Charlie Chaplin - Meri Aatmkatha - 40 in Hindi Biography by Suraj Prakash books and stories PDF | चार्ली चैप्लिन - मेरी आत्मकथा - 40

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चार्ली चैप्लिन - मेरी आत्मकथा - 40

चार्ली चैप्लिन

मेरी आत्मकथा

अनुवाद सूरज प्रकाश

40

वह अक्सर बेवरली हिल्स वाले घर में मेरे बच्चों, चार्ली और सिडनी से मिलने के लिए चली आती थी। मुझे उसका पहली बार का आना याद है। मैंने अपना घर तभी बनाया ही था। घर अच्छी तरह से सजाया गया था और वहां पर पूरा स्टाफ था, बटलर, नौकरानियां वगैरह। वह कमरे में चारों तरफ देखती रही। फिर खिड़की में से चार मील दूर प्रशांत महासागर का दिखायी दे रहा नज़ारा देख रही थी। हम उसकी प्रतिक्रिया का इंतज़ार कर रहे थे।

"शांति भंग करना कितनी खराब बात है," कहा उसने।

वह मेरी धन-दौलत और सफलता को मान कर ही चल रही थी और उन पर उसने कभी भी कोई टिप्पणी नहीं की। एक दिन लॉन पर हम दोनों अकेले थे। वह बगीचे की तारीफ कर रही थी और इस बात को सराह रही थी कि इसे कितनी अच्छी तरह से रखा गया है।

"हमारे पास दो माली हैं।" मैंने उसे बताया।

वह एक पल के लिए रुकी और मेरी तरफ देखने लगी,"इसका मतलब तुम काफी अमीर होगे!" मां ने कहा।

"मां, मेरी हैसियत इस वक्त पचास लाख डॉलर की है।"

मां ने सोचते हुए सिर हिलाया,"तभी तक जब तक तुम अपनी सेहत बनाये रख पाते हो और इसे भोग पाते हो।" मां की सिर्फ यही टिप्पणी थी।

अगले दो बरस तक मां की सेहत अच्छी बनी रही। लेकिन द सर्कस के निर्माण के समय मुझे तार मिला कि मां बीमार है। उसे पहले पित्ताशय का दौरा पड़ चुका था और वह उससे उबर गयी थी। इस बार डॉक्टरों ने मुझे चेताया कि इस बार का उसका दौरा गम्भीर है। उसे ग्लेंडले अस्पताल ले जाया गया था। लेकिन डॉक्टरों ने यही बेहतर समझा कि उसके दिल की कमज़ोर हालत को देखते हुए ऑपरेशन न करना ही ठीक होगा।

जब मैं अस्पताल में पहुंचा, उस वक्त वह अर्ध मूर्छा की हालत में थी। उसे दर्द कम करने की दवा दी गयी थी।

"मां, ये मैं हूं चार्ली," मैं फुसफुसाया, और धीमे से उसका हाथ अपने हाथ में ले लिया। उसने कमज़ोरी से मेरा हाथ दबा कर अपनी भावना को मुझ तक पहुंचाया और फिर अपनी आंखें खोलीं। वह बैठना चाहती थी लेकिन बहुत ही कमज़ोर हो गयी थी। वह बेचैन थी और दर्द की शिकायत कर रही थी। मैंने उसे तसल्ली देने की कोशिश की कि वह एकदम चंगी हो जायेगी।

"शायद," उसने थकान के मारे कहा। और एक बार फिर मेरा हाथ दबाया। इसके बाद उसे बेहोशी आ गयी।

अगले दिन, काम के बीच, मुझे बताया गया कि मां गुज़र गयी है। मैं इसके लिए तैयार था क्योंकि डॉक्टर पहले ही जवाब दे चुके थे और मुझे बता चुके थे। मैंने अपना काम रोका, मेक-अप उतारा, और अपने सहायक निदेशक हैरी क्रोकर के साथ अस्पताल के लिए रवाना हो गया।

हैरी बाहर इंतज़ार करता रहा और मैं कमरे के भीतर गया और खिड़की और बिस्तर के बीच एक कुर्सी पर बैठ गया। धूप के पर्दे आधे गिरे हुए थे। बाहर धूप तीखी थी। कमरे का मौन भी उतना ही तीखा था। मैं बैठा रहा और बिस्तर पर पड़ी कमज़ोर काया को देखता रहा। उसका चेहरा ऊपर उठा हुआ था और आंखें बंद थीं। यहां तक कि मृत्यु में भी उसके चेहरे पर पीड़ा दिखायी दे रही थी मानो उम्मीद कर रही हो कि कितनी तकलीफें उसके हिस्से में और लिखी हैं। कितनी अजीब बात है कि उसका अंत यहां पर हुआ, हॉलीवुड के माहौल में, उसके सारे वाहियात मूल्यों के साथ, लैम्बेथ, उसके दिल टूटने की जगह से सात हज़ार मील दूर। इसके बाद उसके आजीवन संघर्षों की, उसकी बहादुरी की और उसकी त्रासद, बेकार गयी ज़िंदगी की स्मृतियां मुझ पर हावी हो गयीं और मैं रो पड़ा।

एक घंटे के बाद कहीं मैं अपने आप को संभाल पाया और कमरे से बाहर आया।

हैरी क्रोकर अभी भी वहीं था। मैंने उससे माफी मांगी कि उसे इस तरह से इतनी देर तक इंतज़ार करना पड़ा। लेकिन वास्तव में, वह स्थिति समझता था। हम चुपचाप ड्राइव करके घर आ गये।

सिडनी यूरोप में था और उस वक्त बीमार था। वह अंतिम संस्कार में नहीं आ सकता था। मेरे बेटे चार्ली और सिडनी अपनी मां के पास थे लेकिन मैं उनसे नहीं मिला। मुझसे पूछा गया कि क्या मैं मां का दाह संस्कार किया जाना पसंद करूंगा। इस तरह के ख्याल ने ही मुझे डरा दिया। नहीं, मैं चाहूंगा कि उसे हरी-भरी धरती में दफ़नाया जाये, जहां वह अभी भी मौजूद है - हॉलीवुड सिमेट्री में।

मैं नहीं जानता कि मैं अपनी मां का वैसा चित्र प्रस्तुत कर पाया हूं जिसकी वह हकदार थी। लेकिन मैं इतना जानता हूं कि वह अपना बोझ खुशी-खुशी ढो कर ले गयी। दयालुता और सहानुभूति उसकी उत्कृष्ट खूबियां थीं। हालांकि वह धार्मिक थी, वह पापियों को प्यार करती थी और हमेशा अपने-आपको उनमें से ही एक मानती थी। उसकी प्रकृति में अश्लीलता का रंच मात्र भी नहीं था। जो भी विद्रोही व्यवहार वह किया करती थी, वह हमेशा आलंकारिक रूप में सही ही होता था। और उस गंदे माहौल, जिसमें हम रहने को मज़बूर थे, के बावजूद उसने सिडनी और मुझे गलियों से हमेशा बाहर रखा था और हमें यह महसूस कराया था कि हम गरीबी की आम संतानें नहीं हैं, बल्कि खास और अनूठे हैं।

क्लेयर शेरिडन, मूर्तिकार, जिसने अपनी किताब फ्रॉम मेफेयर टू मॉस्को से अच्छा-खासा हंगामा मचाया था, जब हॉलीवुड आयीं तो सैम गोल्डविन ने उनके सम्मान में रात्रि भोज दिया तो मुझे भी आमंत्रित किया।

छरहरी और सुंदर चेहरे-मोहरे वाली क्लेयर विन्स्टन चर्चिल की भतीजी थीं और रिचर्ड ब्रिन्स्ले शेरिडन की सीधी वंश परम्परा में आती थीं। वे क्रांति के बाद रूस जाने वाली पहली अंग्रेज महिला थीं और उन्हें बोल्शेविक क्रांति की प्रमुख हस्तियों की आवक्ष प्रतिमाएं, बस्ट बनाने का काम सौंपा गया था। इनमें लेनिन और ट्राटस्की भी शामिल थे।

हालांकि वे बोल्शेविक की पक्षधर थीं फिर भी उनकी किताब ने केवल मामूली-सा ही विरोध पैदा किया। अमेरिकी लोग इससे भ्रम में पड़ गये थे क्योंकि क्लेयर को अंग्रेजी राजसी परिवार से होने का गौरव प्राप्त था। न्यू यार्क का समाज उनकी आवभगत करता था और उन्होंने वहां पर कई विभूतियों की आवक्ष प्रतिमाएं बनायीं। उन्होंने हरबर्ट बेयार्ड स्वोप तथा बर्नार्ड बरूच तथा अन्य हस्तियों की भी मूर्तियां बनायी थीं। जिस वक्त मैं उनसे मिला था, वे पूरे देश में घूम-फिर कर व्याख्यान दे रही थीं और उनका छ: बरस का बेटा डिकी उनके साथ ही यात्राएं कर रहा था। उन्होंने शिकायत की थी कि अमेरिका में मूर्तियां बना कर रोज़ी-रोटी कमाना मुश्किल है। अमेरिकी आदमी इस बात का बुरा नहीं मानते कि उनकी बीवियां बैठ कर अपनी मूर्तियां बनवायें, लेकिन वे खुद इतने विनम्र होते हैं कि अपने खुद के लिए बैठने में उन्हें हिचक होती है।

"मैं विनम्र नहीं हूं," मैंने कहा।

इस तरह से उनके लिए मिट्टी और उनके औज़ार वगैरह मेरे घर लाने का इंतज़ाम किया गया और दोपहर के वक्त लंच के बाद मैं उनके सामने देर तक बैठा रहता। क्लेयर में ये खासियत थी कि वे बातचीत को जीवंत रख सकती थीं और मैंने पाया कि मैं भी अपनी बौद्धिकता बघार रहा हूं। प्रतिमा पूरी होने के आस-पास मैंने उसकी जांच की।

"ये किसी अपराधी का सिर हो सकता है," मैंने कहा।

"इसके बजाये, ये एक मेधावी आदमी का सिर है।" उन्होंने नकली गम्भीरता के साथ कहा।

मैं हँसा और मैंने ये सिद्धांत गढ़ लिया कि चूंकि जीनियस और अपराधी एक-दूसरे से निकटता से जुड़े होते हैं, इसलिए दोनों ही एकदम व्यक्तिवादी होते हैं।

एक बार उन्होंने मुझे बताया कि जब से उन्होंने रूस के बारे में व्याख्यान देना शुरू किया है, वे अपने-आपको बिरादरी बाहर पा रही हैं। मैं जानता हूं कि क्लेयर पैम्फलेटबाजी करने वाली या राजनैतिक कट्टरपंथी नहीं थीं।

"आपने तो रूस के बारे में एक बहुत ही रोचक किताब लिखी है, उसे भी उसी खाते में जाने दीजिये ना, क्यों राजनैतिक झमेलों में पड़ती हैं," कहा मैंने,"इससे तो आप ही को तकलीफ होगी।"

"मैं ये व्याख्यान अपनी रोज़ी-रोटी के लिए देती हूं," उन्होंने बताया,"लेकिन लोग हैं कि सच सुनना ही नहीं चाहते, और जब मैं बिना तैयारी के, सहज रूप से बोलती हूं तो मुझे सिर्फ सच ही तो दिशा देता है। इसके अलावा," उन्होंने आगे जोड़ा,"मैं अपने प्रिय बोल्शेविकों को प्यार करती हूं।"

"मेरे प्रिय बोल्शेविक," मैंने दोहराया और हँसा, इसके बावजूद मुझे ये भी महसूस हुआ कि क्लेयर भीतर ही भीतर अपनी परिस्थितियों के बारे में साफ और यथार्थवादी नज़रिया रखती हैं। इसकी वज़ह ये रही है कि जब मैं उनसे बाद में 1931 में मिला तो उन्होंने बताया कि वे ट्यूनिस के बाहरी इलाके में रह रही हैं।

"लेकिन आप वहां पर क्यों रह रही हैं?" मैंने पूछा।

"वहां पर सस्ता पड़ता है," उन्होंने तत्काल जवाब दिया,"लंदन में मेरी सीमित आय है, उससे मैं ब्लूम्सबरी में दो छोटे कमरों के कमरों में ही रह पाती, जबकि ट्यूनिस में मेरा घर है, और नौकर चाकर हैं और डिक्की के लिए खूबसूरत बगीचा भी है।"

डिक्की की उन्नीस बरस की उम्र में मृत्यु हो गयी थी। ये एक ऐसा दुखदायी और भयावह झटका था जिससे वे कभी भी उबर नहीं पायीं। वे कैथोलिक बन गयीं और कुछ अरसे तक कॉन्वेंट में भी रहीं, धर्म की तरफ मुड़ गयीं। मेरा ख्याल है, राहत पाने के लिए उन्होंने ऐसा किया होगा।

मैंने एक बार दक्षिणी फ्रांस में एक समाधि शिला पर चौदह बरस की मुस्कुराती हुई एक लड़की की फोटो देखी जिस पर लिखा था, "क्यों?" पीड़ा के ऐसे पागल कर देने वाले पलों में कोई जवाब मांगना बेमानी होता है। ये आपको झूठे उपदेश देने और पीड़ा की तरफ ही ले जाता है और इसके बाद भी इसका ये मतलब नहीं होता कि आपको जवाब मिल ही जायेगा। मैं इस बात में विश्वास नहीं कर सकता कि हमारा अस्तित्व बिना किसी मतलब के या दुर्घटनावश है, जैसे कि कुछ वैज्ञानिक हमें बतायेंगे। ज़िंदगी और मौत बहुत अधिक तयशुदा और बहुत अधिक बेरहम हैं और कि ये दुर्घटनावश तो नहीं ही हो सकते।

ज़िदंगी और मृत्यु के ये तरीके, किसी जीनियस को बीच में से ही उठा लेना, दुनिया में उतार-चढ़ाव, महाविनाश और तबाहियां, ये सब बेमतलब और निर्रथक लगते हैं। लेकिन ये तथ्य कि ये बातें होती हैं, इस बात का प्रमाण हैं कि कुछ है जो हमारे त्रिविमीय मस्तिष्क के दायरे से परे एक दृढ़, निर्धारित प्रयोजन के साथ होता रहता है।

कुछ ऐसे दार्शनिक हैं जो यह दावा करते हैं कि सभी कुछ गति के किसी न किसी रूप में तत्व ही है। और सारे के सारे अस्तित्व में न तो कुछ जोड़ा जा सकता है और न ही घटाया ही जा सकता है। यदि तत्व गति है तो इस पर कार्य और कारण के कोई तो नियम लागू होते ही होंगे। अगर मैं इस बात को मान लूं तो हर गतिविधि पूर्व नियोजित है और यदि ऐसा है तो मेरा अपनी नाक का खुजाना भी उतना ही पूर्व निर्धारित है जितना की किसी तारे का टूटना। बिल्ली घर-भर में घूमती रहती है, पत्ते पेड़ से गिरते रहते हैं, बच्चा ठोकर खा कर गिरता है। क्या इन सारी की सारी गतिविधियों को किसी अनंत में तलाशा जा सकता है। क्या ये शाश्वत रूप में पूर्व निर्धारित और निरंतर चलने वाली क्रियाएं नहीं हैं। हम पत्ती के गिरने, बच्चे के ठोकर खाने का तत्काल कारण जानते हैं लेकिन हम उसकी शुरुआत और अंत का पता नहीं लगा सकते।

मैं दकियानूसी अर्थ में धार्मिक नहीं हूं। मेरे विचार ठीक वैसे ही हैं जैसे मैकाले के हैं, जिन्होंने इस आशय की बातें लिखी हैं कि सोलहवीं शताब्दी में ऐसी ही दार्शनिक विद्वता के साथ इन्हीं धार्मिक तर्कों पर बहस की जाती थी जैसी कि आज की जाती है और संचित ज्ञान और वैज्ञानिक प्रगति के बावज़ूद न तो अतीत में और न ही वर्तमान में किसी दार्शनिक ने इस मामले पर उससे आगे कोई आध्यात्मिक योगदान दिया है।

मैं किसी चीज़ में न तो विश्वास करता हूं और न ही अविश्वास ही करता हूं। यह कि जिसकी कल्पना की जा सकती है, सच का उतना ही अनुमान लगाने की तरह होता है जिस तरह से गणित से सिद्ध किये जाने वाली कोई बात होती है। आदमी हमेशा सच तक तर्क के ज़रिये ही नहीं पहुंच सकता। ये हमें सोच के ज्यामितिक ढांचे में बांध लेता है और इसके लिए तर्कसंगति और विश्वसनीयता की ज़रूरत होती है। हम अपने सपनों में मृतकों को देखते हैं और ये स्वीकार कर लेते हैं कि वे जीवित हैं जबकि उसी समय हम ये भी जानते हैं कि वे अब इस दुनिया में नहीं हैं। और हालांकि यह स्वप्न मस्तिष्क बिना किसी तर्क के नहीं है, क्या इसकी अपनी विश्वसनीयता नहीं है? तर्क के परे भी कई च़ीज़ें हुआ करती हैं। हम एक सेकेंड के लाखों-करोड़ोंवें हिस्से के होने से कैसे इन्कार कर सकते हैं जबकि वास्तव में वह गणित की गणनाओं के अनुसार अवश्य होगा ही।

मैं जैसे-जैसे बूढ़ा हो रहा हूं, मैं विश्वास से और ज्यादा घिरता जा रहा हूं। हम जितना सोचते हैं, उससे ज्यादा इसके साथ जीते हैं और जितना महसूस करते हैं, उससे ज्यादा इससे पाते हैं। मैं यह मानता हूं कि विश्वास हमारे सभी विचारों के लिए पूर्व पीठिका है। अगर विश्वास न होता तो न तो हमने मूल कल्पना की खोज की होती, न सिद्धंा, न विज्ञान और न ही गणित हमारे जीवन में आये होते। मेरा ये मानना है कि विश्वास मस्तिष्क का ही विस्तार है। ये वो कुंजी है जो असंभव का नकार करती है। विश्वास को न मानने का मतलब अपने आपको तथा उस शक्ति को नकारना है जो हमारी सारी सृजनात्मक शक्तियों को संचालित करती है।

मेरा विश्वास अज्ञात में है। उस सब में जिसे हम तर्क के ज़रिये नहीं समझ सकते। मैं यह विश्वास करता हूं कि जो कुछ हमारी सोच के दायरे से परे है, वह दूसरी दिशाओं में साधारण तथ्य होता है और अज्ञात की सत्ता के अंतर्गत एक ऐसी शक्ति होती है जो बेहतरी की असीम शक्ति के रूप में होती है।

हॉलीवुड में मैं अभी भी छड़ा ही था। मैं अपने खुद के स्टूडियो में काम करता था इसलिए दूसरे स्टूडियो में काम करने वालों से मिलने-जुलने के कम ही मौके मिलते। इसलिए मेरे लिए नये दोस्त बना पाना मुश्किल होता था। डगलस और मैरी ही मेरी सामाजिक मुक्ति थे।

अपनी शादी के बाद दोनों बेहद खुश थे। डगलस ने अपने पुराने घर को नये सिरे से बनवा लिया था और उसकी खूबसूरती से साज-सज्जा की थी और उसमें मेहमानों के लिए कई कमरे जोड़े थे। वे भव्य तरीके से रहते थे और उनके पास उत्कृष्ट सेवा, उत्कृष्ट खान-पान थे और सबसे बड़ी बात, डगलस और मैरी उत्कृष्ट मेजबान थे।

स्टूडियो में ही उनका विशालकाय क्वार्टर था। टर्किश बाथ के साथ ड्रेसिंग रूम और साथ में एक स्विमिंग पूल। यहीं पर वे अपने अत्यंत विशिष्ट मेहमानों की खातिरदारी करते, उन्हें स्टूडियो में लंच कराते, आस-पास का साइट सीइंग टूर कराते, और उन्हें दिखाते कि फिल्में किस तरह से बनती हैं और फिर उन्हें भाप स्नान कराते और तैरने के लिए आमंत्रित करते। इसके बाद मेहमान लोग उनके ड्राइंग रूम में रोमन सिनेटरों की तरह कमर पर तौलिया लपेटे बैठ जाते।

ये वाकई बेहूदगी भरा लगता कि आप भाप स्नान से निकल कर तरण ताल में छलांग लगाने के लिए उस तरफ लपक रहे होते कि बीच में सियाम नरेश (अब थाइलैंड अऩु) से आपका परिचय कराया जाता। आपको मैं बताऊं कि मैं कितनी ही विख्यात विभूतियां से टर्किश तौलिया बांधे मिला हूं। इनमें से कुछ, आल्बा के ड्यूक, ड्यूक ऑफ सूदरलैंड, आस्टेन चैम्बरलिन, द मार्केस ऑफ वियेना, द ड्यूक ऑफ पानारांडा और कई अन्य थे। जब किसी आदमी से उसके सभी सांसारिक अधिकार चिह्न उतरवा लिये जाते हैं तभी आप उसकी सच्ची तारीफ कर सकते हैं कि उसकी असली औकात क्या है। ड्यूक ऑफ आल्बा मेरे अनुमान पर बहुत कुछ खरे उतरे।

जब भी इन महान हस्तियों में से कोई पधारता तो डगलस मुझे ज़रूर बुलवा भेजते क्योंकि मैं उसके शो पीसों में से एक था। वहां पर ये रिवाज़ था कि स्टीम लेने के बाद आदमी आठ बजे के आस-पास पिकफेयर में पहुंचेगा, साढ़े आठ बजे डिनर लेगा और डिनर के बाद फिल्म देखेगा। इसलिए कभी इस बात का मौका ही नहीं मिल पाया कि मैं किसी से अंतरंगता स्थापित कर पाऊं। अलबत्ता, कभी-कभार, मैं फेयरबैंक्स दम्पत्ति को उनके खूब सारे मेहमानों से मुक्ति दिला देता और उनमें से कुछ को अपने घर पर टिका देता। लेकिन मैं इस बात को स्वीकार करता हूं कि मेरी मेहमाननवाजी फेयरबैंक्स दम्पत्ति की मेहमाननवाजी की तुलना में कहीं नहीं ठहरती थी।

प्रतिष्ठित हस्तियों की मेज़बानी करते समय फेयरबैंक्स दम्पत्ति अपने सर्वोत्तम रूप में होते। वे उनके साथ सहज अनुकूलता स्थापित कर लेते जो कि मेरे लिए मुश्किल होती। हां, ड्यूकों की आवभगत करते समय पहली रात तो महामहिम जैसे संबोधन लगातार सुनायी देते रहते लेकिन जल्दी ही ये महामहिम अपनापन लिये जॉर्जी और जिम्मी बन चुके होते।

डिनर के वक्त डगलस का प्रिय छोटा-सा दोगला कुत्ता अक्सर आ जाता और डगलस सहज, ध्यान बंटाने के तरीके से कुत्ते से बेवकूफी भरी ट्रिक करवाते जिससे माहौल जिसके बंधा-बंधा और औपचारिक होने का डर था, थोड़ा अनौपचारिक और आत्मीय हो जाता। मैं कई बार डगलस की शान में मेहमानों द्वारा फुसफुसा कर कही गयी तारीफों का गवाह रहा हूं। "क्या शानदार व्यक्ति है!" महिलाएं गोपनीय तरीके से फुसफुसातीं। और हां, वे थे भी शानदार व्यक्ति। महिलाओं को उनसे बेहतर तरीके से और कोई आकर्षण में बांध ही नहीं सकता था।

लेकिन एक बार ऐसा हुआ कि डगलस भी झमेले में फंस गये। मैं स्पष्ट कारणों से नामों का उल्लेख नहीं कर रहा हूं लेकिन जो लोग आये थे, वे खास थे, उनकी ऊंची ऊंची पदवियां थीं और डगलस ने उनकी तीमारदारी में और उन्हें हर तरह से प्रसन्न रखने में पूरा हफ्ता खपा दिया। जो मेहमान आये थे, वे हनीमून पर निकले दम्पत्ति थे। जिस चीज़ की भी कल्पना की जा सकती थी, उससे उनकी आवभगत की गयी थी। कैटेलिना में उनके लिए निजी याच पर मछली मारने के अभियान की व्यवस्था थी, जहां पर मैंने और डगलस ने एक बछड़ा कटवाया था और समुद्र में नीचे जाने दिया था ताकि वह मछलियों का चुग्गा बन सके (लेकिन मेहमानों ने कोई मछली नहीं पकड़ी।) इसके बाद स्टूडियो के ग्राउंड पर एक मोटर साइकिलों के खास प्रदर्शन का इंतज़ाम किया गया था। लेकिन खूबसूरत, छरहरी दुल्हन, हालांकि विनम्र थी, बेहद चुप रहने वाली लड़की थी और ज़रा-सा भी उत्साह नहीं दिखा रही थी।

हर रात डिनर के समय डगलस इस बात की कोशिश करते कि उसे खुश कर सकें लेकिन उनके सारे हँसी-मज़ाक और जोश मोहतरमा को उनके ठंडे बरताव से बाहर नहीं निकाल पाये।

चौथी रात डगलस मुझे एक तरफ ले गये,"वह मुझे हैरान कर रही है। मैं उससे बात ही नहीं कर सकता," कहा उन्होंने,"इसलिए आज की रात मैंने इस तरह का इंतज़ाम किया है कि तुम उसकी बगल वाली सीट पर बैठोगे।" वे हँसी दबा कर बोले,"मैंने उसे बताया है कि तुम कितने मेधावी और मज़ेदार हो।"

डगलस की योजना के बाद डिनर के लिए अपनी सीट पर बैठने से पहले मैं अपने आपको वैसे ही सहज महसूस करने लगा जैसे कोई पैरा ट्रूपर छलांग लगाने से पहले महसूस करता है। अलबत्ता, मैंने यही सोचा कि मैं पहले रहस्यपूर्ण नज़रिया अपनाऊंगा। इसलिए मेज़ पर अपना नैपकिन लेते हुए मैं झुका और मोहतरमा के कान में फुसफुसाया,"हिम्मत मत हारो।"

वह मुड़ी, वह समझ नहीं पायी कि मैंने क्या कहा है,"माफ करना मैं समझी नहीं!"

"हिम्मत मत हारो।" मैंने दोबारा रहस्यपूर्ण तरीक से कहा।

वह हैरान हो कर देखने लगी, "हिम्मत मत हारो!"

"हां," मैंने अपने घुटनों पर अपना नैपकिन ठीक से लगाते हुए कहा, और सीधा सामने की तरफ देखने लगा।

वह एक पल के लिए रुकी, मुझे देखती रही, और फिर बोली,"आप ऐसा क्यों कह रहे हैं?"

मैंने एक मौका लिया,"क्योंकि आप बहुत उदास हैं।" और इससे पहले कि वह जवाब दे सके, मैंने अपनी बात जारी रखी,"देखिये आप, मैं आधा जिप्सी हूं और इन सारी बातों को जानता हूं। आप किस महीने में पैदा हुई थीं?"

"अप्रैल!"

"बेशक, ऐरीज, मुझे पता होना चाहिये था।"

वह सतर्क हो गयी, और उसे स्वाभाविक रूप से होना भी चाहिये था।

"क्या जानना चाहिये था?" वह मुस्कुरायी।

"ये महीना आपकी ऊर्जस्विता के नीचे रहने का महीना है।"

वह एक पल के लिए सोचने लगी,"ये तो बहुत हैरानी की बात है कि आप ये कह रहे हैं!"

"ये बहुत आसान है अगर आदमी में अंतर्दृष्टि हो। ठीक इस वक्त आपका प्रभा मंडल नाखुशी वाला है।"

"क्या ये इतना स्पष्ट है?"

"शायद दूसरों को नहीं!"

वह मुस्कुरायी और एक पल के लिए रुकने के बाद सोचते हुए कहने लगी,"कितनी हैरानी की बात है कि आप ये कह रहे हैं। हां, ये सच है, मैं बहुत हताश हूं।"

मैंने सहानुभूति से सिर हिलाया,"ये आपका सबसे खराब महीना है।"

"मैं कितनी उपेक्षित हूं! मैं बहुत हताशा महसूस करती हूं।" उसने अपनी बात जारी रखी।

"मेरा ख्याल है, मैं इस बात को समझता हूं।" मैंने कहा, यह जाने बिना कि आगे क्या होने जा रहा है।

वह उदासी से कहती रही,"काश, मैं भाग पाती, हर चीज़ और हर व्यक्ति से दूर, मैं कुछ भी करूंगी, मैं नौकरी करूंगी, फिल्मों में एक्स्ट्रा की भूमिका करूंगी, लेकिन इससे उन सबको तकलीफ होगी जो मुझसे जुड़े हैं और वे इतने अच्छे हैं कि उन्हें ये तकलीफ नहीं दी जानी चाहिये।"

वह बहुवचन में बात कर रही थी लेकिन मैं बेशक इस बात को जानता था कि वह अपने पति के बारे में ही बात कर रही है। अब मैं सतर्क हो गया। इसलिए मैंने रहस्यवाद का सारा जामा उतार दिया और उसे एक गम्भीर सलाह देने की कोशिश की, बेशक ये सलाह मामूली सी ही थी,"भागना बेकार है। जिम्मेवारियां हमेशा आपका पीछा करेंगी।" कहा मैंने, "ज़िंदगी चाहतों की अभिव्यक्ति होती है। आज तक कोई संतुष्ट नहीं हो सका है। इसलिए जल्दीबाजी में कोई भी काम मत कीजिये। ऐसा कोई भी कदम मत उठाइये जिससे ज़िंदगी-भर पछताना पड़े।"

"मेरा ख्याल है आप सही कह रहे हैं।" उसने सोचते हुए कहा,"अलबत्ता, मैं किसी ऐसे व्यक्ति से बात करके कितनी राहत महसूस कर रही हूं जो समझता है।"

दूसरे मेहमानों के साथ बात करते हुए भी डगलस बीच-बीच में हमारी दिशा में निगाह फेर रहे थे। अब मोहतरमा ने उनकी तरफ देखा और मुस्कुरायी।

डिनर के बाद, डगलस मुझे एक तरफ ले गये,"आखिर तुम दोनों क्या बातें कर रहे थे? मुझे तो ऐसा लगा कि तुम दोनों एक दूसरे के कान ही कुतर डालोगे।"

"अरे नहीं, ऐसी कोई बात नहीं, बस मूलभूत सिद्धांतों की बातें।" मैंने अकड़ के साथ कहा।