Immoral - 12 in Hindi Fiction Stories by suraj sharma books and stories PDF | अनैतिक - १२

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अनैतिक - १२

सबके बहोत पूछने पर पापा ने बताना शुरू किया,

पहले तेरी माँ और सुनिता जी (रीना की मम्मी) एक ही गाँव के थे, पर सुनिता जी के शादी के बाद उनके पेरेंट्स ने गाँव छोड़ दिया. रीना की मम्मी और तेरी माँ दोनों स्कूल से बेस्ट फ्रेंड थे।। मै और रीना के पापा भी बेस्ट फ्रेंड थे, जैसे तू और रीना है, मेरी शादी के वक़्त रीना के पापा आये थे बारात में तेरे मम्मी के यहाँ और तभी उन्होंने सुनिता जी को देखा......

हम सब इतने ध्यान से सुन रहे थे जैसे मोदीजी टीवी पर फिर लॉकडाउन के बारे मे बता रहे, मज़ा भी बहोत आ रहा था, फिर...फिर क्या हुआ ....निकेत भैय्या ने पूछा...

बस फिर क्या हमारी शादी हो गयी और तुम्हारे पापा ने तुम्हारे नाना के यहाँ जाकर हात मांग लिया तुम्हारे मम्मी का, रीना के माँ पापा शरमा रहे थे ...हमें अच्छा लग रहा था ..की तभी रीना की माँ ने कहा ..बस अब हो गया...और हम सब फिर हँस पड़े.. थोड़ी देर में सबका खाना हो चूका था और रीना की फॅमिली उनके घर चली गयी थी...मै भी अपने रूम में आ गया और सोचा बहोत दिन हो गये है लूडो खेले चलो खेल लेता हूँ..बस शुरू करने वाला था की कशिश का मेसेज आ गया ..

"हाय, व्हाट डूयिंग?"

कुछ नहीं बस लूडो खेल रहा हूँ ..

चलो मै भी खेलती हूँ..

हाँ ठीक है बोलकर मैंने जैसे ही गेम शुरू किया मुझे फिर रीना का मेसेज आ गया...

अरे यार अच्छा किया तूने लूडो डाउनलोड कर लिया, चल आजा खेलते है..मै उसे बताना नहीं चाहता था की कशिश के साथ खेल रहा हूं इसीलिए मैंने सिर्फ कहा..

हाँ ठीक है, देख न और कोई होगा तो ४ लोगो में मज़ा आयेगा..

हाँ रुक न ..मै भाभी को भी लेती हूँ और मेरी सहेली भी ऑनलाइन है उसे भी साथ लेते है..

जल्दी ही सब गेम में आ गये, हमने खेलना शुरू किया.. मै रीना और उसकी सहेली की टोकन मारता पर कशिश की नही मार रहा था और शायद रीना ने ये बात देख ली थी, उसने मुझे गेम में मेसेज भेजा, हम गेम में भी बात कर सकते थे.., "भाभी की मार न, जीत जाएगी वो.."

पता नहीं पर मै नहीं मार सका लेकिन मुझे लगा अब १-२ बार तो मारना ही पड़ेगा नहीं तो कही कोई कुछ काण्ड न समझ बैठे इसीलिए मैंने मार दिया और आखिर मै जीत भी गया..उस दिन से हम रोज ३-४ गेम खेलते फिर मै काम में लग जाता. रात को कशिश से चाट बस अब ये रोज का हो गया था ..और आखिर वो दिन आ ही गया जब मै ये जानने वाला था की कशिश का परिवार कहा है, और क्या है उसकी कहानी..

मेरे बाल भी इतने बड़े हो गये थे की एक दिन माँ ने कहा बैठ इधर तेरी पीछे बालो की चोटी बाँध देती हूँ...

नहीं माँ..

क्यों नहीं? तुझे पता है बचपन में मै हमेशा तेरी चोटी रखती थी

तब मै बच्चा था पर अब बड़ा हो गया हूँ..

कितना भी बड़ा हो जा, माँ पापा के लिए तो हमेशा बच्चा ही रहेगा...पता नही क्यूँ पर इसके आगे मै कुछ बोल नहीं पाया और माँ के पास बैठ गया

माँ मेरी चोटी बनाने लगी....दरवाजे की घंटी बजी तो माँ ने बैठे बैठे कहा खुला है अन्दर आ जाओ...तब तक मेरी चोटी बन चुकी थी मै तो बस माँ की गोद में अपना सीर रख कर बाते कर रह था

मेरा ध्यान दरवाज़े की दूसरी तरफ था और दरवाज़े की तरफ मेरी लम्बी चोटी थी...

रीना, कशिश आओ बेटा बैठो..ये सुनकर मेरे अन्दर मानो एकदम करंट सा आ गया, मै फट से उठ गया

अरे वह कितना सुन्दर दिख रहा है चोटी में रीना ने कहा ...

माँ ने मेरे गाल पर प्यार से पप्पी ली और मुस्कुराकर किचेन में चली गयी, "बैठो मै कुछ खाने को लाती हूँ..

हम तीनो बैठकर बाते ही कर रहे थे की मैंने देखा कशिश के आँखों में पानी था...तब तक माँ किचेन से हॉल में आ चुकी थी, अब मुझसे राह नहीं गया और मैंने पूछ लिया क्या हुआ तुम ठीक तो हो कशिश? ..उसने छोटी मुसकुरात के साथ कहा, "मुझे काम है, मै आती हूँ और वो चली गयी" मुझे हैरानी हुए पर फिर मैंने रीना की ओर देखा क्या हुआ उसे?

तब माँ ने बताया ...उसकी माँ नहीं है ना इसीलिए वो हमें ऐसे देख कर, शायद उसे माँ की याद आ गयी...

क्या? मेरे मुह से निकला? नहीं है मतलब..?

रीना ने कहा, मै थोड़ी देर में आती हूँ, भाभी को अभी मेरी ज़रूरत है कहकर वो भी चली गयी...

अब तो मुझसे काबू नहीं हुआ और मैंने माँ को पूछ ही लिया? क्या मतलब था आपका?