Journey to the center of the earth - 41 in Hindi Adventure Stories by Abhilekh Dwivedi books and stories PDF | पृथ्वी के केंद्र तक का सफर - 41

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पृथ्वी के केंद्र तक का सफर - 41

चैप्टर 41

भूख।

लंबे समय तक भूख लगना, कुछ समय का पागलपन है! मस्तिष्क जब आवश्यक भोजन के बिना अपने काम पर हो तो सबसे शानदार धारणाओं से मन भर जाता है। इसलिए मुझे कभी नहीं पता था कि वास्तव में भूख का क्या मतलब है। अब मुझे इसे समझने की संभावना दिख रही थी।

और फिर भी, तीन महीने पहले तक मैं अपनी भुखमरी की भयानक कहानी बता सकता था, जैसा कि मैंने सोचा था। एक बच्चे के रूप में मैं प्रोफ़ेसर के पड़ोस में अक्सर खोज किया करता था।

मेरे मौसाजी ने हमेशा व्यवस्था पर काम किया, और उनका मानना ​​था कि, विश्राम और पूजा के दिन के अलावा, मनोरंजन का दिन होना चाहिए। इसके तहत, मैं हमेशा ऐसा करने के लिए स्वतंत्र था और ऐसा मुझे बुधवार को करना पसंद था।

अब जैसी मेरी धारणा थी, मुझे उपयोगी और सुखद चीजों को मिलाना पसंद था इसलिए, मेरा पसंदीदा शगल पक्षियों का घोंसला बनाना था। पूरे शहर में अंडे का सबसे अच्छा संग्रह मेरे पास था। उन्हें कांच के खाँचे में वर्गीकृत किया गया था।

वहाँ एक जंगल था जहाँ मैं सुबह जल्दी उठकर, और आसानी से ट्रेन लेकर, सुबह ग्यारह बजे पहुँच सकता था। यहाँ मैं अपनी इच्छा से वनस्पति शास्त्र वैज्ञानिक या भूगर्भ शास्त्र वैज्ञानिक बन जाता। मेरे मौसाजी अपने जड़ी-बूटी के नमूनों और पत्थरों को जांचने में हमेशा खुश रहते थे। जब भी मैंने अपना बटुआ भरा, मैं घोंसले की खोज के लिए आगे बढ़ जाता था।

एक दिन, करीब दो घंटे की मेहनत के बाद एक नहर के किनारे मैं अपने ठंडे लेकिन प्रचुर भोजन के साथ बैठा। कैसे उन मसालेदार चटनी, गेंहू के आटे से बना पाव रोटी और बियर के बारे में सोचते ही मेरे मुँह में पानी आ गया! मैंने ऐसे भोजन के लिए हर सांसारिक धन का संभवतः त्याग कर दिया होता, लेकिन सिर्फ मेरी कहानी में।

इसी प्रकार अपने खाली समय में बैठे, मैंने एक पुराने महल के खंडहरों को देखा, जो ज़्यादा दूरी पर नहीं थे। यह ऐतिहासिक आवास जो लताओं से आच्छादित था, अब गिरकर टुकड़ों में बिखरने वाला था।

उन्हें देखते हुए, मैंने देखा कि दो चील एक बुलंद मीनार के शिखर पर चक्कर लगा रहे हैं। मैं जल्द ही समझ गया कि वहाँ एक घोंसला था। अब, मेरे सभी संग्रह में सिर्फ जंगली चील और विशाल उल्लू के अंडों की कमी थी।

मेरा मन बन गया था। या तो मैं प्रयास से उस मीनार के शिखर पर पहुँचूँगा या कोशिश बेकार जाएगी। मैं निकट गया, और खंडहरों का सर्वेक्षण किया। पुरानी सीढ़ियाँ, वर्षों पहले गिर चुकी थीं, हालाँकि बाहरी दीवारें बरकरार थीं। यहाँ कोई मौका नहीं था, जब तक कि मैं केवल तसल्ली के लिए लताओं में भी देखा। जल्द ही पता चला, सब व्यर्थ है।

चिमनी अब भी मौजूद है, जो ऊपर तक गई थी और कभी मीनार की हर कहानी को धुएँ के रूप में निकालने का काम करती थी।

इस पर मैं मेहनत करना चाहता था। यह संकरा, खुरदुरा था इसलिए अधिक आसानी से चढ़ा जा सकता है। मैंने अपना कोट उतार दिया और चिमनी में घुस गया। ऊपर की तरफ देखा तो एक छोटा सा मुँह था जहाँ से रोशनी आ रही थी और मीनार का शीर्ष था।

कुछ समय तक अपने हाथों और घुटनों का उपयोग करके, नए अंदाज में मीनार को साफ करते हुए मैं ऊपर तक पहुँच रहा था। यह धीमी गति से हुआ था, लेकिन खुरदुरे सतहों के कारण, कार्य तुलनात्मक रूप से लगातार आसान था। इस तरह, मैं आधे रास्ते तक पहुँच गया। चिमनी अब संकरी हो गई थी। मामला करीब था, और आखिरकार, इसे जल्दी पूरा करने से पहले ही, मैं फंस गया। मैं अब ऊपर नहीं जा सकता था।

इसमें कोई संदेह नहीं था कि उतरने के लिए अलावा और कोई विकल्प हो, और शानदार शिकार को निराशाओं में छोड़ दें। मैंने भाग्य का सम्मान किया और उतरने का प्रयास किया। लेकिन मैं हिल नहीं सका। किसी अनजाने और रहस्यमयी बाधा ने हस्तक्षेप किया और मुझे रोक लिया था। एक पल में डर ने मेरी पूरी स्थिति को घेर लिया था।

मैं किसी भी तरफ हिलने में असमर्थ था, और भुखमरी की भयानक और दर्दनाक मौत निश्चित थी। हालाँकि किसी भी लड़के के दिमाग में, लचक और आशा की मात्रा असाधारण होती है, और मैंने भी अपनी बदकिस्मती से बचने के लिए सभी प्रकार की योजनाओं के बारे में सोचना शुरू कर दिया।

सबसे पहले और फिलहाल मुझे भोजन की आवश्यकता नहीं थी, क्योंकि वो थोड़े देर पहले भरपूर था, और इसलिए सोचने के लिए सही मौका भी था। मेरा पहला विचार अपने हाथ से खरल को हिलाने की कोशिश करना था। अगर मेरे पास चाकू होता तो शायद कुछ किया जाता, लेकिन उस उपयोगी उपकरण को मैंने अपने कोट की जेब में छोड़ दिया था।

मैंने जल्द ही पाया कि इस तरह के सभी प्रयास व्यर्थ और बेकार थे, और मैं जो कुछ भी करने की उम्मीद कर सकता था, वह था कसमसाकर नीचे की तरफ निकलने की कोशिश।

हालाँकि मैंने खुद को काफी झकझोरा और संघर्ष के साथ मुड़ने का प्रयास किया लेकिन सब व्यर्थ था। मैं एक इंच भी इधर से उधर नहीं हो सका। और समय तुरंत गुज़रा। मेरे जल्दी उठने की आदत से मुझे जल्दी ही थकान होने लगी और मुझे नींद भी आने लगी।

भूख से तड़पते हुए उसी अंधकार में मैं सोया और जगा।

रात आ गई थी, और मैं फिर भी हिल नहीं सका। मैं मजबूत पकड़ में था, और अपनी स्थिति को एक भी इंच बदलने में असफल था। मैं जोर से कराह उठा। मेरे खुशहाल बचपन के दिनों के बाद से, जब खाने के लिए कोई जद्दोजहद नहीं थी, अब मुझे वास्तव में भूख का अनुभव हुआ था। संवेदना उतनी ही नवीन थी जितनी दर्दनाक थी। मैं अब अपना आपा खोने लगा और अपनी पीड़ा में चीखना, रोना शुरू कर दिया। मेरे शोर से, चौंककर कुछ प्रकट हुआ। यह एक हानिरहित छिपकली थी, लेकिन मुझे एक घृणित सरीसृप जैसी लगी। मैंने फिर से पुराने खंडहरों को अपनी चीख से गुंजायमान बनाया, और अंत में खुद इतना थक गया कि मैं बेहोश हो गया।

मैं कब तक इसी अवस्था या नींद में रहा, मैं नहीं कह सकता, लेकिन जब मैंने फिर से होश में आया तो दिन था। मेरी हालत कितनी बुरी थी, भूख से अब भी कितना व्याकुल था, यह कहना मुश्किल होगा। मैं अब चीखने के लिए बहुत कमजोर था, संघर्ष करने के लिए बहुत कमजोर था।

अचानक मैं एक दहाड़ से चौंका।

"क्या तुम वहाँ हो? हेनरी?" मेरे मौसाजी की आवाज ने कहा: "क्या तुम वहाँ हो, मेरे बच्चे?"

मैं केवल धीमी आवाज़ में प्रतिक्रिया दे सकता था, लेकिन मैंने मुड़ने के लिए भी काफी प्रयास किया। कुछ मसाले उस इमारत के गिर गए। इससे मैं समझ गया कि मुझे खोजा जा सकता है। जब खोजी हुई, तो आसानी से दिखा कि मसाले और पत्थर के छोटे टुकड़े हाल ही में ऊपर से गिरे थे। इसलिए मौसाजी चीखे।

"शांत रहो," उन्होंने कहा, "अगर हम पूरे खंडहर को गिराते हैं, तो तुम बच जाओगे।"

वो शब्द लाजवाब थे, लेकिन मुझे बहुत कम उम्मीद थी।

जल्द ही, लगभग एक घंटे के बाद मैंने ऊपरी भाग के एक हिस्से से आवाज सुनी।

"क्या आप नीचे हो या ऊपर?"

"नीचे।" मेरा जवाब था।

एक पल में दूध, एक बिस्किट और एक अंडे के साथ एक टोकरी नीचे उतारी गई। मेरे मौसाजी भोजन की आपूर्ति के साथ तैयार होकर भी भयभीत थे। मैंने पहले दूध पिया था, प्यास के कारण लगभग भूख मर गई थी। तब कुछ ताज़गी आयी, फिर मैंने अपनी रोटी और अंडे खाये।

वे अब दीवार पर काम कर रहे थे। मैं कुदाल की चोट को सुन सकता था। इस भयानक हथियार से सभी खतरे से बचने के लिए मैंने एक कोशिश की और बेल्ट, जो मेरी कमर से बंधा था और जो एक पत्थर पर टिका था, उसे खोल दिया। अब मैं स्वतंत्र था, और केवल अपने हाथों और घुटनों की तीव्र गति से नीचे गिरने से बच गया।

दस मिनट में, उस भयानक जेल में दो दिन और रात रहने के बाद, मैं अपने मौसाजी के गोद में था। मेरी इस परिस्थिति ने मुझे समय को आँकने का कोई मौका नहीं दिया।

उस भयानक भुखमरी के कष्ट से उबरने में मुझे कई हफ्ते लगे थे; तो उसके मुकाबले अब जो कष्ट मैंने सहन किया वो क्या था?

कुछ समय तक सपने देखने के बाद, और इसके अलावा अन्य मामलों के बारे में सोचने के बाद, मैंने एक बार फिर अपने चारों ओर देखा। हम अब भी भयानक तेज़ी के साथ आगे बढ़ रहे थे। हर थोड़े देर में हवा हमारे सांस को ऐसे रोक रही थी जैसे वैमानिकी के दैरान उसके चालक को होता है जब उसके गुब्बारे का आरोहण बहुत तेज होता है। लेकिन अगर वो वातावरण में प्राप्त होने वाली ऊंचाई के अनुपात में ठंड की एक डिग्री महसूस करते हैं, तो हमने काफी विपरीत प्रभाव का अनुभव किया था।ताप के असाधारण और अत्यधिक तेजी से गर्मी बढ़ने लगी थी। मैं वास्तव में इसका अर्थ नहीं बता सकता, लेकिन मुझे लगता है कि यह एक सौ बाईस डिग्री फ़ारेनहाइट तक पहुँच गया होगा।

तापमान में इस असाधारण बदलाव का मतलब क्या था? जहाँ तक ​​हम गए थे, तथ्यों ने डेवी और लीडेनब्रोक के सिद्धांतों को सही साबित किया था। अभी तक, बिजली के, दुर्दम्य चट्टानों के, चुंबकत्व के, अजीबोगरीब स्थिति ने प्रकृति के सामान्य नियमों को संशोधित किया था, और हमारे लिए एक सामान्य तापमान रखा था; केंद्रीय अग्नि के सिद्धांत, मेरी नजर में, एकमात्र व्याख्यायित रहा।

क्या हम फिर किसी ऐसी स्थिति में पहुँचने वाले हैं, जिसमें इन घटनाओं को उनकी सारी कठोरता से अंजाम दिया जाना है, जहाँ गर्म चट्टानें संलयन की स्थिति में आ जाएगी?

यह मेरा अप्राकृतिक डर नहीं था, और मैंने अपने मौसाजी से इस तथ्य को नहीं छिपाया। मेरा तरीका भले भावहीन और हृदयहीन हो सकता है, लेकिन मैं इसके लिए कुछ नहीं कर सकता।

"अगर हम डूब नहीं रहे हैं, या चिल्ला की तरह बिखर नहीं रहे हैं, और हम भुखमरी से नहीं मरते हैं, तो हमें यह जानकर संतुष्ट होना चाहिए कि हम ज़िंदा जलेंगे।"

मेरे मौसाजी ने अपना रूखापन जताते हुए अपने कंधों को उचकाया और फिर से वापस अपने ध्यान में मग्न हो गए - चाहे वो जो भी हो।

एक घंटे का समय बीत गया और सिवाय इसके कि तापमान में मामूली वृद्धि हुई, किसी भी घटना ने स्थिति को बदला नहीं।

मेरे मौसाजी ने आखिरकार खुद ही अपनी चुप्पी तोड़ी।

"ठीक है, हेनरी, मेरे बच्चे," उन्होंने हँसते हुए कहा, "हमें अपना मन बनाना चाहिए।"

"क्या करने के लिए हमें मन बनाना है?" काफी आश्चर्य से मैंने पूछा था।

"किसी अच्छे चीज के लिए। अपनी शारीरिक शक्ति को बढ़ाने के लिए जो भी जोखिम उठा सकें। यदि हम अपने भोजन के छोटे अवशेषों को प्राप्त करने की भयानक ग़लती नहीं करते हैं, तो शायद कुछ घंटों के लिए हम अपने विकट स्थिति को और लम्बा खींच सकेंगे - लेकिन अंत तक कमज़ोर पड़ जाएँगे। "

"हाँ," मैंने जोश से कहा, "अंत तक। हालाँकि हमें लंबे समय तक इंतजार नहीं करना पड़ेगा।"

"अच्छा, लेकिन खुद को सुरक्षा का एक मौका ज़रूर देना चाहिए - केवल यह सुनिश्चित करो कि कार्रवाई का यह क्षण आवश्यक है - हमारे खोज का क्या औचित्य रहेगा जब हम खुद को शारीरिक कमजोरी में झोंक देंगे?"

"मौसाजी, अगर यह मांस का टुकड़ा खा लिया जाता है, हमसे क्या उम्मीद रहेगी?"

"कुछ नहीं, मेरे प्यारे हेनरी, कुछ नहीं। लेकिन क्या इसे देखते रहने से कुछ हासिल होगा? तुम उनकी तरह बेतुकी बात कर रहे हो जो निराशावादी और निरुत्साहित होकर निर्णय करने में असमर्थ होते हैं।"

"फिर," मैंने कहा, एक हद तक इतना विचलित हो गया जिसे स्पष्ट रूप से समझाना मुश्किल है, "कहीं आपके कहने का मतलब यह तो नहीं है कि - आपने - यानी आपने अभी भी कोई उम्मीद नहीं छोड़ी है।"

"निश्चित रूप से नहीं," घाघ रूप से शान्तचित्त होते हुए प्रोफ़ेसर ने उत्तर दिया।

"मौसाजी, आपके कहने का मतलब है कि हम इस राक्षसी भूमिगत सफर से बाहर निकलेंगे?"

"जब तक जीवन है, उम्मीद है। मैं जोर देकर कहता हूँ हेनरी, कि जब तक आदमी का दिल धड़कता है, जब तक इंसान की मांसपेशियों में जान है, मैं यह नहीं मानता कि एक निराशाजनक विचार के साथ खुद को किसी निराशा के अधीन कर देना चाहिए।"

क्या आदमी है यह! हम जिस स्थिति में है उसमें इस तरह से बोलने के लिए बहुत बहादुरी वाली बात है।

"अच्छा" मैंने कहा, "आपके कहने का क्या मतलब है?"

"हमारे पास जो भोजन बचे हैं उन्हें खाया जाय, हमें आखिरी टुकड़ा निगल लेना चाहिए। हमारे अंतिम भोजन का प्रबंध भगवान की मर्जी पर होगा। इसलिए ज़्यादा मत सोचो - सूख कर कंकाल होने के बजाय, हमें इंसान बने रहना है।"

"सही बात है," निराशा भरे लहजे में मैंने कहा, "हमें अपना पेट भरना चाहिए।"

"हम सबको ज़रूर," एक गहरी सांस लेते हुए मेरे मौसाजी ने कहा था, "तुम चाहे इसे जैसे बुलाओ।"

मेरे मौसाजी ने मांस का एक टुकड़ा ले लिया, और बिस्किट के कुछ टुकड़े जो मलबे से बच गए थे, उन्हें तीन भागों में उन्होंने विभाजित किया।

प्रत्येक के पास भोजन का एक पाउंड था जो तब तक के लिए पर्याप्त था जब तक वह पृथ्वी के गार में रहता था।

प्रत्येक ने अब अपने निजी चरित्र के अनुसार काम किया।

मेरे मौसाजी, यानि प्रोफ़ेसर, लालच से खा रहे थे, जाहिर है भूख के बिना, बस यांत्रिक गति से खाये जा रहे थे। मैंने भोजन को अपने मुँह में रखा, और जैसा कि मैं भूखा था, और बिना खुशी के और बिना संतुष्टि के चबाने लगा।

हैन्स, हमारा मार्गदर्शक, जैसे कि उसने बत्तख शिकार किया हो, हर कौर निगल लिया, और उसके लिए ऐसा था जैसे यह सामान्य मामला हो। वह एक ऐसे व्यक्ति की तरह दिख रहा था जो अन्न की अधिकता या सबकुछ मिलने का आनंद लेने के लिए समान रूप से तैयार था।

हैन्स भी संभवतः हमारी तरह भुखमरी का अभ्यस्त नहीं था, लेकिन उसके कठोर आइसलैंडिक स्वभाव ने उसे कई कष्टों से लड़ने के लिए तैयार कर दिया था। जब तक उसे हर शनिवार रात अपने तीन रिक्स-डॉलर्स प्राप्त हो रहे थे, तब तक वह किसी भी चीज के लिए तैयार रहता था।

बात यह थी कि हैन्स ने कभी भी अपने पैसे को छोड़कर खुद को ज्यादा परेशान नहीं किया। उसने प्रति सप्ताह एक निश्चित आदमी की सेवा करने के लिए खुद को तत्पर किया था, और जब तक उसे पैसे मिल रहे थे, ना तो उसी किसी बात की शिकायत थी और ना ही उसे किसी भी विपत्ति से कोई परेशानी थी, चाहे वो उसपर आये या उसके मालिक पर।

अचानक मेरे मौसाजी उठ खड़े हुए। उन्होंने हमारे मार्गदर्शक के चेहरे पर मुस्कान देखी थी। मैं नहीं देख पाया था।

"क्या बात है?" मेरे मौसाजी ने पूछा।

"शीदम," मार्गदर्शक ने उस कीमती तरल पदार्थ की एक बोतल को बढ़ाते हुए कहा।

हमने उसे पिया। मेरे मौसाजी और मैं अपने मौत के आखरी दिन तक साथ होंगे, इसलिए हमने आखिरी कठिन पल तक अस्तित्व में रहने के लिए उससे ताकत हासिल की। हॉलैंड की वह अनमोल पेय वास्तव में केवल आधी भरी थी; लेकिन इन परिस्थितियों में, वह अमृत था।

इस विषय पर एक निश्चित राय बनाने में मुझे और मेरे मौसाजी को कुछ मिनट लगे। योग्य प्रोफ़ेसर ने लगभग आधा पेय निगल लिया था और इससे ज़्यादा पीने में सक्षम नहीं लग रहे थे।

"फोर्टरफलीग," हैन्स ने सबकुछ लगभग निगलते हुए कहा।

"बहुत बढ़िया - बहुत अच्छा," मेरे मौसाजी ने कहा, उसी उत्साह के साथ जैसे कि उन्होंने अभी-अभी हैम्बर्ग के किसी जलसे से निकलते हुए उसे पीछे छोड़ दिया हो।

मुझे ऐसा लगने लगा था मानो उम्मीद की एक झलक मिल गई हो। भविष्य की सारी चिंता अब गायब हो गयी थी!

हमने अपने भोजन के अंतिम अंश का सेवन किया, और सुबह के पाँच बजे चुके थे!