Sholagarh @ 34 Kilometer - 25 in Hindi Detective stories by Kumar Rahman books and stories PDF | शोलागढ़ @ 34 किलोमीटर - 25

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शोलागढ़ @ 34 किलोमीटर - 25

फिल्म


हीरों का व्यापारी बना इंस्पेक्टर सोहराब इस वक्त कैप्टन किशन के सामने बैठा हुआ था। यह जगह कैप्टन किशन का ऑफिस थी।

किसी के दफ्तर को देखकर उसके बारे में काफी कुछ जाना जा सकता है। कैप्टन किशन के मिजाज के मुताबिक ही उसका ऑफिस काफी बड़ा और सलीके से सजाया गया था। बड़ी-बड़ी खिड़कियों पर रेशमी पर्दे झूल रहे थे। उन पर्दों पर उड़ती चिड़ियों की तस्वीरें थीं। बैकग्राउंड में जंगल का मंजर था।

कैप्टन किशन के ठीक पीछे की पूरी दीवार पर एक बड़ा सा कांच लगा हुआ था। कांच के पीछे जंगल का दृश्य था। लाल पत्तियों वाले कई सारे दरख्त नजर आ रहे थे। सामने कांच लगी होने से ऐसा एहसास होता था कि उसके पीछे सचमुच का जंगल है। सिर्फ इतना ही नहीं था। लाइट का संयोजन कुछ इस तरह का रखा गया था कि वक्त के साथ ही जंगल के इस दृश्य की रोशनी भी बदलती रहती थी। रात होने पर यहां अंधेरा छा जाता था।

सोहराब हीरों का व्यापारी बनकर पिछली बार उससे मिलने उसकी कोठी पर गया था। तब वह लॉन में ही बैठे थे। आज यह मुलाकात कैप्टन किशन के ऑफिस में हो रही थी।

“सांई! मैं कह रहा था कि शोलागढ़ फिल्म जल्द से जल्द पूरी कर डालिए। हम जितनी जल्दी फिल्म रिलीज करेंगे उतनी ही ज्यादा कमाई होगी।” हीरों के व्यापारी बने सोहराब ने आवाज बदलते हुए कहा।

“आप एक दम परेशान न होइए। बस कुछ ही सीन बचे हुए हैं। हम जल्द ही उन्हें पूरा करने के बाद एडिटिंग और डबिंग का काम शुरू कर देंगे।” कैप्टन किशन ने कहा।

“शेयाली का तो कोई सीन नहीं बचा हुआ है?”

“नहीं, उसके सारे सीन शूट हो चुके हैं। कुछेक लांग शॉट के सीन हैं... हम उन्हें बॉडी डबल पर शूट कर लेंगे।” कैप्टन किशन ने कहा, “बस थोड़ा डबिंग में दिक्कत आएगी। उसके लिए हम पूरी आवाज ही किसी दूसरे की इस्तेमाल करेंगे।”

“फिर तो काम बढ़ जाएगा?” सोहराब ने पूछा।

“कुछ खास नहीं।” कैप्टन किशन ने कहा। फिर उसने पूछा, “आप फिल्म रिलीज कब करना चाहते हैं?”

“साईं! आप आज हमें प्रिंट दे दें, हम कल रिलीज कर देंगे।” सोहराब ने कैप्टन किशन की आंखों में देखकर मुस्कुराते हुए कहा।

“प्लानिंग क्या है आपकी?” कैप्टन किशन ने पूछा।

“देखो सांई, हॉरर फिल्मों की रिलीज का कोई सीजन तो होता नहीं। न किसी त्योहार का इंतजार करना होता है।” सोहराब ने हाथों के दोनों अंगूठों को उठाते हुए कहा, “बस मैं प्रमोशन जबरदस्त करना चाहता हूं। प्रमोशन की पंच लाइन होगी ‘देखिए शेयाली की आखिरी फिल्म’।”

सोहराब की इस बात पर कैप्टन किशन के चेहरे पर एक रंग आकर चला गया। उसने सोहराब की तरफ देखते हुए जरा गर्मजोशी से कहा, “आपको रोकड़ जरा बढ़ना होगा।”

“साईं! रोकड़ की बात मत करो। हम आपका कमाई में परसेंटेज बढ़ा रहे हैं न। आप पहले फिल्म तो जल्दी से कंपलीट करो।”

“बस थोड़ा इंतजार और।” कैप्टन किशन ने कहा।

“साईं! आप किसी मोबाइल ऐप के भी तो ओनर हो।”

“हां... एक ऐप है न अपना। दो हफ्तों में ही उसकी डाउनलोडिंग एक करोड़ से ऊपर पहुंच गई है।” कैप्टन किशन ने बड़ी खुशी से उसे बताया फिर पूछने लगा, “ऐप का क्या करना है... कोई प्रोजेक्ट है क्या?”

“अपन उस पर भी प्रमोशन करेंगे न साईं!” सोहराब ने कहा।

“उस पर ऐड के लिए रोकड़ लगेगा।” कैप्टन किशन ने हंसते हुए कहा।

“तुम रोकड़ की फिक्र मत करो। वह अपन के पास बहुत है।” सोहराब ने कहा और जाने के लिए उठ खड़ा हुआ। उसने कैप्टन किशन के पीछे की सीनरी पर अंधेरा फैलते देख लिया था।

कैप्टन किशन ने उससे बड़ी गर्मजोशी से हाथ मिलाया। वह कुछ रस्मी गुफ्तुगू करते हुए उसे लॉन तक छोड़ने भी आया। बाहर हलका अंधेरा फैल चुका था। सोहराब फैंटम पर सवार हो गया और शोफर ने कार आगे बढ़ा दी।


निगरानी


विक्रम खान अपने बंग्ले में कैद हो कर रह गया था। इस दौरान उसने दो बार निकलने की कोशिश की थी, लेकिन दो लोगों को अपनी निगरानी करते पाया था। उसके बाद वह लौट गया था। उसने समझा था कि यह क्लब में मिले विदेशी के संगी-साथी हैं। उसने दोनों बार ही सोहराब को फोन मिलाया था, लेकिन उसकी कॉल नहीं लगी थी।

विक्रम अभी भी शेयाली के बंग्ले में ही रह रहा था। बंग्ला शब्द का मतलब होता है बंगाल का। शुरू में इस तरह के मकान बंगाल में बनाए जाते थे। अंग्रेजों ने इस तरह के मकानों को बैंग्लो नाम से पुकारना शुरू कर दिया। बंग्ला उसी का अपभ्रंश है। फैजाबाद जिले का भी पुराना नाम बंग्ला था। नवाब सआदत अली खां ने यहां अपनी रिहाइश के लिए बंग्ला बनवाया था। उसी के नाम पर शहर का नाम बंग्ला पड़ गया। उमराव जान नावेल और फिल्म में फैजाबाद को बंग्ला नाम से भी पुकारा गया है।

विक्रम जिन्हें विदेशी का साथी समझ रहा था, दरअसल उन्हें सोहराब ने उसकी सुरक्षा के लिए लगवाया था। पिछले दिनों विक्रम पर गोली चलाई गई थी। उसके बाद से ही दो सिपाही उसकी निगरानी में लगाए थे।

शेयाली के लापता होने के बाद विक्रम ने अपनी दिनचर्या काफी सीमित कर ली थी। अब वह सिर्फ और सिर्फ अपने काम पर फोकस करना चाहता था। उसने आज फिर स्टूडियो जाने की तैयारी की थी। उसने कोट की जेब में इटली मेड पिस्टल रख ली थी। उसने तय कर लिया था कि अगर उस पर हमला हुआ तो वह मुकाबला करेगा।

शाम हो रही थी। विक्रम कार में सवार हुआ और कार बाहर निकल आई। उसके बंग्ले से कुछ दूरी पर एक आदमी बेंच पर बैठा अखबार पढ़ रहा था। विक्रम उसे नजरअंदाज करता हुआ आगे बढ़ गया। कुछ आगे जाने के बाद उसने कार के बैक मिरर में देखा, लेकिन पूरी सड़क खाली पड़ी थी। उसका पीछा नहीं किया जा रहा था। उसने इत्मीनान की सांस ली और कार की स्पीड बढ़ा दी।

कुछ देर के सफर के बाद कार डे स्ट्रीट की तरफ मुड़ गई। इसी रोड के एक फ्लैट में उसका स्टूडियो था। यहीं विक्रम पेंटिंग बनाता था।

कार को पार्क करके जब वह अपने फ्लैट पर पहुंचा तो उसे ताला खुला हुआ मिला। उसके आश्चर्य का ठिकाना न रहा। वह अंदर पहुंचा तो यहां का नजारा ही बदला हुआ था। पूरा हाल उलट-पुलट कर रख दिया गया था। वह दूसरे कमरे में पहुंचा। वहां ज्यादा छेड़छाड़ नहीं हुई थी।

उसने एक्सटेंशन से फोन मिलाकर गार्ड को ऊपर बुला लिया। गार्ड कसमें खा रहा था कि उसने किसी को ऊपर जाते हुए नहीं देखा। विक्रम ने उसे जमकर फटकार लगाई। उसे वापस भेजने के बाद वह कोतवाली के नंबर डायल करने लगा।

दूसरी तरफ से कोतवाली इंचार्ज मनीष की आवाज सुनाई दी। विक्रम ने उसे पूरी बात बता दी। कुछ देर बाद मनीष दो हमराहियों के साथ डे स्ट्रीट की तरफ निकल पड़ा।

स्टूडियो पहुंचकर मनीष ने मौका मुआयना किया, लेकिन उसे कोई खास बात नजर नहीं आई। सिवाए इसके कि सारी पेंटिंग बुरी तरह से बिखरी हुईं थीं।

विक्रम ने गार्ड से नया ताला मंगवाकर लगवाया और उसे ताकीद करते हुए रिपोर्ट दर्ज कराने के लिए मनीष के साथ कोतवाली रवाना हो गया।


बाउंसर


फैंटम अब रेड मून नाइट क्लब की तरफ जा रही थी। सड़क पर इस वक्त हर तरफ रंगीनियां बिखरी पड़ी थीं। गर्मी के दिन थे। लोग शाम होते ही बाहर घूमने निकल पड़ते थे। सड़क पर रश ज्यादा होने की वजह से फैंटम स्पीड नहीं पकड़ पा रही थी। सोहराब पीछे की सीट पर बैठा सिगार पी रहा था। वह किसी गहरी सोच में डूबा हुआ था।

क्लब पहुंच कर सोहराब सीधे जुआखाने वाले हिस्से में चला गया। जुआखाने में अभी ज्यादा भीड़ नहीं थी। जुआखाना रात नौ बजे के बाद अपने शबाब पर होता था।

सोहराब कोने की खाली मेज के सामने पड़ी कुर्सी पर जाकर बैठ गया। उसने जेब से नोटों की एक गड्डी निकाली और टेबल पर रख दी। एक बाउंसर उसके पास आया और टेबल से रुपये उठाकर चला गया। कुछ देर बाद वह क्वाइन लेकर आया और सोहराब की टेबल पर रख दी।

यह वही बाउंसर था, जिसने पिछले दिनों फर्जी तौर पर कत्ल होने का ड्रामा किया था। उसे पुलिस ने पकड़ भी लिया था, लेकिन बाद में सोहराब ने उसे आजाद करा दिया था। वह कई हफ्तों गायब रहा। लौटने के बाद उसने पूछने वालों को कहानी सुना दी कि गोली ने ज्यादा गहरा घाव नहीं दिया था और वह बच गया है।

बाउंसर क्वाइन रखकर जाने लगा तो सोहराब ने उसे रोक लिया। वह आकर सोहराब के पास खड़ा हो गया। सोहराब ने पांच-पांच सौ के दो नोट बढ़ाते हुए बदली हुई आवाज में कहा, “यह तुम्हारे लिए है।”

बाउंसर खुश हो गया और नोट लेकर तुरंत ही पैंट की जेब के हवाले कर दिया। उसके बाद पूछा, “काम बताइए सर!”

“आदमी समझदार हो।” सोहराब ने कहा, “विक्रम के खान के बारे में पूरी डिटेल चाहिए। वह क्लब में कब-कब आता है? वह आम तौर पर कितने रुपये जुए में उड़ाता है? और उस पर क्लब का कितने रुपये क्रेडिट है?”

बाउंसर जाने लगा तो सोहराब ने धीमी आवाज में कहा, “सारी डिटेल एक घंटे में चाहिए।”

बाउंसर के जाने के बाद सोहराब वहां से उठ गया और जुए की एक टेबल पर जाकर बैठ गया। वहां ताश के पत्ते फेंटे जा रहे थे। सोहराब ने भी बाजी लगाना शुरू कर दिया। वह धीरे-धीरे हारता जा रहा था। उसके बाद उसने जीतना शुरू किया। जब उसकी हारी हुई रकम वापस आ गई तो वह वहां से उठ गया।

सोहराब अपनी पुरानी टेबल पर लौट आया। वह अभी भी खाली थी। एक घंटे से ज्यादा गुजर चुके थे। उसे ज्यादा इंतजार नहीं करना पड़ा। बाउंसर आता दिखाई दिया। वह उसके सामने आकर बैठ गया।

“क्या रिपोर्ट है?” सोहराब ने पूछा।

बाउंसर किसी रेडियो की तरह चालू हो गया, “सर, विक्रम सर पहले तो रोज ही आते थे, लेकिन इधर उनका आना काफी कम हो गया है। बल्कि वह पिछले काफी दिनों से यहां नहीं दिखे हैं। और उन पर दो करोड़ रुपये क्रेडिट हैं।”

“बदले में कुछ जमा कराया होगा।”

“जी हां, पांच करोड़ रुपये की एक प्लेटिनम और हीरे वाली घड़ी जमा कराई थी।”

“कोई और खास बात?”

“नहीं सर!” बाउंसर ने कहा, फिर कुछ सोचते हुए बोला, “हां... एक बात है... कभी-कभी उनके साथ एक मैडम जरूर आती थीं।”

उसकी इस बात पर सोहराब चौंक उठा। उसने बाउंसर से पूछा, “अगर उन मैडम की तस्वीर दिखाई जाए तो पहचान लोगे?”

“जी सर... बिल्कुल!” बाउंसर ने जवाब दिया।

सोहराब ने क्वाइन बाउंसर के हवाले कर दिए। वह उन्हें रुपयों में कनवर्ट करके ले आया। मूल रकम से जीती गई राशि सोहराब ने बाउंसर के हवाले कर दी और वहां से उठ गया।

सोहराब जब कोठी पर पहुंचा तो रात के साढ़े दस बज रहे थे। नौकरों ने बताया कि सलीम और श्रेया दोनों ही अभी तक सोए हुए हैं। उसने नौकर से डायनिंग टेबल पर खाना सजाने को कहा। इसके बाद वह सीधे सलीम के कमरे की तरफ बढ़ गया। सलीम गहरी नींद में सो रहा था। सलीम को सोते हुए चार घंटे से ज्यादा हो गए थे। उसने सलीम को जगा दिया। वह उठकर बैठ गया। उसकी आंखें लाल हो रही थीं। कुछ देर बाद ही झाना ब्लैक कॉफी ले आया।

सोहराब ने सलीम को कॉफी बना कर दी। कुछ चुस्कियों के बाद ही उसमें स्फूर्ति का संचार होने लगा। काफी खत्म करने के बाद सलीम वाशरूम में चला गया। सोहराब ने एक्सटेंशन से श्रेया के नंबर डायल किए, लेकिन कई घंटियों के बाद भी फोन नहीं उठा।

सलीम मुंह पर पानी के छींटे मारने के बाद वाशरूम से निकल आया। दोनों बेडरूम से कारिडोर में आ गए। सोहराब डायनिंग हाल की तरफ चला गया। सलीम ने वहीं रुक कर श्रेया के कमरे के दरवाजे पर नॉक किया। दरवाजा हलका सा खुल गया। कमरे में अंधेरा फैला हुआ था। सलीम ने दरवाजा भेड़ दिया और बाहर से ही श्रेया को आवाज देता रहा, लेकिन श्रेया की कोई आवाज नहीं आई।


*** * ***


सोहराब को शेयाली की फिल्म में इतना इंट्रेस्ट क्यों था?
क्या श्रेया कहीं गायब हो गई?
विक्रम के स्टूडियो में खोजबीन का राज क्या था?

इन सवालों के जवाब पाने के लिए पढ़िए जासूसी उपन्यास ‘शोलागढ़ @ 34 किलोमीटर’ का अगला भाग...