आखिरी इच्छा
'छोरी रुक-रुक तैने मैं बताऊँ, भाग कै कठे जावैगी ।' कहती हुई दस साल की साँवली-सलोनी संजू आठ वर्षीय छोटी बहन मंजू के पीछे दौड़ पड़ी। आगे-आगे संजू पीछे-पीछे मंजू भागते-भागते नीम के चारों तरफ चक्कर लगाने लगी।
'छोरियो आओ अठै, बैठो मेरै कनै।' नीम के आगे-पीछे चक्कर काटती बहनों को नीम की ठंडी छाया में खाट डालकर बैठी बुआ ने डांटते हुए अपने पास बुलाया।
बुआ की आवाज सुनकर भी दौड़ती बहनें नहीं रुकी और भागते-भागते मंजू बोली-'बुआ आज मैं ई छोरी नै कोनी छोडूं,आ मंजूड़ी मेरा बाळ पाड़्या अर माँ कनै झूठ बोल कै मैने मार पड़वाई ।'
'लड़ाई कोनी करिया करै संजू आ अठे,मैं बात करूँ ई सूं। बुआ की प्यार भरी बात सुनकर दौड़ते-दौड़ते थक चुकी संजू रुआँसी होकर बुआ के पास आकर बैठ गई।
बुआ ने बड़े प्यार से मंजू को भी अपने पास बुलाया और दोनों में सुलह करवा दी। माँ रोटी भी वहीं ले आई, रोटी खाकर दोनों बुआ के चिपक कर बातें सुनते-सुनते न जाने कब नींद के आगोश में समा गईं।
'बुआ जी कठै है थारा भतीजा!' बाली काकी की तेज आवाज ने दोनों बहनों की मीठी नींद में खलल डाल दिया। दोनों बैठी होने ही वाली थीं कि पड़ोस से सिंधियों वाली सरिता भाभी भी गुस्सा करती हुई आ गई। दोनों बहनें समझ गईं कि आज भाई फिर कांड करके आए हैं। उनके पक्ष में झूठी गवाह बनने से अच्छा उन्होंने लेटे रहना ही उचित समझा इसलिए दोनों चुपचाप खाट पर लेटी रहीं ।
बाली काकी और सरिता भाभी के जोर से बोलने पर हँसते हुए बुआ बोली - 'के होयो सरिता अर बाली तू क्यूं रोळा करै है, अब तेरो के बिगाड़ दियो म्हारा भतीजा।बै टाबर तो हाल तांई सकूल (स्कूल) सूं घरां ई कोनी आया।'
इतने में माँ और ताईजी भी वहाँ आ गई। ताईजी बोली हाँ बाली देख लै यो घर पड़्यो, टाबर आया कोनी आज भोत उंवार होगी। '
ताईजी की बात का जवाब देते हुए सरिता भाभी बोली-'चाची आपके महेश, गणेश और नरेश को मैंने घर में आते हुए देखा है। आज फिर गणेश ने मेरे कारा को थप्पड़ मारा, ये देखो गाल कैसे लाल हो रहा है।
बाली काकी बुआ जी को बोली - 'बाईसा थारा लाडला भतीजा तो म्हारी छोरी कै गैल ही पड़ग्या, रोजीना छोरी रोंवती आवै। पू़छ्यो तो बोली कै हेली हाळा छोरा मेरी आंख्यां की हँसी उडावै रोजीना मैनै बाडळी-बाडळी कैवै। आज तो हद कर दी छोरी कै धक्को बी मार्यो, देखो सारा गाबा मांटी का भर गा।'
माँ और ताईजी को उलाहना देती हुई बाली काकी बोली- 'भाभीसा थे दोन्यू तो टाबरां नैं संबाळो ई कोनी,बाईजी बांनै क्यूं कैवै कोनी तो बताओ म्हे म्हारा टाबरां नै कईंयां मार बा द्यांगा। '
बाली काकी की बात का जवाब देते हुए माँ बोली-'सांची है बात है भाई आपका टाबरां नै कुण मारण दैवै, पण स्याणों म्हे घणी ही सम़झावां हां वानै.... बिस्बास न है तो देख ल्यो टाबर घरां तो कोनी आया।'
' जणां ई आया कोनी आज आवण द्यो बांनै घरां मैं हाड तोड़ द्यूंगी बांका।' ताईजी भी गुस्से में बोली।
नीम की ठंडी छांव में खाट पर सोई संजू-मंजू चुपचाप ये सारी बातें सुन रहीं थीं अचानक मंजू की नजरें गहरे नीम की पत्तियों में पड़ी। उसने वहाँ जो देखा उसे देखकर दिल धक! से रह गया। उसने संजू को कोहनी मारकर ऊपर देखने के लिए कहा। संजू ने अधखुली आँखों से नीम के पेड़ पर नरेश, महेश, गणेश नाम के तीन बंदरों को बैठे देखा तो भी थोड़ी सकपका गई। एक मन तो किया कि अभी इन तीनों शरारतियों पिटवादें पर भाईयों को बचाने के वचन से बंधी बहनों ने उस समय कुछ नहीं कहा और फिर से आँखें बंद करके चुपचाप लेटी रहीं।
माँ, ताईजी और बुआ के समझाने से बाली काकी और सरिता भाभी अपने घर चली गई।
उनके जाते ही दोनों बहनों ने एक साथ बोलकर बता दिया कि भाई नीम पर बैठे हैं। माँ और ताईजी ने गुस्से से उन्हें पेड़ से उतारा। ये देखकर दोनों समझ गईं कि अब भाइयों की खैर नहीं। जैसे अदालत में अपराध साबित होने तक अपराधी को खुद को निर्दोष साबित करने का मौका मिलता है वैसे ही उन तीनों को भी बुआ की अदालत में खुद को निर्दोष साबित करने का मौका मिला।
भारतीय संस्कृति में शुभ कार्य शुरू होने से पहले गणेश जी को पूजे जाने की परंपरा है तथा शुभकार्य का प्रथम निमन्त्रण भी गणेश जी को ही दिया जाता है वैसे आज यहाँ पर भी सर्वप्रथम गणेश को ही खुद को बेगुनाह साबित करने का मौका दिया गया। मौका मिलते ही गणेश एक साँस में कह गया-' बुआ बो सिंध्यां को छोरो कारो रोजीना मैंने गण्यो, गण्यो कह्वै, मैं बीनै समझायो कि मान ज्या पण बो मान्यो कोनी तो मैं बीकै झापड़ मारी। काल फेर बोलैगो तो फैर मारूँगा।'
गणेश की बात सुनकर माँ और ताईजी ने उसे एेसा ना करने की हिदायत दी और बुआ समझाते हुए बोली-'ना बेटा अइयां कोनी करै, मैं बुलाऊं बी छोरा नै अठे। लड़्या नई करै और थे छोरो बाली की छोरी नै क्यूँ मारी और क्यूं चिड़ावै हा।'
अपनी बारी आने पर नरेश, महेश भी बारी-बारी से शुरू हो गए अपनी सफाई देने।
' बुआ बा टेडी आँख्याळी छोरी कम है के रोजीना म्हानै काळ्या-काळ्या कैवै,बाडळी कठ्यां की म्हानै चिड़ावैगी तो सुणैगी।
' बुआ बाठा न्यारा मारै ही म्हारै, देखो नरेश कै हाथ पै लागी बी बाठा की। बीका हाथ सूं बाठो खोसणै लाग्या जद पड़गी बा । म्है कोई जाण बूझ के थोड़ी धक्को मार्यो बीकै।'
उन तीनों की बातें सुनकर बुआ, ताईजी और माँ सबने माथा पीट लिया और उन्हें मार-पीट न करने की हिदायत दी। माँ ने नीम की छाल पीस कर नरेश के हाथ पर लगा दी और उन्हें आगे से नीम पर ना चढ़ने को कहा।
जब तक बुआ की अदालत चली तब तक दोनों बहनों ने नीम की बहुत सारी मीठी निंबोलियाँ इकट्ठी कर ली। और दीवार के पास रखी सीमेंट की टंकी में धूप से गर्म हुए पानी से धो कर कटोरी में रखकर खाने लगी। तीनों भाईयों ने यहाँ भी झपट्टा मारा और बंदरों की तरह फिर नीम के पेड़ पर जाकर चढ़ गए। बहनें रोती रहीं बुआ चिल्लाती रही मगर तीनों लड़कों की मस्ती कम नहीं हुई वो नीम पर बैठे बैठे नीम से निंबोलियाँ तोड़-तोड़ कर बहनों पर फेंकने लगे।
एेसा नहीं कि ये शिकवा ये शिकायतें और शरारतें सिर्फ आज ही हुई हैं वरन हवेली के बाहर गुवाड़ी में ये दृश्य लगभग रोज ही का था।
ये नीम सिर्फ पेड़ नहीं हवेली की पहचान,चौकीदार, चिकित्सक या यों कहो हर उम्र के व्यक्ति का हमजोली था। घर वालों के साथ सुबह चार बजे ही इसका सवेरा भी हो जाता था क्योंकि उठते ही सभी इसकी टहनियाँ तोड़कर दातुन जो करते थे।टायर का बना झूला हमेशा नीम की डाल पर लटकता जिस पर बैठने के लिए अक्सर बच्चों में लड़ाई हुआ करती थी। इस नीम के नीचे बाहर से आने जाने वालों के लिए दो तख्त हमेशा बिछे रहते थे।
किसी को अखबार पढ़ना हो या चाय पीनी हो, कोई सलाह मशविरा हो या राजनीति की बातें सब यहीं बैठे रहते।
हवेली में खड़ा ये नीम हरियाल तोतों की किटकिट कर निंबोली खाने ,चिडियों के चहकने ,पक्षियों के फड़फड़ाने,मोहल्ले भर की लडकियों का इसके नीचे बैठकर गुड्डे-गुड़िया खेलने, निंबोलियों के गहने बनाकर रखने और नीम के नीचे बैठकर ओढ़नियों पर गोटा-पत्ती लगाती घर की महिलाओं की हँसी से गुलजार रहता।
सावन के महीने में तो नीम के नीचे रोनक दस गुना बढ़ जाती थी रंग-बिरंगे परिधानों में सजे मौहल्ले के लड़के-लड़कियाँ झूला झूलते और ऊँची से ऊँची पींग चढ़ाने की कोशिश करते।और नीम की टहनियाँ मानो हँस-हँस कर हर झूलने वाले बच्चे का अभिवादन करती।
शायद इसी इस चहल-पहल के कारण ये नीम कभी पीला नहीं पड़ा, कभी इसके पूरे पत्ते नहीं झड़े।
घर वालों के नेह और प्रेम से सिंचित इस नीम की पत्तियों को पानी के में उबालकर बच्चों को नहलाया जाता। बारह महीने नीम की पत्तियों से बनी बंदरवार कमरों के बाहर लटकी रहतीं हाथ पैर में लगी चोट हो या फोड़े-फुंसी नीम के पत्तों और छाल को पीस कर दवा बना बनाई जाती और असर भी जादू का सा होता।
बुआ तो सारा दिन उसी नीम की छांव में बैठी हुई आने जाने वालों से मिल-बतलाया करती थी वो तो बस रात होने पर कमरे में सोने जाती थी और मुँह अंधेरे ही फिर नीम के नीचे आकर अपनी खटिया पर बैठ कर गाया करती -
'ओ रै हरियल नीम म्हारा बीरां रै घर छायो रीजै
सूरज री जद लाय पड़ै तो घर भर नै तू छाया दीजै।
ओ रै हरियाल नीम......
कई बार तो मौहल्ले की औरतें कहती - 'बाईसा थे तो झूंट्यां ई हेली (हवेली) मैं कमरो रोक मेल्यो है, सारा दिन तो थे अठै बैठ्या रह्वो हो।'
जबाव में बुआ कहती - सांची कवूं तो कमरा भीतर मेरो जी
घुटण लाग जावै।देखियो मैं तो मरूं ली बी ई नीम कै नीचै। मैं तो म्हारा भाई-भावज नै कैह दियो कै मैं मर ज्याऊं जद ई नीम री थोड़ी सी छड़ी मेरेै ऊपर गेर दीज्यो। देख लियो मैं म्हारै नीम पर हरियल तोतो बण बैठी दिखूंगी ।'
समय पँख लगाकर उड़ गया संजू-मंजू शादी कर ससुराल चली गई। बुआ भी नीम को देखते-देखते उसे आँखों में लेकर चली गई उनकी इच्छा के अनुसार नीम की एक छड़ी उनकी पार्थिव देह पर डाली गई। ना जाने कब बुआ की यह अंतिम इच्छा दोनों बहनों की भी अंतिम इच्छा बन गई ।
संजू-मंजू जब भी पीहर आती वो नीम के नीचे बैठकर पुराने दिन याद किया करती नीम पर बैठे पक्षियों की अठखेलियों में अपना बचपन पा लिया करती। कभी - कभी तो लगता जैसे नीम पर पंछी बनी बुआ बैठी रहती है। में अपनी बुआ को पा लिया करती थीं।
लड़कियों को शादी के बाद घर-गृहस्थी लग ही जाती है संजू-मंजू भी के लिए भी घर छोड़ना बहुत मुश्किल हो गया खुद उनके बच्चे भी अब बड़े हो गए थे माता-पिता अब नहीं रहे पर भाई-भाभियों के स्नेह के कारण पीहर के नाम से उनके घुँघरू बँध जाते थे।
पीहर में भाइयों ने नए मकान बनाए हैं छोटा सा हवन रखा है।पीहर जाने की खुशी में दोनों बहनें रात को देर तक फ़ोन पर बात करती रहीं और सुबह जल्दी पीहर पहुँचने का निश्चय किया। बेटे के साथ आई संजू को दूर से ही नए बने मकान की सुंदरता रिझा रही थी पर नीम इसके पीछे छिप गया ये उसे अच्छा नहीं लगा।
एक तो पहले ही उसे हवेली तोड़े जाने का दुख था उसपर नीम का नई बिल्डिंग के पीछे छिप जाना बिल्कुल भी नहीं भाया उसे । उसने सोचा घर पहुँच कर भाईयों पर गुस्सा करुँगी कि मकान के आगे नीम अच्छा लगता। दूर से दिखाई देने वाला नीम अब इस ऊँची इमारत के पीछे छिप गया। नीम को याद करते ही वो गुनगुनाने लगी -
'ओ रै हरियल नीम म्हारा बीरां रै घर छायो रीजै
सूरज री जद लाय पड़ै तो घर भर नै तू छाया दीजै।
ओ रै हरियाल नीम......
घर पहुँचते ही भाई-भाभी भतीजे-भतीजियों से घिरी संजू की आँखे नई बनी बिल्डिंग के पीछे कुछ देखने की कोशिश कर रहीं थीं। 'देखो बुआ ये मेरा कमरा, ये मेरा, ये इधर गणेश चाचा का पोर्शन,इधर नरेश चाचा का और इधर महेश चाचा का..'
.. और नीम.. नीम कहाँ है। बच्चे संजू को घर दिखा ही रहे थे,पर संजू को नीम का पेड़ नहीं दिखाई दिया तो उसने भाइयों से प्रश्न किया।
भाइयों ने बताया कि - 'मकान के बीच में आ रहा था इसलिए काटना पड़ा, देखो कितना सुंदर लॉन बनाया है इंग्लिश दूब, सुंदर - सुंदर प्लांट्स।देखो कितनी पोजिटिव वेव्स आती है घर में लॉन होने से। रोज सुबह शाम आराम से बैठा करेंगे यहाँ।'
भाई की बात सुनकर संजू का मन किया कि भाई से पूछे. --
' तो क्या आप लोगों को बचपन में नीम से नेगेटिव थोट्स आते थे । अपना बचपन भूल गए..!भाई सुबह-शाम तो तुम लॉन में बैठोगे और दोपहर को! आप लोगों की तरह शरारतें करके आए आपके बच्चे कहाँ छिपेंगे, माँ के आँचल में या कुर्सी टेबल के नीचे, दोपहर को नींद न आने पर बहन-भाई कहाँ दौड़ेंगे ? कमरे के अंदर बाहर.! दोपहर में खेलेंगे का मन हुआ तो क्या खेलेंगे? कंप्यूटर , लेपटॉप और मोबाइल !!
हाँ यही खेल तो बचे हैं दुनिया में। जगह की तो कोई कमी नहीं थी तुम्हारे पास ना ही इस पुराने नीम को काटने की कोई मजबूरी। भाई तुम लोग प्रकृति से कितना कट गए हो़। तुमने खुद अपने बच्चों की स्वच्छ हवा छीन ली।'
ख्यालों में खोई संजू रूआंसी हो गई थी पर वो भाई - भाभियों की खुशी के मौके पर उन्हें दुखी नहीं करना चाहती थी इसलिए चुप रही।
कई देर से पीछे खड़ी छोटी बहन मंजू, बहन-भाईयों की बात सुन रही थी, नीम का रिक्त स्थान, बहन की रुआँसी आँखें, भाइयों की भीगी पलकें देखकर वो फफक पड़ी ।पर अपने आप को काबू में करते हुए उसने बड़ी बहन को संभाला।
मंजू के गले लगते हुए संजू बोली 'देख मंजू कित्ता सोवणा मकान बणाया है आपणा भाई, आपणा भायां की बेल बढै भगवान करै यै अइयां ई दिन दोगुणी रात चोगुणी उन्नति करैं।'
मंजू भी नहीं चाहती थी कि वो एेसी कोई बात कहे जिससे भाई-भाभियों को बुरा लगे इसलिए उसने बहन की हाँ में हाँ मिलाई। पर बड़ी बहन के गले से लगी संजू अपना दुख ज्यादा देर नहीं रोक पाई वो फूट पड़ी -'जीजी विकास की भेंट चढ़ग्यो आपणो नीम!' और दोनों बहनें सिसकने लगीं।
'जीजी नीम पर बैठी बुआ, नीम तळै बमाँ-ताईजी दिख ज्याया करती आज आपणी बुआ मरगी जीजी, सारी सहेल्याँ....!'
' मंजू बुआ की आखिरी इच्छा पूरी होई आपणी आखिरी इच्छा पूरी कोनी होवै आपणो बचपन रो साथी कोई बात ना भाण हँस दे भायां नै बुरो लागैगो।'
दोनों मुस्कुरा देती हैं पर भाई, अपनी बहनों के चेहरों पर बनते बिगड़ते भावों से उनके दिल की हर बात समझ गए। उनकी आँखों के सामने बचपन स्मृतियाँ गतिमान तस्वीरों की तरह चलने लगी। नीम पर चढ़ना, कूदना, कोयल की कूक, सुग्गों की टेऱ... भाग- दौड़... ओह ये क्या किया हमने। पिताजी और ताऊजी की इच्छा थी कि जितनी इस नीम की जड़ें गहरी हैं उतनी ही परिवार की इसलिए कभी इस नीम को जड़ें मत छोड़ने देना ये नीम इस घर की पहचान है हमारी जान है।तुम्हारे पुरखे पंछी बनकर सदा इस नीम पर बैठै तुम्हारे पास रहेंगे।
बुआ.. बुआ क्या हुआ आप उदास क्यों हैं आप वो नीम वाला गीत सुनाओ ना जो आपकी बुआ आपको सुनाती थी। '
नन्ही भतीजी परी की फरमाइश सुनकर संजू-मंजू की आँखों से झर-झर आँसू बह निकले।
भाभी ने परी को खूब समझाया पर परी सुनने को तैयार नहीं थी उसने कहा - 'प्लीज बुआ सुनाओ ना। '
दोनों बहने परी का कहना टाल न सकीं और सिसकते हुए गुनगुनाने लगीं -
'ओ रै हरियल नीम म्हारा बीरां रै घर छायो रीजै
सूरज री जद लाय पड़ै तो घर भर नै तू छाया दीजै।
ओ रै हरियाल नीम......
सुनीता बिश्नोलिया
जयपुर