद माँ को पापा की की ये बात पसंद नहीं आयी..वो पापा को बस गुस्से से देखने लगी..हमने खाना ख़त्म किया फिर माँ और कशिश खाना खाने बैठ गये..वैसे हम रोज साथ में ही खाना खाते थे पर आज थोडा काम ज्यादा होने के वजह से माँ को देर होने वाली थी और पापा को मेडिसिन वक़्त पर लेनी थी तो हमने खाना खा लिया..

कशिश मेरे घर पर थी, इतने करीब थी।। अब कहा मुझसे काम होने वाला था..मै काम करते करते बार बार झुक कर उसे देखता और जब भी हमारी नज़रे टकराती वो मुस्कुरा देती..शायद ये ही प्यार था..मेरे लिए नया एहसास था.