शाम को जब दिनेश वापस आया तो वह परेशान था। शिवानी समझ गई थी कि वह मेड ना मिलने के कारण परेशान है।
"आप मेड ना मिलने के कारण परेशान हो!"
"हां यार , कईयों से पूछा लेकिन कहीं से कोई जुगाड़ नहीं हुआ। झाड़ू पोछे वाली तो मिल रही है लेकिन खाना बनाने के लिए कोई राजी नहीं है। 1-2 से बात की तो उन्होंने नियम कानून ही इतने बता दिए कि सुनकर लगा कि यह काम कम करेंगी और तुम्हें टेंशन ज्यादा देंगी।"
"आप भी टेंशन मत लो। सब बंदोबस्त हो गया!"
"कैसे !तुमने आस-पड़ोस में बात की थी क्या!"
"नहीं ! तुम्हारे जाने के बाद किरण आई थी। मेरी और घर की हालत देखकर उसने पूछा तो मैंने सारी बातें बता दी।
सुनकर वह बोली , मैं बना दिया करूंगी दीदी खाना!"
"शिवानी, मैंने पहले भी मना किया था। वह किराएदार है उनसे इतना मेलजोल सही नहीं। आज यहां कल कहीं और होंगे। फिर क्यों रिश्तेदारी निभानी। ऊपर से उसका आदमी ऐसा। उसके यहां काम करने की बात सुन कर , कहीं उसके जीवन में और परेशानी ना खड़ी कर दें।"
"अरे, तुम भी कहां से कहां पहुंच जाते हो। मैंने नहीं कहा। वही करना चाहती है। कह रही थी, उसके जाने के बाद कर दूंगी। वह मुझसे इतना कह रही थी। उसका अपनापन व अपने प्रति चिंता देख ,मैं मना नहीं कर पाई। कोई बात नहीं आज वह हमारे काम आ रही है। कल उसे जरूरत पड़ेगी तो हम उसकी मदद कर देंगे। इस समय हमें बहुत जरूरत है। बस आप अब ज्यादा सोच सोच कर ना खुद टेंशन लो और ना मुझे दो। हां सफाई व बर्तन वाली से मैं बात कर लूंगी पड़ोस में कई आती है।"
किरण दोनों समय का खाना बनाने के साथ साथ घर के दूसरे काम भी बखूबी संभालने लगी थी। शिवानी अगर कुछ करना भी चाहती तो किरणों उसे सख्ती से मना कर देती । उसके कारण शिवानी, रिया की तरफ से भी पूरी तरह निश्चित हो गई थी।
किरण पूरा दिन शिवानी के साथ ही बिताती और उसका बहुत ही अच्छे से ध्यान रखती।
इस बीच कई बार उसका अपने पति से झगड़ा हो चुका था।
क्योंकि वह जो काम करता, उसे अपने पर ही उड़ा देता। घर के खर्चे से उसे कोई मतलब नहीं। कई बार तो घर में
राशन ना होने के कारण खाना भी नहीं बन पाता।
शिवानी को किरण का चेहरा देख सब बातों का पता तो चल जाता लेकिन वह बार-बार उससे पूछकर उसे ओर दुखी नहीं करना चाहती थी। उसे इतना तो पता था, कोई ना कोई मजबूरी तो है इसकी। जो ऐसे आदमी के साथ निभा रही है। तो फिर क्यों उसके जख्मों को ज्यादा कुरेदना। हां वह हमेशा कोशिश करती कि जब तक वह उसके साथ है खुश रहे। साथ ही उसके मना करने के बावजूद उसके खाने-पीने का पूरा ध्यान रखती है। इसी तरह एक दूसरे के सहयोग से दिन गुजरते जा रहे थे। आखिर वह समय भी आ गया ।
आज सुबह से ही शिवानी को लेबर पेन शुरू हो गए थे। दिनेश ने उसे हॉस्पिटल ले जाने की पूरी तैयारी कर ली थी। तभी किरण भी वहां आ गई। उसने शिवानी का हाथ पकड़ा और उसके गले लग गई। मानो कहना चाह रही हो दीदी, सब अच्छा होगा। आप चिंता ना करो।
दिनेश , रिया को भी अपने साथ हॉस्पिटल ले जा रह था। यह देख कर किरण बोली "भैया आप इसे मेरे पास छोड़ दीजिए। हॉस्पिटल में अपने साथ कहां कहां लेकर घूमोगे। परेशान हो जाओगे । आप दीदी को संभालो इसकी चिंता मत करो।"
यह सुन दिनेश बोला "नहीं नहीं आप परेशान मत हो। मैं सब संभाल लूंगा।"
"क्या भैया , आपको मुझ पर विश्वास नहीं!"
"ऐसा नहीं किरण। बस कहीं तुम्हारे पति नाराज ना हो इसलिए यह ऐसा कह रहे हैं।" शिवानी बात संभालते हुए बोली।
इतनी देर में कुमार भी वहां आ गया और उनकी बात सुनकर बोला "भाभी जी, मैं इतना भी बुरा नहीं हूं। समय का तकाजा समझता हूं और मुझ में भी इंसानियत बाकी है। भाई साहब आप भाभी का ध्यान रखिए। बिटिया को किरण देख लेंगी।"
दिनेश ने शिवानी की ओर देखा तो उसने सहमति में गर्दन हिला दी।
रिया अपनी मम्मी के गले लगते हुए बोली " मम्मी आप मेरे लिए फिक्र मत करो। मैं अच्छे से आंटी के साथ रहूंगी। आप मेरे लिए एक प्यारा सा भाई लेकर आना । पापा, आप मम्मी का ध्यान रखना।"
"हां बेटा, आप भी आंटी को तंग मत करना। वैसे शाम तक तुम्हारी दादी भी आ जाएंगी। तब तक आप आंटी के साथ अच्छी बिटिया बनकर रहना।" शिवानी ने उसके सिर पर हाथ रखते हुए कहा। कहते हुए उसकी आंखों में आंसू आ गए। और वह जल्दी से गाड़ी में बैठ गई।
हॉस्पिटल जाने के लगभग 4 घंटे बाद दिनेश का फोन आ गया। उसने किरण को खुशखबरी देते हुए कहा "बेटा हुआ है।"
सुनकर किरण बहुत खुश हूं और बोली "बधाई हो भाई साहब! दीदी कैसी है और बच्चा!"
"सब सही है। " रिया भी वही पास ही खड़ी थी । उसने जब सुना कि भाई आया है तो वह फोन पर ही अपने पापा से उसे देखने के लिए जिद करने लगी।
दिनेश उसे समझाते हुए बोला "बेटा अभी तो बेबी सो रहा है। डॉक्टर आपको मिलने नहीं देंगे। दादी आने वाली है तो कल आप उनके साथ मिलने के लिए आना अपने भाई से। तब तक वो थोड़ा बड़ा भी हो जाएगा।"
"पापा, आप मुझे बुद्धू समझते हो क्या ! 1 दिन में कोई बेबी बड़ा होता है क्या! ठीक है, कल मैं दादी के साथ आऊंगी अपने भाई से मिलने। आप मेरी तरफ से उसे प्यार कर देना।"
"ओके बेटा! आंटी और दादी को तंग मत करना और खाना खा लेना।"
दिनेश और शिवानी के चेहरे पर अपने बेटे को देख एक अलग ही सुख का एहसास था। दोनों की ही नजर उस नन्ही सी जान से हट नहीं रही थी। दोनों ही इस पल को अपनी आंखों में बंद कर लेना चाहते थे। सच माता-पिता बनना दुनिया का सबसे सुखद एहसास है और उन दोनों के जीवन में तो भगवान की कृपा से यह अवसर दोबारा आया था।
शाम को शिवानी की सास आ गई थी। किरण ने आते ही उनके चरण स्पर्श किए। उसे आशीर्वाद देते हुए वह बोली "बेटी तू किरण है ना!"
"हां मां जी! लेकिन आपने कैसे पहचाना!"
"मुझे नहीं पता होगा! जिसने मेरी बहू की इतनी सेवा की भला उसको मैं नहीं पहचानूंगी। शिवानी जब भी फोन करती थी तो हमेशा तेरी तारीफ करती ना थकती। तेरे कारण ही तो मैं दिनेश के पापा की अच्छे से सेवा कर पाई। तसल्ली थी कि कोई अपना है, जो बहू को संभाल रहा है। वरना जिस दिन दिनेश ने मुझे सारी बातें बताई , मैं तो
सुनकर चिंतित हो गई थी क्योंकि वहां वह बीमार थे और यहां बहू को मेरी जरूरत थी। तेरे कारण ही मझधार में फंसी हमारी नैया पार लग पाई। अब दिनेश के पापा भी सही है और पोता व बहु भी राजी खुशी।
मैं तो रोज भगवान से तेरे लिए प्रार्थना करती हूं। मन से हमेशा आशीर्वाद निकलते हैं बिटिया तेरे लिए। भगवान तेरी हर मनोकामना पूरी करें। "
"यह तो मांजी आपका बड़प्पन है । सुख दुख में ही तो इंसान एक दूसरे के काम आता हैं। मैंने तो कुछ अलग नहीं किया।
शिवानी दीदी के मुझे पर इतने उपकार है कि उन्हें तो मैं इस जन्म में उतार भी नहीं सकती। बस आप लोगों का आशीर्वाद हमेशा मेरे साथ यूं ही बना रहे। मेरी तो भगवान से बस यही प्रार्थना है और कुछ नहीं चाहिए मुझे।"
"सच, बहु जितनी तेरी तारीफ करती थी, उससे कहीं बढ़कर है बेटी तू।"
सुनकर किरण मुस्कुराते हुए बोली
"अच्छा मांजी अब नहा धो लीजिए। तब तक मैं चाय नाश्ते का इंतजाम करती हूं। "
क्रमशः
सरोज ✍️