Freedom - 37 in Hindi Fiction Stories by राज कुमार कांदु books and stories PDF | आजादी - 37

Featured Books
Categories
Share

आजादी - 37



कमाल के हाथों से लाइसेंस लेकर उसके पन्ने पलटते हुए दयाल ने सरसरी निगाहों से उसका निरिक्षण करते हुए उसे अपनी जेब के हवाले कर दिया । लाइसेंस जेब में रखते ही कमाल एक तरह से तड़प ही उठा था । विनती भरे स्वर में दयाल की खुशामद करते हुए बोल उठा ” साहब ! मेरा लाइसेंस ! सब ठीक तो है न ? ”
उसकी तड़प को अच्छी तरह महसूस करते हुए दयाल ने बिना रुके ही उसे जवाब दिया ” कमाल भाई क्यों फिकर कर रहे हो ? सब तुम्हें वापस मिल जायेगा बस जरा हमारी छानबीन पूरी हो जाये ।
टेम्पो के पीछे पहुँच कर दयाल ने कमाल से कहा ” हां ! अब बताओ ! क्या लदा है इसमें ? ”
कमाल ने जवाब दिया ” क्या साहब ! आपको पहले भी बताया तो कि उसमें कुछ परचुरण सामान लदा है लेकिन पता नहीं क्यों आप परेशान हो रहे हैं ? ”
” ज्यादा मत बोलो , यह हम पहले भी कह चुके हैं और हाँ ! एक बात और हमें पुलिसिया रूप दिखाने पर मजबूर मत करो । हमारा सहयोग करो । समझे ? ” दयाल ने शालीनता से अपनी नाराजगी जाहिर की थी ” चलो ! सामान चेक कराओ । ” फिर सिपाही को आवाज दिया ” रामसहाय ! गाड़ी में क्या है चेक करो ! ”
” जी साहब ! ” कहकर रामसहाय टेम्पो में झांक कर देखते हुए बोला ” साहब ! टेम्पो तो अन्दर से पूरा ख़ाली ही लग रहा है । कुछ खोखे पड़े हैं और नीचे पुआल बिछा है । बस ! ”
दयाल ने भी गाड़ी में झांकते हुए उसमें बिछे पुआल की तरफ देखा और कमाल से पूछा ” क्या मैं जान सकता हुं कि ये तुमने गाड़ी में पुआल क्यों बिछा रखा है ? ऐसा क्या है इन खोखों में जिसकी हिफाजत के लिए इतना इंतजाम किया हुआ है ? ”
अब तक मुनीर भी उनके करीब आ चुका था । लेकिन कमाल के निर्देश की वजह से वह खामोश ही रहा । कमाल ने तुरंत ही दयाल का जवाब देना मुनासिब समझा था ” फ़िलहाल तो इसमें ऐसा कुछ भी नुकसान होने वाला सामान नहीं है लेकिन कभी कभी टूटने फूटने वाला सामान भी लादना पड़ता है तब इस पुआल की जरुरत पड़ती है । इसलिए हम लोग इसमें हरदम ही पुआल बिछाए रखते है । ”
कुछ सोचने के अंदाज में दयाल ने आँखें सिकोड़ी और चहल कदमी करता हुआ बोल उठा ” अच्छा ! तुम उन लड़कों को जानते हो ? वो जो होटल में बैठे हैं । ”
कमाल ने ध्यान से ढाबे के अन्दर बैठे राहुल मनोज व बंटी की तरफ देखते हुए बोला ” नहीं साहब ! मैं तो इन बच्चों को यहाँ पहली बार देख रहा हूँ । क्यों ? कोई काण्ड किया है क्या इन लड़कों ने ? ”
दयाल ने रामसहाय को कमाल व मुनीर की पूरी जानकारी नोट करके उन्हें छोड़ देने के लिए कह दिया था । जेब में रखा कमाल का लाइसेंस उसने रामसहाय को दिया और उसे आवश्यक कार्यवाही पूरी करने के बाद लाइसेंस कमाल को वापस देने का निर्देश देकर दयाल पुनः ढाबे में आकर बैठ गया ।
उसकी नजर सामने की बेंच पर बैठे बच्चों पर पड़ी । एक बारगी तो उसके जेहन में बच्चों का ध्यान ही नहीं रहा था । वह उठा और राहुल के बगल में बैठते हुए मनोज से पूछ बैठा ” हाँ ! तो तुम कुछ कह रहे थे ? ”
जवाब राहुल ने दिया था ” हाँ अंकल ! हम ये बताना चाह रहे थे कि हम लोग चोर नहीं हैं और न ही भिखारी हैं । हम सभी अच्छे घरों से हैं लेकिन सब इन बदमाशों के चंगुल में फंस गए और अब इनकी कैद से आजाद होना चाहते हैं । हमें इनके बहुत से ठिकानों का पता है और अगर आप हमारी मदद करेंगे तो हम कई बडे गिरोह जो इस अनैतिक काम में लगे हैं उन्हें पकड़वाने में आपकी मदद करेंगे । ”
दयाल ने राहुल के सर पर स्नेह से हाथ फेरते हुए उसे भरोसा दिलाया ” अब चिंता न करो बच्चों ! अब तुम लोग आजाद हो …..”
अभी उसकी बात ख़तम भी नहीं हुई थी कि तीनों बच्चे ख़ुशी से उछल पड़े ” थैंक यू अंकल ! ”
तभी दयाल की नजर सामने टेम्पो के पास खड़े रामसहाय पर पड़ी । वह अपनी जेब में कुछ ठूंसते हुए कमाल से कुछ कह रहा था । मुस्कुराते हुए कमाल भी उससे कुछ कह रहा था । कमाल घूम कर दूसरी तरफ ड्राइविंग सिट की तरफ जाने लगा जबकि मुनीर पहले ही अपनी सिट पर बैठ गया था ।
दयाल अचानक उठा और तेज कदमों से रामसहाय की तरफ बढ़ने लगा ।
इधर विनोद जीप में बैठा लगातार राहुल के बारे में ही सोच रहा था । तेज गति से चल रही जीप में से सड़क किनारे गड़े हर मिल के पत्थर को ध्यान से देखता और फिर स्वयं पर ही झुंझला उठता । ‘ उफ्फ ! ये सफ़र तो ख़त्म होने का नाम ही नहीं ले रहा । रामनगर तो अभी भी बीस किलोमीटर दूर है । अभी और समय लगेगा । कितना ? ‘
तभी गाड़ी चलाते हुए चालक ने साथ में बैठे दरोगा से कहा ” साहब ! काफी देर हो गयी है गाड़ी चलाते चलाते । थोड़ी कहीं चाय हो जाती तो ……..”
दरोगा महेश शर्मा चालक के मन की बात समझ गया था । कलाई में बंधी घडी की तरफ देखते हुए उसने चालक से कहा ” कोई बात नहीं ! कोई अच्छा सा ढाबा देखकर गाड़ी खड़ी कर लो । वैसे भी हम जल्दी पहुंचे हैं यहाँ तक । और जल्दी जाकर हमें करना भी क्या है ? नाकाबंदी तो रामनगर पुलिस करेगी । हमें तो बच्चों के पाए जाने पर सिर्फ उनकी कस्टडी लेनी है । ”
दरोगा की इजाजत मिल जानेपर चालक के चेहरे पर ख़ुशी छलक पड़ी । अब उसकी नजरें अच्छे ढाबे की तलाश में लग गयी । नतीजतन गाड़ी की गति में फरक तो पड़ना ही था । इधर गाड़ी की गति धीमी हुई विनोद के धड़कनों की गति बढ़ गई ।
सड़क किनारे एक ढाबे का बोर्ड देखकर चालक ने गाड़ी की गति धीमी कर दी और थोड़ी ही देर में ढाबा आते ही उसने गाड़ी सड़क से उतारकर ढाबे के सामने मैदान में खड़ी कर दी ।
जीप रुकते ही दरोगा शर्माजी जीप से बाहर निकले । उनके साथ ही दोनों सिपाही और चालक भी बाहर निकल पड़े । विनोद न चाहते हुए भी गाड़ी से बाहर निकला और उन सबके साथ ही वह भी ढाबे की तरफ बढ़ा । शर्माजी को सामने ही पहले से खड़ी पुलिस की दूसरी जीप दिखाई पड़ी ।
उसकी तरफ कोई ध्यान दिए बिना सभी ढाबे में पहुंचे और नजदीक पहुंचते ही विनोद को लगा जैसे उसकी तपस्या सफल हो गयी हो ।
यही वो समय था जब दयाल चलते हुए टेम्पो के नजदीक पहुँचनेवाला था लेकिन मुनीर और कमाल की तरफ बढ़ते उसके कदम राहुल की तेज चीख की आवाज सुनकर अचानक ही ठिठक गए और उसने मुड़कर पीछे ढाबे की तरफ देखा ।


क्रमशः