ANGYARI ANDHI - 2 in Hindi Fiction Stories by Ramnarayan Sungariya books and stories PDF | अन्‍गयारी आँधी - 2

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अन्‍गयारी आँधी - 2

--उपन्‍यास

भाग-2

अन्‍गयारी आँधी

--आर. एन. सुनगरया,

हेमराज को बहुत अभिमान था कि शक्ति के व्‍यक्तित्‍व के प्रत्‍येक पहलू के बारे में विस्‍तार से जानकारी रखता है। परन्‍तु शक्ति की यह प्रवृति इतनी भयानक क्रोध किस कारण से उत्‍पन्‍न होता है। यह कब से हो रहा है या कोई घटना, कोई हादसा अथवा कोई बीमारी तो नहीं पल रही इस तरह के दौरे आने की मनुष्‍य अनेकों रहस्‍यों को अपने मन-मस्तिष्‍क में छुपाये रहता है। ना जाने कब किस परिस्थिति, किस वाकिये किस काराण से वह रहस्‍य उद्घाटित हो जाये। ना जाने फलकारी हो या विघ्‍वन्‍सकारी कौन जान सकता है।

हेमराज ने निश्‍चय किया, किसी भी जरिये मालूम करके दम लेगा एवं उसका निराकरण करेगा।

अगले ही क्षण वह अपने मिशन पर कार्यरत हो गया.........

इतना तो तय है कि यह अज्ञात समस्‍या नितान्‍त निजि है, जिसकी परते खोलना कोई सरल कार्य नहीं है। इसको खोजने में जमीन-आसमान व खून-पसीना एक करना होगा। दिन-रात परिश्रम में जुतना होगा। क्‍यों ना शक्ति को उकसाया जाय कुछ रहस्‍योद्घाटन के लिये। यह एक तरीका हो सकता है। मगर अंधेरे में तीर चलाने जैसा होगा।

अतीत में कुछ ऐसी घटनाऍं अवश्‍य हुई होंगी जिनमें इसके कारण निहित होंगे। इन कश्‍माकश भरे सोच-विचार के दौरान हेमराज का चेहरा खिल उठा, ‘’हॉं शक्ति के साथ मेरी प्रथम पदस्‍थापना किस शहर में हुई थी, वहॉं भी तो शक्ति कुछ परिवारों से बहुत ही निकटता से घुल-मिल गया था। एकदम अपने निजी परिवार के समान।‘’ हेमराज गम्‍भीर मुद्रा में दिखाई देने लगा, ‘’हॉं वहॉं भी तो कुछ रियुमर उड़ा था’’ वह चौंककर उछल पड़ा, ‘’हॉं करेक्‍ट!’’ वह अपने दिमाग पर जोर डालकर, कुछ याद करने की कोशिश करने लगा। इस एकल वार्तालाप में वह काफी कुछ दिमागी राहत महसूस करने लगा। ‘’हो ना हो अतीत के उस कालखण्‍ड में कोई जहरीला वाक्‍या दफन हो, जिसका दुश्‍प्रभाव शक्ति के मस्तिष्‍क पर अंकित हो गया हो एवं अनुकूल हवा-पानी युक्‍त वातावरण पाकर जीवित हो जाता हो और इस बुरे असर से शक्ति बेसुध होकर हमलावर हो जाता हो, एवं दौरा खत्‍म होकर पुन: सामान्‍य हो जाता है।‘’

शक्ति के साथ हेमराज अनुकूल समय की ताक में रहने लगा। कब मौका मिले और बात छेड़ दे........

शक्ति का पसन्‍ददीदा कार्यक्रम निर्धारित हो गया है। आजकल वह बहुत प्रसन्‍नचित एवं उत्‍साहित प्रतीत हो रहा है। शक्ति की इस प्रफुल्‍लता को हेमराज भुनाना चाहता है। अन्‍धा क्‍या चाहे.....,शक्ति ने अपनी जिज्ञासा हेमराज पर जाहिर कर दी, कहा, ‘’अब देखना हेमराज!’’

‘’क्‍या देखना?’’ हेमराज ने टोंक दिया। शक्ति ने तुरन्‍त जबाव दिया, ‘’मेरी नाट्यकला का कमाल!’’

‘’हॉं मैं तो पहली मर्तबा ही देख रहा हूँ।‘’ हेमराज ने खुशहाल मुखमुद्रा में शक्ति को समर्थन किया।

‘’अच्‍छे–अच्‍छे कलाकार मेरे अभिनय का लोहा मानते थे। मेरा नाम सुनकर दर्शक टूट पड़ते थे, थ्येटर पर, टिकिट लेकर देखते थे।‘’ शक्ति सुनाता ही गया, ‘’क्‍या थे वे दिन जब, जिधर जाओ, मेरे प्रसन्‍सक मुझे घेर लेते थे।‘’

कुछ याद करता हुआ शक्ति बोले ही जा रहा है, ‘’पूरी मंडली परिश्रमपूर्वक अपना सर्वश्रेष्‍ठ अर्पित करते थे। प्रत्‍येक नाटक को पूर्ण जीवित दृश्‍यांकन करने में जी-जान लगा देते थे। मजा आ जाता था, जब दर्शक वाह-वाह कर उठते थे। संयुक्‍त तालियों की तड़तड़ाती ध्‍वनि ही हमारा सच्‍चा हार्दिक पुरूस्‍कार हुआ करता था। हमारी सफलता का प्रमाण-पत्र। क्‍या बताऊँ, हेमराज!’’ शक्ति भावनाओं में भावुक हो उठा।

शक्ति की दीवानगी और नाट्यकला के लिये समर्पण देखकर हेमराज को भी लगा, कितना हर्षोल्‍लासित है शक्ति! इस स्थिति का अनुकूल लाभ उठाने के लिये झट से शक्ति को याद दिला दी, ‘’इतना खुश तो मैंने आपको....।‘’ हेमराज ने उसके चेहरे के भाव पढ़े। आगे बोला, ‘’अपनी पहली पोस्टिंग के दौरान भी नहीं देखा; जबकि उस समय कितने हंसी-मजाक के माहोल में पारिवारिक तौर-तरीके से ड्यूटी करते थे।‘’ हेमराज ने अपनी तीव्रता कम करके कहा, ‘’जबकि अपन सोचते हैं कि वह दौर सबसे उत्‍साहजनक था। एकदम खुशगवार, हंसी-ठिठोली, अमन-चेन सहित सारा समय तनाव रहित गुजर जाया करता था।‘’

हेमराज ने महसूस किया शक्ति ना जाने किन ख्‍़यालों में खो गया।

........वास्‍तव में शक्ति को वे समग्र दृश्‍य, परिदृश्‍य, आमोद-प्रमोद, बात-बात पर ठिठलाती स्‍वछन्‍द खिलखिलाती हंसी, हंसते-हंसते ऑंखों में पानी पलकों पर ठहर कर कुछ पल में टपक पड़ता, मगर हंसी का सिलसिला व क्रम नहीं टूटता।

हेमराज चुप्‍प, शॉंत उसे देखता रह गया मन ही मन हेमराज सोचने लगा। अब जरूर कुछ गुप्‍त, रूकी हुयी रहस्‍यमयी गॉंठ खुलेगी। कुछ तो खुलासा होगा। शायद हेमराज अपने मिशन में सफल होने वाला है। उसकी खोज परक यात्रा सम्‍पूर्ण सम्‍पन्‍न होने को ही है। अन्‍दर ही अन्‍दर शुक्र मना रहा है, कदाचित ऐसा ही हो!

शक्ति के स्‍मृतिपटल पर अनेक धूमिल व मटमैले नजारे तथा वाक्‍यात स्‍पष्‍ट होने लगे। जिस आवासिय परिसर में शक्ति निवासरत था। उसके सामने से दो नव यौवनाऍं, एक दूसरे से लिपटते, टकराते, चीमटी काटते, प्‍यारी सी हसीन लुभाती अदाओं का मंजर लिये खिलखिलाती खनकती स्‍वर सरीता समान मचलती हंसी की फुहार वातावरण में घोलती हुई, इटलाकर गुजरती हैं। आँखों व सॉंसों में जैसे मदहोशी सी छा जाती थी। उन मदमस्‍त पलों से मुक्‍त होना कितना दुष्‍कर लगता था। कुछ ही क्षणों के सुहाने, सपनीले नजारे नजर में सहेजकर ही होश लौटता था।

शक्ति का भ्रम था, वास्‍तविकता थी या कुछ और था। ऐसा लगता था जैसे वे तितलियॉं थीं उसे कनखियों से निहार लेती है। वह भी सुन्‍दर युवा गबरू गठीला बदन, हंसमुख ऊर्जाबान सूरत का तेज उसे विशिष्‍ट लगता था। हृष्‍टपुष्‍ठ हसीन कद-काठी का मालिक जवान था। स्‍वभाविक अच्‍छा ही लगता होंगा, मन एक पल के लिये डोलता भी होगा। प्राकृतिक आकर्षण, नैसर्गिक भी हो! युवा शक्ति अपनी जवानी की दहलीज पर हुश्‍न का अधोषित आवाहन करने लाइक जिज्ञासी था। दोनों तरफ अन्‍गार धधक रही थीं। अनवरत!

‘’शक्ति! खो गये?’’ हेमराज से मुस्‍कुराते हुये, ‘’ बीत चुका वह दौर!’’

‘’वे सुनहरे दिन कहॉं बीत सकते हैं!’’ शक्ति ने दृढ़ता से, आत्‍मविश्‍वास से भरपूर शुकन की ऑंह भरकर, कहा ‘’मेहफज है, दिल-दिमाग में, वह अमूल्‍य अदृश्‍य दौलत!’’

‘’हॉं यह तो है।‘’ हेमराज ने यादों को कुरैदा, ‘’सबसे घनिष्‍ठ पारिवारिक रिश्‍ता स्‍थापित हो गया था।‘’

‘’हॉं कितना घुल-मिलकर भाईचारे से रहते थे। शक्ति अनवरत बताता ही गया, ‘’कितनी सहानुभूति, कितना अपनापन! प्रत्‍येक छोटी से छोटी समस्‍या में सब एक, मिनटों में सारी उलझनें छूमन्‍तर!’’

शहर छोटा ही था। लगभग एक-दूसरे को जानते थे। अपने काम से काम राम से राम। कोई किसी को अपने कामों में बाधा ना डाले, इसका पूरा ध्‍यान रखते थे सौहृाद्र दूषित ना हो, सब इसका ख्‍याल करके अपने-अपने काम-धन्‍धों में लगे रहते। कोई त्‍यौहार हो, शादी-विवाह हो, अथवा कोई भी सामाजिक समारोह का अवसर हो सभी मिलजुल कर सम्‍पन्‍न करते। कोई किसी से गिला-शिकवा नहीं। साजिश नहीं। दुश्‍मनी नहीं, परस्‍पर अमन-चेन ही अमन-चेन। हर तरफ खुशहाली ही खुशहाली। सुख-शॉंति ही सुख-शॉंति सारे परिवेश में रचि-बसी है, कर्ण-कर्ण में।

ऐसे व्‍योवहारकुशल आवो-हवा में किसी भी तरह का प्रदूषण, परम्‍परा से हटकर कोई भी घटना या उसकी सुगबुगाहट भी पूरे वातावरण को कसैला और तनावग्रस्‍त बना सकता है।

मनुष्‍य अपनी भावनाओं के अधीन होता है। इन्‍हें यथा सम्‍भव समय के अनुकूल नियन्‍त्रण में रखनी होती हैं।

शक्ति की सम्‍पूर्ण यादें हरि हो गईं। इस अवसर का लाभ लेना हेमराज को उचित प्रतीत हुआ, व कुछ खट्टे-मीठे अनुभवों की अनुभूतियॉं ज्‍वलन्‍त हो उठीं। शक्ति की तरु देखा उसे भॉंपने लगा। उसके चेहरे पर उभरती क्रिया- प्रतिक्रियायें पढ़ने की कोशिश करने लगा हेमराज।

शक्ति पूर्णत: मौन, मगर गम्‍भीर मंथन में लीन........हल्‍की रिम-झिम वर्षा जारी थी। शक्ति कुछ व्‍याकुलतावश, कमरे में चहल कदमी कर रहा था। जैसे उसे किसी की प्रतीक्षा हो; मगर विश्‍वास ना हो कि वह उसकी अपेक्षित प्रतीक्षा पर विराम लगाएगा, आकर तुरन्‍त। यह अन्‍दाज नहीं लगा पार रहा था.......सकारात्‍मक या नकारात्‍मक......। बेचेनी क्षण-प्रति-क्षण बढ़ती जा रही थी। वह बड़बड़ाने लगा। ‘’आखिर, मैंने तो विशुद्ध मन व आत्‍मा से चाहा है!’’ शक्ति अपने आपको अविश्‍वास के भंवर में फंसा सा महसूस करता है। स्थिरता का नितान्‍त अभाव है। कुछ निश्‍चय नहीं कर पा रहा है। उसके चारों ओर अन्‍धकार ही अन्‍धकार है। कोई उम्‍मीद की किरण कहीं से भी नजर नहीं आ रही है। करे तो करे क्‍या, किस किससे कहे अपनी उलझन कौन उसे इस तूफान से सुरक्षित निकालेगा, कुछ तय नहीं कर पा रहा है।

शक्ति को अनिर्णय की गिरफ्त में देखकर हेमराज को आभास होने लगा है कि अब वह अपने उद्धेश्‍य में सफल होने वाला है। शायद अब हेमराज को क्रोध काण्‍ड का कारण ज्ञात हो जायेगा, उसके अनुसार उसका समाधान निकल आयेगा। यह संदिग्‍ध भय से मुक्‍त हो जायेगा। देखते हैं आगे-आगे........

न्‍न्‍न्‍न्‍न्‍न्

संक्षिप्‍त परिचय

1-नाम:- रामनारयण सुनगरया

2- जन्‍म:– 01/ 08/ 1956.

3-शिक्षा – अभियॉंत्रिकी स्‍नातक

4-साहित्यिक शिक्षा:– 1. लेखक प्रशिक्षण महाविद्यालय सहारनपुर से

साहित्‍यालंकार की उपाधि।

2. कहानी लेखन प्रशिक्षण महाविद्यालय अम्‍बाला छावनी से

5-प्रकाशन:-- 1. अखिल भारतीय पत्र-पत्रिकाओं में कहानी लेख इत्‍यादि समय-

समय पर प्रकाशित एवं चर्चित।

2. साहित्यिक पत्रिका ‘’भिलाई प्रकाशन’’ का पॉंच साल तक सफल

सम्‍पादन एवं प्रकाशन अखिल भारतीय स्‍तर पर सराहना मिली

6- प्रकाशनाधीन:-- विभिन्‍न विषयक कृति ।

7- सम्‍प्रति--- स्‍वनिवृत्त्‍िा के पश्‍चात् ऑफसेट प्रिन्टिंग प्रेस का संचालन एवं

स्‍वतंत्र लेखन।

8- सम्‍पर्क :- 6ए/1/8 भिलाई, जिला-दुर्ग (छ. ग.)

मो./ व्‍हाट्सएप्‍प नं.- 91318-94197

न्‍न्‍न्‍न्‍न्‍न्‍

---क्रमश:-3