Ghar Ki Murgi Dal Barabar - 2 in Hindi Motivational Stories by S Sinha books and stories PDF | घर की मुर्गी दाल बराबर - 2

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घर की मुर्गी दाल बराबर - 2

भाग - 2 . भाग 1 में आपने पढ़ा कि सुदीप और नंदा दोनों रांची में एक प्रकाशक के पास गए ….

कहानी - घर की मुर्गी दाल बराबर


नंदा और सुदीप दोनों एक दूसरे की और देखने लगे .रांची में कोई उनका परिचित था नहीं और होटल में पैसे ज्यादा लगते .कुछ देर बाद नंदा बोली “ अभी तो रुकना मुश्किल है , फिर अगले सप्ताह आती हूँ .”


“ सेठ का कोई भरोसा नहीं है .महीने में दस बारह दिन वह बाहर ही रहता है . तुमलोग मेरे यहाँ ठहर सकते हो .अभी मैं भी दो तीन दिन तक अकेली हूँ , ये भी टूर पर गए हैं .फिर तुम दोनों के बार बार आने जाने में समय और पैसा दोनों की बर्बादी है. अगर नहीं रुकने का कोई ठोस कारण है तब तो मैं नहीं रोकूंगी .वरना यहीं रुक जाओ .”


सुदीप और नंदा संकोच कर रहे थे , तब आशा ने हँसते हुए कहा “ मेरा दो कमरे का फ्लैट है , एक कमरा तुम्हें दे दूंगी बाबा .तुमलोगों को अलग नहीं सुलाऊंगी .”


उस रात नंदा और सुदीप रांची में आशा के घर रुके .आशा ने रास्ते में एक होटल से बिरयानी और कोफ्ता सबके लिए पैक करा लिया था .रात खाने के बाद आशा ने कॉफ़ी बनायी .देर तक सभी बातें करते रहे .आशा ने कुछ लोगों के नाम बताये जिन्होंने लेखन को ही प्रोफेशन बनाया है .रात में दोनों सखियाँ एक साथ सोयीं और सुदीप अकेले दूसरे कमरे में .नंदा ने अपने गर्भवती होने की बात बतायी .आशा बोली “ ऐसे में तुम्हें बार बार यहाँ आने की जरूरत नहीं है .जब आने की जरूरत होगी मैं तुम्हें फोन कर दूंगी , सुदीप को भेज देना .”


सुबह नाश्ता चाय के बाद तीनों प्रकाशक के यहाँ पहुंचे .थोड़ी देर इंतजार करने के बाद सेठ आ गया .आशा ने सेठ से दोनों का परिचय कराया और आने का कारण बताया .सेठ को सुदीप ने अपनी फाइल दी .सेठ ने कहा “ सभी रचनाएं तो इतनी जल्द नहीं देख सकूंगा , फिर भी तुम दो तीन घंटे के बाद मुझसे मिलो .”


आशा बोली ‘ नंदा , तब तक मेन रोड पर कुछ शॉपिंग करनी है तो कर लो या बगल में ‘ सुजाता ‘ सिनेमा हॉल है , अभी मॉर्निंग शो का टाइम है , मूवी देख सकती हो .”


सुदीप और नंदा को शॉपिंग या मूवी में कोई दिलचस्पी नहीं थी .नंदा बोली “ ठीक है , हम लोग मेन रोड घूम कर आते हैं .”


लगभग तीन घंटे बाद सुदीप नंदा और आशा तीनों प्रकाशक के चैम्बर में बैठे थे .सेठ बोले “ सुदीप , मैंने तुम्हारी दो कहानियां पढ़ीं हैं और कुछ को सरसरी निगाहों से देखा है . तुम्हारी भाषा और लिखने की शैली अच्छी है .”


“ थैंक यू सर .”


“ पर बुरा न मानना , मुझे एक चीज पसंद नहीं आयी है .तुम्हारी कहानियाँ आजकल के हिसाब से समसामयिक नहीं हैं .कुछ पुराने टाइप के हैं .आजकल के पाठकों की पसंद की लिखो .बाकी चीजें आशा तुम्हें समझा देगी .तुम थोड़ी देर बाद फिर मिलो बस तक़रीबन आधे घंटे बाद .तुम्हारे बारे में ही मैंने किसी को फोन किया है. उसके उत्तर की प्रतीक्षा कर रहा हूँ. ”


वे तीनों सेठ की केबिन से बाहर आये . आशा ने चाय मंगवायी तो आधा घंटा से कुछ ज्यादा वक़्त उसी में बीत गया .तब सेठ ने फिर से उन तीनों को अपने पास बुलाया .वे बोले “ सुदीप तुम्हारे लिए दो ख़ुशी की बातें हैं .पहली यह कि मेरा पब्लिकेशन हाउस एक कहानी संग्रह छापने जा रहा है .उसमें अलग अलग लेखकों की कहानियां है .तुम्हारी दो कहानियां मैं उस में सम्मिलित कर लूंगा .अभी बाकी कहानियां मैं स्वीकार नहीं कर सकता हूँ , और सिर्फ तुम्हारी अपनी कहानियों का संग्रह भी फिलहाल नहीं छाप सकता हूँ .”

“ मेरे लिए आपने जो स्वीकार किया है उतने का आभार प्रकट करने के लिए मेरे पास शब्द नहीं

हैं . आपका बहुत बहुत शुक्रिया .”


“ अरे रुको तो सही , दूसरी बात भी सुन लो .मैंने तुम्हारा एक नाटक भी पढ़ा है जो झारखण्ड के आदिवासियों के जीवन पर आधारित है .मैंने दूरदर्शन के रांची केंद्र के डायरेक्टर से बात की है . उन्होंने तुम्हारे नाटक का स्क्रिप्ट भेजने को कहा है .अगर पसंद आया तो उस नाटक पर लघु फिल्म बना कर टेलिकास्ट किया जायेगा .विश यू आल द बेस्ट .”


फिर उन्होंने आशा को बुला कर सुदीप की बाकी कहानियों का जेरोक्स कर रखने को कहा .फिर सुदीप को कुछ पेपर्स पर साईंन करने के लिए कहा . यह एक औपचारिक एग्रीमेंट था .इसके बाद उसे पांच हज़ार का एक चेक देने को कहा .


आशा ने चेक देते हुए कहा “ मुबारक को लेखक जीजाजी और तुम्हें भी नंदा .और बाकी रचनाओं को एक नज़र मैं भी देख लेती हूँ , फिर मैं फोन पर बात करुँगी .”


सुदीप और नंदा ने आशा को धन्यवाद दिया और कहा “ इतनी जल्दी सफलता की उम्मीद नहीं थी , यह तो मेरे लिए कल्पना से परे है . अगर आशा तुम यहाँ न मिलती तो शायद यह सम्भव नहीं था .”

वे दोनों जमशेदपुर लौट आये .सुदीप को रांची में मिली सफलता से काफी बल मिला और वह दोगुने उत्साह से अपने लेखन में लग गया .कुछ ही दिनों में उसे आशा का फोन आया “ सुदीप , मुबारक हो .दूरदर्शन ने आपका नाटक स्वीकार कर लिया है .आप रांची दूरदर्शन के अधिकारी से मिल कर अपने पुरस्कार की राशि ले लें .और जरा नंदा को फोन दे दें .”


“ हाय आशा , कैसी है ? “


“ तू तो एकदम मतलबी निकली .जाने के बाद से कोई बात भी नहीं किया तुमने .”


“ सॉरी यार , थोड़ा व्यस्त हो गयी थी .”

“ ओके , मैंने मजाक किया था .अच्छा एक बात सुन .सुदीप की बाकी रचनाएं भी मैंने पढ़ी हैं .सेठ से भी चर्चा हुई है इस पर .उनमें कुछ तो मैं वापस भेज रही हूँ .जहाँ सुधार या कुछ बदलाव की आवश्यकता है मैंने हाईलाइट कर दिया है . उन जगहों पर थोड़ा सुधार कर भेजने को कहना , मेरा मतलब यह नहीं है कि वे गलत हैं . बस थोड़ा पाठक की पसंद को ध्यान में रख कर भाषा में मामूली बदलाव करने से ठीक रहेगा . ”


“ ओके , मैं सुदीप को बोल दूंगी .”


क्रमशः