Would you lend a book? in Hindi Motivational Stories by Neelima Sharrma Nivia books and stories PDF | क्या आप किताब उधार देंगे ?

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क्या आप किताब उधार देंगे ?

क्या पुस्तकें/ पत्रिकाएँ मांग कर पढना गलत हैं ?

मुझे बचपन से आदत थी जब तक कोई पत्रिका /पुस्तक/ अखबार मेरे सामने न हो मुझसे खाना नही खाया जाता था ।हमारे पूर्वज पाठ्यपुस्तक तो कई बार पढ़ ली थी और सब कहानियाँ मुँह ज़ुबानी याद थी ।

घर में दो अख़बार आते थे । अब वो
किसके रूम में हैं , इसको ढूँढने के लिये आठ कमरों वाला पूरा घर घूमना पड़ता था । खाना भले ही ठंडा होता जाए लेकिन अखबार न मिले तो मैं पड़ोस की चाची के घर से कोई न कोई पत्रिका उठा लाती थी . अंक नया हो या पुराना या कई महीने पहले का पढ़ा हुआ ...मुझे कोई फर्क नही पढता था ।

कई बार मेरी मासी कहती थी कि आँखे तो तेरी अक्षरों पर रहती हैं सब्जी में मसाला कैसा हैं इसका पता भी नही चलता होगा । कुछ भी पढ़ना सबसे पसंदीदा काम होता था उस ज़माने में । जब भी बहुत ज्यादा थकान होती थी या दोपहर में घर मे सब लोग सो जाते थे और मैं कोई भी पुस्तक या पत्रिका लेकर खुश हो जाती थी । शिवानी प्रेमचंद अमृता प्रीतम को पढ़ने का समय था और उनके पात्रो साथ जीने का भी ।

आज पढ़ना ही कम हो गया है । आज बच्चे गर्दन झुकाये इस मुट्ठी में बंद जादू की पिटारीनुमा मोबाइल में वेब सिरीज़ देखने मे व्यस्त रहते है ।उनको पढ़ने की , कहानी के पात्रो के साथ जीने की आदत ही नही रही । जबकि पढ़ना सबसे जरूरी हैं ।

आज माहौल भी ऐसा नही रहा कि आस-पास से पत्रिका या अखबार मांग कर पढ़ी जाए ।एक ही घर मे अलग अलग फ्लोर पर सब अलग अलग अखबार लेते हो है लेकिन माँगना बुरा समझा जाता हैं .. आपस में बोलते ही नही पत्रिका अखबार कैसे माँग सकते ? अब रोजाना या हर माह कितनी पत्रिका या अखबार खरीदी जा सकती हैं न अब किराये पर पुस्तके मिलती हैं न पुस्तकालय हैं अब आस-पास ।

ऑनलाइन पढने में वोह मजा कहा जो प्रिंट में पढने का हैं .लेकिन जो ऑनलाइन बुक पढ़ते है उनको प्रिंट पुस्तके भारी लगती है ।हल्का फुल्का किंडल /नुक लिया और किताबे पढ़ ली ।

सौ बात की एक बात .कुछ दिन पहले किसी से एक पुस्तक माँग कर लायी हूँ पढने के लिए और अपनी खरीदी एक पुस्तक देकर आई हूँ पढ़ने के लिए .और हाँ अपनी पुस्तक के पीछे अपने नाम पते फोन नंबर के साथ यह लिखना नही भूली ( कृपया पढ़ने के बाद पुस्तक वापिस करना न भूलियेगा )
:D
अक्षरों में अपना नाम देखना कितना सुखद लगता है न ।कोई भी मनपसन्द किताब खरीदिये ओर उस पर अपना नाम लिखकर रख लीजिए जब समय मिल जाये पढियेगा। आपको अच्छी बुरी जैसी भी लगे पुस्तक लेखक को जरूर बताएं ।

हिंदी लेखक को वैसे भी रॉयलिटी नहीं मिलती सिर्फ पाठक से चंद शब्द ही तो माँगता है लेखक ।

तो लिखेंगे न पाठक बनकर लेखक को एक मेल/संदेश

उसके पहले आइये मिलते है न किताब बदलने के लिए



#निविया