Khooni Saya - 4 in Hindi Horror Stories by FARHAN KHAN books and stories PDF | खूनी साया - Part-4

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खूनी साया - Part-4

खाना खाने के बाद सब अपने-अपने कमरे मे चले गए, अख्तर भाईजान अपना टाइपराइटर लेकर एक छोटे से कमरे कि ओर चले गए। वह कमरा बहुत ही भयानक और डरावना था। वहाँ से बाहर बगीचा नज़र आता था, भाईजान खिड़की के पास बैठ गए और अपनी नॉवेल के बारे में सोचने लगे। तभी सादिया भाभीजान आ पहुँचती है,

सादिया भाभीजान : अरे... ये क्या? आज से ही लिखना शुरू कर दिया, कम से कम आज तो आराम कर लेते।

अख्तर भाईजान : सादिया... देखो! मुझे बहुत काम है, तुम चलो बस मैं आता हुँ।

सादिया भाभीजान : ओह..! काम तो कल भी हो सकता है, ना?

अख्तर भाईजान : वादा करता हुँ, थोड़ी देर में आता हुँ।

सादिया भाभीजान : चलो ठीक है।

सादिया भाभीजान के जाने के बाद भाईजान अपनी हॉरर नॉवेल के बारे में सोचने लगे और तभी धीरे धीरे कुर्सी पर बैठे हुए उनकी आँख लग गयी और वह सो गए। तभी एक काली परछाईं उनके पास आ खड़ी हुई, भाईजान को आहट महसूस होते ही उनकी आँखें खुल गयी और उन्हें लगा के कोई उन्हें खिड़की से देख रहा है। और वह खिड़की से बाहर कि ओर देखने लगे, मगर कुछ बाहर नज़र नहीं आया, भाईजान फिर से सोचते-सोचते सो गए। तभी फिर वह काली परछाईं वहाँ आ खड़ी हुई और वह भाईजान को खूब गौर से देखने लगी, जैसे ही उस काली परछाईं ने भाईजान कि तरफ हाथ से इशारा किया, भाईजान के हाथ खुद-ब-खुद टाइपराइटर कि ओर बढ़ने लगे और वह उनसे कुछ टाइप करवाने लगा। टाइपराइटर पर कुछ देर टाइप करने के बाद टाइपराइटर कि आवाज़ से भाईजान कि आँखें खुल गयी और वह जाग गए। तभी वह देखते हैं, कि वह नींद में टाइपिंग कर रहे हैं। तभी उनकी नज़र टाइपराइटर पर पड़ती है और वह चौंक जाते हैं,

अख्तर भाईजान : क्या? "सैयद मंजिल" ये किसने लिखा? मैंने ही लिखा होगा शायद... "सैयद मंज़िल" इंटरेस्टिंग टाइटल..!

तभी भाईजान को लगा कोई उन्हें खिड़की से देख रहा है, वह उठ खड़े होते हैं और बाहर देखने लगते हैं। तभी कोई उनके पीठ पर पीछे से हाथ रखता है, तो चौंक जाते हैं और पीछे मुड़ते हैं।

अख्तर भाईजान : ओह...! सादिया, तुम? तुमने तो मुझे डरा ही दिया।

सादिया भाभीजान : आप कब आएंगे सोने..? कब तक इंतेज़ार करूँ आपका? वैसे ज़रा देखूँ तो आपने क्या लिखा है? "सैयद मंज़िल" बस टाइटल, इतनी देर में बस तुमने एक टाइटल लिखा है। और वह भी चोरी का...?

अख्तर भाईजान : एक नॉवेल कि सबसे ज़रूरी चीज़ होती है, उसका टाइटल? उसका टाइटल हो गया, समझो आधा काम हो गया।

सादिया भाभीजान : आधा काम? बहुत अच्छे..! इसका मतलब बाकी का काम तुम कल कर सकते हो। अभी चलो...! अभी बहुत देर हो गयी है।

अख्तर भाईजान : सादिया एक काम करो, तुम जाओ और पंखा चलाकर सो जाओ, मैं आज पूरी रात लिखना चाहता हुँ।

सादिया भाईजान : ठीक है...!

तभी फिर से अख्तर भाईजान कुर्सी पर बैठ जाते हैं, और अपनी नॉवेल के बारे में सोचने लगते हैं, तभी खिड़की के पास से वह काली परछाईं उन्हें घूर-घूर कर देखने लगता है। भाईजान अपनी नॉवेल के बारे सोचते-सोचते फिर से सो जाते हैं। जब सुबह हुई तो भाईजान को नींद में किसी के ज़ोर-ज़ोर से हँसने कि आवाज़ सुनाई दी, तो वह आवाज़ सुनते ही जाग गए। फिर टाइपराइटर कि ओर देखने लगे, तभी उन्होंने टाइपराइटर से स्क्रिप्ट पेज निकाला और देखकर कहने लगे "चलो कोई बात नहीं कम से कम कहानी शुरू तो हुई" फिर उन्हें बाहर कि तरफ से किसी के ज़ोर-ज़ोर से हँसने कि आवाज़ सुनाई दी।

अख्तर भाईजान : अरे कौन आ गया? सुबह-सुबह

अख्तर भाईजान उठकर घर से बाहर बगीचे कि तरफ गए, तो उन्होंने देखा के सादिया भाभीजान एक आदमी और एक औरत को नाश्ता परोस रही है, तभी सब कि नजर अख्तर भाईजान पर परी और वह आदमी कहने लगा "अस्सालमुअलैकुम अख्तर साहब मैं हुँ आपका पड़ोसी अफ़ज़ल खान और ये मेरी बीवी" अख्तर साहब! ये है आपका नाश्ता मगर माफ़ करियेगा ज़्यादा नहीं बचा, हाहा...!

अख्तर भाईजान : कोई बात नहीं, खाइये...!

अफ़ज़ल खान : अख्तर साहब, मैंने बहुत प्यार से आपका जो नाश्ता है वह साफ कर दिया, अब आप कल बड़े प्यार से हमारे घर आइये और नाश्ता कीजिये वैसे मेरी बीवी ब्रेड एंड बटर बहुत अच्छा बनाती है। क्यों हाहा...!

अख्तर भाईजान : हाहा...! वैसे काफी मज़ाकिया इंसान हैं आप?

अफ़ज़ल खान : अख्तर साहब मैं बहुत दिनों से आप से मिलना चाहता था। मुझे लगा आपकी शादी नहीं हुई है, आप बेचलर हैं लेकिन जब आप अपने परिवार के साथ यहाँ पर आए तो हम आपसे मिलने चले आए।

अख्तर भाईजान : पहले से मिलना चाहता था मतलब? मैं तो कल ही आया हुँ।

अफ़ज़ल खान : क्या बात कर रहे हो आप? कई बार तो मैंने इस घर में किसी कि परछाईं को आते जाते देखा है।

अख्तर भाईजान : क्या बात कर रहे हैं, अफ़ज़ल साहब ये घर तो दस पंद्रह साल से बंद है, दो नौकर हैं, वो भी बाहर क्वार्टर में रहते हैं।

अफ़ज़ल खान : हाँ...हाँ उन दो नौकरों को मैंने देखा है, वह किसी से ज़्यादा बातचीत तो करते नहीं और वैसे भी मुझे यहाँ के बारे में कुछ ज़्यादा पता नहीं है अगर आप कहते हैं, आप नहीं है तो फिर और कौन हो सकता है? और वैसे मैंने सुना है, कि यहाँ पर जिन्नातों का साया है, जिन्न रहते हैं यहाँ पर अगर आप नहीं तो फिर...? वह जिन्नात तो नहीं जिसे मैंने देखा? हाहा...!

सभी लोग उनकी बातें सुनकर हँसने लगे और फिर उन्होंने अख्तर भाईजान से पूछा...?

अफ़ज़ल खान : और हाँ, मैंने एक और बात सुनी है, आप कोई हॉरर नॉवेल लिख रहे हैं।

अख्तर भाईजान : जी हाँ,

अफ़ज़ल खान : तो जाइये ना, जाकर मिलिए उस जिन्नात से और लिख दीजिये उसकी जिंदगी पर कहानी और टाइटल रखियेगा "जिन्नात कि आत्मकथा" हाहा...!

अख्तर भाईजान उनकी बातें सुनकर कुछ सोचने लगे।

अफ़ज़ल खान : क्या हुआ अख्तर साहब! अपने मेरी बातों का बुरा तो नहीं माना?

अख्तर भाईजान : नहीं..! बिलकुल नहीं अफ़ज़ल साहब, आपलोग नाश्ता करिए, मैं ज़रा अपने कमरे से हो आता हुँ।

ये कहते हुए भाईजान उस घर के अंदर हैरत अंदाज़ में घूमने लगे। तभी उन्होंने किसी को सामने वाले कमरे कि तरफ जाता हुआ देखा। वह चौंक गए और आवाज़ लगाने लगे।

अख्तर भाईजान : कौन है? रुको...

और ये कहते हुए वह उसकी तरफ भागे और उस कमरे के अंदर चले गए। वह कमरा एक तहखाना था। जहाँ पर बहुत से पुराने सामान बिखरे पड़े थे। वह धीरे-धीरे तहखाने के अंदर गए और वहाँ कि चीज़ों को देखने लगे। देखते ही देखते उनकी नज़र एक छोटे से संदूक पर परी जैसे ही उन्होंने उस संदूक को खोला वह हक्का-बक्का रह गए। अंदर एक कुल्हाड़ी खून से लतपत रखी हुई थी। उन्होंने उस कुल्हाड़ी को उठाया और बहुत ही गौर से देखने लगे। तभी फिर वह काली परछाईं उनके पीछे से गुज़री और उन्हें लगा कि कोई उनके पीछे है? वह फ़ौरन पीछे मुड़े और देखने लगे मगर वहाँ कोई भी नज़र नहीं आया। कुल्हाड़ी हाथ में लेकर वह एक पुराने शीशे कि तरफ खुद को देखने के लिए चले गए। वह अभी शीशे में खुद को देख ही रहे थे के तभी शीशे में उन्हें वह काली परछाईं उस कुल्हाड़ी के साथ नज़र आया। वह डर गए और नीचे गिर गए जैसे ही वह उठे तो चारो तरफ देखने लगे मगर वहाँ कोई भी नजर नहीं आया। उन्होंने जल्दी से कुल्हाड़ी को उस संदूक में रखा और उस तहखाने को बंद करके वहाँ से निकल गए।