चार्ली चैप्लिन
मेरी आत्मकथा
अनुवाद सूरज प्रकाश
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हम उसे अपने कमरे में लेकर गये और उसे थोड़ी ब्रांडी पिलायी। तब उसने बताया कि क्या हुआ था। जल सेना के छ: कैडेटों ने प्रधान मंत्री के निवास के बाहर तैनात सुरक्षा गार्डों को मार डाला था और उनके निजी आवास में घुस गये थे। वहां पर प्रधान मंत्री अपनी और पुत्री के साथ थे। बाकी कहानी उसे उसकी मां ने बतायी थी: हमलावर बीस मिनट तक पिता के सिर पर बंदूक ताने खड़े रहे जबकि पिता उनसे बहस करके उन्हें समझाने बुझाने की कोशिश कर रहे थे लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। बिना कुछ बोले वे गोली मारने ही वाले थे लेकिन पिता ने उसने अनुरोध किया कि वे उन्हें उनके परिवार के सामने न मारें। इसलिए उन लोगों ने पिता को इस बात की इजाज़त दे दी कि वे अपनी पत्नी और पुत्री से विदा ले लें। शांत वे उठे और हत्यारों को दूसरे कमरे में ले गये। वहां उन्होंने हत्यारों को फिर से समझाने की कोशिश की होगी क्योंकि परिवार जान निकाल देने वाले सस्पेंस में बैठा रहा और तभी उन लोगों ने गोलियां चलने की आवाज़ सुनी और इस तरह से केन के पिता को मार डाला गया।
कत्ल उस समय हुआ जब उनका बेटा कुश्ती मैच देख रहा था। अगर वह हमारे साथ न होता तो उसे भी अपने पिता के साथ मार दिया जाता, कहा था उसने।
मैं उसके साथ उसके घर तक गया और उस कमरे को देखा जहां दो घंटे पहले उसके पिता को मार दिया गया था। कालीन पर अभी भी गीले खून के चहबच्चे थे। वहां पर कैमरामैन और रिपोर्टर बड़ी संख्या में मौजूद थे लेकिन उन्होंने इतनी शालीनता दिखायी कि कोई तस्वीर नहीं ली। अलबत्ता, उन्होंने मुझ पर ज़ोर डाला कि मैं बयान दूं।
मैं सिर्फ यही कह पाया कि ये परिवार और देश के लिए हिला देने वाली त्रासदी है।
जिस दिन ये हादसा हुआ, मुझे प्रधान मंत्री से एक आधिकारिक स्वागत समारोह में मिलना था और बेशक इस आयोजन को कैंसिल कर दिया गया था।
सिडनी ने घोषित कर दिया कि इस कत्ल की कड़ियां ज़रूर एक बड़े रहस्य से जुड़ी हुई हैं और कि इसमें हम किसी न किसी रूप में जुड़े हुए हैं। उसने कहा,"ये एक संयोग से ज्यादा ही है कि छ: कातिलों ने प्रधान मंत्री को मारा और छ: ही आदमी उस रात रेस्तरां में आये थे जब हम खाना खा रहे थे।"
ये तभी हुआ कि बहुत अरसे बाद ह्यूज ब्यास ने बेहद रोचक और सूचनाप्रद पुस्तक गवर्नमेंट बाय एसेसिनेशन लिखी तो सारे रहस्य से पर्दा उठा। इसे अल्फ्रेड ए नॉप्फ ने छापा था। जिसमें जहां तक मेरा सवाल था, पूरे रहस्य पर से पर्दा उठा दिया था। ऐसा लगता है कि ब्लैक ड्रैगन नाम की एक सोसाइटी उस समय सक्रिय थी और उन्होंने ही ये मांग रखी थी कि मैं महल के सामने सिर झुकाऊं। जिन लोगों पर प्रधान मंत्री का हत्या के लिए मुकदमा चलाया गया था, मैं यहां पर उसका लेखा जोखा प्रस्तुत कर रहा हूं।
लेफ्टीनेंट सेशी कोगा, प्लॉट के रिंग लीडर ने बाद में अदालत को बताया था कि षडयंत्र कारियों ने हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव के भवन को उड़ा कर मार्शल लॉ लाने की योजना बनायी थी। आम आदमी जो आसानी से बिना पहचान में आये वहां से गुज़र सकते थे, बम फैंकते और युवा अधिकारी बाहर इंतज़ार करते रहते और जिस वक्त सदस्य बाहर आते, उन्हें मार डालते। दूसरी योजना, बेहद क्रूर थी अगर पूरी की जाती, जैसा कि अदालत को बताया गया था। ये प्रस्ताव था उस वक्त जापान की यात्रा पर आ रहे चार्ली चैप्लिन की हत्या का। प्रधान मंत्री ने चार्ली को चाय पर बुलाया था और युवा अधिकारियों ने योजना के बारे में सोचा था कि जब पार्टी चल रही हो तो सरकारी निवास पर हमला कर दिया जाये।
न्यायाधीश: चार्ली को मारने का क्या महत्त्व होता?
कोगा: चार्ली अमेरिका में एक लोकप्रिय व्यक्तित्व है और पूंजीवादी वर्ग का चहेता है। हम ये मानकर चल रहे थे कि चार्ली को मारने से अमेरिका के साथ जंग छिड़ जायेगी और इस तरह से हम एक तीर से दो शिकार कर लेते।
न्यायाधीश: लेकिन तब आपने इतनी शानदार योजना को छोड़ क्यों दिया?
कोगा: क्योंकि बाद में अखबारों ने खबर दी थी कि होने वाली स्वागत पार्टी का कुछ पक्का नहीं था।
न्यायाधीश: प्रधान मंत्री के राजकीय निवास पर हमला करने की योजना बनाने के पीछे क्या मंशा थी?
कोगा: इससे प्रीमियर का तख्ता पलट दिया जाता। वे राजनीतिक पार्टी के सर्वे सर्वा भी थे। दूसरे शब्दों में, सरकार के केन्द्र को ही नेस्तनाबूद करना था।
न्यायाधीश: क्या आप प्रीमियर को मारना चाहते थे?
कोगा: हां, मैं मारना चाहता था लेकिन मेरी उनसे कोई व्यक्तिगत दुश्मनी नहीं थी।
उसी कैदी ने बताया था कि उन्होंने चार्ली को मारने की योजना इसलिए छोड़ दी थी क्योंकि इस बात पर विवाद हो गया था कि क्या इस बात में दम है कि मात्र इस आधार पर एक कामेडियन को मार देना कि उससे अमेरिका से लड़ाई छिड़ जायेगी और मिलिटरी की ताकत बढ़ जायेगी।
मैं ये कल्पना कर सकता हूं कि हत्यारों ने अपनी योजना पूरी करके चार्ली को मार दिया होता और बाद में उन्हें पता चलता कि मैं अमेरिकी नहीं, अंग्रेज़ हूं तो वे कहते, "ओह, सो सॉरी।"
अलबत्ता, जापान में सब कुछ रहस्यमय और अप्रिय ही नहीं था, वहां पर मैंने अपना ज्यादातर वक्त अच्छा ही गुज़ारा। काबुकी थियेटर देखना अपने आप में एक सुखद अनुभव था और ये मेरी उम्मीदों से कहीं अधिक था। काबुकी मात्र औपचारिक थियेटर ही नहीं है, बल्कि ये आधुनिकता और पुरातनता का मिश्रण है। वहां पर किसी अभिनेता की दक्षता ही प्रमुख होती है और नाटक तो मात्र वह सामग्री है जिसके साथ वह प्रदर्शन करता है। हमारे पश्चिमी मानकों के अनुसार, उनकी तकनीक की तीव्र सीमाएं हैं। जहां पर यथार्थवाद को प्रभावी ढंग से प्राप्त नहीं किया जा सकता, वहां पर उसकी उपेक्षा कर दी जाती है। उदाहरण के लिए, हम पश्चिमी वासी बिना अमूर्त के स्पर्श के तलवारों की लड़ाई दिखा ही नहीं सकते क्योंकि भले ही लड़ाई कितनी भी भीषण न हो, सामने वाले को सतर्कता का थोड़ा बहुत पता चल ही जाता है। दूसरी तरफ जापानी यथार्थवाद का कोई दिखावा नहीं करते। वे एक दूसरे से थोड़ी दूरी बनाये रखते हुए लड़ते हैं और अपनी तलवारों से तेज धार से काट डालने वाली मुद्राएंं दिखाते हैं मानो वह सामने वाले का सिर ही काट डालेगा और सामने वाला अपने विरोधी के पैर काट डालने का प्रयास करता लगता है। दोनों ही अपने अपने दायरे में कूदते हैं, नृत्य करते हैं, और एक पांव पर नृत्य करते हैं। ये सब बैले की तरह होता है। ये संघर्ष प्रभाववादी होता है और इसका समापन विजेता और पराभूत में होता है। इस प्रभाववाद में से अभिनेता मृत्यु वाले दृश्य के दौरान यथार्थवाद में घुल मिल जाते हैं।
विडंबना उनके अधिकांश नाटकों की थीम होती है। मैंने उनका एक नाटक देखा जिसकी तुलना रोमियो और जूलिएट से की जा सकती है। इस नाटक में दो युवा प्रेमी होते हैं जिनके विवाह का विरोध उनके माता पिता कर रहे हैं। इसे एक घूमते हुए मंच पर अभिनीत किया गया था। इस तरह के मंच को जापानी लोग तीन सौ बरस से उपयोग में ला रहे हैं। पहला दृश्य वैवाहिक कक्ष के भीतर का था जहां अभी अभी परिणय सूत्र में बंधे प्रेमी युगल को दिखाया जाता है। अंक के दौरान दूत दोनों के माता पिता को प्रेमी युगल के पक्ष में समझाने बुझाने का प्रयास करते हैं और उम्मीद करते हैं कि शायद समझौता हो जाये। लेकिन परम्परा जो है, बहुत गहरी है। माता पिता जिद पर अड़े हुए हैं। इसलिए प्रेमी युगल तय करता है कि वे जापानी पद्धति से आत्महत्या कर लेंगे। दोनों ये फैसला करते हैं कि फूलों की कलियों की कौन सी सेज पर कौन मरेगा। दूल्हा दुल्हन को पहले मारेगा और फिर खुद को तलवार की धार पर गिरा देगा।
जिस वक्त प्रेमी प्रेमिका मृत्यु का वरण करने के लिए फूलों की सेज बिछा रहे होते हैं तो उस वक्त वे जो जुमले बोलते हैं, उनसे दर्शकों के बीच हँसी फैल गयी। मेरे दुभाषिए ने बताया कि इस तरह की पंक्तियों कि इस तरह की प्यार भरी रात के बाद जीना हतप्रभ करने वाला होगा, के व्यंग्य पर लोग हँसे थे। दस मिनट तक वे इस तरह की व्यंग्यपूर्ण शैली में अपनी अपनी राम कहानी कहते रहते हैं। इसके बाद दुल्हन अपनी फूलों की सेज पर घुटनों के बल झुक जाती है। ये सेज दूल्हे की सेज से ज़रा सी दूरी पर है। वह दुल्हन के गले पर से कपड़ा हटाता है और जैसे ही दूल्हा तलवार निकालता है और धीरे धीरे दुल्हन की तरफ बढ़ता है, मंच घूमना शुरू हो जाता है और उस बिंदु पर आने से पहले कि दूल्हे की तलवार दुल्हन के गले को छूए, दृश्य दर्शकों के सामने से चला जाता है और अब घर के बाहर का दृश्य दिखाया जाता है। चारों तरफ चांदनी फैली हुई है। दर्शक सांस रोके बैठे रहते हैं कि पता नहीं आगे क्या होगा। एक दम सन्नाटा छा जाता है। आखिरकार आवाज़ें नजदीक आनी शुरू हो जाती हैं। ये लोग मृतक प्रेमी युगल के मित्र लोग हैं जो ये खुशखबरी ला रहे हैं कि उनके माता पिताओं ने उन्हें माफ कर दिया है। अब उनमें ये बहस छिड़ गयी है कि प्रेमी युगल को ये खुशखबरी कौन देगा। इसके बाद वे आवाज़ें देना शुरू कर देते हैं और कोई उत्तर न पा कर दरवाजा पीटने लगते हैं।
"उन्हें डिस्टर्ब मत करो," उनमें से एक कहता है,"या तो वे सो रहे हैं या फिर बहुत व्यस्त हैं।" इसलिए वे अपने अपने रास्ते चले जाते हैं। वे अभी भी आवाजें दे रहे हैं और टिक टौक, बक्से जैसी आवाजें कर रहे हैं। ये इस बात का इशारा है कि नाटक समाप्त हो रहा है। और मंच पर धीरे धीरे परदा नीचे आने लगता है।
ये प्रश्न बहस मांगता है कि जापान कब तक पश्चिमी सभ्यता की बुराइयों से बच पायेगा। ज़िंदगी के उन साधारण पलों के लिए भी जापान के लोगों में सराहना उनकी सभ्यता का एक ऐसा अभिन्न अंग है। चांदनी की लकीर को देर तक देखते रहना, चेरी को खिलते देखने के लिए जाने के लिए तीर्थ की तरह यात्रा, चाय के आयोजन का शांत ध्यान, लगता है ये सारी चीजें पश्चिमी हवा के झोंके के साथ न जाने कहां उड़ जायेंगी।
मेरी छुट्टी समाप्त होने वाली थी और हालांकि मैंने इसके कई पहलुओं का भरपूर आनंद उठाया था, कुछ बातें हताश करने वाली भी थीं। मैंने खाने को बरबाद होते देखा, सामान के ढेर ऊपर उठते देखे लेकिन लोगों को उनके आसपास भूख से मंडराते देखा। वहां लाखों लोग बेरोज़गार थे और उनकी सेवाएं बेकार जा रही थीं।
दरअसल मैंने एक आदमी को डिनर के दौरान ये कहते सुन लिया था कि जब तक हमें और सोना नहीं मिल जाता, हालात सुधरने वाले नहीं हैं। जब मैंने इस समस्या की बात की कि मशीनीकरण से हाथ के काम खत्म होते जा रहे हैं तो किसी ने कहा कि समस्या का समाधान अपने आप ही निकल आयेगा क्योंकि अंतत मजदूरी इतनी सस्ती हो जायेगी कि वह मशीनीकरण का मुकाबला करने की हालत में आ जायेगी। ये हताशा निश्चय ही मारक थी।
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जब मैं बेवरली हिल्स पर घर पहुंचा तो मैं बैठक वाले कमरे के बीचों बीच खड़ा हो गया। ये ढलती दोपहर का वक्त था। लॉन के आर पार लम्बी छायाएं तथा कमरे में सुनहरी चमकती धूप की पट्टियां पसरी पड़ी थीं। ये सब कितना शांत दिख रहा था। इसे देख कर मैं रो सकता था। मैं पूरे आठ महीने तक बाहर रहा था और फिर भी ये सोच रहा था कि क्या मैं वापिस आ कर खुश हूं। मैं भ्रम में था और मेरे सामने कोई योजना नहीं थी। मैं बेचैन था और मुझे पता था मेरे सामने भीषण अकेलापन है।
मुझे यूरोप में हल्की हल्की सी उम्मीद थी कि किसी से मेरी मुलाकात होगी जो मेरी ज़िंदगी को दिशा दे सके। लेकिन कुछ भी तो नहीं हुआ था। मैं जितनी भी महिलाओं से मिला था, कोई भी उस श्रेणी में नहीं आती थी और जो उस किस्म की श्रेणी में आती भी थीं, वे ही इच्छुक नहीं थीं। और अब एक बार फिर वापिस कैलिफोर्निया। मैं कब्र में लौट आया था। डगलस और मैरी अलग हो चुके थे इसलिए अब दुनिया मेरे लिए बची ही नहीं थी।
उस शाम मुझे अकेले ही डिनर लेना था। ये एक ऐसा काम था जिसे मैंने इतने बड़े घर में कभी भी पसंद नहीं किया था। इसलिए मैंने डिनर कैंसिल किया, गाड़ी चला कर हॉलीवुड गया, कार पार्क की और हॉलीवुड की गलियों में चहलकदमी करने लगा। मुझे ऐसा लगा कि मैं यहां से कभी गया ही नहीं था। वहां पर वही एक मंजिला दुकानों की पांत थी, पुराने नज़र आते आर्मी और नेवी स्टोर्स थे और और घटी दरों वाली वूलवर्थ और क्रेज़ नाम की दवा की दुकानें थीं। ये सब बेहद हताश करने वाला और बिना किसी रुचि सम्पन्नता वाला माहौल था। हॉलीवुड अभी भी शोर शराबे वाले शहर में तब्दील नहीं हुआ था।
जिस वक्त मैं बेल्डेवियर में टहल रहा था, मैं सोचने लगा कि अब मुझे रिटायर हो जाना चाहिये और सब कुछ बेच बाच कर चीन की तरफ निकल जाना चाहिये। अब हॉलीवुड में बने रहने का कोई लालच नहीं रहा था। इसमें कोई शक नहीं था कि मूक फिल्मों के दिन लद चुके थे और मैं सवाक फिल्मों के साथ संषर्घ करने जैसा महसूस नहीं कर रहा था। इसके अलावा, अब मेरी पूछ नहीं रही थी। मैंने कोशिश की कि किसी ऐसे अंतरंग व्यक्ति के बारे में सोचूं जिसे मैं फोन कर सकूं और बिना परेशान हुए डिनर के लिए आमंत्रित कर सकूं। लेकिन ऐसा कोई भी नहीं था। जब मैं घर लौटा तो रीव्ज़, मेरे मैनेजर यह बताने के लिए मिलने के लिए आये थे कि सब कुछ ठीक ठाक चल रहा है। लेकिन और कोई नहीं आया था।
अब ये ठंडे पानी में कूदने जैसा था। स्टूडियो में अपना चेहरा दिखाओ और फालतू के कामों में खुद को उलझाओ। अलबत्ता, मुझे ये जान कर खुशी हुई कि सिटी लाइट्स बहुत अच्छा कारोबार कर रही थी। हम अब तक 3,000,000 डॉलर (शुद्ध) कमा चुके थे और अभी भी हर महीने 1,00,000 डॉलर के चेक आ रहे थे। रीव्ज़ ने सुझाव दिया कि मैं हॉलीवुड बैंक में जाऊं और नये मैनेजर से मिल लूं, सिर्फ जान पहचान के लिए, लेकिन मैं पिछले सात बरस से बैंक नहीं गया था, मैंने मना कर दिया।
लुइस फर्डिनाड, कैसर का पोता स्टूडियो में मिलने के लिए आया और बाद में हमने घर पर एक साथ खाना खाया। हममें बहुत मज़ेदार बातचीत हुई। राजकुमार बहुत ही आकर्षक और बुद्धिमान लड़का था और वह पहले विश्व युद्ध के बाद जर्मन क्रांति के बारे में बता रहा था कि ये एक कॉमिक ओपेरा की तरह है।"मेरे दादा हॉलैंड गये थे," बताया उसने, "लेकिन हमारे कुछ रिश्तेदार पॉट्सडम के महल में ही रह गये थे। वे इतने डरे हुए थे कि वहां से निकले ही नहीं। और आखिरकार जब क्रांतिकारी महल में घुसे तो उन्होंने हमारे रिश्तेदारों को ये पूछते हुए एक नोट भेजा कि क्या उनका स्वागत किया जायेगा और उस मुलाकात में ये आश्वासन दिया कि हमारे रिश्तेदारों की रक्षा की जायेगी और कि अगर उन्हें किसी चीज़ की ज़रूरत हो तो उन्हें केवल समाजवादी मुख्यालय में फोन भर करना होगा। हमारे रिश्तेदार अपने कानों पर विश्वास ही नहीं कर सके। लेकिन जब बाद में सरकार ने उनकी सम्पत्तियों के निपटान के बारे में उसने सम्पर्क साधा तो मेरे रिश्तेदार नखरे करने लगे तथा और ज्यादा मांगने लगे।" अपनी बात को खत्म करते हुए उसने बताया,"रूसी क्रांति एक त्रासदी थी और हमारी क्रांति एक लतीफा!"
स्टेट्स में मेरे लौटने के बाद से कुछ बहुत ही अचरज भरी बातें हो रही थीं। आर्थिक रूप से स्थितियां बदल रही थीं, बेशक बहुत तेज़ी से लेकिन इससे अमेरिकी लोगों की महानता का परिचय मिल रहा था। हालात बद से बदतर होते चले गये थे। कुछ स्टेट तो यहां तक आगे बढ़ गये थे कि उन्होंने लकड़ी पर अमानती मुद्रा छापनी शुरू कर दी थी ताकि बिना बिका हुआ माल बेचा जा सके। इस बीच हूवर महाशय मुंह लटकाये बैठे और बिसूरते रहे क्योंकि उनकी ये आर्थिक नीति बुरी तरह से असफल हो गयी थी कि धन को ऊपर वाले वर्गों के बीच वितरित करो तो ये नीचे वाले आम आदमी के वर्गों तक भी पहुंच जायेगा और इसी सब त्रासदी में वे जनाब अपनी चुनावी मुहिम में हवा में मुट्ठियां भांजते फिर रहे थे कि अगर फ्रैंकलिन रूज़वेल्ट राष्ट्रपति के पद पर चुन लिये गये तो अमेरिकी प्रणाली, जिसे उस वक्त न गिरने वाली प्रणाली समझा जा रहा था, ताश के पत्तों की तरह ढह जायेगी।
अलबत्ता, फ्रैंकलिन डी रुज़वेल्ट व्हाइट हाउस में पहुंचे और देश रसातल में नहीं गया। उनकी फारगाटन मैन स्पीच ने अमेरिका को उसकी चिड़चिड़ाहट भरी ऊंघ से उठाया और अमेरिकी इतिहास में सर्वाधिक प्रेरणास्पद युग में ला स्थापित किया। मैंने उनका भाषण सैम गोल्डविन के बीच हाउस में रेडियो पर सुना था। हम कई लोग आस पास बैठे हुए थे। इनमें कोलम्बिया ब्रॉडकास्टिंग सिस्टम के बिल पैले, जो शेंक, फ्रेड एस्टेयर, उनकी पत्नी और अन्य मेहमान थे। "हमें जिस अकेली चीज से डरना है वह डर ही है।" ये शब्द फिज़ां में सूर्य की किरणों की तरह कौंधे। लेकिन मैं संदेह कर रहा था जैसे कि सभी कर रहे थे। मैंने कहा,"ये इतनी अच्छी बात है कि सच हो ही नहीं सकती।"
रूज़वेल्ट ने अभी अपना पद भार संभाला ही था कि उन्होंने अपने शब्दों को अमली जामा पहनाना शुरू कर दिया। उन्होंने दस दिन के लिए बैंकों की छुट्टी घोषित कर दी ताकि और बैंक धराशायी न हों। ये एक ऐसा काल था जिसमें अमेरिका अपने सर्वोत्तम रूप में था। दस दिन तक दुकानें और सभी स्टोर्स उधार पर धंधा करते रहे। यहां तक कि सिनेमा के टिकट भी उधार मिल रहे थे। और ऐसे ही वक्त में रूज़वेल्ट और उनकी 'मेधावी मंडली' ने 'नयी डील' तैयार कर ली। जनता ने बहुत शानदार तरीके से काम किया।
हर तरह की इमर्जेंसी के लिए कानून बना दिये गये। समय से पहले बंदी के नाम पर जो थोक डकैती हो रही थी, उसे रोकने के लिए फार्म क्रेडिट स्थापित करना, बड़ी बड़ी सार्वजनिक परियोजनाओं को धन उपलब्ध कराना, राष्ट्रीय वसूली अधिनियम लागू करना, न्यूनतम मज़दूरी बढ़ाना, काम के घंटे कम करके नये काम मुहैय्या कराना, और मज़दूर यूनियनों को प्रोत्साहित करना जैसे क्रांतिकारी कदम उठाये गये। 'आप बहुत आगे बढ़ रहे हैं: ये समाजवाद है,' विपक्ष वाले चिल्लाये। ये समाजवाद था या नहीं, लेकिन इसने पूंजीवाद को पूरी तरह से धराशाई होने से रोक लिया। इसने युनाइटेड स्टेट्स के इतिहास में कई सर्वोत्तम सुधारों के लिए भी ज़मीन तैयार की। ये देखना बेहद प्रेरणादायक था कि किस तरह से अमेरिकी नागरिकों ने काम करने वाली सरकार का साथ दिया।
हॉलीवुड की ज़िंदगी में भी बदलाव आ रहे थे। मूक फिल्मों के अधिकांश कलाकार गायब हो चुके थे। हम ही कुछ लोग बच रहे थे। अब चूंकि सवाक फिल्मों ने कब्जा कर लिया था, हॉलीवुड का आकर्षण और अपनापन जा चुके थे। रातों रात ये ठंडा और गम्भीर उद्योग बन चुका था। साउंड टैक्नीशियन स्टूडियो को नया रूप दे रहे थे और बड़े बड़े साउंड उपकरण बना रहे थे। कमरे के आकार के कैमरे महादानवों की तरह मंच पर जगह घेरे रहते। विशालकाय रेडियो उपकरण लगाये जा रहे थे जिनमें सैकड़ों की संख्या में बिजली के तार जुड़े होते। इन पर काम करने वाले आदमी अपने कानों में ईयर फोन लगाये, मंगल गृह से आये लड़ाकुओं की तरह बैठे रहते और अभिनेता अभिनय करते। माइक्रोफोन उनके सिर के ऊपर मछली मारने की रॉड की तरह लटक रहे होते। ये सब बेहद जटिल था और इसे देखना हताश करता था। इस सारे ताम झाम के बीच कोई सृजनात्मक रूप से काम ही कैसे कर सकता था। मुझे इस सारे विचार से ही नफरत थी। तभी किसी सयाने को पता चला कि इस सारे ताम झाम को इधर उधर ले जाने लायक बनाया जा सकता है, कैमरों को और अधिक चलित बनाया जा सकता है और सारे उपकरणों को यथोचित राशि पर किराये पर भी दिया जा सकता है। इन सारे सुधारों के बावज़ूद काम दोबारा शुरू करने में मुझे ज़रा सी भी प्रेरणा नहीं मिल रही थी।