Incomplete dialog part-4 in Hindi Poems by Alok Mishra books and stories PDF | अधूरे संवाद भाग-4

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अधूरे संवाद भाग-4

वो कहाँ गया








जीवन की आपाधापी में वो कहां गया, वो किधर गया ।


वो सखा बचपन का था वो कहां गया,वो किधर गया ।।


वो साथ ही मेरे हंसता था ।


वो मेरे साथ ही रोता था ।


वो सोता था तो दिखता था ।


वो उठता था तो दिखता था ।


वो चेहरा था अनमोल न जाने कहां गया,


वो किधर गया ।।


वो साथ ही खेला करता था ।


वो साथ ही लड़ता रहता था ।


वो छीन के मुझसे खाता था ।


मैं उसको मारा करता था ।


वो पेट की आग बुझाने को न जाने कहां गया,


वो किधर गया ।।


वो चोर तो मैं सिपाही बन जाता ।


वो राजा तो मैं मंत्री कहलाता ।


वो मेरे कंचें तोड़ा करता था ।


वो मेरे भौरे फोड़ा करता था ।


वो खेलों की मस्त ड़गर छोड़ न जाने कहां गया,
वो किधर गया ।।


वो अमरार्इ में आमों सा ।


वो बेरियों में कांटों सा ।


वो कटहल की भीनी खुशबू सा ।


वो चार की दोहरी परतों सा ।


वो हम चोरों के इस उपवन को छोड़ न जाने कहां गया, वो किधर गया ।।


वो मिला अचानक चौराहे पर ।


वो गले लग कर रोया था ।


वो खुशबू खुली छोड़ गया था ।


वो यादें ताजा कर गया था ।


वो यादों के समंदर में छोड़ न जाने कहां गया,


वो किधर गया ।।


जीवन की आपाधापी में वो कहां गया,

वो किधर गया ।


वो सखा बचपन का था वो कहां गया,

. वो किधर गया ।।

आलोक मिश्रा


बोलो मैंने क्या अपराध किया है ...

तेरे रक्त ने मुझको सींचा है ।
तेरी कोख ने मुझको भींचा है ।
तेरे प्रेम की छाया मुझे भी है प्यारी ।
पर तेरी है ये कैसी लाचारी ।

जो मुझे अजन्मे का क्यों दण्ड दिया है ?
बोलो मैंने क्या अपराध किया है ...?

तू मेरी प्यारी - प्यारी महतारी है ।
ये तेरी शापित अजन्मी बिटिया प्यारी है ।
मैं तेरे मन उपवन को महकाउँगी ।
खुशबू बन सब पर छा जाउँगी ।

पर तूने मुझे क्यों त्याग दिया है ?
बोलो मैंने क्या अपराध किया है ...?

तू मेरी मुझ में तेरा ही अंश है ।
बापू से कहना ये भी तेरा वंश है ।
बचा ले मुझको मैं तेरी हो जाउँगी ।
बैठ तेरे संग बन्ना मैं गाउँगी ।

फिर तूने क्यों लाचारी का पैगाम दिया है?
बोलो मैंने क्या अपराध किया है ...?

तेरा वजूद तेरी माँ का है ।
तुझ पर एहसान नानी माँ का है ।
तू एहसान उतारेगी मैं मुस्काउँगी ।
तेरी गोद में किलकारी भर पाउँगी ।

पर तूने क्यों नानीमाँ को भुला दिया ?
बोलो मैंने क्या अपराध किया है ...?

आलोक मिश्रा
mishraalokok@gmail.com



यादों की रौनक अभी बाकी है ..

कई साल गुज़रे यादों की रौनक अभी बाकी है ।
वो बीते वक्ते के पैरों के निशां अभी बाकी है ।
वो तेरी महक , चूड़ीयों की खनक बाकी है ।
वो तेरे चेहरे की रंगत ,फुसफुसाती चहक बाकी है।

कई साल हुए , गुज़रे चुके है यादों के जलसे ।
वक्त, के पैरों के निशां अभी बाकी है ।
कई साल गुज़रे यादों की रौनक अभी बाकी है ।
वो बीते वक्ते के पैरों के निशां अभी बाकी है ।

वो दीवर की ओट से झांकता चेहरा ।
वो शर्म ओ हया से लाल सा चेहरा ।
आईने पे तेरे लबों की लाली अभी बाकी है ।
कई साल गुज़रे यादों की रौनक अभी बाकी है ।

वो बीते वक्ते के पैरों के निशां अभी बाकी है ।
वो दीदार के इंतजार को तरसती आंखे ।
मिलने पर शर्म से झुकी और मुंदी आंखे

मेरे कुर्ते पर तेरे सूरमे के निशां अभी बाकी है ।
कई साल गुज़रे यादों की रौनक अभी बाकी है ।

वो बीते वक्ते के पैरों के निशां अभी बाकी है ।
कमबक्खत वक्त ने दूर किया था जब हमें ।
फिर मिला देने का झांसा दिया था जब हमें ।
उस बुरे वक्ता की पीर अभी बाकी है ।
कई साल गुज़रे यादों की रौनक अभी बाकी है ।

वो बीते वक्ते के पैरों के निशां अभी बाकी है ।
ये तस्सेबुर कि मिले थे हम कभी ।
महका जाता है मेरी शामों को आज भी ।
तू नही , तेरी यादों के सहारे अभी बाकी है ।

कई साल गुज़रे यादों की रौनक अभी बाकी है ।
वो बीते वक्तु के पैरों के निशां अभी बाकी है ।

वो वादे इरादे , वो आंसूओं की झड़ी ।
टूट के बिखरती हुई वो बेनी की लड़ी ।
किताबों के सूखे फूलों में महक अभी बाकी है ।

कई साल गुज़रे यादों की रौनक अभी बाकी है ।
वो बीते वक्तु के पैरों के निशां अभी बाकी है ।