Go back style ... - 2 in Hindi Moral Stories by Dr Vinita Rahurikar books and stories PDF | लौट जाओ शैली... - 2

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लौट जाओ शैली... - 2

भाग-2

सच तो यह था कि शैली भी अब यह महसूस करने लगी थी कि विनीत जीवन में उसे क्या दे पाएगा। वह उससे शादी तो करेगा नहीं ऐसे वह सिर्फ उसकी प्रेमिका बन कर कैसे सारी उम्र गुजार दे। विनीत के साथ उसका क्या भविष्य होगा। आकाश दिखने में अच्छा है, अच्छी नौकरी में है अच्छी कार में आता है तो जाहिर है पैसे वाला ही होगा। शैली भी आकाश में अपनी खुली दिलचस्पी दिखाने लगी। हां वह यह ध्यान जरूर रखती कि यह सारी बातें विनीत की जानकारी में ना आ जाए क्योंकि वह आकाश के बारे में कुछ सब कुछ जानने और उसकी तरफ से पक्का आश्वासन मिलने तक विनीत के मन में अपने प्रति व्यर्थ का कोई संदेह पैदा नहीं करना चाहती थी।

मौका देख कर शैली आकाश के साथ बाहर भी जाने लगी। अब शैली को इंतजार था कि कब आकाश उससे प्यार का इजहार करे और कब शादी का वादा करे। अब उसे दोपहरों में विनीत का इंतजार नहीं रहता था वरन विनीत के आ जाने से उसे कोफ्त ही होती थी। अक्सर वह दोपहर और रात को आकाश के साथ उसकी कार या बाइक पर घूमती या दोनों किसी दूरस्थ और एकांत जगह पर जाकर बैठे रहते। विनीत के पूछने पर वह बहाना बना देती कि किसी सहेली के साथ गई थी। एकांत में मिलने पर शैली का मन मचलने लगता था लेकिन आकाश का मर्यादित व्यवहार देख कर उसे अपने ऊपर संयम रखना पड़ता था। आकाश कभी उसे हाथ तक ना लगाता। शैली को भी अपनी उशृंखल मनोवृतियों को काबू में रखना पड़ता ताकि आकाश के मन में उसे लेकर कोई गलत धारणा ना बैठ जाए। वह नहीं चाहती थी कि किसी भी तरह से आकाश के मन में उसके उन्मुक्त आचरण को लेकर कोई संशय उभरे और वह उसे छोड़ दे। इसलिए आकाश के सामने वह अपने आप को सौम्य, शालीन और मर्यादा में रहने वाली दिखाने की हरसंभव चेष्टा करती।

आखिर दो-तीन महीने साथ साथ कुछ समय बिता लेने के बाद आकाश ने शैली के प्रति अपनी चाहत का इजहार कर ही दिया। शैली उस दिन बहुत खुश थी। आकाश के दिए लाल गुलाब को हाथ में लिए बहुत देर तक आने वाले सुनहरे भविष्य के सपनों में खोई रहती। अब उसे विनीत की कीप बनी रहने की कोई जरूरत नहीं है। अब वह आकाश की ब्याहता पत्नी बनेगी।

अगले दिन आकाश उसे अपने माता-पिता से मिलवाने ले जाने वाला था। उसने अपने माता-पिता को शैली के बारे में बताया। वह और आकाश की दोनों बहने शैली से मिलने के लिए अत्यंत उत्सुक थे। शैली उस दिन बहुत अच्छी तरह से तैयार हुई। सबसे महंगे सूट के साथ मैचिंग की महंगी ज्वेलरी पहनी। विनीत ने दिया हुआ महंगा विदेशी परफ्यूम लगाया। वह आकाश के सामने किसी भी कीमत पर उन्नीस नहीं दिखना चाहती थी। वह आकाश के परिवार पर अपना पूरा प्रभाव जमाना चाहती थी कि वह भी आकाश से किसी मायने में कम नहीं है।

तभी आकाश आ गया। शैली आकाश को बाइक पर आते देखकर ताला लगाकर नीचे उतर आई। उसे बाइक पर आया देख शैली को थोड़ा अखर गया कि आज तो उसे कार से आना चाहिए था।

"आज तुम कार से नहीं आए अपनी होने वाली पत्नी को तो तुम्हें अपने माता-पिता से मिलवाने कार से ले जाना चाहिए था ना।" शैली ने ठुनकते हुए आकाश से कहा।

"अरे वह कार तो अनिल की है अपनी सवारी तो यही है मैडम।" आकाश हंसते हुए बोला।

"पर वह गाड़ी तो हमेशा तुम ही चलाते हो फिर तुम्हारे पास कौन सी कार है?" शैली के लिए यह एक नई और अनपेक्षित खबर थी।

"हां मुझे ड्राइवरी का बहुत शौक है तो उसकी कार हमेशा मैं ही चलाता हूं अभी तो मेरे पास कोई कार नहीं है पर तुम चिंता क्यों करती हो हम दोनों मिलकर जल्द ही कार भी ले लेंगे।"

आकाश ने सहज रूप से कहा पर शैली का मन बुझ गया। हालांकि आकाश ने अपने बारे में कभी कुछ बढ़ा चढ़ाकर नहीं बताया था तब भी शैली मानकर चली थी कि वह बहुत पैसे वाला और कार बंगले वाला है। दस मिनट में ही वे लोग आकाश के घर पहुंच गए। घर देखकर शैली का मन और खराब हो गया। वह तो सोच रही थी कि आकाश हाई-फाई लग्जरियस बंगले में रहता होगा लेकिन यहां तो एक अत्यंत साधारण सा पुराना सा मकान है। कॉलोनी भी पॉश नहीं थी साधारण मध्यमवर्गीय लोगों के ही घर थे चारों ओर।

शैली भारी मन और बोझिल कदमों से आकाश के साथ घर में गई। ड्राइंग रूम की साज-सज्जा अत्यंत साधारण थी। फर्नीचर भी पुराना था। वह जिस चमक-दमक और ग्लैमर की उम्मीद लगाए बैठी थी, स्थिति उससे बिल्कुल विपरीत थी। आकाश के घर वाले, माता-पिता और दोनों बहने उससे अत्यंत उत्साह से मिले। उन्होंने मन लगाकर शैली की आवभगत की लेकिन शैली पूरे समय ऊपरी मन से बातों का हूँ-हाँ में जवाब देती रही। उसका दम घुट रहा था उस परिवेश में। वह जल्द से जल्द वहां से भाग जाना चाहती थी।

डेढ़-दो घंटे बाद आकाश उसे लेकर उसके घर छोड़ने से पहले एक रेस्टोरेंट में ले गया। आकाश के घर से निकलकर शैली ने खुली हवा में आकर चैन की सांस ली मानो वह जेल से छुटी हो।दोनों एक होने वाली टेबल पर जाकर बैठ गए।

"कैसा लगा तुम्हें मेरा परिवार, मम्मी-पापा और बहने?" आकाश ने उत्साह से शैली से पूछा और शैली उसकी बात का कुछ जवाब देती इससे पहले ही वह बताने लगा कि उसके माता-पिता और बहने कितने अच्छे हैं। उससे कितना प्यार करते हैं और शैली को भी कितने प्यार से रखेंगे वगैरह।

शैली अंदर ही अंदर कसमसा रही थी। वह आकाश से प्यार भी करती थी और उस पुराने घर में ऐसी बुझी हुई सी मध्यमवर्गीय जिंदगी भी जीना नहीं चाहती थी। अजीब सी कशमकश में घिरी थी वह। आकाश ने भी भांप लिया कि उसके परिवार से मिलकर शैली खास खुश नहीं है।

"आकाश तुम तो इतना पैसा कमाते हो फिर ऐसे पुराने घर में क्यों रहते हो और अपनी कार क्यों नहीं खरीदते?" आखिर शैली के मन की बात उसकी जुबान पर आ ही गई।

"ओहो इतनी सी बात को मन में पकड़ कर बैठी हो। खरीद लेंगे डियर वह दोनों भी ले लेंगे। दरअसल साल भर हुआ है पापा की बाईपास सर्जरी हुई है उसमें काफी सारा खर्चा हुआ। मेरी पढ़ाई में भी बहुत पैसा लग गया और अब एक बहन इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रही है दूसरी पूना के प्रतिष्ठित कॉलेज से एमबीए करना चाह रही है। उसका खर्च कुल मिलाकर 30-35 लाख रुपए हो जाएगा फिर दोनों का विवाह करना है। पर तुम चिंता क्यों करती हो हम दोनों मिलकर सब ठीक कर देंगे। घर, गाड़ी सब आ जाएगा। हां कुछ साल लगेंगे।" आकाश ने बड़े प्यार और विश्वास से शैली की ओर देखते हुए कहा।

उस दिन शैली ने बात आगे नहीं बढ़ाई और घर आ गई। दूसरे दिन उसने सारी बात पूनम को बताई।

"आकाश जिस तरह से हर चीज खरीदने में हम हम कह रहा था उससे तो साफ जाहिर है कि वह मेरे पैसों का उपयोग अपना घर चलाने में करना चाहता है।" शैली ने कहा।

"अपना घर मतलब क्या? शादी के बाद तो वह तुम दोनों का होगा ना।" पूनम ने सहज स्वर में कहा।

"कम ऑन यार। अगर सारा पैसा मैं उसे दे दूं घर खरीदने या कार खरीदने में तो मेरे पास क्या बचेगा? मैं क्या अपनी लाइफ एंजॉय कर पाऊंगी?" शैली का स्वर तल्ख था।

"यह क्या तेरा मेरा कर रही है घर तो तेरा ही होगा कार में भी तू ही घूमेगी ना।" पूनम ने उसे समझाया।

"क्यों उसका इतना बड़ा कुनबा नहीं है क्या, अगर मैं अपने पैसों से घर खरीदी लूं तो मुझे उस घर में क्या मिलेगा, एक कमरा और क्या।" शैली ने भुनभुनाते हुए कहा।

"इतनी स्वार्थी न बन शैली। अफसोस है कि तुम इतनी संकीर्ण विचारों की हो। दरअसल तुझे उन्मुक्त जीवनशैली की आदत हो गई है। तुम्हें आज इसलिए बस अपना सुख चाहिए घर परिवार और रिश्ते नहीं। लेकिन एक वक्त आएगा जब तुम्हें परिवार और रिश्तो की तीव्र जरूरत महसूस होगी और तुम्हारे पास कोई नहीं होगा। उसके पहले संभल जा। पैसा-वेसा सब ठीक है लेकिन इसके लिए आकाश जैसे अच्छे लड़के को छोड़ देना अकलमंदी नहीं है।" पूनम के स्वर में शैली के लिए तिरस्कार का भाव था।

"मैं अपना पैसा उसके पिताजी की दवाइयों में या बहनों की पढ़ाई और शादी ब्याह में खर्च कर दूं तो बता मेरे पास जीवन का आनंद लेने के लिए क्या बचेगा? नई नई शादी को लेकर मेरे भी तो कुछ अरमान है। यह दिन बीत जाने के बाद वापस थोड़े ही आएंगे।" शैली ने अपना तर्क रखा।

"जैसी तेरी मर्जी। सच तो यह है कि विनीत के साथ रहते हुए तू बस अपने लिए जीना सीख गई है। तुझे जीवन में और किसी से कोई लेना देना नहीं रहा है। लेकिन विनीत पर अधिक भरोसा मत रखना वह शादीशुदा है। अपनी पत्नी को छोड़कर वह तुझे अपनाने से रहा। आकाश तुझे सच्चे मन से चाहता है। क्या हुआ अगर उसके साथ शुरुआती सालों में तू चकाचौंध भरी जिंदगी नहीं जी पाएगी पर उसका भविष्य उज्जवल है।" पूनम ने कहा और उठ कर अपनी सीट पर वापस आकर अपना काम करने लगी। वह जानती थी शैली की आंखों पर ग्लैमर की पट्टी चढ़ी हुई है। वह संघर्षपूर्ण जीवन या सामंजस्य के लिए किसी भी तरह से तैयार नहीं होगी।

विनीत को शैली और आकाश के बारे में कुछ भनक लग रही गई थी। शैली जिम की जिम्मेदारी निभाने में और लोगों को इंप्रेस करके जिम जॉइन करने के लिए प्रेरित करने में बहुत माहिर थी। विनीत उसके कारण काफी कुछ निश्चिंत था। वह किसी भी कीमत पर शैली को अपने हाथ से जाने नहीं देना चाहता था। उसने तुरंत ही शैली पर ज्यादा से ज्यादा ध्यान देना शुरू कर दिया। उसके लिए महंगे उपहार लाने लगा। पार्टियों में ले जाने लगा और जिम पर ज्यादा से ज्यादा समय उसके साथ गुजारने लगा। उसने शैली के घर आना जाना भी बढ़ा दिया।

शैली जो आकाश के साथ रहते हुए विनीत से दूर होने लगी थी अब आकाश को छोड़कर वापस विनीत के साथ इंवॉल्व होने लगी। उसने आकाश से शादी करने को साफ साफ मना कर दिया। आकाश ने जिम आना छोड़ दिया और फिर शैली से उसका कोई संपर्क नहीं रहा। शैली का जीवन वापस उसी ढर्रे पर चलने लगा। अब तो उसकी मां ने उससे शादी के लिए पूछना भी छोड़ दिया। पहले तो शैली दीपावली आदि त्योहारों पर घर भी जाती थी लेकिन लोगों की कानाफूसी और शादी के लिए की जा रही टोका टाकी से तंग आकर उसने वहां जाना छोड़ दिया। कभी माँ या भाई वगैरह ही उसके पास आ जाते।