इंस्पेक्टर सोहराब की टैक्सी शोलागढ़ की तरफ भागी चली जा रही थी। ड्राइवर काफी होशियार था। वह एक बराबर रफ्तार से टैक्सी चला रहा था। इंस्पेक्टर सोहराब पिछली सीट पर खामोशी से बैठा हुआ था। सफर लंबा था और उबाऊ भी, लेकिन वह इंस्पेक्टर सोहराब था। उसे ऐसे उबाऊ सफर भी बुरे नहीं लगते थे। ऐसा खाली वक्त जब करने को कुछ न हो तो उसका दिमाग तेज रफ्तार से दौड़ने लगता था।
इस वक्त भी वह केस की कड़ियां मिलाने की कोशिश कर रहा था। सब कुछ एक फिल्म की तरह उसके जेहन के पर्दे पर चल रहा था। शेयाली के समुंदर में डूबने से लेकर उसके ब्वायफ्रैंड तक। मोबाइल ऐप की लांचिंग, फिल्म, सार्जेंट सलीम का गायब हो जाना, पेंटिंग का मसला यह सब मामले उसके दिमाग में एक-एक करके आते चले गए।
शेयाली ने आत्म हत्या की थी, या यह महज एक हादसा था, या फिर उसके कत्ल की गहरी साजिश रची गई थी? सबसे बड़ा सवाल यही था। इंस्पेक्टर सोहराब ने अब तक जो तफ्तीश की थी और उससे जो नतीजे निकले थे, उससे सोहराब को यकीन हो गया था कि शेयाली की मौत नेचुरल तो हरगिज नहीं थी।
क्या शेयाली के इस केस से पेंटिंग का भी कोई ताल्लुक है? यह बात इंस्पेक्टर सोहराब की समझ में अब तक नहीं आई थी। न ही वह उस न्यूड पेंटिंग को इस केस से जोड़ ही पा रहा था। दिलचस्प बात यह थी कि उसने अभी तक सिर्फ पेंटिंग की चर्चा ही सुनी थी। उसने अभी तक पेंटिंग देखी भी नहीं थी।
इस पूरे केस में कई किरदार थे। उनकी कड़ियां भी नहीं मिल रहीं थीं। विक्रम के खान, हाशना, कैप्टन किशन, शैलेष जी अलंकार और विक्रम ने पेंटिंग के संबंध में एक विदेशी का भी जिक्र किया था। सारे किरदार अलग थे। सोहराब को कुछ कड़ियों की तलाश थी। वह जुड़ते ही सब कुछ साफ हो जाना था।
सार्जेंट सलीम के गायब हो जाने से इंस्पेक्टर सोहराब को काफी दिक्कत हो रही थी। अब उसे सारी तफ्तीश खुद करनी पड़ रही थी। सोहराब की एक परेशानी सलीम भी था। उसका भी अब तक कुछ अता-पता नहीं था।
और अब वह शोलागढ़ तक का सफर कर रहा था। दरअसल कैप्टन किशन और उसकी फिल्म का स्टोरी राइटर और डायरेक्टर शैलेष जी अलंकार सोहराब की कोठी पर केस के बारे में जानने आए थे। तभी शैलेष की जेब से सोफे पर एक कागज गिर गया था। उससे ही सोहराब को पता चला था कि शोलागढ़ में उनकी फिल्म ‘शोलागढ़ @ 34 किलोमीटर’ की शूटिंग होने वाली है। इसी के मद्देनजर वह वहां जाने के लिए निकल पड़ा था। सफर के लिए रात का वक्त इसलिए चुना था ताकि उसका पीछा न किया जा सके।
इंस्पेक्टर सोहराब जब शोलागढ़ के करीब पहुंचा तो उसने ड्राइवर से कहा, “शोलागढ़ से दो माइल स्टोन पहले मुझे उतार देना।”
“ओके सर!” ड्राइवर ने कहा।
कुछ देर बाद ड्राइवर ने टैक्सी रोक दी। टैक्सी में बैठे-बैठे ही इंस्पेक्टर सोहराब ने पर्स से रुपये निकाल कर दोनों तरफ का किराया अदा कर दिया। उसके बाद वह नीचे उतर आया। टैक्सी ड्राइवर वापस जाने के बजाए सीधे शोलागढ़ की तरफ चला गया। शायद वह किसी सवारी की तलाश में गया था, ताकि एक तरफ का किराया और कमा सके।
इंस्पेक्टर सोहराब पैदल ही शोलागढ़ की तरफ बढ़ चला।
“डरो नहीं जंगली बिल्ली है।” सार्जेंट सलीम ने श्रेया से कहा।
“तुम्हें कैसे पता।”
“जमीन से उसकी ऊंचाई से।” सार्जेंट सलीम ने कहा, “बढ़ती रहो, अभी वह भाग जाएगी।”
ऐसा ही हुआ। जंगली बिल्ली कुछ देर उन्हें देखती रही और उसके बाद भाग खड़ी हुई। सलीम और श्रेया झाड़ियों, पेड़ों से लटकती बेलों से बचते-बचाते आगे बढ़ते रहे।
दोनों के लिए यह एक बुरा सफर साबित हुआ था। एक न खत्म होने वाला सफर। सब कुछ अचानक ही शुरू हुआ और अब खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहा था। सलीम का मन हो रहा था कि यहीं पड़कर सो रहे। वह थक कर चूर हो गया था। मुश्किल यह थी कि वह फिर से जंगल में आ फंसा था। उसे एकदम अंदाजा नहीं था कि वह कहां है और किन खतरों में है।
यह भी मुमकिन था कि वह घूम-फिर कर फिर उन्हीं जंगलियों में जा फंसे। सलीम को यह भी अंदाजा था कि वह जंगली उसका कुछ नहीं करेंगे, लेकिन वह श्रेया के लिए फिक्रमंद था। जंगली इस बार उसे नहीं छोड़ने वाले थे। श्रेया ने ऐसा ही तो बताया था उसे। वह कुछ जंगलियों के रहमो-करम पर अब तक जिंदा थी, वरना उसे मार देने का हुक्म हुआ था।
यह सब सोचते-सोचते अचानक उसके दिमाग की धारा बहक गई और वह सफर को आसान बनाने के लिए मसखरेपन पर उतर आया। उसने श्रेया से पूछा, “श्रेया! एक बात तो बताओ जरा...।”
“क्या?”
“कहीं ऐसा तो नहीं था कि उनमें से किसी जंगली का तुम पर दिल आ गया हो और वह तुमसे शादी करने की सोचने लगा हो और इसीलिए तुम्हें वहां छुपा कर रखा गया हो।”
“क्या बकवास है।”
“बकवास नहीं है... जंगली पूरनमासी के दिन शादी करते हैं। वह तुम्हें बंद करके पूरे चांद की रात का इंतजार कर रहे हों।”
“यह तुम्हें कैसे पता?”
“एक जंगली ने बताया था।”
“मतलब!”
“मतलब कि.... मेरी शादी भी पूरनमासी को होने वाली थी... लेकिन बदकिस्मती से मैं तुम्हारे चक्कर में फंस गया, वरना शादी करके जंगल में ही बस जाता। जंगल में मंगल रहती बाकी जिदंगी।”
“तो लौट जाओ न! भाग क्यों आए।” श्रेया की आवाज में तल्खी थी।
“तुम्हारी वजह से।” सलीम ने आवाज को गमजदा बनाते हुए कहा।
“अच्छा जी।” श्रेया की आवाज में शोखी आ गई थी।
“हां जी... लेकिन मैं यह कह रहा था कि अगर तुम जंगलियों से शादी कर लेतीं तो....।”
“शटअप!” श्रेया ने उसकी बात काटते हुए गुस्से में कहा।
“ठीक है शटअप हुआ जाता हूं।” सलीम ने बड़ी मासूमियत से यह बात कही। उसकी इस बात पर श्रेया को हंसी आ गई।
उसके बाद दोनों ने ही खामोशी इख्तियार कर ली। दोनों चुपचाप यूं ही चलते रहे। श्रेया से रहा नहीं गया। उसने सलीम को टोकते हुए कहा, “कुछ बात करो न... तुम चुपचाप अच्छे नहीं लगते।”
“खामोश रहो थोड़ी देर।” सार्जेंट सलीम ने कहा और उसका हाथ पकड़ कर रोक लिया। वह रुक कर कुछ सुनने की कोशिश करने लगा। उसके बाद उसने रास्ता बदल दिया और दाहिनी तरफ चलने लगा। काफी देर गुजर जाने के बाद श्रेया ने उससे पूछ ही लिया, “क्या हुआ... तुमने रास्ता क्यों बदल दिया?”
“आगे जंगली हाथियों का झुंड है। वह खतरनाक हो सकते हैं।” सार्जेंट सलीम ने कहा।
“तो क्या यहां शेर-चीता भी होंगे!” श्रेया ने एक बार फिर सार्जेंट सलीम के हाथों को मजबूती से पकड़ लिया था।
“हो सकता है।” सलीम ने कहा, “अब तो ओखली में सर पड़ ही गया है, तो मूसल से क्या घबराना।”
दोनों तकरीबन दो किलोमीटर दाहिनी तरफ मुड़कर चलते रहे। उसके बाद उन्होंने फिर से अपना पहले वाला सीधा रास्ता पकड़ लिया। श्रेया को अब ऊब होने लगी थी। वह बुरी तरह से थक भी गई थी।
“हम कब तक यूं ही चलते रहेंगे भला?” श्रेया ने रुकते हुए पूछा।
“सहर होने तक।” सलीम ने कहा।
“मतलब?”
“प्रातः काल की बेला तक।”
“साफ-साफ बात क्यों नहीं करते।”
“मार्निंग गुड होने तक हम चलते रहेंगे।”
“इस जंगल में तो मार्निंग गुड होने से रही।” श्रेया ने मुंह बनाते हुए कहा।
“तुम थक गई हो शायद?” सलीम ने कहा।
“बहुत ज्यादा... अब तो मुझसे चला भी नहीं जा रहा है।”
“चाहो तो कुछ देर आराम कर सकते हैं?”
“जंगल में खतरा है... यहां से निकलना ही बेहतर है।” श्रेया ने कहा, “चलो चलते हैं।”
इसके बाद वह फिर सार्जेंट सलीम के साथ घिसटने लगी। यकीनन अब वह घिसट ही रही थी। उसकी चाल में तेजी नहीं थी। उसके पैरों में छाले पड़ गए थे और वह चलते-चलते फूट भी गए थे। उनमें तेज दर्द हो रहा था, लेकिन उसने सलीम को इसका एहसास नहीं होने दिया। वह कब तक दर्द बरदाश्त करती। एक जगह अचानक उसके मुंह से चीख निकल गई।
“क्या हुआ?” सलीम ने रुकते हुए पूछा।
“मेरे पैरों के जख्म में तेज दर्द हो रहा है।” श्रेया ने वहीं जमीन पर बैठते हुए कहा।
“जख्म?” सार्जेंट सलीम ने आश्चर्य से पूछा।
“हां बुद्धू... पैरों के छाले फूट गए हैं।”
“ओह सॉरी!”
“इट्स ओके सार्जेंट!” दर्द के बावजूद श्रेया ने मुस्कुराने की कोशिश की थी।
श्रेया कुछ देर यूं ही जमीन पर बैठी रही। सार्जेंट सलीम खड़ा चारों तरफ देख रहा था। वह दिशाओं का अंदाजा लगाने की कोशिश कर रहा था, लेकिन रात के अंधेरे में कुछ समझ नहीं आ रहा था। उसने ऐसी कोशिश नदी किनारे भी की थी, लेकिन एक तरफ ऊंची चट्टानें और दूसरी तरफ जंगल होने की वजह से वह ध्रुव तारा नहीं देख सका था, वरना दिशाओं का अंदाजा आसानी से हो जाता।
“चलिए चलते हैं।” श्रेया ने उठते हुए कहा।
“क्या तुम चल सकोगी?” सार्जेंट सलीम ने चिंताजनक स्वर में पूछा।
“और कोई चारा नहीं है।” श्रेया की आवाज में दर्द अब भी था।
“हम हैं तो क्या गम है।” सार्जेंट सलीम ने बैठते हुए कहा, “तुम मेरी पीठ पर घुंड़ैया लद जाओ।”
“मतलब?”
“जैसे बचपन में करती थीं। मेरे गले में दोनों हाथों से घेरा बनाकर पकड़ लो और पैरों को कमर में फंसा लो।” सार्जेंट सलीम ने समझाते हुए कहा।
“मुझसे नहीं होगा।” श्रेया ने हंसते हुए कहा।
“चलो जल्दी करो... वक्त खराब मत करो।”
बड़ी मुश्किल से श्रेया इसके लिए राजी हुई। सलीम ने उसे पीठ पर लाद लिया। वह तेजी से चल रहा था। कभी-कभी जानवरों की आवाज जंगल की तंद्रा के चीरते हुए सुनाई पड़ जाती थी। इससे श्रेया की पकड़ सार्जेंट सलीम की गर्दन पर मजबूत हो जाती थी।
“इतना मत दबाना की मैं मर जाऊं।” सलीम ने हंसते हुए कहा, “डरो नहीं... जो होगा देखा जाएगा।”
“तुम हो तो क्या गम है!” श्रेया ने सार्जेंट सलीम के से अंदाज में कहा और हंसने लगी।
“तुमने कोई आवाज सुनी?” सार्जेंट सलीम ने उससे पूछा।
“हां कोई जानवर चिंघाड़ा था।”
“नहीं, किसी गाड़ी के हार्न की आवाज।”
“मैंने तो नहीं सुनी।” श्रेया ने कहा।
“अगर ऐसा है तो हम सड़क के नजदीक हैं।” सलीम ने कहा। उसे उम्मीद थी कि अगर पास में सड़क है तो आवाज फिर जरूर सुनाई देगी। उसकी चाल अब थोड़ा तेज हो गई थी।
सलीम को चलते हुए आधा घंटा गुजर गया था, लेकिन उसे फिर न तो किसी मोटर की आवाज सुनाई दी और न ही सड़क ही नजर आई। वह थोड़ा नाउम्मीद हो गया था। वह अभी भी श्रेया को पीठ पर ही लादे हुए था।
कुछ देर बाद ही वह एक ऐसी जगह पर खड़ा था, जहां से आगे का रास्ता बंद था। यानी वह लोग खाई में खड़े थे और सामने एक ऊंचा टीला सा था। उसने श्रेया को नीचे उतार दिया। तभी उसके कानों में फिर किसी वाहन के गुजरने की आवाज सुनाई दी। उसके चेहरे पर खुशी के भाव उभर आए थे। यानी वह सड़क के नीचे खड़े थे।
उसने श्रेया को फिर से पीठ पर लाद लिया और ऊपर चढ़ने का रास्ता तलाशने लगा। वह टीले के किनारे-किनारे आगे बढ़ता रहा। कुछ दूर ही उसे एक ढलाननुमा रास्ता नजर आ गया। वह उसके सहारे ऊपर चढ़ने लगा।
सलीम थक कर हलाकान हो गया था, लेकिन मंजिल पर पहुंचने की खुशी में उसकी थकान कुछ देर के लिए काफूर हो गई। और आखिरकार वह सड़क पर पहुंचने में कामयाब हो गया। उसने श्रेया को पीठ से उतार दिया।
तभी एक ट्रक तेजी से गुजर गया। उसकी हेडलाइट की रोशनी में उसे एक माइल स्टोन नजर आ गया। उस पर लिखी इबारत देखकर उसे काफी राहत मिली। उस पर लिखा था ‘शोलागढ़ 7 किलोमीटर’।
वह जमीन पर पालथी मार कर बैठ गया और सोचने लगा कि अब क्या करना चाहिए। उसने श्रेया से पूछा, “शोलागढ़ यहां से सात किलोमीटर दूर है। अगर हिम्मत हो तो हम उधर ही चलते हैं। हो सकता है रास्ते में हमें कोई गाड़ी लिफ्ट भी दे दे।”
“चल पाना मुश्किल हो रहा है। तुम भी काफी थक गए हो। यहीं बैठकर किसी गाड़ी से लिफ्ट लेते हैं।”
सलीम को श्रेया का आइडिया ठीक लगा और वह किसी गाड़ी के आने का इंतजार करने लगा। रात के वक्त इधर से कम ही गाड़ियां गुजरती थीं।
कुछ इंतजार के बाद उसे दूर से किसी गाड़ी की हेडलाइट नजर आईं। गाड़ी जब कुछ दूरी पर आ गई तो उसने उसे हाथ दिया लेकिन गाड़ी रुकी नहीं। उसने दो-तीन गाड़ियों को और हाथ दिया, लेकिन कोई भी नहीं रुकी। सार्जेंट सलीम को बात समझ में आ गई थी। वह इस वक्त जंगली के भेस में था और फिर रात का समय था। इस वजह से कोई भी ड्राइवर गाड़ी नहीं रोक रहा था।
सलीम ने सुबह तक इंतजार करने का फैसला किया और श्रेया को लेकर माइल स्टोन के करीब बढ़ने लगा ताकि उससे पीठ टिकाकर सो सके। तभी उसे किसी गाड़ी की हेडलाइट्स नजर आईं और वह पलटकर उसे देखने लगा। इससे पहले कि वह गाड़ी को रोकने के लिए हाथ देता, वह खुद ही पास आकर रुक गई। वह एक कार थी।
तभी कार के पिछली सीट से आवाज आई, “जंगली लिबास में जम रहे हो बरखुर्दार।”
आवाज सुनकर सार्जेंट सलीम चौंक पड़ा।